रेहला से भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्राप्त होती है

  1. प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत
  2. प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत
  3. विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्राप्त होती है ? HISTORY इतिहास question answer collection
  4. प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Sources of ancient Indian history : SARKARI LIBRARY
  5. प्रागैतिहासिक काल / पाषाण काल
  6. भारतीय इतिहास के रोचक तथ्य। भाग 1


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प्राचीन भारतीय इतिहास के साहित्यिक स्रोत

प्राचीन भारत के निर्माण में साहित्यिक स्रोतों का योगदान परिचय प्राचीन भारत के इतिहास निर्माण के संबंध में साहित्यिक स्रोतों से महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है। साहित्यिक स्रोतों के निर्माण में प्राचीन भारतीयों को पर्याप्त ज्ञान था। उदाहरणस्वरूप जैन, बौद्ध आचार्यों तथा वैदिक ऋषियों आदि की सूचियां उपलब्ध हैं, परंतु प्राचीन भारतीयों की इतिहास विषयक संकल्पना आधुनिक इतिहासकारों की संकल्पना से अलग होने के कारण ही हमें प्राचीन भारतीय साहित्य में कोई शुद्ध ऐतिहासिक ग्रंथ नहीं मिलता। प्राचीन भारतीय साहित्य को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – (1) धार्मिक साहित्य तथा (2) धार्मिकेत्तर साहित्य। (1) धार्मिक साहित्य : धार्मिक साहित्य को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है – (क) ब्राह्मण साहित्य , (ख) ब्राह्मणेत्तर साहित्य। (क) ब्राह्मण साहित्य : ब्राह्मण साहित्य के अंतर्गत वेद, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, वेदांग, उपनिषद् , महाभारत, रामायण, पुराण, स्मृति ग्रंथ आदि आते हैं। जिनका विवरण निम्नलिखित है : वेद : वेदों की संख्या चार है, जिसमें सबसे प्राचीन ऋग्वेद है और अन्य सामवेद, यजुर्वेद, और अथर्ववेद हैं। कृष्णद्वैपायन वेदव्यास को वेदों का संकलनकर्ता माना जाता है। इन चारों वेदों में देवी देवताओं की स्तुतियां, ऐतिहासिक घटनाएं, वैदिक कर्मकांड की जानकारी उपलब्ध है। उदाहरणस्वरूप ऋग्वेद में दस राजाओं के युद्ध (दसराज्ञ युद्ध) का वर्णन है। इस युद्ध में भरत कबीले के राजा सुदास ने अपने विरुद्ध बने दस राजाओं के संघ को रावी नदी के तट पर पराजित किया। इस विजय के बाद सुदास को ऋग्वेद काल का चक्रवर्ती शासक माना गया। वेदों के मुख्यतः चार भाग हैं – संहिता, ब्राह्मण ग्रंथ, आरण्यक, उपनिषद्। • संहिता : व...

प्राचीन भारतीय इतिहास के पुरातात्विक स्रोत

प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में पुरातात्विक स्रोतों का योगदान परिचय बीती घटनाओं के अध्ययन को इतिहास कहते हैं। इतिहास से हम अतीत की जानकारी लेकर एवं वर्तमान से तुलना करके भविष्य की योजना तैयार कर सकते हैं। प्रत्येक देश, समाज, व्यक्ति का एक इतिहास होता है। उसका इतिहास ही उसके बारे में जानकारी देता है। इसी प्रकार प्राचीन भारत का भी एक इतिहास है। जिसकी जानकारी हमें साहित्यिक व पुरातात्विक स्रोतों से प्राप्त होती है। प्रस्तुत लेख में हम पुरातात्विक स्रोतों पर चर्चा करेगें। पुरातात्विक स्रोतों का प्राचीन भारतीय इतिहास के निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान है। भौतिक अवशेषों द्वारा अतीत के अध्ययन को ‘पुरातत्व’ कहते हैं। पुरातत्व संबंधी साक्ष्य हमें कालक्रम संबंधी समस्याओं को हल करने में सहायता प्रदान करते हैं। इन स्रोतों से प्राचीन स्थलों के समय निर्धारण में मदद मिलती है। पुरातात्विक स्रोत प्रागैतिहासिक काल संबंधित जानकारियों का एकमात्र स्रोत है। यह स्रोत भारतीय सभ्यता के विकास को जानने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं और स्मारक, भवन और अन्य पुरातात्विक स्रोतों का वैज्ञानिक अध्ययन प्राचीन भारतीय समाज एवं संस्कृति को एक स्पष्ट रूप देने में सहायता प्रदान करता है। पुरातात्विक स्रोतों में मुख्य रूप से भौतिक अवशेष, अभिलेख, सिक्के, भवन एवं स्मारक, मूर्तियां आदि आते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं : • भौतिक अवशेष : पाषाणकालीन मानव के संबंध में हम उत्खननों से प्राप्त हुए अवशेषों के द्वारा ही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। पाषाण-युगीन मनुष्य के बारे में मानव द्वारा प्रयुक्त पाषाण उपकरणों और औजारों के आधार पर ही जानकारी प्राप्त की जा सकती है। उपकरणों और औजारों के निर्माण में प्रयुक्त तकनीकी दक्ष...

विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्राप्त होती है ? HISTORY इतिहास question answer collection

प्रश्न 23. विदेशी यात्रियों के विवरणों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्राप्त होती है ? उत्तर- यूनानी लेखकों में हेरोडोटस ने पाँचवीं शताब्दी ई.पू. में भारतीय सीमा प्रान्त व हखमी साम्राज्य के मध्य राजनीतिक सम्पर्क पर प्रकाश डाला है । चन्द्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में 'मैगस्थनीज' यूनानी राजदूत के रूप में भारत आया था । उसने अपनी पुस्तक 'इण्डिका' में भारतीय संस्थाओं, भूगोल, कृषि आदि के विषय में व्यापक प्रकाश डाला है। यूनानी लेखक टॉलमी ने दूसरी शताब्दी ईसवी में भारत का भौगोलिक वर्णन लिखा है, जिससे अनेक महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त होती हैं। यूनानी लेखक प्लिनी द्वारा रचित 'नेचुरल हिस्ट्री' में भारतीय पशुओं, पौधों और खनिज पदार्थों के बारे में जानकारी मिलती है । 1. फाह्यान, पाँचवीं शताब्दी ईसवी में भारत आए थे, वह लगभग 14 वर्षों तक भारत में रहे । उन्होंने विशेष रूप से भारत में बौद्ध धर्म की स्थिति के बारे में लिखा। 2. ह्वेनसांग, सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आए थे, वह लगभग 16 वर्षों तक भारत में रहे । उन्होंने भारत की धार्मिक अवस्था के साथ-साथ तत्कालीन राजनीतिक दशा का भी वर्णन अपने वृत्तान्त में किया है । भारतीयों के रीति-रिवाजों और शिक्षा पद्धति पर भी ह्वेनसांग के वृतान्त से पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। 3. इत्सिंग, सातवीं शताब्दी ईसवी में भारत आए थे, वह बहुत समय तक विक्रमशीला विश्वविद्यालय और नालंदा विश्वविद्यालय में रहे। उन्होंने बौद्ध शिक्षा संस्थाओं और भारतीयों की वेश-भूषा, खान-पान आदि के विषय में भी लिखा है। 4. बौद्धलामा तारानाथ-तिब्बती लेखकों में बौद्धलामा तारानाथ का विवरण भी ऐतिहासिक महत्व का है । उनके द्वारा रचित 'कंग्युर' और 'तंग्युर' नामक ग्रन्थों से मौर्यकाल...

प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Sources of ancient Indian history : SARKARI LIBRARY

Table of Contents • • प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत Sources of ancient Indian history प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत • इतिहास अतीत में किये गए मानव-प्रयास की आनुक्रमिक कथा है। • वो सभी घटनाए जो संपन्न हो चुकी इतिहास का विषय है। • इतिहास हमारी और हमारे समाज की दशा व दिशा का निर्धारण करता है और भविष्य को सुरक्षित बनाने का प्रयास करता है। प्राचीन भारतीय इतिहास जानने के स्रोत • साहित्यिक स्रोत • पुरातात्विक स्रोत पुरातात्विक स्रोत Archaeological source अभिलेख Incriptions स्मारक और भवन Monuments सिक्के Coin मूर्ति sculptures चित्रकला painting मुहर stamp/seal अभिलेख • महत्त्वपूर्ण लेख, दस्तावेज़, रिकार्ड । • पाषाण शिलाओं(चटटान/पत्थर) ,स्तंभों, ताम्रपत्रों, दीवारों तथा प्रतिमाओं पर उत्कीर्ण लिखावट को अभिलेख कहते हैं। • सबसे प्राचीन अभिलेखों में मध्य एशिया के बोगजकोई से प्राप्त अभिलेख हैं। • इस पर वैदिक देवता के नाम मिलते हैं। इनसे ऋग्वेद की तिथि ज्ञात करने में मदद मिलती है। • भारत में सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं जो 300 ई. पू. के लगभग हैं। • अशोक के अभिलेख ब्राह्मी, खरोष्ठी, यूनानी तथा अरमाइक लिपियों में मिले हैं। • सर्वप्रथम 1837 ई. में जेम्स प्रिंसेप ने ब्राह्मी लिपि में लिखित अशोक के अभिलेख को पढ़ा था। • इनसे संबंधित शासकों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी मिलती हैं, जिनमें प्रमुख हैं अभिलेख शासक हाथीगुम्फा अभिलेख उड़ीसा के भुवनेश्वर खारवेल जूनागढ़ अभिलेख (गिरनार अभिलेख) संस्कृत का पहला अभिलेख है| जूनागढ़, गुजरात रुद्रदामन नासिक अभिलेख गौतमी बलश्री प्रयाग स्तंभ लेख,इलाहाबाद समुद्रगुप्त ऐहोल अभिलेख कर्नाटक के बीजापुर में स्थित पुलकेशिन द्वितीय भीतरी स्तंभ लेख उत्तर प्रदेश के...

प्रागैतिहासिक काल / पाषाण काल

प्रागैतिहासिक काल / पाषाण काल (1) इतिहास के अध्ययन हेतु काल विभाजन इतिहासकार भारतीय इतिहास को तीन भागों में बांटते हैं, जो निम्नलिखित है – (1.1) प्रागैतिहासिक काल – इस काल का कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है। अतः इस काल का इतिहास लिखते समय इतिहासकार पूर्ण रूप से पुरातात्त्विक साधनों पर निर्भर रहते हैं। पाषाण काल का अध्ययन इसी के अंतर्गत किया जाता हैं। (1.2) आद्य ऐतिहासिक काल– प्रागैतिहासिक काल और ऐतिहासिक काल के बीच के काल को आद्य ऐतिहासिक काल कहा गया है। इस काल का लिखित साधन तो उपलब्ध है, किंतु उसे अब तक पढ़ा नहीं जा सका है। इसके अंतर्गत हड़प्पा सभ्यता और वैदिक काल का अध्ययन किया जाता हैं। (1.3) ऐतिहासिक काल– इस काल की लिखित सामग्री को पढ़ा जा सकता है और जिसका समय 600 ईसा पूर्व से शुरू होता है। (2) सन् 1836 ई. में डेनमार्क के विद्वान सी. जे. थॉमसन (C. J. Thomsen) ने कोपेनहेगन संग्रहालय की सामग्री के आधार पर मानव इतिहास को त्रिकाल – पाषाण काल, कांस्य काल, लौह काल में विभाजित किया। (3) चार्ल्स डार्विन (Charles Darwin) ने मानव की उत्पत्ति के संबंध में सन् 1859 ई. में अपनी पुस्तक ‘ऑन दि ऑरिजिन ऑफ स्पीशीज’ (On the Origin of Species) में प्रकाशित किया। (4) जॉन लुब्बाक (John Lubbock) ने सन् 1865 ई. में अपनी पुस्तक ‘प्रिहिस्टोरिक टाइम्स’ (Pre-Historic Times) में पाषाण काल का विभाजन पुरापाषण (Paleolithic), नवपाषाण (Neolithic) में किया। अतः जॉन लुब्बाक ने सर्वप्रथम पुरापाषाण और नवपाषाण शब्द का प्रयोग किया। (5) कॉमसन और ब्रेडवुड ने सन् 1961 ई. में पाषाण काल को तीन भागों में विभाजित किया। 1. पुरापाषाण काल , 2. मध्यपाषाण काल , 3. नवपाषाण काल हैं। (6) पाषाण काल (Stone Age) को तीन भागों...

भारतीय इतिहास के रोचक तथ्य। भाग 1

1. हिंदु महाकाव्यों और पुराणों में भारत को ‘भारतवर्ष’ कहा गया है, जिसका अर्थ है –‘भरत का देश’। इन्हीं ग्रंथों में यहां के निवासियों को ‘भारत संतति’ कहा गया है अर्थात् ‘भरत की संतान’। 2. कुछ विद्वान जानबूझकर प्राचीन भारत के आर्य और द्रविड़ लोगों को एक दूसरे के शत्रु घोषित करने की कोशिश करते हैं। लेकिन उनकी यह कोशिश तब धरी की धरी रह जाती है जब हमें ये पता चलता है कि उत्तरी भारत में रचे गए वेद ग्रंथों में द्रविड़ भाषाओं के कई शब्द पाए जाते हैं और दक्षिण में रचे गए तमिल ग्रंथों में भी कई शब्द गंगा के मैदानों में बोली जाने वाली प्राचीन भाषा के हैं। 3. हमारे प्राचीन कवियों, दार्शनिकों और शास्त्रकारों ने इस देश को हमेशा एक अखंड इकाई के रूप में देखा। प्राचीन भारत के लोग एकता के लिए प्रयत्नशील रहे। 4. हमारे प्राचीन विद्वानों ने ‘हिमालय से लेकर समुद्र तक फैली हुई हज़ारों योजन भूमि को एक ही चक्रवर्ती सम्राट की निजी जागीर बताया है’। उन्होंने चक्रवर्ती सम्राट के पद को प्राप्त करने वाले राजा की प्रशंसा की है। 5. प्राचीन भारत में राजनीतिक एकता प्रमुख रूप से दो बार आई थी। 2300 साल पहले सम्राट अशोक ने अपना साम्राज्य दक्षिण के कुछ क्षेत्रों को छोड़ सारे देश में फैलाया। फिर इसके बाद इस प्रकार की एकता 600 साल बाद दुबारा आई जब सम्राट समुद्रगुप्त ने अपने 335 से 375 ईसवी के राजकाल में अपनी विजय पताका को गंगा घाटी से तमिलनाडू तक पहुँचाया। 6. भारत के सबसे पहले ग्रंथ वेद हैं। इनकी कुल गिणती चार है – ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्वेद। 7. वेदों को अच्छी तरह से समझने के लिए वेदांगो की रचना की गई है जिनकी गिणती 6 है। ये 6 वेदांग हैं – शिक्षा, ज्योतिष, कल्प, व्याकरण, निरूक्त और छंद। 8. प्राचीन समय में...