प्रकृति

  1. प्रकृति की परिभाषा, प्रकार, महत्व, संरक्षण और प्रकृति का अर्थ
  2. कर के देखो प्रकृति से प्यार...
  3. प्रकृति
  4. सांख्य दर्शन : प्रकृति, पुरुष एवं सत्कार्यवाद
  5. The Deer Started Eating The Dangerous Snake On Being Hungry, The Forest Officer Said
  6. प्रकृति पर भाषण व स्पीच
  7. Prakriti, Prakṛti: 42 definitions


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प्रकृति की परिभाषा, प्रकार, महत्व, संरक्षण और प्रकृति का अर्थ

प्रकृति लाखों साल पहले, जब मनुष्य का ज्ञान एक जानवर से बेहतर नहीं था। उस समय मनुष्य जीवन के लिए आवश्यक सभी चीजें प्रकृति से ही प्राप्त करता था। विज्ञान की ऊंचाइयों पर आज भी हमारी जरूरतें प्रकृति से ही पूरी होती हैं। प्रकृति द्वारा हमें दिया गया एक वरदान है, क्योंकि यह पृथ्वी पर रहने वाले करोड़ों जीवों की रक्षा करती है। यह हमें जंगल देता है जो पृथ्वी के लिए फेफड़े के जैसे हैं। प्रकृति हमारे जीवन में क्यों महत्वपूर्ण हैं प्रकृति प्रकृति हमेशा हमारे जीवन का हिस्सा रहेगी। आने वाली पीढ़ी के लिए प्रकृति के बिना दुनिया की कल्पना कीजिए। पेड़, बादल, मौसम, हिमपात, हरी घास, सुंदर फूल और वह सब कुछ जो प्रकृति की देन है उनके बिना क्या आप जीवन की मात्र कल्पना भी कर सकते है। जी नही ! इन सबके बिना जीवन का अर्थ क्या होगा? प्रकृति का बहुत महत्व है। मनुष्य को जीवित रहने और आगे भी जीवित रहने के लिए प्राकृतिक वस्तुएं भोजन, पानी, दवा, और यहां तक ​​कि प्राकृतिक चक्र जैसे प्रकृति बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर प्रकृति नहीं होती तो हम जीवित नहीं होते। खासकर पेड़, जो हमें जीने और सांस लेने के लिए ऑक्सीजन देते हैं। प्रकृति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि हमारे पास आरामदायक कपड़े हैं। जो जानवरों से बनते हैं। कुछ पशु हमें खाना देते हैं। उदाहरण के लिए, गाय हमें दूध देती है। पौधे जैसे मक्का, मटर, जौ और सेम हमें भोजन भी देते हैं। पेड़ उन सभी चीजों में सबसे महत्वपूर्ण हैं जिनके बारे में हमने बात की क्योंकि यह हमें जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन देते हैं। और आप यह बात जानते है कि पेड़ पौधे प्रकृति का ही हिस्सा है। प्रकृति की चुनौतियां मनुष्य के रूप में हमारा जीवन इस इसके कारण सुंदर वन नष्ट हो गए हैं, प्रकृति ने ह...

कर के देखो प्रकृति से प्यार...

ठूंठ बंजर कर डाला! और प्रकृति की सजा पर दोष उसी पर मढ़ डाला! जंगल-कानन सब काटे हमने लिए कुल्हाड़ी हाथ रहे! मगर प्रकृति के कोप से हरपल हम अनजान रहे! भूल गए हम सुविधाओं में अपनी ही की थी मनमानी! आज अगर किया था दोहन तो,कल तो विपदा थी,आनी! अब भी चेतो हे मानव! तुम करो विवेकी आचरण! सदा देती ही आई प्रकृति अब भी देगी हमें संरक्षण! संकल्प हो हमारा अब करें प्रकृति का श्रृंगार वह भी देगी भूल सभी कुछ... करके देखो प्रकृति से प्यार!! मीना गोपाल त्रिपाठी - हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए

प्रकृति

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सांख्य दर्शन : प्रकृति, पुरुष एवं सत्कार्यवाद

अनुक्रम | Contents • • • • • • • • • सांख्य दर्शन सांख्य सबसे प्राचीन माना जाता है। महर्षि कपिल के द्वारा सांख्य दर्शन का प्रतिपादन किया गया। सांख्य दर्शन द्वैतवादी दर्शन है। इसके अनुसार मूलतत्व दो हैं। एक प्रकृति और दूसरा पुरुष (आत्मा)। प्रकृति प्रकृत त्रिगुणात्मक और अचेतन है। सत, रज और तम तीन गुण प्रकृति के हैं। सांख्य दर्शन के अनुसार विश्व त्रिगुणात्मक प्रकृति का वास्तविक परिणाम है। सांख्य दर्शन में पुरुष (आत्मा) संबंधी विचार व प्रमुख सिद्धांत सांख्य के अनुसार पुरुष की सत्ता स्वयंसिद्ध है। इसके अस्तित्व के खंडन में भी इसकी सिद्धि हो जाती है। जो खंडन कर रहा है वही चेतन आत्मा है। वह स्वयंप्रकाश ही। चेतना उसका स्वरूप लक्षण है। वह शरीर, मन, इंद्रियों और बुद्धि से भिन्न है। वह अभौतिक है। उसका न आदि है, न अंत है। अतः वह अमर है, नित्य है, शुद्ध है, बुद्ध है। पुरुष चेतनाशील है, पर निष्क्रिय है। वह अपरिवर्तनशील है। वह सदैव ज्ञाता है, ज्ञान का विषय नहीं बनता। वह साक्षी है। उदासीन है। सुख-दुख से अप्रभावित रहता है। वह अविकारी है। अपरिणामी है। सनातन है। सत, रज और तम तीन गुण प्रकृति के हैं। पुरुष इन तीनों गुणों से परे है, गुणातीत है। सांख्य पुरुष को आनंद-स्वरूप भी नहीं मानता। पुरुष के अस्तित्व के प्रमाण • संसार के सभी पदार्थ किसी के साधन हैं, किसी के प्रयोजन के लिए हैं। जड़तत्व का स्वयं का प्रयोजन नहीं हो सकता। ये सभी पदार्थ किसी चेतन सत्ता के प्रयोजनार्थ हैं। वह चेतन सत्ता पुरुष है। • प्रकृत त्रिगुणात्मक और अचेतन है। कोई ऐसी सत्ता भी होनी चाहिए जो गुणातीत और चेतन हो। पुरुष या आत्मा चैतन्य स्वरूप है। • जड़ प्रकृति को विकास के लिए प्रेरित करने हेतु चेतन पुरुष की आवश्यकता है। • सुख-दुख...

The Deer Started Eating The Dangerous Snake On Being Hungry, The Forest Officer Said

Deer Eating Snake: हम सभी जानते हैं कि हिरण एक शाकाहारी जानवर है. हिरण को हमेशा घास खाते देखा गया है, मगर सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ है. इस वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे एक हिरण ख़तरनाक सांप को खा रही है. लोग इस वीडियो को देखने के बाद पूरी तरह से हैरान हैं. वन अधिकारी सुशांत नंदा ने इस वीडियो को शेयर किया है, जिसे देखने के बाद लोग कह रहे हैं- ये कलयुग आ गया है. देखें वायरल वीडियो Cameras are helping us understand Nature better. Yes. Herbivorous animals do eat snakes at times. वायरल वीडियो में देखा जा सकता है कि कैसे एक हिरण मजे से सांप खा रही है. घास खाने वाली हिरण को सांप खाते देखना लोगों को हैरान कर रहा है. इस वीडियो को देखने के बाद वन अधिकारी सुशांत नंदा ने एक कैप्शन भी लिखा है. कैप्शन में उन्होंने लिखा है- कैमरे की मदद से प्रकृति को समझा जा सकता है. हां कई बार शाकाहारी जानवर भी सांपों को खा जाते हैं. इस वीडियो को 1 लाख 90 हज़ार लोगों ने देखा है, वहीं इस वीडियो को 19 सौ लोगों ने लाइक किया है. इस वीडियो पर कई लोगों की प्रतिक्रियाएं भी देखी जा रही हैं. एक यूज़र ने कमेंट करते हुए लिखा है- मुझे भी ऐसा अनुभव देखने को मिला है. एक बार मैंने गायों के झूंड को मछली खाते देखा है. वहीं एक अन्य यूज़र ने लिखा है- समय बदल रहा है. इस वीडियो को भी देखें- 'गदर' की स्क्रीनिंग में सनी देओल अपने बेटे राजवीर देओल के साथ पहुंचे

प्रकृति पर भाषण व स्पीच

हम सभी किसी न किसी तरीकों से प्रकृति को प्यार करते हैं, है ना? उदाहरण के लिए कुछ लोग इसे इसकी हरी भरी हरियाली के लिए प्यार करते हैं, कुछ लुभावनी सुंदरता के लिए और कुछ इसे उन उपहारों के लिए पसंद करते हैं जो प्रकृति ने मानव जाति को दिए हैं जैसे जड़ी-बूटियां आदि। दूसरे शब्दों में कहा जाए तो प्रकृति हमें बहुत सी चीज़ें देती है ताकि हम एक पूर्ण जीवन जी सकें। इसलिए यह हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। विशेष रूप से छात्रों को प्रकृति पर स्पीच, जागरूकता बढ़ाने के लिए, देने के लिए कहा जाता है। निम्नलिखित भाषणों को काफी सोच-विचार के साथ लिखा गया है ताकि छात्रों और अन्य लोगों को समझने में आसानी हो। प्रकृति पर भाषण (Speech on Nature in Hindi) प्रकृति पर स्पीच – 1 आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्रिय छात्रों – आप सभी को मेरी ओर से नमस्कार! सुबह की सभा खत्म होने को है। इस स्कूल के प्रिंसिपल के रूप में मेरी यह जिम्मेदारी बनती है कि मैं मेरे छात्रों के साथ इंटरैक्टिव सत्र आयोजित करूँ। इसका कारण यह है कि मुझे आपके साथ बातचीत करने और हमारे विचारों को आदान-प्रदान करने का मौका नहीं मिल रहा है। आज आप सभी को संबोधित करने का कारण प्रकृति पर स्पीच देने और हमारे जीवन में प्रकृति की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालना है। कुछ समय से मैं मनुष्य को अपने फायदे के लिए प्रकृति को नष्ट करने और इसे अपनी ज़रूरत के हिसाब से इस्तेमाल करने की बात सुनकर परेशान हूँ। प्रकृति को नष्ट न करने या इसे विभिन्न बाहरी खतरों से बचाने की बजाए – हम केवल संसाधनों और प्रकृति के उपहारों का शोषण कर रहे हैं। क्या हम हमारी जगह सही है? मैं इस प्रश्न को उन सभी बच्चों के लिए उठाऊंगा जो निकट भविष्य में हमारी धरती मां को बचाने की ज़िम्मेदारी उठान...

Prakriti, Prakṛti: 42 definitions

[ Purana glossary Google Books: Encyclopaedic Dictionary of Purāṇas Prakṛti (प्रकृति, matter) and Before creation Prakṛti lay merged with the Supreme Spirit without separate existence. But when the desire for creation was aroused, this Supreme Spirit divided itself into Prakṛti and Puruṣa. Then the right half becomes 'Puruṣa' and the left half 'Prakṛti'. Even though they are thus two yogīndras ('kings among sages') they see themselves as merged with the eternal One like fire and heat and assert the truth (Sarvaṃ Spirit). It was this basic Prakṛti that took forms as the five goddesses, Durgā, Lakṣmī, Saravatī, Sāvitrī and Rādhā. (9th Skandha, Devī Bhāgavata) archive.org: Shiva Purana - English Translation 1) Prakṛti (प्रकृति) refers to “cosmic nature” while pitṛ-mātṛ) for the acquisition of the hidden great bliss. Bharga is Puruṣa (Cosmic man or Being) and Bhargā is Prakṛti (Cosmic Nature). Puruṣa is of hidden latent conception and Prakṛti is of manifest inner conception. Since it is the father who conceives first, the Puruṣa has the primordial conception. The unification of Puruṣa and Prakṛti is the first birth. Its manifestation in the Prakṛti is called the second birth. The creature, dead even as it is born, takes up its birth from the Puruṣa”. 2) Prakṛti (प्रकृति) is another name for mahāpralaya):—“[...] this Śakti is called by various names. Pradhāna, Prakṛti, Māyā, Guṇavatī, Parā. The mother of Buddhi Tattva (The cosmic Intelligence), Vikṛtivarjitā (without modificati...