प्रेमचंद यादव का बिरहा

  1. मुंशी प्रेमचंद
  2. शिक्षकों ने बीएसए के खिलाफ जिला पंचायत अध्यक्ष को दिया ज्ञापन, छात्र
  3. मुंशी प्रेमचंद जन्मदिन विशेष: हिंदी साहित्य का पहला प्रगतिशील
  4. कायर
  5. प्रेमचंद एक साथ सामंतवादी शक्तियों और सामाजिक विषमता के खिलाफ लड़ रहे थे
  6. प्रेमचंद की कहानी
  7. मुंशी प्रेमचंद सम्पूर्ण परिचय


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मुंशी प्रेमचंद

मुंशी प्रेमचंद (Munshi Premchand) का मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय Munshi Premchand Biography in Hindi / Munshi Premchand Jeevan Parichay / Munshi Premchand Jivan Parichay / मुंशी प्रेमचंद : नाम मुंशी प्रेमचंद बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव उर्दू रचनाओं में नाम नबाबराय जन्म 31 जुलाई, 1880 जन्मस्थान लमही ग्राम, वाराणसी, उत्तर प्रदेश मृत्यु 8 अक्टूबर, 1936 पेशा माता आनंदी देवी पिता अजायब राय पत्नी शिवारानी देवी (1906-1938) पुत्र अमृतराय, श्रीपथराय पुत्री कमला देवी प्रमुख रचनाएँ सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान; कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी; मानसरोवर: नमक का दारोगा, पूस की रात, बड़े भाई साहब, मंत्र भाषा उर्दू, हिन्दी शैली वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावात्मक तथा विवेचनात्मक साहित्य काल विधाएं साहित्य में स्थान आधुनिक काल के सर्वोच्च सम्पादन माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण जीवन परिचय मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था। उनका बचपन का नाम धनपत राय था, किन्तु वे अपनी कहानियाँ उर्दू में ‘ नवाबराय‘ के नाम से लिखते थे और हिन्दी में मुंशी प्रेमचंद के नाम से। उनके दादाजी गुर सहाय राय पटवारी थे और पिता अजायब राय डाक विभाग में पोस्ट मास्टर थे। बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही, संघर्षो से गुजरा था। गरीब परिवार में जन्म लेने तथा 7 बर्ष की अल्पायु में ही मुंशी प्रेमचंद की माता आनंदी देवी की मृत्यु एवं 9 वर्ष की उम्र में सन् 1897 में उनके पिताजी का निधन हो जाने के कारण, उनका बचपन अत्यधिक कष्टमय रहा। किन्तु जिस साहस और परिश्रम से उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा, वह साधनहीन एवं कुशाग्रबुद्धि और परिश्रमी छात्रों के लिए प्रेरणाप्रद है। प्रेमचंद का पहला...

शिक्षकों ने बीएसए के खिलाफ जिला पंचायत अध्यक्ष को दिया ज्ञापन, छात्र

171.00 लाख हुआ घोटाला जिला पंचायत अध्यक्ष डॉक्टर धनश्याम अनुरागी को जिला पंचायत कार्यालय में ज्ञापन देते हुए शिक्षकों ने बताया कि बीएसए प्रेमचंद यादव ने पाठ्य पुस्तक क्रय एवं छात्रों को निःशुल्क वितरण की धनराशि 293.77 लाख व 171.00 लाख में गबन किया है। शासकीय धन के गबन के कारण उप्र सरकार की महत्वपूर्ण योजनाओं का लाभ संबन्धित दलित, सुविधा वंचित साधन विपन्न छात्र छात्राओं तक नहीं पहुंच पाया है। जिससे छात्र छात्राओं के शिक्षा प्राप्त करने के मौलिक अधिकार का हनन हुआ है। 35 से 50 प्रतिशत तक धनराशि गबन छात्रों को समय से कक्षावार व विषयवार समस्त पाठ्य पुस्तकें प्राप्त नहीं होने पर छात्रों के निःशुल्क शिक्षा प्राप्त कराने के कर्तव्यों की पूर्ति हेतु विभिन्न प्रधानाध्यापकों द्वारा आवश्यक पाठ्य पुस्तकों का मांग पत्र खंड शिक्षाधिकारियों के माध्यम से जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी को प्राप्त कराये हैं। मांग पत्रों से स्पष्ट हो रहा है कि शैक्षिक सत्र 2021-2022 में लगभग 35 से 50 प्रतिशत तक की शासकीय धनराशि का गबन किया गया है। वित्तीय घोटाला से छात्रों की मूलभूत शिक्षा को हुयी अपूर्णीय क्षति हुई है। सख्त कार्रवाई कराने का आश्वासन शिक्षकों द्वारा दिए गए ज्ञापन को संज्ञान लेते हुए जिला पंचायत अध्यक्ष डॉक्टर घनश्याम अनुरागी ने मामले की जांच कराकर बीएसए के खिलाफ सख्त कार्रवाई कराने का आश्वासन दिया है। उन्होंने कहा कि इस तरह के भ्रष्ट अधिकारियों को जिले में नहीं रहने दिया जाएगा। साथ ही शासन को इसके खिलाफ पत्र भी लिखा जायेगा।

मुंशी प्रेमचंद जन्मदिन विशेष: हिंदी साहित्य का पहला प्रगतिशील

प्रेमचंद ऐसे देश और समाज की कल्पना करते थे जिसमें किसानों, मजदूरों, दलितों और गरीबों के लिए जगह हो. कोई ऐसा लेखक जिसे दादा ने भी पढ़ा हो, पिता ने भी पढ़ा हो, बेटे ने भी पढ़ा हो और वह अपने बेटे को भी पढ़ा रहा हो, यानी जो पीढ़ियों को पार कर जाए, ऐसे लेखक को ही कालजयी लेखक कहते होंगे. हिंदी के पहले उपन्यासकार और कहानीकार प्रेमचंद ऐसे ही कालजयी लेखक हैं, जिन्होंने पीढ़ियों और समय की सीमाओं को पार कर लिया और आज तक हिंदी साहित्य में निर्विवाद रूप से शीर्ष पर बने हुए हैं. अगर ज़िंदगी के संघर्ष और मुसीबतों को कागज़ पर उकेरा जा सकता है, तो भारतीय साहित्यकारों में प्रेमचंद इसकी मिसाल हैं. अगर गरीबों, पिछड़ों और दलितों के जीवन को बुलंद आवाज़ दी जा सकती है तो यह काम हिंदी साहित्य में सबसे पहले प्रेमचंद ने शुरू किया. साहित्य में आज़ादी के लिए आवाज़, प्रगतिशीलता, उपनिवेशवाद का विरोध, ब्राह्मणवाद और सामंती समाज का विरोध, जातिवाद और छुआछूत का विरोध करने की परंपरा का आगाज़ करने वाले हिंदी के पहले उपन्यासकार प्रेमचंद हैं. प्रेमचंद ने भारतीय समाज के नंगे सच को अपने उपन्यासों और कहानियों में इस तरह उकेरा कि दुनिया चकित रह गई. वरिष्ठ आलोचक नामवर सिंह प्रेमचंद को पहला प्रगतिशील लेखक कहते हैं. प्रेमचंद प्रगतिशील लेखक संघ के पहले अध्यक्ष भी हुए थे. अपने एक लेख में वे लिखते हैं, ‘प्रेमचंद ने 1930 के आसपास कहा था कि जो कुछ लिख रहे हैं वह स्वराज के लिए लिख रहे हैं. उपनिवेशवादी शासन से भारत को मुक्त करने के लिए. केवल जॉन की जगह गोविंद को बैठा देना ही स्वराज्य नहीं है बल्कि सामाजिक स्वाधीनता भी होना चाहिए…सामाजिक स्वाधीनता से उनका तात्पर्य सांप्रदायवाद, जातिवाद, छूआछूत और स्त्रियों की स्वाधीनता से भी ...

कायर

युवक का नाम केशव था, युवती का प्रेमा। दोनों एक ही कॉलेज के और एक ही क्लास के विद्यार्थी थे। केशव नये विचारों का युवक था, जात-पाँत के बन्धनों का विरोधी। प्रेमा पुराने संस्कारों की कायल थी, पुरानी मर्यादाओं और प्रथाओं में पूरा विश्वास रखनेवाली; लेकिन फिर भी दोनों में गाढ़ा प्रेम हो गया था। और यह बात सारे कॉलेज में मशहूर थी। केशव ब्राह्मण होकर भी वैश्य कन्या प्रेमा से विवाह करके अपना जीवन सार्थक करना चाहता था। उसे अपने माता-पिता की परवाह न थी। कुल-मर्यादा का विचार भी उसे स्वांग-सा लगता था। उसके लिए सत्य कोई वस्तु थी, तो प्रेम थी; किन्तु प्रेमा के लिए माता-पिता और कुल-परिवार के आदेश के विरुद्ध एक कदम बढ़ाना भी असम्भव था। सन्ध्या का समय है। विक्टोरिया-पार्क के एक निर्जन स्थान में दोनों आमने-सामने हरियाली पर बैठे हुए हैं। सैर करने वाले एक-एक करके विदा हो गये; किन्तु ये दोनों अभी वहीं बैठे हुए हैं। उनमें एक ऐसा प्रसंग छिड़ा हुआ है, जो किसी तरह समाप्त नहीं होता। केशव ने झुँझलाकर कहा- “इसका यह अर्थ है कि तुम्हें मेरी परवाह नहीं है?” प्रेमा ने उसको शान्त करने की चेष्टा करके कहा- “तुम मेरे साथ अन्याय कर रहे हो, केशव! लेकिन मैं इस विषय को माता-पिता के सामने कैसे छेड़ूँ, यह मेरी समझ में नहीं आता। वे लोग पुरानी रूढ़ियों के भक्त हैं। मेरी तरफ से कोई ऐसी बात सुनकर मन में जो-जो शंकाएँ होंगी, उनकी तुम कल्पना कर सकते हो?” केशव ने उग्र भाव से पूछा- “तो तुम भी उन्हीं पुरानी रूढ़ियों की गुलाम हो?” प्रेमा ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखों में मृदु-स्नेह भरकर कहा- “नहीं, मैं उनकी गुलाम नहीं हूँ, लेकिन माता-पिता की इच्छा मेरे लिए और सब चीजों से अधिक मान्य है।” “तुम्हारा व्यक्तित्व कुछ नहीं है?” “ऐसा ही समझ लो...

प्रेमचंद एक साथ सामंतवादी शक्तियों और सामाजिक विषमता के खिलाफ लड़ रहे थे

‘प्रेमचंद बीसवीं सदी के सबसे बड़े रचनाकार हैं। उन्होंने सोजे वतन लिखकर स्वाधीनता-संग्राम को गति देने की कोशिश की। प्रेमचंद ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का यथार्थ चितेरा थे। उस समय किस प्रकार किसान चौतरफा शोषण को झेलते हुए किसान से मजदूर बन रहे थे, इसे प्रेमचंद ने यथार्थ रूप में रखा है।’ उक्त विचार आज 31 जुलाई, 2021 को सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक वीरेंद्र यादव ने व्यक्त किया जो एल.सी.एस. कॉलेज, दरभंगा में महाविद्यालय तथा जन संस्कृति मंच , दरभंगा के संयुक्त तत्वावधान में प्रेमचंद की 141वीं जयंती-समारोह के अवसर पर ऑनलाइन तथा ऑफलाइन माध्यम से आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी मौजूदा चुनौतियाँ और प्रेमचंद के सपनों का भारत में मुख्य वक्ता के तौर पर बोल रहे थे। डॉ एस.एस. सिंह,वरीय क्षेत्रीय निदेशक, इग्नू, दरभंगा ने कहा कि 'प्रेमचंद के साहित्य को पढ़कर भारत को संपूर्णता के साथ जाना जा सकता है। वे समतामूलक समाज की स्थापना के लिए रचनात्मक स्तर पर जीवनभर लड़ते रहे। आज की पीढ़ी के लिए उनकी रचनाएँ किसी प्रकाश-पुंज से कम नहीं है। प्रेमचंद का जीवन अत्यंत अभावों में बीता था, जिसकी अमिट छाप उनकी रचना पर परिलक्षित होती है। वीरेन्द्र यादव ने आगे कहा कि ‘प्रेमचन्द जहाँ एक ओर सामंतवादी शक्तियों से लड़ रहे थे तो दूसरी ओर वे सामाजिक विषमता के खिलाफ संघर्ष कर रहे थे। प्रेमचंद बीसवीं सदी के सबसे बड़े रचनाकार हैं। उन्होंने सोजे वतन लिखकर स्वाधीनता-संग्राम को गति देने की कोशिश की। प्रेमचंद ग्रामीण जीवन और कृषि संस्कृति का यथार्थ चितेरे थे। उस समय किस प्रकार किसान चौतरफा शोषण को झेलते हुए किसान से मजदूर बन रहे थे, इसे प्रेमचंद ने यथार्थ रूप में रखा है। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद युगद्रष्टा रचनाकार थे। इसीलिए...

प्रेमचंद की कहानी

‘कथा सम्राट’ प्रेमचंद का आविर्भाव हिंदी साहित्य में एक ऐतिहासिक महत्त्व रखता है। समकालीन सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक आन्दोलनों का उन्होंने अपने कथा साहित्य द्वारा नेतृत्व भी प्रदान किया और नये भारत के निर्माण की दिशा तय करने का काम भी किया। उस समय गुलाम भारत का विसंगतिमय अस्त-व्यस्त परिदृश्य अंग्रजों की साम्राज्यवादी शोषणकारी नीतियों से अत्यन्त दयनीय दशा को प्राप्त हो चुका था। विदेशी शासकों के शोषण और अत्याचार के साथ-साथ ज़मींदारों और महाजनों की क्रूरता के कारण जनसाधारण की स्थिति अत्यन्त शोचनीय हो चुकी थी। 1905 ई. में रूसी क्रांति के पश्चात समस्त एशिया के साथ भारत में भी जनआन्दोलन व विद्रोह के स्वर मुखर हो रहे थे। ऐसे समय में प्रेमचंद ने ‘सोजे़वतन’ नाम से एक कहानी संग्रह प्रकाशित किया जो देशप्रेम की भावना जगाने वाली कहानियों का संकलन था। यहीं से प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरंभ होता है। पे्रमचंद की कहानियों का रचनाकाल लगभग 30 वर्ष की अवधि में फेला हुआ है। इस बीच उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखीं। इसके अलावा प्रेमचंद ने उपन्यास, नाटक, निबंध, जीवनी, बाल-साहित्य तथा अनुवाद जैसी विधाओं के क्षेत्रा में भी अतुलनीय काम कियां हिंदी कथा संसार के व्यापक परिदृश्य पर दृष्टि डॉ.लें तो स्पष्ट हो जाता है कि प्रेमचंद के आगमन के साथ ही पहली बार भारतीय जीवन की यथार्थ परिस्थितियों को निकट से देखने समझने का प्रयत्न किया गया। साहित्य को सामंती कटघरे से निकाल कर प्रेमचंद में सामान्य जन को अपनी कहानियों का विषय बनाया। प्रत्येक साहित्यकार अपनी समकालीन परिस्थितियों से प्रभावित होता है और प्रेमचंद भी उनसे अछूते नहीं थे। समकालीन जीवन की विषमताओं, कुरीतियोंद्व दलित-पीड़ित, अभावग्रस्त लोगों क...

मुंशी प्रेमचंद सम्पूर्ण परिचय

प्रेमचंद की जीवनी जन्म 31 जुलाई, 1880 ई. लमही ग्राम (बनारस) निधन 8 अक्टूबर 1936 ई. (काशी) वास्तविक नाम धनपत राय पिता अजायब लाल मुंशी माता आनंदी देवी व्यवसाय अध्यापक ,लेखक ,पत्रकारिता वास्तविक नाम धनपत राय प्रेमचंद जी उर्दू में ’नवाब राय’ के नाम से लिखते थे तथा हिन्दी में ये ’प्रेमचंद’ नाम से लिखते थे। प्रेमचंद का शुरूआती जीवन इनकी छोटी आयु में उनकी शिक्षा आरम्भ हुई। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा से बीए तक फारसी में अध्ययन किया। लगभग 15 वर्ष की आयु 1895 ई. में इनका विवाह हो गया। ये अपनी पत्नी से खुश नहीं थे इसलिए 1906 ई. में त्याग दिया और दूसरी शादी बाल विधवा शिवरानी देवी से की। 1910 ई. में इण्टर की पढ़ाई की तथा 1919 ई. में बी.ए. की पढ़ाई पूरी की। प्रेमचंद जी ने बचपन में ’तिलिस्म-ई-होश-रूबा’ रचना का अध्ययन किया। प्रेमचंद जब 7 वर्ष के थे, जो उनकी माता का निधन हो गया। उनकी 14 वर्ष की आयु के समय उनके पिता का देहांत हो गया था। 1898 ई. में बनारस के पास चुनार गांव में मास्टर की नौकर मिल गई। जिन दिनों प्रेमचंद जी ने विधवा शिव रानी से विवाह किया उन्हीं दिनों वह अपना छोटा उपन्यास – प्रेमा (उर्दू में ’हम-खुर्माओं हम सबाब’ लिख रहे थे) जिसका एक विधवा लङकी से विवाह कर रहा था। 1906 ई. ’प्रेमा’ का प्रकाशन किया गया। 1921 ई. में असहयोग आन्दोलन में भाग लेने और गांधी जी के कहने पर अपनी नौकरी छोङ दी। प्रेमचंद के सम्पादन कार्य • 1922 ई. – माधुरी पत्रिका (लखनऊ से प्रकाशित।) • 1920-21 ई. – मर्यादा पत्रिका ’सपूर्णानन्द’ के जेल जाने पर। • 1930 ई. हंस – बनारस से अपना मासिक पत्र निकाला। • 1932 ई. – साप्ताहिक पत्र। प्रेमचंद से जुड़े महत्त्वपूर्ण तथ्य • प्रेमचंद को ’प्रेमचंद’ नाम ’जमाना’ के संपादक ’दयानारायण...