राज रत्नाकर के लेखक

  1. [Solved] 'आनंदविलास' के लेखक कौन थे?
  2. राजनीती रत्नाकर के लेखक कौन है?
  3. 'राजनीति रत्नाकर' का लेखक है?
  4. बाबू गुलाबराय
  5. राज रत्नाकर
  6. रत्नाकर
  7. संगीतरत्नाकर


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[Solved] 'आनंदविलास' के लेखक कौन थे?

सही उत्तर महाराजा जसवंत सिंहहै। Key Points • जसवंत सिंह राठौड़आज के भारतीय राज्य राजस्थान में मारवाड़ के महाराजा थे। • उनके पिता महाराजा गजसिंह थे। • वे "सिद्धांत-बोध", "आनंद विलास" और "भाषा​ -भूषण " के लेखक औरपत्रों केविशिष्ट व्यक्ति थे। Additional Information • मालदेव राठौर • मालदेव राठौड़ मारवाड़ के भारतीय शासक थे, जिसे बाद में जोधपुर के नाम से जाना जाने लगा। • वह राठौर कबीले के वंशज थे। • उनके पिता गंगा राठौर थे और उनकी मां सिरोही की रानी पद्मावती थीं। • राज सिंह • डूंगरपुर के राज सिंह भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष थे। • उन्होंने 16 वर्षों तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेला और 20 वर्षों से अधिक समय तक बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अंदर और बाहर रहे। • वह दो कार्यकाल तक राष्ट्रीय टीम के चयनकर्ता रहे। • उन्होंने विदेशी दौरों पर चार बार भारतीय क्रिकेट टीम को भी प्रबंधित किया। • जगत सिंह • जगत सिंह 1803 से 1818 तक अंबर और जयपुर के महाराजा रहे। • वे जयपुर के राजा प्रताप सिंह के पुत्र थे।

राजनीती रत्नाकर के लेखक कौन है?

राजनीति रत्नाकार के लेखक मिथिला राजा के मंत्री चंदेश्वर थे। इन्होंने अपनी इस पुस्तक में राज की ब्र​ह्रानीति का आधार मंडल सिद्धांत को बताया है। बतादें कि इस प्रकार के प्राचीन एवं मध्यकालीन भारतीय इतिहास से सं​बंधित प्रश्न अक्सर पूछे जाते है। जिसके उत्तरों भी कभी नहीं बदलते है। इसलिए अगर आप संघ एवं राज्य सिविल सेवा या राज्यस्तरीय किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है, तो इन्हें अच्छी तरह से याद कर लें। ताकि गलती की कोई संभावना न रहें। Tags : Explanation : बुलंदीबाग पाटलिपुत्र का प्राचीन स्थान था। बुलंदीबाग नामक प्राचीन स्थल मगध के समीप स्थित पाटलिपुत्र के लिए किया जाता है। यहां पर हुए उत्खनन में कुम्हार एवं बुलंदीाग से पाटलिपुत्र से संबंधित अभिलेखीय साक्ष्य मिले हैं। यहाँ की खुदाई • अमेरिका के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ब्रिटिश सेना का कमांडर कौन था?

'राजनीति रत्नाकर' का लेखक है?

'राजनीति रत्नाकार' नामक पुस्तक का लेख चंदेश्वर को माना जाता है। विद्यापति ने पदावलि, कीर्तिलता एवं कीर्तिपताका की रचना की। विद्यापति को 'मैथिल कोकिल' एवं 'अभिनव जयदेव' की उपाधि प्रदान की गई है। केन्द्रीय एवं राज्य सिविल सेवा परीक्षाओं में राज्य आधारित इसी तरह के अनेक प्रश्न पूछे जाते रहे है। जिसमें राज्य की सम-सामयिक घटनाऐं, राज्य की अर्थव्यवस्था, राज्य का भूगोल, कला एवं संस्कृति, जनजातियां, सामाजिक विकास, पुरस्कार एवं सम्मान आदि प्रमुख है। विभिन्न परीक्षाओं में दुहराव की प्रवृत्ति के दृष्टिगत यह प्रश्न आगामी परीक्षाओं हेतु निश्चित ही लाभकारी सिद्ध होगा। Tags : मध्य प्रदेश में सबसे अधिक क्षेत्र में सोयाबीन फसल बोई जाती है। सोयाबीन एक तिलहन फसल है। मध्य प्रदेश में देश का लगभग 88% सोयाबीन पैदा किया जाता है। इसलिए इसे सोया राजधानी भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश में लगभग 62 लाख हैक्टर में सोयाबीन की खेती की जाती ह • राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के वर्तमान अध्यक्ष कौन है?

बाबू गुलाबराय

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 वर्ण्य विषय • 3 भाषा-शैली • 4 कृतियाँ • 5 विरासत • 6 इन्हें भी देखें • 7 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] बाबू गुलाबराय का जन्म मैनपुरी प्रारंभिक शिक्षा, बसे इटावा जाकर। एम०ए०, डी०लिट हुई आगरा, लिखा 'प्रबंध प्रभाकर'॥ नवरस', 'तर्कशास्त्र', 'ठलुआ क्लब', 'कुछ उथले कुछ गहरे। व्यवहारिक, संस्कृत गर्भित, भाषा शब्द सुनहरे ॥ आलोचना, व्यंग, भाषात्मक, परिचय, आत्मक और व्यंजक। शैली के छः रूप मनोहर, क्रमशः है व्याख्यात्मक ॥ बाबू जी थे प्रथम मनीषी, कलाकार आलोचक। दर्शन के पण्डित प्रकाण्ड थे, थे उच्च व्यंग के लेखक ॥ वर्ण्य विषय [ ] गुलाब राय जी की रचनाएँ दो प्रकार की हैं- दार्शनिक और साहित्यिक। गुलाब राय जी की दार्शनिक रचनाएँ उनके गंभीर अध्ययन और चिंतन का परिणाम है। उन्होंने सर्व प्रथम हिंदी को अपने दार्शनिक विचारों का दान दिया। उनसे पूर्व हिंदी में इस विषय का सर्वथा अभाव था। गुलाबराय जी की साहित्यिक रचनाओं के अंतर्गत उनके आलोचनात्मक निबंध आते हैं। ये आलोचनात्मक निबंध सैद्धांतिक और व्यवहारिक दोनों ही प्रकार के हैं। गुलाबराय जी ने सामाजिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक आदि विविध विषयों पर भी अपनी लेखनी चलाकर हिंदी साहित्य की अभिवृद्धि की है। भाषा-शैली [ ] Read this गुलाबराय जी की भाषा शुद्ध तथा परिष्कृत खड़ी बोली है। उसके मुख्यतः दो रूप देखने को मिलते हैं - क्लिष्ट तथा सरल। विचारात्मक निबंधों की भाषा क्लिष्ट और परिष्कृत हैं। उसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, भावात्मक निबंधों की भाषा सरल है। उसमें हिंदी के प्रचलित शब्दों की प्रधानता है साथ उर्दू और अंग्रेज़ी के शब्दों का भी प्रयोग मिलता है। कहावतों और मुहावरों को भी अपनाया गया है। गुलाबराय जी की भाषा आडंबर शून्य है। संस्क...

राज रत्नाकर

री पेजाबप्रान्त--पडियाला | (५) किक. खजाना और अपना ,सब माल रक्षाके निमित्त मर्टिडि भेज दिया । जिनका डर था वह तो . नहीं. बोछे, किन्तु स्वयं अमरसिंहकमा माई हिम्मतसिंह बडे माईसे बगावतकर बेठा-भौर 'पटियाठेके किलेपर अपना अधिकार जमाना चाहा । भन्यू कई सरदार भी उसके दारींक हो गये, किन्तु भमरसिंहने थोडेही दिनोमिं इन सबकों परास्त कर दिया | उसी समय रणर्जातर्सिंहका सौमाग्य-सू्य पंजावमें उदय हो चुका था । भमरसिंहकों पंजाव केसरीका झुरूद्दीसे बहुत भय था, कईवार चेष्टा करनेपर भी रणर्जातर्सिहके सामने उनकी कुछ पेश न गईं । समरसिंदकी शत्युके वाद सन्‌ १७८१ में साहवर्सिह गद्दीपर वेठे । उनके 'सासनकालमें राज्यपर बडी विपद पड़ी । सन्‌ १७८६ में समस्त पंजावप्रां- तमें घोर अकाड़ पडा था । अज्ञालके कारण पटियाला राज्यका बल बहुत : कुछ घटगया । यह देखकर अनेक सरदार स्त्रतन्त्र होगये और राज्यकी वहडु- तसी भूमि उन्होंने दवा ढी । साहबर्सिहने कोई चारा न देख, मराठोंकों दिछीसे अपनी मददके लिये चुढाया | उन्होंने आकर समस्त बागी सरदारोंको फिरसे जीत, पटियाला दरवारके सपुर्दे करदिया | सन्‌ १८०६३ में मंगरेजी जनरल छेकने दिल्लीपर अधिकार जमा छिया | वहीं मराठों - और भंगरेजोमें एक संघिपत्र ज़िखागया । इसी संघिकी तिथिसे भैंगरेजी राज्य यमुनाके पार बढ़ने ढगा । रणजातरसिंहकी इ्रि बहुत दिनोंसे पटियाठेपर ठगी थी, इससे सन्‌ १८०६ में वह सेना सहित फ़ूड कियां राज्यपर चढगये । उसी समय नामा और पटियाढामें' कुछ तकरार झुरू होगई | नाभा नरेशने रणजीतरसिंहको अपनी. सहायंताके छिये _ बुढाया । रणजीतसिंह तो इसके छिये तैयार होकर निकड़ेही थे । नामाका सन्देश _. मिठतेही झट फ़ुलकियां राज्यमें घुस गेये । ठेकिन अन्तमें नाभा और पटियाढाके .नरेदोंसें मेठ कराकर छाहोर लौ...

रत्नाकर

( १३ गुप्त बातें तथा विचार भी वे दमसे स्त्रच्छ हृदय से कह देते थे झौर साहित्यिक विषयों में तो हमें सदा छापने साथ रखने का संकल्प रखते थे । ऐसे एक मित्र की प्रथम वार्षिक जयंती पर उनके काव्यों का समन प्रस्तुत करने मे जो कुछ इमसे बन पढ़ा है, उसके द्वारा इस 'अझपना सित्र-ऋण अशत: 'चुकाना चाहते हैं झार यदद अद्धांजलि उनकी स्वर्गीय आत्मा के ार्पित करते हैं । श्यामसुंद्रदास का, (ग)

बिहारी

संपादकीय निवेदन प्रचलित भारतीय भाषाओं में हमारी मातृभाषा हिंदी का प्राचीन कविता-भांडार जितना भरापुरा है, उतना कदाचित् ही और किसी का हो। हिंदी-माता का यही साहित्य-भांडार अन्यान्य बहनों के सामने उसका मस्तक ऊँचा किए हुए है। किंतु अथाह रत्नाकर के समान हमारे इस सुविस्तृत साहित्य के भी अधिकांश रमणीय रत्नों का परमोज्ज्वल प्रकाश काव्यरत्न-प्रेमियों का नेत्ररंजन और मनोरंजन नहीं कर रहा है। समुद्र की अँधेरी, अज्ञात और अगम्य गुफाओं में जैसे असंख्य, मंजुल, मनोमोहक और मूल्यवान् मणियाँ भरी पड़ी हैं, वैसे ही हमारे भी बहुतेरे उत्कृष्ट, उज्ज्वल और उपयोगी ग्रंथ, हस्तलिखित रूप में, प्राचीन प्रकार के बस्तों में बँधे, बक्सों में बंद पड़े सड़ रहे हैं; मानो साहित्य-संसार से उनका कोई संबंध ही नहीं। इसमें संदेह नहीं कि कुछ साहित्यिक ग़ोताख़ोरों ने बस्तों की कंदराओं से निकालकर अनेक ग्रंथ-रत्नों का मुद्रण-उद्धार अवश्य किया है। परंतु वे भी प्रकाशन के उस प्राचीन परिच्छद में प्रकट हुए हैं, जो इस समय बिलकुल प्रचलित नहीं। इसके अतिरिक्त ये ग्रंथ-रत्न जिस रूप में प्राप्त हुए हैं, उसी में प्रायः प्रकाशित भी कर दिए गए हैं। उनका समुचित संशोधन और संस्करण करके—भूमिका, टिप्पणी आदि की ओप तथा डाँक देकर, सुंदर, सुसज्जित स्वरूप में, साहित्य-संसार को समर्पित करने का पर्याप्त प्रयत्न प्रायः किया ही नहीं गया है। इसलिये इन दोनों ही स्थितियों—बस्तों में बँधने की हस्तलिखित स्थिति और प्राचीन प्रकार से छपने की मुद्रित स्थिति—का परिणाम प्रायः एक ही हो रहा है। इन दोनों ही ढंगों के ग्रंथों से वर्तमान हिंदी-कविता-प्रेमी यथेष्ट लाभ नहीं उठा रहे हैं—या यों कहिए कि उठा ही नहीं सकते। क्या यह शोक की बात नहीं कि सूर, बिहारी, देव, मतिर...

संगीतरत्नाकर

संगीतरत्नाकर (13 वीं सदी) शारंगदेव, यादव राजा 'सिंहण' के राजदरबारी थे। सिंहण की राजधानी इस ग्रंथ के प्रथम छः अध्याय - स्वरगताध्याय, रागविवेकाध्याय, प्रकीर्णकाध्याय, प्रबन्धाध्याय, तालाध्याय तथा वाद्याध्याय संगीत रत्नाकर में कई चतुभिर्धातुभिः षड्‌भिश्चाङ्‌गैर्यस्मात्‌ प्रबध्यते। तस्मात्‌ प्रबन्धः कथितो गीतलक्षणकोविदैः॥ संरचना [ ] संगीतरत्नाकर में ७ अध्याय हैं जिनमें गीत, वाद्य और नृत्य के विभिन्न पक्षों का वर्णन है। • स्वरगताध्याय • रागविवेकाध्याय में • प्रकीर्णकाध्याय (संगीत का प्रदर्शन) • प्रबन्धाध्याय (संगीत-रचना, छन्द) • तालाध्याय ( • वाद्याध्याय ( • नर्तनाध्याय ( सन्दर्भ [ ]