पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

  1. पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।
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पाठ के आधार पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएं लिखिए।

बालगोबिन भगत के संगीत में एक अद्भुत जादू था। वे सदैव कबीर ‘साहब’ के सीधे-सादे पद गाया करते थे। वे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे। स्वयं लेखक भी उनके संगीत पर मुग्ध थे। उनके गीतों को सुनकर बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ काँप उठते थे और वे भी गीत गुनगुनाने लगती थौं । हल चलाते हलवाहों के पैर विशेष क्रम ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि तरंगें लोगों को झंकृत कर देती थी। उनके संगीत से ऐसा लगता था कि स्वर की एक तरंग स्वर्ग की ओर जा रही है, तो दूसरी तरंग लोगों के कानों की ओर । भयंकर सर्दी या उमसभरी गर्मी उनके स्वर को डिगा नहीं सकती। वे पूर्ण तल्लीनता के साथ गाते थे। झिाली की झंकार या दादुरों की टर्र-टर उनके संगीत को अपने कोलाहल में डुबो नहीं सकती। उनकी खंजड़ी डिमग-डिमग बजती रहती और वे गा रहे होते – गोदी में पियवा, चमक उठे सखिया । भादों की आधी रात को भी वे गाने लगते तेरी गठरी में लागा चोर, मुसाफिर जाग जरा तो उस समय अंधेरे में अकस्मात कौंध उठनेवाली बिजली की तरह सभी को चौंका देती थी। यों बालगोबिन भगत का संगीत अद्भुत था।

पाठ के आधर पर बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषताएँ लिखिए।

बालगोबिन भगत के गीतों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण था। खेतों में जब वे गाना गाते तो स्त्रियों के होंठ बिना गुनगुनाए नहीं रह पाते थे। गर्मियों की शाम में उनके गीत वातावरण में शीतलता भर देते थे। संध्या समय जब वे अपनी मंडली समेत गाने बैठते तो उनके द्वारा गाए पदों को उनकी मंडली दोहराया करती थी, उनका मन उनके तन पर हावी हो जाता था, मन के भाव शरीर के माध्यम से प्रकट हो जाते थे और वे नाचने-झूमने लगते थे।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11 – Balgobin Bhagat (बालगोबिन भगत) Textbook Hindi Class 10 Kshitij (क्षितिज भाग 2) Chapter 11 – Balgobin Bhagat (बालगोबिन भगत) Author Ramvriksh Benipuri (रामवृक्ष बेनीपुरी) Khand Gadya Khand (गद्य खंड) प्रश्न-अभ्यास 1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कहलाते थे? उत्तर- 1) उनमें लालच बिल्कुल नहीं था। 2) वह दूसरो की चीज नहीं छूते थे। 3) वह दुख व सुख मे समान व्यवहार करते थे। 4) वह कबीर के आर्दशो पर चलते थे। 5) वह कभी झूठ नहीं बोलते थे। 2. भगत की पुत्रवधू उन्हे अकेले क्यो नहीं छोड़ना चाहती थी? उत्तर- भगत की पुत्रवधू उन्हे अकेला नहीं छोड़ना चाहती थी क्योंकि अब इस दुनिया मे उसके सिवा भगत का और कोई था भी नहीं जो भगत की सेवा कर सके। 3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ कैसे व्यक्त की? उत्तर- भगत ने अपने बेटे के शव को चटाई पर लेटा दिया तथा वह कबीर के भजन गाने लगा। वह अपनी पुत्रवधू से कहने लगा कि यह शोक का नहीं बल्कि उत्सव मानाने का समय है। बिछड़ी हुई आत्मा अपने प्रियतम ईश्वर से जा मिली है। 4. भगत के व्यक्तित्व और उनकी वेशभूषा का अपने शब्दों मे चित्र प्रस्तुत कीजिए। उत्तर- भगत जी एक गृहस्थ आदमी थे पंरतु उनमे गुण सारे साधुयो के ही थे। वह कभी झूठ नहीं बोलते थे, कभी किसी की चीज नहीं छूते। वह ठंड के मौसम मे भी प्रातः काल ही गंगा स्नान करते। उसके बाद कबीर भजन गाते रहते थे। भगत जी गले मे तुलसी के जड़ की माला पहनते थे व सर मे कबीर पंथियो की तरह टोपी पहनते थे। वह कपड़े बस नाम मात्र के ही पहनते थे और ठंड मे बस एक काला कंबल ओढ़ लेते थो 5. भगत की दिनचर्या लोगो के अचरज का कारण क्यों थी? उत्तर- भ...

पाठ के आधार पर भगत के मधुर गायन की विशेषताँ लिखिए। from Hindi रामवृक्ष बेनीपुरी

लेखक के अनुसार बालगोबिन भगत कबीर के भगत थे। वे कत्पीर को ‘साहब’ कहते थे। वे कबीर के बताए नियमों का दृढ़ता से पालन करते थे। उनके अनुसार उनकी सब चीजें ‘साहब’ की देन हैं। उनके खेत में जो भी पैदावार होती थी, उसे सिर पर लादकर ‘साहब’ के दरबार में पहुँचाते थे। वह सब कुछ भेंट स्वरूप दरबार में रख देते थे। वापसी में जो कुछ भी ‘प्रसाद’ के रूप में मिलता उससे अपना निर्वाह करते थे। बालगोबिन भगत कबीर की तरह ही भगवान के निराकार रूप को मानते थे। वे मृत्यु को दुःख का नहीं आनंद मनाने का अवसर मानते थे। कबीर जी ने आत्मा को परमात्मा की प्रेमिका बताया है जो मृत्यु उपरांत अपने प्रियतम से जा मिलती है। बालगोबिन भगत ने कबीर की वाणी का पालन करते हुए अपने पुत्र के मृत शरीर को फूलों से सजाया और पास में दीपक जलाया। वे स्वयं भी पुत्र के मृत शरीर के पास बैठकर पिया मिलन के गीत गाने लगे। उन्होंने अपनी पुत्रवधू को भी रोने के लिए मना कर दिया था। इससे पता चलता है कि बालगोबिन भगत की कबीर पर अगाध श्रद्धा थी। वे कबीर के पद इस ढंग से गाते थे जैसे सभी जीवित हो जाएंगे। बालगोबिन भगत समाज में प्रचलित मान्यताओं को नहीं मानते थे। वे जाति-पाति में विश्वास नहीं रखते थे। सब लोगों को एक समझते थे। वे भी भगवान के निराकार रूप को मानते थे। भगत मृत्यु को भी आनंद मनाने का अवसर मानते हैं। जब उनके इकलौते बेटे की मृत्यु होती है तो वे अपने बेटे के मृत शरीर को फूलों से सजाते हैं और गीत गाते हैं। उनके अनुसार आज आत्मा रूपी प्रेमिका परमात्मा रूपी प्रेमी से मिल गई हैं उसके मिलन पर आनंद मनाना चाहिए अफसोस नहीं। भगत ने अपने बेटे का क्रिया-कर्म अपनी पुत्रवधू से कराया। उनकी पुत्रवधू ने ही अपने पति की चिता को अग्नि दी थी। उनकी जाति में विधवा के ...