Paristhitik tantra mein urja ka prabhav hota hai

  1. पारिस्थितिकी परिभाषा उद्देश्य महत्व Ecology
  2. जानें: आपके शरीर में इन जगहों पर तिल का क्या होता है मतलब...?
  3. पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार, कार्य
  4. पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा
  5. प्रज्ञा सुभाषित के विचार व कथन
  6. आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण का निगमन कीजिए, सूत्र, उत्सर्जन
  7. पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह क्या है?
  8. पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा
  9. प्रज्ञा सुभाषित के विचार व कथन
  10. आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण का निगमन कीजिए, सूत्र, उत्सर्जन


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पारिस्थितिकी परिभाषा उद्देश्य महत्व Ecology

पारिस्थितिकी शब्द वर्तमान में प्रचलित Ecology शब्द का हिंदी अनुवाद है। Ecology शब्द का उद्गम ग्रीक पृथ्वी पर समस्त प्राणी भौतिक वातावरण एवं उद्विकास यह प्रक्रिया पथ तथा आपसी संबंधों द्वारा जुड़े हुए हैं। एक सजीव दूसरे को भोजन व आवास प्रदान कर सकता है या एक दूसरे के लिए उपयोगी तथा हानिकारक पदार्थ पैदा कर सकता है। दोनों भोजन व आवास के लिए पारिस्थितिकी पारिस्थितिकी परिभाषा पारिस्थितिकी जीव अथवा जीवो के समूह का ओडम परिस्थितिकी वह विज्ञान है जो सभी जीवो का संपूर्ण पर्यावरण के साथ पूर्ण संबंधों का अध्ययन कराता है। टेलर पारिस्थितिकी जीवधारियों और उनके पर्यावरण के मध्य अन्याश्रित संबंधों का अध्ययन है। हैकेल के अनुसार पारिस्थितिकी जीवन का उनके पर्यावरण के संबंध में अध्ययन है। वार्मिंग के अनुसार पारिस्थितिकी को फेडरिक क्लिमेटस के अनुसार पारिस्थितिकी परिस्थितिकी के उद्देश्य मानव जीवन में आधुनिक समय में अनेक समस्याएं हैं, जिनका किसी ना किसी प्रकार से पारिस्थितिकी से संबंध है और इनका निराकरण पारिस्थितिकी के ज्ञान के द्वारा ही संभव है। मानव जीवन के उत्थान में इनकी महत्वपूर्ण पूर्ण भूमिका है। पारिस्थितिकी का ज्ञान मानव • हमें अपने जीवन को सरल व स्वस्थ बनाए रखने के लिए पारिस्थितिकी का पूर्ण ज्ञान होना आवश्यक है जिससे वातावरण के विभिन्न घटकों से उचित तालमेल बैठाकर अपनी दैनिक जीवन क्रियाओं का सही संचालन कर सकें। • भोजन कपड़े और सदियों आदि के लिए सभी पशुओं, पौधों, बगीचों, जंगलों, तालाबों और समुद्र आदि का संरक्षण पूर्ण सदुपयोग और उत्पादन वृद्धि उत्पाद एवं संरक्षण परिस्थितिकी के उचित ज्ञान से ही संभव है। • विज्ञान की इस शाखा से जनसंख्या पर उचित नियंत्रण लगाना भी संभव हुआ है। परिस्थितिकी का महत...

जानें: आपके शरीर में इन जगहों पर तिल का क्या होता है मतलब...?

जानें: आपके शरीर में इन जगहों पर तिल का क्या होता है मतलब...? जानें: आपके शरीर में इन जगहों पर तिल का क्या होता है मतलब...? भारतीय ज्योतिष शास्त्रों की शाखा समुद्र विज्ञान में शरीर पर मौजूद चिन्हों के आधार पर व्यक्ति के भविष्य का विश्लेषण किया जाता है, शरीर पर पाए गए यह निशान हमारे भविष्य और चरित्र के बारे में बहुत कुछ दर्शाते हैं। • Last Updated :June 08, 2016, 20:48 IST 01 आप सभी जानते हें हमारे शरीर पर कई प्रकार के जन्मजात या जीवनकाल के दौरान निकले निशान बन जाते हैं। इन्हे हम तिल, मस्सा एवं लाल मस्सा के नाम से जानते हैं। भारतीय ज्योतिष शास्त्रों की शाखा समुद्र विज्ञान में शरीर पर मौजूद चिन्हों के आधार पर व्यक्ति के भविष्य का विश्लेषण किया जाता है। शरीर पर पाए गए यह निशान हमारे भविष्य और चरित्र के बारे में बहुत कुछ दर्शाते हैं। कई बार समय के साथ तिल बन जाते हैं और गायब भी हो जाते हैं लेकिन कुछ तिल या मस्से हमेशा रहते है। हम आपको बता रहे हैं शरीर के किस हिस्से में तिल का क्या होता है मतलब। 02 तिल तथा मस्से का होना दोनों एक ही प्रभाव देता है। तिल आपके सभी प्रकार के शारीरिक, आर्थिक एवं चरित्र के बारे में काफी कुछ दर्शा देता है। तिल का प्रभाव हमारे लिंग से कभी भी अलग नही होता। सामान्यत: तिल सभी के शरीर पर होते हैं। एक ओर तिल व्यक्ति की सुंदरता में चार चांद लगा देते हैं, वहीं दूसरी ओर तिल व्यक्ति के स्वाभाव को भी व्यक्त करते हैं। शरीर पर तिल हो तो इन्सान को यह जानने की जिज्ञासा रहती है की इसका क्या फल होगा ..? आइये जानते है कुछ विशेष तिल के बारे में .. 03 ललाट पर तिल - ललाट के मध्य भाग में तिल निर्मल प्रेम की निशानी है। ललाट के दाहिने तरफ का तिल किसी विषय विशेष में निपुणता, क...

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार, कार्य

पारिस्थितिकी तंत्र के प्रकार paristhitik tantra ke prakar;हमे भली भांति मालूम है कि पारिस्थितिकी तंत्र मे प्रकृति और जीव मुख्य तत्व है। जीवों मे मनुष्य ने तकनीकी विकास से पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यकुशलता को जहाँ एक ओर बढ़ाया है तो दूसरी ओर उसे घटाया भी है। यह भी पढ़ें; यह भी पढ़ें; अतः इसे दो भागों मे विभक्त किया जा सकता है-- 1. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र इसका समस्त संचालन प्रकृति से होता है और जैविक घटकों का उद्भव, विकास, विनाश, स्थानीय या क्षेत्रीय आधार पर प्राकृतिक पर्यावरण के तत्वों से नियंत्रित होता है। जहाँ जैव उद्भव एवं विकास एवं समस्त चक्र (पोषण, कार्बन, जैव, रसायन चक्र आदि) और अनुक्रमण बिना किसी मानवीय हस्तक्षेप के चलते रहते है, उस इकाई को प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र कहते है। पर्यावरण विशेषताओं के आधार पर इसे निम्नलिखित उप विभागों मे विभाजित किया जा सकता है-- (अ) स्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र या पार्थिक पारिस्थितिकी तंत्र (A) वन पारिस्थितिकी तंत्र, (B) घास पारिस्थितिकी तंत्र, (C) मरूस्थलीय पारिस्थितिकी तंत्र। (ब) जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (A) खारा जल पारिस्थितिकी तंत्र अथवा सागरीय पारिस्थितिकी तंत्र (B) स्वच्छ जल पारिस्थितिकी तंत्र अथवा झील, नदी, तालाब पारिस्थितिकी तंत्र। 2. कृत्रिम या मानव निर्मित पारिस्थितिकी तंत्र समस्त जैव जगत मे मनुष्य सर्वाधिक बुद्धिमान प्राणी है। इसलिए उच्च तकनीकी एवं नवीन अनुसंधान कर वह प्राकृतिक साधनों का शोषण करता है। वह ऊर्जा और उष्मा पाने के लिए वन काटता है। मिट्टी मे रासायनिक उर्वरकों का उपयोग करता है। कीटाणु एवं खरपतवार-नाशक विषाक्त रसायनों का प्रयोग करता है। वृहद् यंत्रों के उपयोग से कृषि, उद्योग, खनिज, परिवहन एवं व्यापार एवं वाणिज्य ...

पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा

पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा paristhitik tantra ki avdharna;किसी भी समुदाय मे अनेक जातियों के प्राणी साथ-साथ रहते है। ये सभी परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते रहते है, साथ ही अपने आस-पास के वातावरण से भी प्रभावित रहते है। इस प्रकार रचना एवं कार्य की दृष्टि से समुदाय एवं वातावरण एक तंत्र की तरह कार्य करते है। इसे हम पारिस्थितिकी तंत्र या इको तंत्र कहते है। सर्वप्रथम टान्सले ने 1935 मे पारिस्थितिकी तंत्र शब्द प्रतिपादित किया था। इसे पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecological system) भी कहा जाता है। पारिस्थितिक प्रणाली को हम सरलतम भाषा मे प्रकृति भी कह सकते है क्योंकि प्रकृति मे मुख्यरूप से जीवों तथा अजीवित वातावरण का समावेश होता है। पृथ्वी का वह भाग जिसमे पारस्थितिक प्रणाली कार्यरत रहती है अथवा भूमि के विभिन्न भाग, जल तथा वायु; जहां जीव मिलते है, जीवमंडल कहलाता है। इस प्रकार जीवमंडल मे अनेक पारिस्थितिक प्रणालियाँ हो सकती है; जैसे तालाब या झील, जंगल घास स्थल, खेत, मरूस्थल इत्यादि। पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणा का मुख्य आधार यह है कि प्रकृति के किसी भी क्षेत्र मे पाये जाने वाले जैव समुदाय और अजैव वातावरण के बीच पदार्थों का निरंतर निर्माण एवं विनियम होता रहता है। जीव पदार्थों को ग्रहण कर अपने शरीर की वृद्धि करते है और कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते है तथा पुनः इन कार्बनिक पदार्थों का विखंडन कर उन्हें अकार्बनिक पदार्थों मे रूपान्तरित कर देते है। इस प्रकार पदार्थों के तंत्र मे चक्रीकरण होता रहता है। परिस्थतिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 मे ए. जी. टान्सले ने इसकी परिभाषा देते हुए किया " पारिस्थितिक तंत्र जैविक और अजैविक पदार्थों की परस्पर प्राकृतिक क्रिया है जिसमे जैव पदार्थ, अ...

प्रज्ञा सुभाषित के विचार व कथन

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आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण का निगमन कीजिए, सूत्र, उत्सर्जन

प्रकाश के प्रभाव से धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं। प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या आइंस्टीन ने प्लांक के क्वांटम सिद्धांत के आधार पर की। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों तथा पैकेटों के रूप में चलता है जिन्हें फोटोन कहते हैं। प्रत्येक फोटोन की ऊर्जा h v के बराबर होती है। जहां v प्रकाश की आवृत्ति तथा h प्लांक नियतांक है जिसका मान 6.6 × 10 -34 जूल-सेकंड होता है। प्रकाश की तीव्रता इन्हीं फोटोनों की संख्या पर निर्भर करती है। प्रकाश विद्युत प्रभाव का निगमन जब कोई प्रकाश किसी धातु की प्लेट पर गिरता है तो उसका कोई फोटोन अपनी समस्त उर्जा को धातु के भीतर उपस्थित किसी इलेक्ट्रॉन को दे देता है। इस कारण उस फोटोन का अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इलेक्ट्रॉन इस ऊर्जा को दो भागों में व्यय (खर्च) करता है इलेक्ट्रॉन द्वारा ऊर्जा का कुछ भाग सतह तक आने में व्यय हो जाता है जिसे इलेक्ट्रॉन का कार्य फलन कहते हैं। तथा बाकी शेष ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को गतिज ऊर्जा के रूप में मिल जाती है। तब इस प्रकार कुल ऊर्जा = कार्य फलन + इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा h v = W + E k याE k = h v– W समी.① प्रकाश विद्युत प्रभाव एक इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटोन की ऊर्जा उसके कार्य फलन से कम है। तो धातु के पृष्ठ से कोई भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होगा। यदि दी हुई ऊर्जा के लिए प्रकाश की देहली आवृत्ति v० हो तो ऐसे प्रकाश फोटोन की ऊर्जा h v० इलेक्ट्रॉन को पृष्ठ तक लाने में ही व्यय हो जाएगी। जो कि इलेक्ट्रॉन में कार्य फलन के बराबर होगी। अतः W = h v ० समी.② समी.② से W का मान समी.① में रखने पर E k = h v– W E k = h v– h v ० E k = h( v– v ०) यदि इलेक्ट्रॉन का द्...

पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह क्या है?

Question पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह क्या है? Answer पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का प्रवाह – (1) हरे पेड़-पौधे या उत्पादक सूर्य के प्रकाश से पूर्ण होने वाली प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में बदल कर देते हैं। (2) पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा एक स्थान से दुसरे स्थान तक जाने की क्रिया एकदिशीय (unidirectional) होती है। (3) सूर्य पारिस्थितिक तन्त्र में ऊर्जा का मूल स्त्रोत है। (4) लिन्डेमान (Lindeman; 1942) के 10% नियम के अनुसार एक पोषक स्तर से दूसरे पोषक स्तर में ऊर्जा का केवल 10% भाग एक स्थान से दुसरे स्थान तक गमन करता है, शेष 90% ऊर्जा खराब हो जाती है।

पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा

पारिस्थितिकी तंत्र की अवधारणा paristhitik tantra ki avdharna;किसी भी समुदाय मे अनेक जातियों के प्राणी साथ-साथ रहते है। ये सभी परस्पर एक दूसरे को प्रभावित करते रहते है, साथ ही अपने आस-पास के वातावरण से भी प्रभावित रहते है। इस प्रकार रचना एवं कार्य की दृष्टि से समुदाय एवं वातावरण एक तंत्र की तरह कार्य करते है। इसे हम पारिस्थितिकी तंत्र या इको तंत्र कहते है। सर्वप्रथम टान्सले ने 1935 मे पारिस्थितिकी तंत्र शब्द प्रतिपादित किया था। इसे पारिस्थितिकीय तंत्र (Ecological system) भी कहा जाता है। पारिस्थितिक प्रणाली को हम सरलतम भाषा मे प्रकृति भी कह सकते है क्योंकि प्रकृति मे मुख्यरूप से जीवों तथा अजीवित वातावरण का समावेश होता है। पृथ्वी का वह भाग जिसमे पारस्थितिक प्रणाली कार्यरत रहती है अथवा भूमि के विभिन्न भाग, जल तथा वायु; जहां जीव मिलते है, जीवमंडल कहलाता है। इस प्रकार जीवमंडल मे अनेक पारिस्थितिक प्रणालियाँ हो सकती है; जैसे तालाब या झील, जंगल घास स्थल, खेत, मरूस्थल इत्यादि। पारिस्थितिक तंत्र की अवधारणा का मुख्य आधार यह है कि प्रकृति के किसी भी क्षेत्र मे पाये जाने वाले जैव समुदाय और अजैव वातावरण के बीच पदार्थों का निरंतर निर्माण एवं विनियम होता रहता है। जीव पदार्थों को ग्रहण कर अपने शरीर की वृद्धि करते है और कार्बनिक पदार्थों का निर्माण करते है तथा पुनः इन कार्बनिक पदार्थों का विखंडन कर उन्हें अकार्बनिक पदार्थों मे रूपान्तरित कर देते है। इस प्रकार पदार्थों के तंत्र मे चक्रीकरण होता रहता है। परिस्थतिक तंत्र शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 मे ए. जी. टान्सले ने इसकी परिभाषा देते हुए किया " पारिस्थितिक तंत्र जैविक और अजैविक पदार्थों की परस्पर प्राकृतिक क्रिया है जिसमे जैव पदार्थ, अ...

प्रज्ञा सुभाषित के विचार व कथन

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आइंस्टीन का प्रकाश विद्युत प्रभाव समीकरण का निगमन कीजिए, सूत्र, उत्सर्जन

प्रकाश के प्रभाव से धातु से इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित होने की घटना को प्रकाश विद्युत प्रभाव कहते हैं। प्रकाश विद्युत प्रभाव की व्याख्या आइंस्टीन ने प्लांक के क्वांटम सिद्धांत के आधार पर की। इस सिद्धांत के अनुसार, प्रकाश ऊर्जा के छोटे-छोटे बंडलों तथा पैकेटों के रूप में चलता है जिन्हें फोटोन कहते हैं। प्रत्येक फोटोन की ऊर्जा h v के बराबर होती है। जहां v प्रकाश की आवृत्ति तथा h प्लांक नियतांक है जिसका मान 6.6 × 10 -34 जूल-सेकंड होता है। प्रकाश की तीव्रता इन्हीं फोटोनों की संख्या पर निर्भर करती है। प्रकाश विद्युत प्रभाव का निगमन जब कोई प्रकाश किसी धातु की प्लेट पर गिरता है तो उसका कोई फोटोन अपनी समस्त उर्जा को धातु के भीतर उपस्थित किसी इलेक्ट्रॉन को दे देता है। इस कारण उस फोटोन का अपना अस्तित्व समाप्त हो जाता है। इलेक्ट्रॉन इस ऊर्जा को दो भागों में व्यय (खर्च) करता है इलेक्ट्रॉन द्वारा ऊर्जा का कुछ भाग सतह तक आने में व्यय हो जाता है जिसे इलेक्ट्रॉन का कार्य फलन कहते हैं। तथा बाकी शेष ऊर्जा इलेक्ट्रॉन को गतिज ऊर्जा के रूप में मिल जाती है। तब इस प्रकार कुल ऊर्जा = कार्य फलन + इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा h v = W + E k याE k = h v– W समी.① प्रकाश विद्युत प्रभाव एक इलेक्ट्रॉन द्वारा अवशोषित फोटोन की ऊर्जा उसके कार्य फलन से कम है। तो धातु के पृष्ठ से कोई भी इलेक्ट्रॉन उत्सर्जित नहीं होगा। यदि दी हुई ऊर्जा के लिए प्रकाश की देहली आवृत्ति v० हो तो ऐसे प्रकाश फोटोन की ऊर्जा h v० इलेक्ट्रॉन को पृष्ठ तक लाने में ही व्यय हो जाएगी। जो कि इलेक्ट्रॉन में कार्य फलन के बराबर होगी। अतः W = h v ० समी.② समी.② से W का मान समी.① में रखने पर E k = h v– W E k = h v– h v ० E k = h( v– v ०) यदि इलेक्ट्रॉन का द्...