पैगम्बर मुहम्मद का इतिहास

  1. पैगंबर मुहम्मद का जीवन परिचय तथा उनकी शिक्षाएं
  2. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) का जन्म और शुरुआती साल
  3. इस्लाम का उदय
  4. मोहम्मद साहब की असलियत
  5. पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का विदायी अभिभाषण (इस्लाम में मानवाधिकार)
  6. पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का विदायी अभिभाषण (इस्लाम में मानवाधिकार)
  7. पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) का जन्म और शुरुआती साल
  8. मोहम्मद साहब की असलियत
  9. पैगंबर मुहम्मद का जीवन परिचय तथा उनकी शिक्षाएं
  10. इस्लाम का उदय


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पैगंबर मुहम्मद का जीवन परिचय तथा उनकी शिक्षाएं

हज़रत मुहम्मद अरब के एक धार्मिक और सामाजिक नेता तथा इस्लाम के संस्थापक थे। इस्लामी दर्शन के अनुसार, वह अल्लाह की शिक्षाओं को फैलाने के लिए अल्लाह द्वारा भेजे गए एक नबी थे। इस लेख में, हम पैगंबर मुहम्मद के जीवन इतिहास पर ध्यान केंद्रित करेंगे तथा साथ ही साथ हम पैगंबर मुहम्मद के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को भी जानने की कोशिश करेंगे। हज़रत मुहम्मद क़ुरैश जनजाति से थे, जो इब्राहीम के ईश्वर होने में विश्वास रखते थे। शायबा हाशिम का पुत्र था। शायबा का नाम अब्दुल मुत्तलिब रखा गया। अब्दुल मुत्तलिब के दस बेटे थे। एक बार मक्का में कुआं खोदने का परोपकार का कार्य करते हुए उन्होंने अल्लाह से वादा किया कि काम पूरा होने के बाद वह अल्लाह के नाम पर अपने एक बेटे की कुर्बानी देंगे। फिर वह दिन आया जब कुआं खोदने का कार्य खत्म हो गया अनुष्ठान के अनुसार, यह जानने के लिए कि देवता क्या चाहते हैं, उन्होंने एक मूर्ति के सामने, प्रत्येक पुत्र का नाम लिखते हुए, दस बाण रखे। जिसमे से अब्दुल्ला नाम का तीर मूर्ति की ओर आगे बढ़ा और लोगों ने ऐसा मान लिया की देवता उस पुत्र की बलि मांग रहे हैं। अब्दुल्ला की कुर्बानी की तैयारी शुरू हो गई। सभी लोगों ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी, लेकिन अब्दुल मुत्तलिब एक बेटे की बलि देने के लिए अपनी बात पर अड़े थे। लोग दुख में चिल्लाने लगे। तब एक आत्मा एक पुजारी के शरीर में प्रवेश कर गई और कहा कि ऊंट की बलि भी स्वीकार्य होगी। लोगों के लिय यह राहत की उम्मीद थी। उस आत्मा ने लोगों से उस महिला के पास जाने को कहा जो गाँव में ज्योतिषी थी। लोग उनके पास यह पूछने गए कि अब्दुल्ला की जान बचाने के लिए कितने ऊंटों की बलि देनी चाहिए। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते ह...

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) का जन्म और शुरुआती साल

अल्लाह के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का जन्म 570 ई0 को मक्का के एक सम्मानित परिवार बनू हाशिम (हाशमी वंश) में हुआ, जिसे मक्का में और मक्का के आस-पास के कबीलों में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। इस वंश के साथ-साथ विशेष रूप से Muhammad (SAW) से एक कष्टप्रद और असहनीय व्यक्तिगत इतिहास भी ज़ुड़ा हुआ है। पिता का निधन उनके पिता अव्दुल्लाह का देहान्त उस समय हुआ जब उनकी माँ आमिना (रजि0) दो महीने की गर्भवती थीं। अपने देहान्त के समय उनके पिता मक्का के उत्तर में स्थित यस्रीव नगर की यात्रा पर थे। मुहम्मद (सल्ल0) को मक्का में दो प्रकार की परस्थितियों से सामना था; एक मानसिक तनाव यह था कि जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता का देहान्त हो चुका था जिसके कारण उनके जीवन में स्थिरता नहीं थी और दूसरी ओर वह एक संग्रान्त वंश से सम्बन्ध रखते थे। आप का जन्म पीड़ाहीन रहा ‘मुहम्मद’ नाम जिसका अर्थ प्रशंसित अथवा प्रशंसा योग्य है और यह नाम उस समय अरब प्रायद्धीप में प्रचलित नहीं था। यह नाम उनकी माँ के मन में उसी समय आ गया था जब मुहम्मद (सल्ल0) अभी गर्भ में थे। कहा जाता है कि यही स्वप्न उनको“जननायक” के जन्म के समय भी दिखाया गया था इस स्वप्न के अनुसार जब आप (ﷺ) का जन्म हुआ तो वह ये शब्द कहती थीं, ‘शैतान के धोखे से सुरक्षा के तिए मैं इन्हें एक मात्र अल्लाह के शरण में देती हूँ।’ अपने पति की मृत्यु के शोक और बच्चे के जनम के स्वागत की प्रसन्नता के बीच आमिना (रजि0) बार-बार कहती थीं कि इस गर्भ के साथ आश्चर्यजनक निशानियाँ बारम्बार घटित होती रहीं और इसके पश्चात असाधारण रूप से बच्चे का जन्म पीड़ाहीन रहा। शुरुआती जीवन अनाथ हजरत मुहम्मद (सल्ल0) चार वर्षों तक दाई हलीमा (रजि0) की देख-रेख में अरव मरुस्थल के बनू साद (साद की सन्त...

इस्लाम का उदय

• ईसा पश्चात् सातवीं शताब्दी की पहली चौथाई में पैगम्बर मुहम्मद साहिब ने इस्लाम की नींव डाली और उनकी मृत्यु के बाद 80 वर्ष के थोड़े-से काल के अन्दर ही यह नया धर्म संसार के कई देशों , जैसे ईरान , सीरीया , पश्चिमी तुर्किस्तान , सिन्ध , मिस्र और दक्षिणी स्पेन में फैल गया। • डॉक्टर वी. ए. स्मिथ का कहना है कि ' मुहम्मद साहिब का धर्म इस्लाम जिस विद्युत गति से फैला और जिस नाटकीय आकस्मिकता से उनके अनुयायी एक प्रभुत्वशाली प्रभुसत्ता की स्थिति को प्राप्त हुए यह एक आश्चर्य की बात है , इसे इतिहास का एक चमत्कार कहा जा सकता है। पैगम्बर मुहम्मद साहिब का जीवन Life of Prophet Muhammad Sahib पैगम्बर मुहम्मद साहिब को संसार की एक महानतम पूज्य आत्मा समझा जाता है और उनकी गिनती भगवान कृष्ण , महात्मा बुद्ध , भगवान मसीह तथा गुरु नानक जैसी सुख-वर्षा करने वाली महान आत्माओं में होती है। पैगम्बर मुहम्मद साहिब के जीवन का संक्षेप अध्ययन प्रारम्भिक जीवन ( Early Life) • मुहम्मद साहिब का जन्म 570 ई. में धरती के सबसे कम आतिथ्यकारी प्रदेश अरब में मक्का नामक स्थान पर हुआ। • मक्का एक भौतिकवादी व्यापारिक नगर था , " जहाँ लाभ-लोलुपता तथा सूदखोरी का राज्य था , जहाँ अपने अवकाश काल में लोग स्त्री , मदिरा तथा जुआ सेवन में रत रहते थे , जहाँ ' जिसकी लाठी उसकी भैंस ' का नियम लागू था , जहाँ विधवाओं , अनाथों तथा बूढों को एक व्यर्थ का बोझ समझा जाता था " • मुहम्मद एक ऐसा बच्चा था जो अपने पिता की मृत्यु के बाद पैदा हुआ था और जिसकी माँ भी चल बसी जबकि यह केवल छ: वर्ष का था। इस अनाथ को. इसके चचा अबू तालिब पाला। इसने अपना बचपन घोर निर्धनता तथा कठिनाइयों के हालात के बीच बिताया और वह बिना किसी शिक्षा तथा देखभाल के बड़ा हुआ। • डाक्ट...

मोहम्मद साहब की असलियत

यूँ तो ये पूरा विश्व भांति भांति के लोगों से भरा हुआ है. हर मनुष्य अपने आप में निराला और अनोखा होता है. परन्तु कुछ ऐसे भी ज्ञानी लोग हमारे बीच समय समय पर विराजमान हो जाते हैं जो दिखते तो हम और आप जैसे साधारण मनुष्य ही हैं, परन्तु उनके कार्य एवं उनकी प्रतिभा उन्हें साधारण मानव से अलग और अलौकिक बना देती है. ऐसे ही एक महापुरुष हुए “मोहम्मद पैगम्बर” . उनके व्यक्तित्व ने एवें उनके कार्यों ने उन्हें अल्लाह का भेजा हुआ दूत बना दिया. कौन थे मोहम्मद: मोहम्मद साहब की असलियत मोहम्मद साहब इस्लाम धर्म के प्रवर्तक थे. इनका जन्म ८ जून सन ५७० ईसवी को अरब के मक्का शहर में हुआ था. इन्होने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. इन्हें इस्लाम के सबसे बड़े नबी और आखिरी संदेशवाहक होने का गौरव हासिल है. मुस्लिम सम्प्रदायें के लोग इनके प्रति बहुत ही प्रेम, सम्मान और आदर का भाव रखते है. इस्लाम में मुहम्मद का अर्थ होता है जिसकी अत्यंत प्रशंसा की गई हो. कुरआन में तो मोहम्मद साहब को “अहमद” के नाम से भी नवाज़ा गया है जिसका अर्थ होता है “सबसे ज्यादा प्रशंसा के योग्य”. इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब और माता का नाम बीबी आमिनाह था. चूँकि इनके जन्म के फ़ौरन बाद ही मोहम्मद साहब की माता का इंतकाल हो गया था और इनके पिता इनके जन्म के पहले ही गुजर चुके थे. ऐसा माना जाता है कि इन्हें अल्लाह ने अपने फ़रिश्ते जिब्राइल के माध्यम से कुरआन का सन्देश दिया था. हिजरी सन : इस्लामी महीनो के नाम हिजरी सन की शुरुआत भी मोहम्मद साहब से ही हुई है. जब मोहम्मद साहब अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना की यात्रा के लिए रवाना हुए तो उनकी इस यात्रा को हिज़रत के नाम से जाना जाने लगा. यही से इस्लामिक कैलेण्डर हिजरी की शुरुआत हुई...

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का विदायी अभिभाषण (इस्लाम में मानवाधिकार)

पैग़म्बर ‘‘…आज मैंने तुम्हारे दीन (इस्लामी जीवन व्यवस्था की पूर्ण रूपरेखा) को तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया है और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे दीन की हैसियत से क़बूल कर लिया है…।’’ • (कु़रआन, 5:3) पैग़म्बर #भाषण: आपने पहले ❝ ऐ लोगो! अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है, वह एक ही है, कोई उसका साझी नहीं है। अल्लाह ने अपना वचन पूरा किया, उसने अपने बन्दे ( – लोगो मेरी बात सुनो, मैं नहीं समझता कि अब कभी हम इस तरह एकत्र हो सकेंगे और संभवतः इस वर्ष के बाद मैं लोगो, अल्लाह फ़रमाता है कि, इन्सानो, हम ने तुम सब को एक ही किसी अरबी को किसी ग़ैर-अरबी पर, किसी ग़ैर-अरबी को किसी अरबी पर कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं है। न काला गोरे से उत्तम है न गोरा काले से। हाँ आदर और प्रतिष्ठा का कोई मापदंड है तो वह सारे मनुष्य कु़रैश के लोगो! ऐसा न हो कि अल्लाह के समक्ष तुम इस तरह आओ कि तुम्हारी गरदनों पर तो दुनिया का बोझ हो और दूसरे लोग कु़रैश के लोगो, अल्लाह ने तुम्हारे झूठे घमंड को ख़त्म कर डाला, और बाप-दादा के कारनामों पर तुम्हारे गर्व की कोई गुंजाइश नहीं। लोगो, तुम्हारे ख़ून, माल व इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम कर दी गईं हमेशा के लिए। इन चीज़ों का महत्व ऐसा ही है जैसा तुम्हारे इस दिन का और इस देखो, कहीं मेरे बाद भटक न जाना कि आपस में एक-दूसरे का ख़ून बहाने लगो। अगर किसी के पास धरोहर (अमानत) रखी जाए तो वह इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुँचा दे। लोगो, हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान आपस में भाई-भाई है। अपने गु़लामों का ख़्याल रखो, हां गु़लामों का ख़्याल रखो। इन्हें वही खिलाओ जो ख़ुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो। जाहिलियत (अज्ञान) का सब क...

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल॰) का विदायी अभिभाषण (इस्लाम में मानवाधिकार)

पैग़म्बर ‘‘…आज मैंने तुम्हारे दीन (इस्लामी जीवन व्यवस्था की पूर्ण रूपरेखा) को तुम्हारे लिए पूर्ण कर दिया है और तुम पर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे लिए इस्लाम को तुम्हारे दीन की हैसियत से क़बूल कर लिया है…।’’ • (कु़रआन, 5:3) पैग़म्बर #भाषण: आपने पहले ❝ ऐ लोगो! अल्लाह के सिवा कोई पूज्य नहीं है, वह एक ही है, कोई उसका साझी नहीं है। अल्लाह ने अपना वचन पूरा किया, उसने अपने बन्दे ( – लोगो मेरी बात सुनो, मैं नहीं समझता कि अब कभी हम इस तरह एकत्र हो सकेंगे और संभवतः इस वर्ष के बाद मैं लोगो, अल्लाह फ़रमाता है कि, इन्सानो, हम ने तुम सब को एक ही किसी अरबी को किसी ग़ैर-अरबी पर, किसी ग़ैर-अरबी को किसी अरबी पर कोई प्रतिष्ठा हासिल नहीं है। न काला गोरे से उत्तम है न गोरा काले से। हाँ आदर और प्रतिष्ठा का कोई मापदंड है तो वह सारे मनुष्य कु़रैश के लोगो! ऐसा न हो कि अल्लाह के समक्ष तुम इस तरह आओ कि तुम्हारी गरदनों पर तो दुनिया का बोझ हो और दूसरे लोग कु़रैश के लोगो, अल्लाह ने तुम्हारे झूठे घमंड को ख़त्म कर डाला, और बाप-दादा के कारनामों पर तुम्हारे गर्व की कोई गुंजाइश नहीं। लोगो, तुम्हारे ख़ून, माल व इज़्ज़त एक-दूसरे पर हराम कर दी गईं हमेशा के लिए। इन चीज़ों का महत्व ऐसा ही है जैसा तुम्हारे इस दिन का और इस देखो, कहीं मेरे बाद भटक न जाना कि आपस में एक-दूसरे का ख़ून बहाने लगो। अगर किसी के पास धरोहर (अमानत) रखी जाए तो वह इस बात का पाबन्द है कि अमानत रखवाने वाले को अमानत पहुँचा दे। लोगो, हर मुसलमान दूसरे मुसलमान का भाई है और सारे मुसलमान आपस में भाई-भाई है। अपने गु़लामों का ख़्याल रखो, हां गु़लामों का ख़्याल रखो। इन्हें वही खिलाओ जो ख़ुद खाते हो, वैसा ही पहनाओ जैसा तुम पहनते हो। जाहिलियत (अज्ञान) का सब क...

पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल) का जन्म और शुरुआती साल

अल्लाह के पैगम्बर हज़रत मुहम्मद (सल्ल0) का जन्म 570 ई0 को मक्का के एक सम्मानित परिवार बनू हाशिम (हाशमी वंश) में हुआ, जिसे मक्का में और मक्का के आस-पास के कबीलों में अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। इस वंश के साथ-साथ विशेष रूप से Muhammad (SAW) से एक कष्टप्रद और असहनीय व्यक्तिगत इतिहास भी ज़ुड़ा हुआ है। पिता का निधन उनके पिता अव्दुल्लाह का देहान्त उस समय हुआ जब उनकी माँ आमिना (रजि0) दो महीने की गर्भवती थीं। अपने देहान्त के समय उनके पिता मक्का के उत्तर में स्थित यस्रीव नगर की यात्रा पर थे। मुहम्मद (सल्ल0) को मक्का में दो प्रकार की परस्थितियों से सामना था; एक मानसिक तनाव यह था कि जब उनका जन्म हुआ तो उनके पिता का देहान्त हो चुका था जिसके कारण उनके जीवन में स्थिरता नहीं थी और दूसरी ओर वह एक संग्रान्त वंश से सम्बन्ध रखते थे। आप का जन्म पीड़ाहीन रहा ‘मुहम्मद’ नाम जिसका अर्थ प्रशंसित अथवा प्रशंसा योग्य है और यह नाम उस समय अरब प्रायद्धीप में प्रचलित नहीं था। यह नाम उनकी माँ के मन में उसी समय आ गया था जब मुहम्मद (सल्ल0) अभी गर्भ में थे। कहा जाता है कि यही स्वप्न उनको“जननायक” के जन्म के समय भी दिखाया गया था इस स्वप्न के अनुसार जब आप (ﷺ) का जन्म हुआ तो वह ये शब्द कहती थीं, ‘शैतान के धोखे से सुरक्षा के तिए मैं इन्हें एक मात्र अल्लाह के शरण में देती हूँ।’ अपने पति की मृत्यु के शोक और बच्चे के जनम के स्वागत की प्रसन्नता के बीच आमिना (रजि0) बार-बार कहती थीं कि इस गर्भ के साथ आश्चर्यजनक निशानियाँ बारम्बार घटित होती रहीं और इसके पश्चात असाधारण रूप से बच्चे का जन्म पीड़ाहीन रहा। शुरुआती जीवन अनाथ हजरत मुहम्मद (सल्ल0) चार वर्षों तक दाई हलीमा (रजि0) की देख-रेख में अरव मरुस्थल के बनू साद (साद की सन्त...

मोहम्मद साहब की असलियत

यूँ तो ये पूरा विश्व भांति भांति के लोगों से भरा हुआ है. हर मनुष्य अपने आप में निराला और अनोखा होता है. परन्तु कुछ ऐसे भी ज्ञानी लोग हमारे बीच समय समय पर विराजमान हो जाते हैं जो दिखते तो हम और आप जैसे साधारण मनुष्य ही हैं, परन्तु उनके कार्य एवं उनकी प्रतिभा उन्हें साधारण मानव से अलग और अलौकिक बना देती है. ऐसे ही एक महापुरुष हुए “मोहम्मद पैगम्बर” . उनके व्यक्तित्व ने एवें उनके कार्यों ने उन्हें अल्लाह का भेजा हुआ दूत बना दिया. कौन थे मोहम्मद: मोहम्मद साहब की असलियत मोहम्मद साहब इस्लाम धर्म के प्रवर्तक थे. इनका जन्म ८ जून सन ५७० ईसवी को अरब के मक्का शहर में हुआ था. इन्होने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया. इन्हें इस्लाम के सबसे बड़े नबी और आखिरी संदेशवाहक होने का गौरव हासिल है. मुस्लिम सम्प्रदायें के लोग इनके प्रति बहुत ही प्रेम, सम्मान और आदर का भाव रखते है. इस्लाम में मुहम्मद का अर्थ होता है जिसकी अत्यंत प्रशंसा की गई हो. कुरआन में तो मोहम्मद साहब को “अहमद” के नाम से भी नवाज़ा गया है जिसका अर्थ होता है “सबसे ज्यादा प्रशंसा के योग्य”. इनके पिता का नाम अब्दुल्लाह इब्न अब्दुल मुत्तलिब और माता का नाम बीबी आमिनाह था. चूँकि इनके जन्म के फ़ौरन बाद ही मोहम्मद साहब की माता का इंतकाल हो गया था और इनके पिता इनके जन्म के पहले ही गुजर चुके थे. ऐसा माना जाता है कि इन्हें अल्लाह ने अपने फ़रिश्ते जिब्राइल के माध्यम से कुरआन का सन्देश दिया था. हिजरी सन : इस्लामी महीनो के नाम हिजरी सन की शुरुआत भी मोहम्मद साहब से ही हुई है. जब मोहम्मद साहब अपने अनुयायियों के साथ मक्का से मदीना की यात्रा के लिए रवाना हुए तो उनकी इस यात्रा को हिज़रत के नाम से जाना जाने लगा. यही से इस्लामिक कैलेण्डर हिजरी की शुरुआत हुई...

पैगंबर मुहम्मद का जीवन परिचय तथा उनकी शिक्षाएं

हज़रत मुहम्मद अरब के एक धार्मिक और सामाजिक नेता तथा इस्लाम के संस्थापक थे। इस्लामी दर्शन के अनुसार, वह अल्लाह की शिक्षाओं को फैलाने के लिए अल्लाह द्वारा भेजे गए एक नबी थे। इस लेख में, हम पैगंबर मुहम्मद के जीवन इतिहास पर ध्यान केंद्रित करेंगे तथा साथ ही साथ हम पैगंबर मुहम्मद के बारे में महत्वपूर्ण तथ्यों को भी जानने की कोशिश करेंगे। हज़रत मुहम्मद क़ुरैश जनजाति से थे, जो इब्राहीम के ईश्वर होने में विश्वास रखते थे। शायबा हाशिम का पुत्र था। शायबा का नाम अब्दुल मुत्तलिब रखा गया। अब्दुल मुत्तलिब के दस बेटे थे। एक बार मक्का में कुआं खोदने का परोपकार का कार्य करते हुए उन्होंने अल्लाह से वादा किया कि काम पूरा होने के बाद वह अल्लाह के नाम पर अपने एक बेटे की कुर्बानी देंगे। फिर वह दिन आया जब कुआं खोदने का कार्य खत्म हो गया अनुष्ठान के अनुसार, यह जानने के लिए कि देवता क्या चाहते हैं, उन्होंने एक मूर्ति के सामने, प्रत्येक पुत्र का नाम लिखते हुए, दस बाण रखे। जिसमे से अब्दुल्ला नाम का तीर मूर्ति की ओर आगे बढ़ा और लोगों ने ऐसा मान लिया की देवता उस पुत्र की बलि मांग रहे हैं। अब्दुल्ला की कुर्बानी की तैयारी शुरू हो गई। सभी लोगों ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी, लेकिन अब्दुल मुत्तलिब एक बेटे की बलि देने के लिए अपनी बात पर अड़े थे। लोग दुख में चिल्लाने लगे। तब एक आत्मा एक पुजारी के शरीर में प्रवेश कर गई और कहा कि ऊंट की बलि भी स्वीकार्य होगी। लोगों के लिय यह राहत की उम्मीद थी। उस आत्मा ने लोगों से उस महिला के पास जाने को कहा जो गाँव में ज्योतिषी थी। लोग उनके पास यह पूछने गए कि अब्दुल्ला की जान बचाने के लिए कितने ऊंटों की बलि देनी चाहिए। उस औरत ने कहा कि जितने ऊंट एक जान की रक्षा के लिए देते ह...

इस्लाम का उदय

• ईसा पश्चात् सातवीं शताब्दी की पहली चौथाई में पैगम्बर मुहम्मद साहिब ने इस्लाम की नींव डाली और उनकी मृत्यु के बाद 80 वर्ष के थोड़े-से काल के अन्दर ही यह नया धर्म संसार के कई देशों , जैसे ईरान , सीरीया , पश्चिमी तुर्किस्तान , सिन्ध , मिस्र और दक्षिणी स्पेन में फैल गया। • डॉक्टर वी. ए. स्मिथ का कहना है कि ' मुहम्मद साहिब का धर्म इस्लाम जिस विद्युत गति से फैला और जिस नाटकीय आकस्मिकता से उनके अनुयायी एक प्रभुत्वशाली प्रभुसत्ता की स्थिति को प्राप्त हुए यह एक आश्चर्य की बात है , इसे इतिहास का एक चमत्कार कहा जा सकता है। पैगम्बर मुहम्मद साहिब का जीवन Life of Prophet Muhammad Sahib पैगम्बर मुहम्मद साहिब को संसार की एक महानतम पूज्य आत्मा समझा जाता है और उनकी गिनती भगवान कृष्ण , महात्मा बुद्ध , भगवान मसीह तथा गुरु नानक जैसी सुख-वर्षा करने वाली महान आत्माओं में होती है। पैगम्बर मुहम्मद साहिब के जीवन का संक्षेप अध्ययन प्रारम्भिक जीवन ( Early Life) • मुहम्मद साहिब का जन्म 570 ई. में धरती के सबसे कम आतिथ्यकारी प्रदेश अरब में मक्का नामक स्थान पर हुआ। • मक्का एक भौतिकवादी व्यापारिक नगर था , " जहाँ लाभ-लोलुपता तथा सूदखोरी का राज्य था , जहाँ अपने अवकाश काल में लोग स्त्री , मदिरा तथा जुआ सेवन में रत रहते थे , जहाँ ' जिसकी लाठी उसकी भैंस ' का नियम लागू था , जहाँ विधवाओं , अनाथों तथा बूढों को एक व्यर्थ का बोझ समझा जाता था " • मुहम्मद एक ऐसा बच्चा था जो अपने पिता की मृत्यु के बाद पैदा हुआ था और जिसकी माँ भी चल बसी जबकि यह केवल छ: वर्ष का था। इस अनाथ को. इसके चचा अबू तालिब पाला। इसने अपना बचपन घोर निर्धनता तथा कठिनाइयों के हालात के बीच बिताया और वह बिना किसी शिक्षा तथा देखभाल के बड़ा हुआ। • डाक्ट...