राजस्थान की मृदा का वैज्ञानिक वर्गीकरण

  1. मृदा
  2. [Solved] मृदा वर्गीकरण की नई प्रणाली के तहत राजस्थान
  3. मृदा का वर्गीकरण कीजिए
  4. राजस्थान की मिट्टियां
  5. राजस्थान की मिट्टियाँ
  6. राजस्थानी मिट्टी/मृदा (Rajasthani Soil) » MYUPSC


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मृदा

अनुक्रम • 1 परिचय • 2 मिट्टी का पार्श्व दृश्य और उसके संस्तर • 3 कण आकार • 4 मिट्टी की सुघट्यता और संसंजन (Plasticity and Cohesion) • 5 मिट्टी की ऊपरी परत का रंग • 6 भार • 7 कणांतरित छिद्र • 8 कणों की माप ISSS • 9 मिट्टी में जल • 10 पौधों का जल से संबंध • 11 मिट्टी में स्थित वायु • 12 मिट्टी में ऊष्मा • 13 मिट्टी में स्थित अकार्बनिक पदार्थ • 13.1 मिट्टी में अधिक मात्रा में रहने वाले तत्त्व • 13.2 न्यून मात्रा में रहनेवाले तत्त्व • 14 मिट्टी में स्थित जैव और कार्बनिक पदार्थ • 15 मिट्टी में स्थित कलिल पर विनिमय क्रिया • 16 मिट्टी में अम्लता और क्षारीयता • 17 मिट्टी का विश्लेषण • 18 मृदा के प्रकार • 18.1 जलोढ़ मिट्टी (दोमट मिट्टी) • 18.2 काली मिट्टी • 18.3 लाल मिट्टी • 18.4 लैटेराइट मिट्टी • 18.5 पर्वतीय मिट्टी • 18.6 शुष्क एवं मरूस्थलीय मिट्टी • 18.7 लवणीय मिट्टी या क्षारीय मिट्टी • 18.8 जैविक मिट्टी (पीट मिट्टी) • 19 कृष्य भूमि • 20 इन्हें भी देखें • 21 बाहरी कड़ियाँ परिचय [ ] नदियों के किनारे तथा पानी के बहाव से लाई गई मिट्टी जिसको 'कछार मिट्टी'( प्राकृतिक क्रियाओं द्वारा चट्टानों का छोटे-छोटे कणों में परिवर्तन होने से मिट्टी के बनने में जो सहायता होती है, उस क्रिया को मिट्टी का पार्श्व दृश्य और उसके संस्तर [ ] यह मानी हुई बात है कि जिस मिट्टी पर प्राकृतिक क्रियाएँ होती है, जल का प्रपात तथा वायु और सूर्यकिरण का संसर्ग होता रहता है, वह कुछ वर्षो में ऐसा रूप धारण कर लेती है जिससे उसके नीचे की भिन्न रूप रंग और गुणवाली मिट्टियों के बहुत से संस्तर हो जाते हैं। यदि हम मिट्टी की ऊपरी सतह पर १० या १२ फुट गहरा गड्ढा खोदें और मिट्टी के पार्श्व का अवलोकन करें, तो हमें नियमित रूप से क...

[Solved] मृदा वर्गीकरण की नई प्रणाली के तहत राजस्थान

सही उत्तर 5 है। Key Points • मृदा वर्गीकरण की नई मृदा वर्गीकरण आधारित व्यापक प्रणाली 1976 मेंमृदा सर्वेक्षण कर्मियों द्वाराविकसित की गई थी। • इस नई मृदाप्रणाली में मृदा के 10 क्रम हैं, जिन्हें 47 उप-क्रमों और फिर 230 महानसमूहों में विभाजित किया गया है ।इन महान उपसमूहों को आगे परिवार और श्रृंखला में विभाजित किया गया है। • नई व्यवस्था के तहत राजस्थान की अधिकांश मृदाएँ 5 के क्रम की हैं।​ • मृदा के 5अनुक्रम हैं एरिडीसोल, अल्फ़ीसोल्स, एंटीसोल, इन्सेप्टीसोल और वर्टिसोल। Additional Information • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 1953 में एक अखिल भारतीय मृदा सर्वेक्षण समिति की स्थापना कीजिसने भारतीय मृदा को आठ प्रमुख समूहों में विभाजित किया। • भारतीय मृदा की श्रेणियांहैं:जलोढ़ मृदा, काली कपास मृदा, लाल मृदा, लेटराइट मृदा, पहाड़ी या वन मृदा, शुष्क या रेगिस्तानी मृदा, लवणीय और क्षारीय मृदा, पीट और दलदली मृदा। • भारतीय मृदाको वर्गीकृत करने के लिए अलग-अलग मानदंड लागू किए गए हैं जिसमें उत्कृष्ट भूविज्ञान, मृदा के कण का आकार , उर्वरता, रासायनिक संरचना और भौतिक संरचना शामिल है । • भूवैज्ञानिक रूप सेभारतीय मृदा को मोटे तौर पर दो मुख्य प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है: • प्रायद्वीपीय भारत की मृदा :​ • प्रायद्वीपीय भारत की मृदा का निर्माण स्वस्थानी में चट्टानों के अपघटन अर्थात सीधे अंतर्निहित चट्टानों से होता है। • गैर -प्रायद्वीपीय भारत की मृदा : • नदियों और हवा के निक्षेपण कार्य के कारण गैर-प्रायद्वीप की मृदाका निर्माण होताहै।

मृदा का वर्गीकरण कीजिए

मृदा का वर्गीकरण - मृदा के निर्माण और विकास में विभिन्न कारकों जैसे - जलवायु, वनस्पति, पैतृक चट्टाने, स्थलाकृति और समय के प्रभाव से भिन्न-भिन्न प्रकार की मृदाएं बनती है। मृदाओं की विभिन्नताओं को देखते हुए उसे कई आधार पर विभिन्न वर्गों में बांटा गया है - • जननिक वर्गीकरण ( Genetic classification ) • भू-वैज्ञानिक वर्गीकरण ( Geological classification ) • भौतिक वर्गीकरण ( Physical classification ) • कणों के आधार पर भूमि का वर्गीकरण ( Textural classification ) मृदा का वर्गीकरण | soil classification in hindi मृदा का वर्गीकरण कीजिए | soil classification in hindi मृदाओं का वर्गीकरण निम्न प्रकार है - 1. जननिक वर्गीकरण ( Genetic classification ) इस वर्गीकरण में भूमि उद्भव (origin) को ध्यान में रखा जाता है। इस वर्गीकरण में विश्व की समस्त भूमि निम्नलिखित चार भागों में बाँटी गई है - थर्मोजैनिक वर्ग ( Thermogenic Group ) - इस वर्ग की भूमि विश्व के सर्वाधिक गर्म भागों में मिलती है (उण्णा कटिबन्धीय जलवायु) । उच्च ताप इन भूमियों का मुख्य गुण है। इन भूमियों में खनिज सिलिकेट (mineral silicates) शीघ्र ही विघटित हो जाते हैं और अधिक ताप के कारण जैव - पदार्थ भी भूमियों में एकत्रित नहीं हो पाता और शीघ्र ही खनिजीकृत (min eralized) हो जाता है। इस वर्ग में पीले और लाल रंग की दोमट (yellow and red soil) और लैटराइट भूमि आती है। फाइटोजैनिक वर्ग ( Phytogenic Group ) — इस वर्ग का मुख्य गुण कम ताप और समशीतोष्ण जलवायु है। इस वर्ग की भूमियों में जैव - पदार्थ की अधिकता रहती है क्योंकि कम ताप के कारण जैव - पदार्थ सड़ नहीं पाता। खनिज सिलिकेट का विघटन भी धीमी गति से होता है। पॉडसोल्स (podsols) तथा चैस्टनट भूमि (...

राजस्थान की मिट्टियां

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राजस्थान की मिट्टियाँ

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (फ़रवरी 2015) स्रोत खोजें: · · · · साधारणतया जिसे हम मिट्टी कहते हैं , वह चट्टानों का चूरा होता है। ये चट्टानें मुख्यतया तीन प्रकार की होती हैं - स्तरीकृत , आग्नेय और परिवर्तित। क्षरण या नमीकरण के अभिकर्त्ता तापमान,वर्षा,हवा,हिमानी,बर्फ व नदियों द्वाया ये चट्टाने टुकड़ों में विभाजित होती हैं जो अंत में हमें के रूप में दिखाई देती हैं। ★ मृदा संगठन के 4 प्रमुख अवयव हैं - 1. खनिज पदार्थ (45%) 2. जीवासम पदार्थ/कार्बनिक पदार्थ(3-5%) 3. जल (25%) 4. वायु (25%) अनुक्रम • 1 मिट्टियों के प्रकार • 2 रेतीली मिट्टी • 3 दोमट मिट्टी • 4 लाल-काली मिट्टी • 5 पीली-लाल मिट्टी • 6 काली मिट्टी • 7 लेटेराइट मिट्टी • 8 जलोढ़ मिट्टी • 9 सन्दर्भ • 10 बाहरी कड़ी [ ] वैज्ञानिक दृष्टि से राजस्थान की मिट्टियों का वर्गीकरण इस प्रकार किया गया है - [ ] इस प्रकार की मिट्टी मरुस्थलीय क्षेत्र में पाई जाती है राजस्थान में इस मिट्टी का विस्तार राजस्थान में 38% तक पाया जाता है इस मिट्टी को एरिडिसोल्स भी कहा जाता है [ ] यह मिट्टी [ ] यह मिट्टी पीली-लाल मिट्टी [ ] इस प्रकार की मिट्टी काली मिट्टी [ ] यह मिट्टी उदयपुर संभाग के कुछ भागों डूंगरपुर , बाँसवाड़ा कुशलगढ़ , लेटेराइट मिट्टी [ ] इस प्रकार की मिट्टी जलोढ़ मिट्टी [ ] यह सन्दर्भ [ ]

राजस्थानी मिट्टी/मृदा (Rajasthani Soil) » MYUPSC

भूमी की सबसे ऊपरी परत जो पेड़-पौधों के उगने के लिए आवश्यक खनिज आदि प्रदान करती है, मृदा या मिट्टी कहलाती है। भिन्न स्थानों पर भिन्न प्रकार की मिट्टी पाई जाती है इनकी भिन्नता का सम्बन्ध वहां की चट्टानों की सरंचना, धरातलीय स्वरूप, जलवायु, वनस्पति आदि से होता है। मिट्टी के अध्ययन के विज्ञान को मृदा विज्ञान यानी पेडोलोजी कहा जाता है। मिट्टी के सामान्य प्रकार निम्न है – 1. लैटेराइट मिट्टी इसका निर्माण मानसूनी जलवायु की आर्द्रता और शुष्कता के क्रमिक परिवर्तन के परिणामस्वरूप उत्पन्न विशिष्ट परिस्थितियों में होता है। गहरी लेटेराइट मिट्टी में लोहा ऑक्साइड और पोटाश की मात्रा अधिक होती है। लौह आक्साइड की उपस्थिति के कारण प्रायः सभी लैटराइट मृदाएँ जंग के रंग की या लालापन लिए हुए होती हैं। शैलों यानी रॉक्स की टूट-फूट से निर्मित होने वाली इस मिट्टी को गहरी लाल लैटेराइट, सफेद लैटेराइट और भूमिगत जलवायी लैटेराइट के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। लैटेराइट मिट्टी चाय की खेती के लिए सबसे उपयुक्त होती है। 2. बालू मिट्टी इसका निर्माण उच्च तापमान, कम आर्द्रता वाले क्षेत्रों में ग्रेनाइट एवं बलुआ पत्थर के क्षरण से हुआ है। 3. लाल मिट्टी इसका निर्माण जल वायु परिवर्तन की वजह से रवेदार और कायांतरित शैलों के विघटन और वियोजन से होता है।इस मिट्टी में सिलिका और आयरन बहुलता होती है। लाल मिट्टी का लाल रंग आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति के कारण होता है, लेकिन जलयोजित रूप में यह पीली दिखाई देती है. 4. काली मिट्टी इसका निर्माण बेसाल्ट चट्टानों के टूटने-फूटने से होता है। इसमें आयरन, चूना, एल्युमीनियम जीवांश और मैग्नीशियम की बहुलता होती है। इस मिट्टी का काला रंग टिटेनीफेरस मैग्नेटाइट और जीवांश (ह्यूमस) की उपस्थिति के...