रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएं

  1. विविध कविताएं : रामधारी सिंह 'दिनकर' (हिन्दी कविता)
  2. रामधारी सिंह दिनकर
  3. रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविता Veer ras kavita by ramdhari singh dinka
  4. रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी
  5. 25+ ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi
  6. रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं!
  7. रामधारी सिंह 'दिनकर' ऐसे कवि थे जो सत्ता के करीब रहकर भी कभी जनता से दूर नहीं हुए
  8. Ramdhari Singh Dinkar: रामधारी सिंह 'दिनकर' की रश्मिरथी का प्रथम सर्ग
  9. Ramdhari Singh Dinkar: रामधारी सिंह 'दिनकर' की रश्मिरथी का प्रथम सर्ग
  10. रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं!


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विविध कविताएं : रामधारी सिंह 'दिनकर' (हिन्दी कविता)

विश्व-विभव की अमर वेलि पर फूलों-सा खिलना तेरा। शक्ति-यान पर चढ़कर वह उन्नति-रवि से मिलना तेरा। भारत ! क्रूर समय की मारों से न जगत सकता है भूल। अब भी उस सौरभ से सुरभित हैं कालिन्दी के कल-कूल। हाय ! विभव के उस पद में नियति-भीषिका की मुसकान जान न सकी भोग में भूली- सी तेरी प्यारी सन्तान। सुन न सका कोई भी उसका छिपा हुआ वह ध्वंसक राग- ‘‘हरे-भरे, डहडहे विपिन में शीघ्र लगाऊँगी मैं आग।’’ (अय ताइरे-लाहूती ! उस रिज़्क से मौत अच्छी, जिस रिज़्क से आती हो परवाज़ में कोताही।-इक़बाल) (1) आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा ? मरभुखे ! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा ? आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं, पर, कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं। (2) हो रहे खड़े आजादी को हर ओर दगा देनेवाले, पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले। इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है ? है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है ? (3) झेलेगा यह बलिदान ? भूख की घनी चोट सह पाएगा ? आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा ? है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी, बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी। (4) केवल रोटी ही नहीं, मुक्ति मन का उल्लास अभय भी है, आदमी उदर है जहाँ, वहाँ वह मानस और हृदय भी है । बुझती स्वतन्त्रता क्या पहले रोटियाँ हाथ से जाने से ? गुम होती है वह सदा भोग का धुआँ प्राण पर छाने से । (5) स्वातंत्र्य गर्व उनका, जो नर फाकों में प्राण गँवाते हैं, पर, नहीं बेच मन का प्रकाश रोटी का मोल चुकाते हैं । स्वातंत्रय गर्व उनका, जिन पर संकट की घात न चलती है, तूफानों में जिनकी मशाल कुछ और तेज हो जलती है । (6) स्वातंत्र्य गर्व उनका, जिनका आराध...

रामधारी सिंह दिनकर

अंकित सिंह दिनकर जी का बचपन गांव में ही बीता। बचपन में ही दिनकर के पिता जी का देहावसान हो गया जिसके बाद उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हासिल करने के बाद उन्होंने बगल के गांव से मिडिल स्कूल में पढ़ाई की। राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत, क्रांतिकारी संघर्ष की प्रेरणा देने वाली ओजस्वी कविताओं के रचयिता रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की आज जयंती है। रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1960 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया नामक गांव में हुआ था। दिनकर को आधुनिक युग का श्रेष्ठ वीर रस कवि माना जाता है। स्वतंत्रता से पूर्व वह एक विद्रोही कवि के रूप में खुद को स्थापित करने में कामयाब रहे तो वही स्वतंत्रता के बाद उन्होंने राष्ट्र कवि के नाम से प्रसिद्धि पाई। अपनी रचनाओं से युवाओं में राष्ट्रीयता व देश प्रेम की भावनाओं का ज्वार उठाने वाले रामधारी सिंह दिनकर हर उम्र के लोगों में प्रिय थे। रामधारी सिंह दिनकर ऐसे कवि थे जिन्होंने एक साथ पढ़े-लिखे, अपढ़ और कम पढ़े लिखो में लोकप्रियता हासिल की। इतना ही नहीं, वह अहिंदी भाषियों के बीच भी लोकप्रिय हुए। उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने के कारण श्रृंगार के भी प्रमाण मिलते है। दिनकर जी का बचपन गांव में ही बीता। बचपन में ही दिनकर के पिता जी का देहावसान हो गया जिसके बाद उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी उनकी मां पर आ गई। अपनी प्रारंभिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय से हासिल करने के बाद उन्होंने बगल के गांव से मिडिल स्कूल में पढ़ाई की। इसी दौरान उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को लेकर सरकार के खिलाफ विरोध खोला था। यहीं से इनके मन में राष्ट्रप्रेम और राष्ट्रीयता की भावना उभर कर सामन...

रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविता Veer ras kavita by ramdhari singh dinka

Veer ras kavita by ramdhari singh dinkar दोस्तों रामधारी सिंह दिनकर का जन्म है 23 सितंबर 1908 को भारत के बिहार में स्थित बेगूसराय जिले में हुआ था ये एक महान निबंधाकार ,लेखक एवं कवि थे इन्होने अपनी पढाई पटना विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र और इतिहास से की थी.ये आधुनिककाल के महान कवि थे इन्होने कई कविताएं सामाजिक मुद्दों पर लिखी है जो लोगो में बेहद पसंद की जाती है इनकी ज्यादातर कविताएं वीर रस से ओतप्रोत है चलिए पढ़ते है रामधारी सिंह दिनकर के द्वारा लिखित इस कविता को Veer ras kavita by ramdhari singh dinkar सलिल कण हु या पारावार हु में स्वयं छाया स्वयं आधार हु में सच है विपत्ति जब आती है कायर को ही दहलाती है सूरमा नहीं विचलित होते क्षण एक नहीं धीरज खोते विध्नो को गले लगाते काँटों में राह बनाते है मुह से न कभी उफ़ कहते है संकट का चरण न गहते है जो आ पड़ता सब सहते हैं उद्धोग निरत नित रहते हैं शूलो का मूल नसाते हैं बढ़ खुद विपत्ति पर छाते है है कोन विध्न ऐसा जग में टिक सके आदमी के मग में ख़म ठोक ठेलता है जब नर पर्वत के जाते पाँव उखड मानव जब जोर लगता है पत्थर पानी बन जाता है गुन बड़े एक से एक प्रखर है छिपे मानवो के भीतर मेहँदी में जैसी लाली हो वर्तिका बीच उजियाली हो बत्ती जो नहीं जलाता है रौशनी नहीं वह पाता है. • दोस्तों अगर आपको हमारे द्वारा लिखा गया है ये आर्टिकल Veer ras kavita by ramdhari singh dinkar पसंद आए तो इसे अपने दोस्तों में शेयर करना ना भूले इसे शेयर जरूर करें और हमारा Facebook पेज लाइक करना ना भूलें और हमें कमेंटस के जरिए बताएं कि आपको हमारा यह आर्टिकल कैसा लगा जिससे नए नए आर्टिकल लिखने प्रति हमें प्रोत्साहन मिल सके और इसी तरह के नए-नए आर्टिकल को सीधे अपने ईमेल पर पाने के लि...

रामधारी सिंह दिनकर की जीवनी

आपने अपने जीवन मे वैसे तो कई कवि देखे होंगे जो खुद की कविताओं की वजह से काफी चर्चाओं मे रहते है। अपने आसपास नजरें घुमा कर देखेंगे तो आपको हर जगह ऐसे ही कुछ लेखक, शायर व कहावत कहने वाले मिल जायेंगे। पर, क्या आपने कभी ऐसा कवि देखा है जिसकी कविताएं व रचनाएं देश व देशभक्ति के लिए महत्वपूर्ण हो ? आपने ऐसे कवि नही देखे होंगे पर हम आपको बता बताते है। आपको इस लेख के माध्यम से ऐसे ही एक कवि के बारे मे बताया जा रहा है जिनकी रचनाएं देश व देशभक्ति के संदर्भ मे लोगों का मन मोह देती थी। आपको इस बात की तो जानकारी होगी ही इस देश की आजादी के लिए राष्ट्र के हर वर्ग ने अपना कुछ न कुछ योगदान दिया है, उनमें से कुछ कवि भी थे। वैसे ही एक कवि के बारे मे हम आपको आज इस लेख के माध्यम से बता रहे है जिसे हम “रामधारी सिंह दिनकर” के नाम से जानते है। अतः आप इस लेख को अंत तक पढे ताकि आपको इसके बारे मे पूरी जानकारी मिल सके। रामधारी सिंह दिनकर का जीवन परिचय (Ramdhari Singh Dinkar ki Jivani in Hindi) भारत के स्वतंत्रता के समय के कवि रामधारी सिंह दिनकर के वीर रस की बात करे तो वे इसके महान कवि थे। उनकी कविताएं ऐसी होती थी की वे सीधे दिल को चीर का ह्रदय को हिलोर देती थी। उनकी कविताएं भावनाओं से ओतप्रोत रहती थी। उनकी कविताों मे देश भक्ति वाला रस होता था। रामधारी सिंह की कविताएं सीधे दिल को लगती थी। आज भी अगर उनकी कहानियां सुनते है तो उससे लोगों का मन प्रफुल्लित हो जाता है, उनकी कविताएं आज भी काफी प्रसिद्ध है वही वे अपने जमाने के काफी प्रसिद्ध कलाकार एवं रचयिता थे। भारत के इस महान कवि रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 1908 के साल मे 23 सितंबर को हुआ था वही उनका देहांत 24 अप्रैल, 1974 को हो गया था। रामधारी सिंह जी भारत क...

25+ ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi

Table of Contents • • • • • • • • • • 25+ ramdhari Singh dinkar Poems in Hindi | 25+ रामधारी सिंह दिनकर की प्रसिद्ध कविताएं Short biography of Ramdhari Singh dinkar हिन्दी जगत के सुविख्यात कवि और भारत के सबसे प्रसिद्ध कवियों में से एक रामाधारी सिंह दिनकर का जन्म 23 सितंबर 1908 ई. में बिहार के बेगूसराय जिले के मुंगेर में सिमरिया क्षेत्र में एक भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था उनके पिता रवि सिंह एक सामान्य किसान थे जबकि उनकी माता का नाम रूप देवी था जब रामधन सिंह दिनकर की आयु 2 वर्ष की थी उस अवस्था में ही उनके पिता का देहांत हो गया इसके बाद उनकी विधवा माता ने ही उनका पालन पोषण किया । संस्कृत के एक पंडित के पास उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ की जिसके बाद दिनकर जी ने अपने गाँव के ही ‘प्राथमिक विद्यालय’ से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की एवं निकटवर्ती बोरो नामक ग्राम के राष्ट्रीय मिडिल स्कूल से माध्यमिक शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद पटना विश्वविद्यालय से इतिहास, राजनीति विज्ञान में बीए किया। इस दौरान उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का भी गहन अध्ययन किया था बी. ए. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वे एक विद्यालय में अध्यापक के पद पर नियुक्त हुए । दिनकर जी का बचपन से ही कविता संग्रह में काफी रूचि था जिसके कारण उन्होंने अपने अध्यापक की नौकरी के साथ ही कविताएं लिखना प्रारंभ किया उनका पहला काव्यसंग्रह ‘ विजय संदेश‘ वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ. इसके बाद उन्होंने कई रचनाएं लिखी उनकी कुछ प्रमुख रचनाएं ‘परशुराम की प्रतीक्षा’, ‘हुंकार’ और ‘उर्वशी’ हैं रामधारी सिंह दिनकर एक ओजस्वी राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत कवि के रूप में जाने जाते थे उनकी कविताओं में छायावादी युग का प्रभाव होने ...

रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं!

रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं! रामधारी सिंह दिनकर बर्थडे (Ramdhari Singh Birthday): आज भले ही राष्ट्रवाद (Nationalism) और देशभक्ति पर तमाम तरह की बातें हो रही हों लेकिन अगर हमें वाक़ई राष्ट्रवाद और देशभक्ति को समझना है तो हमें दिनकर को पढ़ना चाहिए जिनका लेखन देशभक्तों के लिए खाद से कम नहीं है. समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध.. एक ऐसे समय में जब देश और देश की जनता राष्ट्रवाद (Nationalism) और देशभक्ति को सर्वोपरि रख कर फैसले ले रही हो सियासी दल राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति (Politics) कर रहे हों बॉलीवुड (Bollywood) देश भक्ति को केंद्र में रखकर फिल्मों का निर्माण कर रहा हो उस साहित्य को हरगिज़ नकारा नहीं जा सकता जिसने देश की जनता के बीच असल राष्ट्रवादी भावना का संचार किया. बात राष्ट्रवाद और साहित्य (Litreature) पर चल रही है ऐसे में अगर हम आज की के दिन यानी 23 सिंतबर 1908 में बिहार के सिमरिया में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' (Ramdhari Singh Dinkar) का जिक्र न करें तो राष्ट्रवाद के विषय पर पूरा चिंतन अधूरा रह जाता है. दिनकर की रचनाओं में जैसा शब्दों का सामंजस्य है शायद ही किसी की हस्ती हो कि उसकी आलोचना या फिर उस पर किसी तरह की कोई टिप्पणी कर सके लेकिन फिर भी अगर हम दिनकर के लिखे या ये कहें कि उनकी रचनाओं का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि विषय से लेकर शब्दों तक जैसा सामंजस्य दिनकर ने अपनी रचनाओं में दिखाया विरले ही लोग होते हैं जो इतना प्रभावशाली लिख पाते हैं. बात अगर उसदौर की हो तो मैथलीशरण गुप्त के अलावा ये रामधारी सिंह दिनकर की ही कलम थी जिनसे ऐसा बहुत कुछ लिख दिया जो एक नजीर ब...

रामधारी सिंह 'दिनकर' ऐसे कवि थे जो सत्ता के करीब रहकर भी कभी जनता से दूर नहीं हुए

रामधारी सिंह ‘दिनकर’ (23 सितंबर 1908- 24 अप्रैल 1974) अपने समय के ही नहीं बल्कि हिंदी के ऐसे कवि हैं, जो अपने लिखे के लिए कभी विवादित नहीं रहे, जिंदगी के लिए भले ही थोड़े-बहुत रहे हों. वे ऐसे कवि रहे जो एक साथ पढ़े-लिखे, अपढ़ और कम पढ़े-लिखों में भी बहुत प्रिय हुए. यहां तक कि अहिंदी भाषा-भाषियों के बीच भी वे उतने ही लोकप्रिय थे. पुरस्कारों की झड़ी भी उनपर खूब होती रही, उनकी झोली में गिरनेवाले पुरस्कारों में बड़े पुरस्कार भी बहुत रहे - साहित्य अकादमी पुरस्कार, पद्मविभूषण, भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार इस बात की तस्दीक खुद करते हैं. बावजूद इसके वे धरती से जुड़े लोगों के मन को भी उसी तरह छूते रहे. हिंदी साहित्य के इतिहास में कि ऐसे लेखक बहुत कम हुए हैं जो सत्ता के भी करीब हों और जनता में भी उसी तरह लोकप्रिय हों. जो जनकवि भी हों और साथ ही राष्ट्रकवि भी. दिनकर का व्यक्तित्व इन विरोधों को अपने भीतर बहुत सहजता से साधता हुआ चला था. वहां अगर भूषण जैसा कोई वीर रस का कवि बैठा था, तो मैथिलीशरण गुप्त की तरह लोगों की दुर्दशा पर लिखने और रोनेवाला एक राष्ट्रकवि भी. हालंकि दिनकर छायावाद के तुरंत बाद के कवि थे पर आत्मा से वे हमेशा द्विवेदीयुगीन कवि रहे. दिनकर और हरिवंशराय बच्चन दोनों समकालीन थे. समकालीनों के बीच की जलन और प्रतिस्पर्धा किसी के लिए भी छिपी हुई बात नहीं. पर दिनकर ऐसे कवि थे जो अपने समकालीनों के बीच भी उतने ही लोकप्रिय थे. दिनकर को जब उर्वशी के लिए ज्ञानपीठ मिला तो किसी आग-लगाऊ पाठक ने बच्चन जी को पत्र लिखकर पूछा कि - ‘क्या यह एक सही निर्णय था. बच्चन जी दिनकर को मिले इस पुरस्कार के सन्दर्भ में क्या सोचते हैं.’ इसपर बच्चन जी का जवाब था, ‘दिनकर जी को एक नहीं बल्कि गद्य, पद्य, भाषा और हिंदी क...

Ramdhari Singh Dinkar: रामधारी सिंह 'दिनकर' की रश्मिरथी का प्रथम सर्ग

Ramdhari Singh Dinkar Rashmirathi: रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उनकी पुस्तक ‘संस्कृति के 4 अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘उर्वशी’ के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की रचनाओं में वीर रस और शौर्य गाथा ज्यादातर देखने को मिलती है. दिनकर अहिंसा के पक्षधर थे लेकिन उनका मनना था कि समय के मुताबिक़ कुरुक्षेत्र भी गलत नहीं है. उनकी कलम की धार से अंग्रेज इतनी बुरी तरह भयभीत रहते थे कि उन्होंने दिनकर की रचनाओं पर पाबंदी लगा दी थी. पढ़ें उनकी रचना रश्मिरथी का प्रथम सर्ग (Rashmirathi, Pratham Sarg). जानकारी के मुताबिक ये खण्डकाव्य साल 1952 में प्रकाशित हुआ था. इसमें कुल 7 सर्ग हैं. यह काव्य महाभारत के कर्ण पर आधारित हैं. आइए, पढ़ते हैं ‘दिनकर’ रचित कर्ण कथा रश्मिरथी, प्रथम सर्ग- भाग 1 ‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को। किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल। ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग। तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के। हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक, वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक। जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी, उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी। सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर, निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‌भ...

Ramdhari Singh Dinkar: रामधारी सिंह 'दिनकर' की रश्मिरथी का प्रथम सर्ग

Ramdhari Singh Dinkar Rashmirathi: रामधारी सिंह ‘दिनकर’ का जन्म 23 सितंबर 1908 को बिहार के बेगूसराय जिले के सिमरिया गांव में हुआ था. उनकी पुस्तक ‘संस्कृति के 4 अध्याय’ के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार और ‘उर्वशी’ के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया था. रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की रचनाओं में वीर रस और शौर्य गाथा ज्यादातर देखने को मिलती है. दिनकर अहिंसा के पक्षधर थे लेकिन उनका मनना था कि समय के मुताबिक़ कुरुक्षेत्र भी गलत नहीं है. उनकी कलम की धार से अंग्रेज इतनी बुरी तरह भयभीत रहते थे कि उन्होंने दिनकर की रचनाओं पर पाबंदी लगा दी थी. पढ़ें उनकी रचना रश्मिरथी का प्रथम सर्ग (Rashmirathi, Pratham Sarg). जानकारी के मुताबिक ये खण्डकाव्य साल 1952 में प्रकाशित हुआ था. इसमें कुल 7 सर्ग हैं. यह काव्य महाभारत के कर्ण पर आधारित हैं. आइए, पढ़ते हैं ‘दिनकर’ रचित कर्ण कथा रश्मिरथी, प्रथम सर्ग- भाग 1 ‘जय हो’ जग में जले जहाँ भी, नमन पुनीत अनल को, जिस नर में भी बसे, हमारा नमन तेज को, बल को। किसी वृन्त पर खिले विपिन में, पर, नमस्य है फूल, सुधी खोजते नहीं, गुणों का आदि, शक्ति का मूल। ऊँच-नीच का भेद न माने, वही श्रेष्ठ ज्ञानी है, दया-धर्म जिसमें हो, सबसे वही पूज्य प्राणी है। क्षत्रिय वही, भरी हो जिसमें निर्भयता की आग, सबसे श्रेष्ठ वही ब्राह्मण है, हो जिसमें तप-त्याग। तेजस्वी सम्मान खोजते नहीं गोत्र बतला के, पाते हैं जग में प्रशस्ति अपना करतब दिखला के। हीन मूल की ओर देख जग गलत कहे या ठीक, वीर खींच कर ही रहते हैं इतिहासों में लीक। जिसके पिता सूर्य थे, माता कुन्ती सती कुमारी, उसका पलना हुआ धार पर बहती हुई पिटारी। सूत-वंश में पला, चखा भी नहीं जननि का क्षीर, निकला कर्ण सभी युवकों में तब भी अद्‌भ...

रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं!

रामधारी सिंह दिनकर: वो कवि जिसकी रचनाएं राष्ट्रवाद/देशभक्ति के लिए खाद हैं! रामधारी सिंह दिनकर बर्थडे (Ramdhari Singh Birthday): आज भले ही राष्ट्रवाद (Nationalism) और देशभक्ति पर तमाम तरह की बातें हो रही हों लेकिन अगर हमें वाक़ई राष्ट्रवाद और देशभक्ति को समझना है तो हमें दिनकर को पढ़ना चाहिए जिनका लेखन देशभक्तों के लिए खाद से कम नहीं है. समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध. जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध.. एक ऐसे समय में जब देश और देश की जनता राष्ट्रवाद (Nationalism) और देशभक्ति को सर्वोपरि रख कर फैसले ले रही हो सियासी दल राष्ट्रवाद के नाम पर राजनीति (Politics) कर रहे हों बॉलीवुड (Bollywood) देश भक्ति को केंद्र में रखकर फिल्मों का निर्माण कर रहा हो उस साहित्य को हरगिज़ नकारा नहीं जा सकता जिसने देश की जनता के बीच असल राष्ट्रवादी भावना का संचार किया. बात राष्ट्रवाद और साहित्य (Litreature) पर चल रही है ऐसे में अगर हम आज की के दिन यानी 23 सिंतबर 1908 में बिहार के सिमरिया में जन्में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह 'दिनकर' (Ramdhari Singh Dinkar) का जिक्र न करें तो राष्ट्रवाद के विषय पर पूरा चिंतन अधूरा रह जाता है. दिनकर की रचनाओं में जैसा शब्दों का सामंजस्य है शायद ही किसी की हस्ती हो कि उसकी आलोचना या फिर उस पर किसी तरह की कोई टिप्पणी कर सके लेकिन फिर भी अगर हम दिनकर के लिखे या ये कहें कि उनकी रचनाओं का अवलोकन करते हैं तो मिलता है कि विषय से लेकर शब्दों तक जैसा सामंजस्य दिनकर ने अपनी रचनाओं में दिखाया विरले ही लोग होते हैं जो इतना प्रभावशाली लिख पाते हैं. बात अगर उसदौर की हो तो मैथलीशरण गुप्त के अलावा ये रामधारी सिंह दिनकर की ही कलम थी जिनसे ऐसा बहुत कुछ लिख दिया जो एक नजीर ब...