पारो का नाटक

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  2. नाटक किसे कहते हैं? नाटक के प्रमुख तत्त्व और विशेषता (नाटक की परिभाषा)
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paaro kee kahaanee

लोगों की राय • चौकड़िया सागर Yes Arvind Yadav • सम्पूर्ण आल्ह खण्ड Rakesh Gurjar • हनुमन्नाटक Dhnyavad is gyan vardhak pustak ke liye, Pata hi nai tha ki Ramayan Ji ke ek aur rachiyeta Shri Hanuman Ji bhi hain, is pustak ka prachar krne ke liye dhanyavad Pratiyush T • क़ाफी मग " कॉफ़ी मग " हल्का फुल्का मन को गुदगुदाने वाला काव्य संग्रह है ! " कॉफ़ी मग " लेखक का प्रथम काव्य संग्रह है ! इसका शीर्षक पुस्तक के प्रति जिज्ञासा जगाता है और इसका कवर पेज भी काफी आकर्षक है ! इसकी शुरुआत लेखक ने अपने पिताजी को श्रद्धांजलि के साथ आरम्भ की है और अपने पिता का जो जीवंत ख़ाका खींचा है वो मनोहर है ! कवि के हाइकु का अच्छा संग्रह पुस्तक में है ! और कई हाइकू जैसे चांदनी रात , अंतस मन , ढलता दिन ,गृहस्थी मित्र , नरम धूप, टीवी खबरे , व्यवसाई नेता व्यापारी, दिए जलाये , आदि काफी प्रासंगिक व भावपूर्ण है ! कविताओं में शीर्षक कविता " कॉफ़ी मग " व चाय एक बहाना उत्कृष्ट है ! ग़ज़लों में हंसी अरमां व अक्सर बड़ी मनभावन रचनाये है ! खूबसूरत मंजर हर युवा जोड़े की शादी पूर्व अनुभूति का सटीक चित्रण है व लेखक से उम्मीद करूँगा की वह शादी पश्चात की व्यथा अपनी किसी आगामी कविता में बया करेंगे ! लेखक ने बड़ी ईमानदारी व खूबसूरती से जिंदगी के अनुभवों, अनुभूतियों को इस पुस्तक में साकार किया है व यह एक मन को छूने वाली हल्की फुल्की कविताओं का मनोरम संग्रह है ! इस पुस्तक को कॉफी मग के अलावा मसाला चाय की चुस्की के साथ भी आनंद ले Vineet Saxena • आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास Bhuta Kumar • पांव तले भविष्य 1 VIJAY KUMAR • कारगिल Priyanshu Singh Chauhan • सोलह संस्कार kapil thapak • सोलह संस्कार kapil thapak • कामसूत्रकालीन समाज एव...

नाटक किसे कहते हैं? नाटक के प्रमुख तत्त्व और विशेषता (नाटक की परिभाषा)

आपसभीनेनाटकज़रूरदेखाहोगा। अभिनयकेमाध्यमसेसमाजएवंव्यक्तिकेचरित्रोंकाप्रदर्शनही‘नाटक’कहलाताहै।यहदृश्यकाव्यकेअंतर्गतआताहैजोरंगमंचकाविषयहै।इसकाउद्देश्यशिक्षणऔरमनोरंजनकेसाथ-साथमानवीयसंवेदना, समस्याएवंसमाजकेयथार्थकाचित्रणकरनाहै।औरआजहमइसीकेबारेमेंबातकरनेवालेहैंकि नाटककिसेकहतेहैं?औरनाटककेप्रमुखतत्त्वकौन-कौनसेहैं? हिंदीमेंनाटकलिखनेकीपरम्पराभारतेंदुयुगसेमानीगईहै।भारतेंदुहरिश्चंद्रका‘अँधेरनगरी’, प्रसादका‘चंद्रगुप्त’, ‘ Table of Contents • • • • • • • • • नाटककिसेकहतेहैं? नाटककाव्यकलाकासर्वश्रेष्ठअंगहै।अभिनयकेमाध्यमसेसमाजएवंव्यक्तिकेचरित्रोंकाप्रदर्शनहीनाटकहै।इसमेंकथा-तत्त्वकीप्रधानताहोतीहै।परम्परागतरूपसेनाटककम-से-कमपाँचअंकोंकाहोनाचाहिए, जिसमेंआरम्भ, विकास, चरमएवंअंतदिखायाजाताहै। भारतीयपरंपरामेंनाटकको‘पंचमवेद’कहागयाहै। नाटककीउत्पत्तिकेसंबंधमेंविभिन्नमतप्रचलितहैं।किंतुविद्वानोंनेनाटककेमूलमेंअनुकरणकीप्रवृत्तिकोमुख्यमानाहै।नाटककेमूलमेंमनुष्यकीचारप्रवृत्तियाँकामकरतीरहतीहैं- अनुकरण, आत्म-प्रसार, जातिकीरक्षाकाभावऔरआत्माभिव्यक्ति। नाटककेप्रमुखतत्त्वकौन-सेहैं? नाटककेमुख्यतःसाततत्त्वमानेगएहैं, जोनिम्नलिखितहैं। कथावस्तुकिसेकहतेहैं? नाटककीकहानीकोकथावस्तुकहतेहैं।किंतुनाटककारउपन्यासकारकीतरहविस्तृतकथावस्तुकेचयनकेलिएस्वतंत्रनहींहोता।उसेसीमितअवधि (तीन-चारघंटे) मेंअभिनीतकिएजानेयोग्यकथा-सामग्रीकाउपयोगकरनापड़ताहै। अतःवहविस्तृतकथावस्तुसेअपनेमतलबकेतथ्यकोचुनलेताहै। नाटककीकथावस्तुदोप्रकारकीहोतीहै; आधिकारिकएवंप्रासंगिक। नाटककीमुख्ययाप्रधानकथाकोआधिकारिकएवंगौणयासहायककथावस्तुकोप्रासंगिककथावस्तुकहतेहैं।प्रासंगिककथावस्तुकेभीदोभेदहैं- (i) पताकाऔर (ii) प्रकरी।मुख्यकथाकेसाथअंततकचलनेवालीप्रासंगिककथा‘प्रकरी’कहलातीहैजब...

Paro Archives

बड़े-बड़े आलीशान कलात्मक सेट, झूमर, रौशनी से नहाता हुआ पूरा परिदृश्य, खूबसूरत कौस्टयूम, ग्रामीण भारत में भव्य हवेली, डांस ग्रुप के द्वारा अदभुत डांस परफोर्मेंस और कलाकारों के उम्दा अभिनय सब कुछ मिलाकर ये समझना मुश्किल हो रहा था कि ये एक रंगमंच है, जहां बंगाल के सुप्रसिद्ध लेखक शरतचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा लिखित नाटक ‘देवदास’ का भव्य मंचन किया जा रहा है. कुछ पल के लिए तो यह भूल जाना पड़ा कि यह एक प्रेम कहानी है, जिसकी छाप हर किसी के दिल में है और इसे सजीव देख रहे हैं. नाटक के क्षेत्र में ये पहली बार है कि इतनी प्रसिद्ध कहानी को कलाकारों ने रंगमंच के द्वारा कहने की कोशिश की है. आश्विन गिडवानी और ए जी पी वर्ल्ड द्वारा इसका क्लासिक नाटकीय रूपान्तरण अदभुत है, जिन्होंने पूरे वैभव के साथ इसे मंच पर प्रस्तुत किया है. इसका नाटकीय रूप निर्देशक और पटकथा लेखक सैफ हैदर हसन ने बहुत ही खूब सूरत ढंग से किया है. संगीतमय इस नाटक में वेश्या चंद्रमुखी की भूमिका निभाने वाली भावना पानी, पारो की भूमिका में आंचल चौहान, चुन्नी बाबू की भूमिका में जौय सेनगुप्ता और देवदास की भूमिका में सुनील पलवल ने बहुत ही खूबसूरत अभिनय किया है. कौशल्या मां की भूमिका में कोमल छाबरिया का अभिनय काबिले तारीफ है. इसके अलावा शम्पा गोपी कृष्ण की कोरियोग्राफी देखने लायक है. वहीं नेशनल अवार्ड विजेता आर्ट एंड सिनेमेटिक निर्देशक उमंग कुमार की सेट डिजाइनिंग बहुत ही क्लासिक है. प्रेम की इस दास्तान में निर्देशक ने देवदास के बाद चंद्रमुखी और पारो का क्या होता है, उसे बताने की कोशिश की है. ये नाटक मुंबई के बाद दिल्ली, कई बड़े शहरों और विदेश में जाएगा. कहानी वही है, जहां देवदास को बचपन से पारो से प्यार होता है, पर उसके पिता ये नहीं चाह...

Paro attacks the evils of child marriage

प्रस्तुति की ओर से प्रख्यात रचनाकार नागार्जुन के मैथिली उपन्यास पारो पर आधारित नाटक का मंचन प्रेमचंद रंगशाला किया गया। नाटक में संगीत संजय उपाध्याय का, परिकल्पना व निर्देशन शारदा सिंह के साथ नाट्यालेख विवेक कुमार का रहा। इसमें स्वतंत्रता पूर्व देश में व्याप्त बेमेल विवाह और बाल विवाह जैसी कुरीतियों पर प्रहार किया गया है। पारो जैसी किशोरियों के लिए विवाह की तुलना एक भयावह वैतरणी से की गई। इस वैतरणी को पार करने के क्रम में नायिका को अपने जीवन से हाथ धोना पड़ता है। ब्रजकांत पारो के प्रति संवेदनशील तो है लेकिन पारो की कोई सहायता नहीं कर पाता है। दोनों के बीच एक विचित्र संबंध विकसित हो जाता है। प्रौढ़ वर और पारो जैसी बालिकाओं का विवाह समाज में एक सामान्य घटना मानी जाती थी। अल्पायु में विवाह की परिणति अत्यंत त्रासद होती है। नाटक मैथिल परिवेश में रचा-बुना है। मैथिली लोकगीत और मैथिली कविताओं के माध्यम से मिथिला की मिट्टी की सोंधी सुगंध स्थापित करने का प्रयास किया गया है। नाटक पारो के कलाकार की भूमिका में वर्षा कुमारी, विनिता सिंह, अभिषेक आनंद साधना श्रीवास्तव, स्पर्श मिश्रा, नेहा निहारिका समेत अन्य थे।

नाटक

नाटक नाटक काव्य का एक रूप है, अर्थात जो गोपाल चन्द्र गिरधरदास” हैं। इंद्रिय ग्राह्यता के आधार पर दृश्य और श्रव्य। रूपक तथा उपरूपक। रूपक की परिभाषा देते हुए कहा गया है ‘ तदूपारोपात तु रूपम्।’ वस्तु, नेता तथा रूपक के दस भेद भारतीय आचार्यों ने स्वीकार किए हैं- नाटक, प्रकरण, भाषा, प्रहसन, डिम, व्यायोग, समवकार, वीथी, अंक और ईहामृग। रूपक के इन भेदों में से नाटक भी एक है। परन्तु प्रायः नाटक को ही रूपक की संज्ञा भी दी जाती है। नाटक अर्थात् रूपक को तीनों लोकों के भावों का अनुकरण मानते हुए नाट्यशास्त्र में भरतमुनि लिखते हैं- नाराभावोपसम्पन्नं नानावस्थान्तरात्मकम्। लोकवृत्तानुकरं नाट्यमेतन्मया कृतम्।। अर्थात कह सकते हैं कि “ नाटक काव्य का एक रूप है, अर्थात जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक कहते हैं।” धनंजय ने ‘ अवस्था के अनुकरण‘ को नाटक कहा और उसमें आंगिक, वाचिक, आहार्य और सात्विक चार प्रकार के अभिनय की स्थिति मानी। विश्वनाथ ने कहा कि नाटक की कथा इतिहास प्रसिद्ध होनी चाहिए। कथावस्तु मुख आदि पाँच संधियों, विलास, ऋद्धि, आदि गुणों तथा अनेक प्रकार के ऐश्वयों से पूर्ण हो। इसकी निबन्धता गौ की पूँछ के अग्रभाग के समान होनी चाहिए। अर्थात् बीज रूप में वर्णित कथा एक क्रम में पुष्पित होकर फल को प्राप्त कराये। भरतमुनि ने कहा कि नायक, दिव्य धीरोदात्त तथा उच्च कुल का हो, सुख-दु:ख विषय वर्ण्य सामग्री विभिन्न रसों से सिक्त हो, नाटक के कथोपकथनों में प्राय: संक्षिप्तता, रसानुभूति क्षमता, सरलता, औचित्य, सजीवता तथा पात्रानुकूलता का होना अनिवार्य माना गया है। नाटक के अंग (तत्व) भारतीय काव्यशास्त्र में वस्तु, अभिनेता, रस आदि को नाटक का आवश्य...