रीतिबद्ध काव्यधारा की विशेषताएं pdf

  1. Dr. Charan's Competition Platform
  2. रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएं
  3. संत काव्यधारा की विशेषताएँ – Dr. Sunita Sharma
  4. रीतिबद्ध काव्य की विशेषताएँ
  5. Ritikaal Kavydhara
  6. [Solved] कौन रीतिबद्ध काव्यधार�
  7. हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)
  8. रीति काल
  9. रीतिसिद्ध काव्य की विशेषताएं


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हिंदी साहित्य के इतिहास को तीन भागों में बांटा जा सकता है अधिकार मध्यकाल और आधुनिक काल | मध्य काल के उत्तर भर्ती काल को रीतिकाल के नाम से जाना जाता है | हिंदी साहित्य में संवत 1700 से संवत 1900 तक का काल रीतिकाल है जिसमें तीन प्रकार का साहित्य मिलता है – रीतिबद्ध ,रीतिसिद्ध तथा रीतिमुक्त | रीतिमुक्त काव्य परंपरा ( Reetimukt Kavya Parampara ) रीतिकाल में कुछ ऐसे कभी भी हुए हैं जिन्होंने रीति से मुक्त होकर काव्य रचना की इन्होंने काव्य शास्त्रीय विधानों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया | इसीलिए इन्हें रीतिमुक्त कवि कहा गया | कुछ विद्वान इन्हें स्वच्छंद विचारधारा के कवि भी कहते हैं | रीतिमुक्त कवियों की संख्या 50 के लगभग मानी जाती है | इनमें प्रेम रस के कवि, वीर रस के कवि तथा नीति कवि सभी शामिल हैं | रीतिमुक्त कवियों में प्रमुख कवि हैं- घनानंद, आलम, ठाकुर, बोधा तथा द्विजदेव | Advertisement घनानंद ( Ghananand ) इस काव्य धारा के सर्वश्रेष्ठ कवि माने जाते हैं | उन्हें ´प्रेम की पीर` का कवि माना जाता है | उनकी विरह वेदना बेजोड़ है | उनकी प्रमुख रचनाएं हैं- इश्कलता, सुजान सागर, सुजान विनोद ,सुजान हित ,सुजान हित प्रबंध| आलम ( Aalam )भी प्रमुख रीतिमुक्त कवि हैं | इनकी प्रमुख रचनाएं हैं- आलम केलि, माधवानल कामकंदला| उनके काव्य में मधुरता की बहुलता है | ठाकुर ( Thakur ) की प्रमुख रचनाएं ‘ ठाकुर ठसक’ तथा‘ ठाकुर शतक’ हैं | इनकी रचनाएं शाश्वत प्रेम की अभिव्यक्ति करती हैं | बोधा ( Bodha )की प्रमुख रचनाएं ‘ विरह वारीश’ तथा ‘ इश्कनामा‘ हैं | द्विजदेव ( Dvijdev )की प्रमुख रचना ‘सिंहासन बत्तीसी’है | इनके काव्य में श्रृंगार के संयोग तथा वियोग दोनों रूपों का वर्णन मिलता है | रीतिमुक्त काव्यधारा की विशे...

रीतिमुक्त काव्य की विशेषताएं

7. श्रृंगार के विप्रलंभ-पक्ष को सबसे अधिक प्रधानता इसी काव्य में प्राप्त है जिससे ऐहिक प्रेम का ऊर्जस्वीकरण हो गया है और प्रेम की यथार्थता को नष्ट किए बिना ही उसमें दिव्यता, पावनता, व्यापकता तथा अपार्थिविता आ गई है। त्याग और समर्पण की भावना इस काव्य को अनन्य तथा एकनिष्ठ आत्मा की पुकार में परिणित कर देती हैं।

संत काव्यधारा की विशेषताएँ – Dr. Sunita Sharma

हिंदी साहित्य के भक्ति काल में निर्गुण और सगुण दो काव्य धाराएं विकसित हुई। निर्गुण काव्यधारा की दो शाखाओं में विभाजित किया गया संत काव्य धारा तथा सूफी काव्य धारा। संत काव्य धारा को ज्ञानमार्गी या ज्ञानाश्रयी शाखा भी कहा जाता है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने निर्गुण संत काव्य धारा को निर्गुण ज्ञानाश्रयी शाखा नाम दिया।आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी इसे निर्गुण भक्ति साहित्य कहते हैं। रामकुमार वर्मा केवल संत-काव्य नाम से संबोधित करते हैं। हिन्दी साहित्य के सन्त कवियों की ज्ञानाधारित निष्पक्षता, न्यायप्रियता, भक्तिभावना और काव्यधारा को दृष्टिगत कर इसे ज्ञानमार्गी काव्यधारा की संज्ञा दी जाती है। भक्तिकाल की विषम राजनीतिक एवं सामाजिक परिस्थितियों में आशा की ज्योति बिखेरने का कार्य संत काव्यधारा के कवियों ने किया। उन्होंने तत्कालीन धार्मिक मान्यताओं को अपने जीवन के व्यापक अनुभव के आधार पर जनसामान्य के लिए बोधगम्य बनाया।इन कवियों ने हिन्दू और मुसलमान दोनों को समाज के अभिन्न अंग के रूप में मान्यता प्रदान करते हुए उनमें भावात्मक एकता लाने का प्रयास किया। इन्होंने विभिन्न विवादों को छोड़कर निर्गुण के आधार पर राम और रहीम को एकाकार करने का अनूठा कार्य किया। धार्मिक सहिष्णुता को संत कवियों ने सामाजिक विकास के लिए आवश्यक माना। उनके साहित्य में आध्यात्मिक चेतना के साथ-साथ सामाजिक चेतना भी सक्रिय थी।उनके काव्य में सामाजिक मूल्यों के प्रति गहरी चिन्ता मिलती है। सामंती समाज के वर्णवादी मूल्यों के प्रति उनमें आक्रोश है। वर्णवाद सामाजिक विषमता को पैदा करता है। इस सामाजिक विषमता के विरुद्ध संत कवि खड़े होते हैं। संत कवि वर्णवादी समाज को तोड़कर मानवतावादी समाज की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। ‘संत’ शब...

रीतिबद्ध काव्य की विशेषताएँ

रीतिकाल के कवि राजाओं और रईसों के आश्रय में रहते थे। वहाँ मनोरंजन और कलाविलास का वातावरण स्वाभाविक था। बौद्धिक आनंद का मुख्य साधन वहाँ उक्तिवैचित्रय समझा जाता था। ऐसे वातावरण में लिखा गया साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त था। पर इसी समय प्रेम के स्वच्छंद गायक भी हुए जिन्होंने प्रेम की गहराइयों का स्पर्श किया है। मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से इस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है। इस समय वीरकाव्य भी लिखा गया। मुगल शासक औरंगजेब की कट्टर सांप्रदायिकता और आक्रामक राजनीति की टकराहट से इस काल में जो विक्षोभ की स्थितियाँ आई उन्होंने कुछ कवियों को वीरकाव्य के सृजन की भी प्रेरणा दी। ऐसे कवियों में भूषण प्रमुख हैं जिन्होंने रीतिशैली को अपनाते हुए भी वीरों के पराक्रम का ओजस्वी वर्णन किया। इस समय नीति, वैराग्य और भक्ति से संबंधित काव्य भी लिखा गया। अनेक प्रबंधकाव्य भी निर्मित हुए। इधर के शोधकार्य में इस समय की शृंगारेतर रचनाएँ और प्रबंधकाव्य प्रचुर परिमाण में मिल रहे हैं। इसलिए रीतिकालीन काव्य को नितांत एकांगी और एकरूप समझना उचित नहीं है। इस समय के काव्य में पूर्ववर्ती कालों की सभी प्रवृत्तियाँ सक्रिय हैं। यह प्रधान धारा शृंगारकाव्य की है जो इस समय की काव्यसंपत्ति का वास्तविक निदर्शक मानी जाती रही है। शृंगारी काव्य तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है। पहला वर्ग रीतिबद्ध कवियों का है जिसके प्रतिनिधि केशव, चिंतामणि, भिखारीदास, देव, मतिराम और पद्माकर आदि हैं। इन कवियों ने दोहों में रस, अलंकार और नायिका के लक्षण देकर कवित्त सवैए में प्रेम और सौंदर्य की कलापूर्ण मार्मिक व्यंजना की है। संस्कृत साहित्यशास्त्र में ...

Ritikaal Kavydhara

हिन्दी साहित्य के ’मध्य युग’ को पूर्व मध्यकाल (भक्तिकाल) तथा उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल) के नाम से जाना जाता है। काव्य में विशिष्ट रचना पद्धति को रीति कहा गया। आचार्य वामन ने ’विशिष्ट पद रचना रीति’ कहकर इंगित किया कि रीति काव्य वह काव्य है, जिसकी रचना विशिष्ट पद्धति अथवा नियमों के आधार पर की गई है। • विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को विभिन्न नामों से पुकारा। यथा- मिश्रबन्धु (अलंकृत-काल), विश्वनाथ प्रसाद मिश्र (श्रृंगार काल), आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (रीतिकाल)। • रीतिकाल में ’रीति’ शब्द का प्रयोग ’काव्यांग-निरूपण’ के अर्थ में किया गया है। काव्यांग चर्चा में कविगण वैसा ही आनन्द लेते थे, जैसा भक्तिकाल में ब्रह्मज्ञान चर्चा में। ये कवि ’शिक्षक’ या ’आचार्य’ की भूमिका का निर्वाह करने में अपना गौरव समझते थे। ⇒ रीतिकाल का वर्गीकरण रीतिकाल के कवियों का वर्गीकरण ’रीति’ को आधार बनाकर इस प्रकार किया जा सकता है- 1. रीतिबद्ध 2. रीतिमुक्त 3. रीतिसिद्ध रीतिबद्ध इस वर्ग में वे कवि आते हैं, जो ’रीति’ के बन्धन में बंधे हुए हैं अर्थात् जिन्होंने रीति ग्रन्थों की रचना की। लक्षण ग्रन्थ लिखने वाले इन कवियों में प्रमुख हैं- चिन्तामणि, मतिराम, देव जसवन्तसिंह, कुलपति मिश्र, मण्डन, सुरति मिश्र, सोमनाथ, भिखारीदास, दूलह, रघुनाथ, रसिकगोविन्द, प्रतापसिंह, ग्वाल आदि। रीतिमुक्त इस वर्ग में वे कवि आते हैं, जो ’रीति’ के बन्धन से पूर्णतः मुक्त हैं अर्थात् इन्होंने काव्यांग विरूपण करने वाले ग्रन्थों, लक्षण ग्रन्थों की रचना नहीं की तथा हृदय की स्वतन्त्र वृत्तियों के आधार पर काव्य रचना की। इन कवियों में प्रमुख हैं- घनानन्द, बोधा, आलम और ठाकुर। रीति सिद्ध तीसरे वर्ग में वे कवि आते हैं जिन्होंने रीति ग्रन्थ नहीं लिखे, कि...

[Solved] कौन रीतिबद्ध काव्यधार�

कवि आलमरीतिबद्ध काव्यधारा का कवि नहीं है। • कवि आलम रीतिमुक्त धारा के प्रमुख कवि थे। • प्रमुख रीतिमुक्त कवि:- घनानंद, आलम, बोधा, ठाकुर Key Points आलम • आचार्य शुक्ल के अनुसार इनका कविता काल 1683 से 1703 ईस्वी तक रहा। • मुस्लिम महिला शेख नामक रंगरेजिन से विवाह के लिए इन्होंने अपना धर्म परिवर्तन किया और नाम आलम रखा इनकी पत्नी का नाम शेख था। • इनकी कृतियां - • माधवनल कामकंदला • श्याम-स्नेही , • सुदामा चरित , • आलम केलि। Additional Information • रीतिकालकी तीन मूल प्रवृत्तियाँ हैं – रीतिसिद्ध, रीतिबद्ध तथा रीतिमुक्त। • ‘बिहारी’रीतिसिद्ध कवि हैं। • ‘केशवदास’, ग्वाल, मतिराम तथा ‘चिंतामणि’रीतिबद्ध कवि हैं।

हिंदी साहित्य का इतिहास (रीतिकाल तक)

साहित्य के इतिहास में साहित्य के परिवर्तन और विकास की व्याख्या होती है। १००० ईस्वी के आस-पास हिंदी साहित्य के इतिहास का आरंभ माना जाता है। कालक्रम की दृष्टि से हिंदी साहित्य का विभाजन चार कालों- आदि, पूर्व-मध्य या भक्ति, उत्तर-मध्य या रीति और आधुनिक में किया जाता है। यहाँ हम हिंदी साहित्य के उत्तर-मध्य या रीतिकाल तक का इतिहास पढ़ेंगे। इसके पश्चात विषय सूची • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • •

रीति काल

इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है। कृपया विश्वसनीय सन्दर्भ या स्रोत जोड़कर (जून 2015) स्रोत खोजें: · · · · सन् 1700 ई. के आस-पास रीतिकाव्य' कहा गया। इस काव्य की शृंगारी प्रवृत्तियों की पुरानी परंपरा के स्पष्ट संकेत इस काल में कई कवि ऐसे हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में श्रृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवि राजाश्रित होते थे इसलिए इस युग की कविता अधिकतर दरबारी रही जिसके फलस्वरूप इसमें चमत्कारपूर्ण व्यंजना की विशेष मात्रा तो मिलती है परंतु कविता साधारण जनता से विमुख भी हो गई। रीतिकाल के अधिकांश कवि दरबारी थे। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ ने किया। ये थे आचार्य परिचय [ ] रीतिकाल के कवि राजाओं और रईसों के आश्रय में रहते थे। वहाँ मनोरंजन और कलाविलास का वातावरण स्वाभाविक था। बौद्धिक आनंद का मुख्य साधन वहाँ उक्तिवैचित्रय समझा जाता था। ऐसे वातावरण में लिखा गया साहित्य अधिकतर शृंगारमूलक और कलावैचित्रय से युक्त था। पर इसी समय प्रेम के स्वच्छंद गायक भी हुए जिन्होंने प्रेम की गहराइयों का स्पर्श किया है। मात्रा और काव्यगुण दोनों ही दृष्टियों से इस समय का नर-नारी-प्रेम और सौंदर्य की मार्मिक व्यंजना करनेवाला काव्यसाहित्य महत्वपूर्ण है। इस समय वीरकाव्य भी लिखा गया। मुगल शासक रीतिकाव्य मुख्यत: मांसल इतिहास साक्षी है कि अपने पराभव काल में भी यह युग वैभव विकास का था। मुगल दरबार के हरम में पाँच-पाँच हजार रूपसियाँ रहती थीं। मीना बाज़ार लगते थे, सुरा-सुन्दरी का उन्मुक्त व्यापार होता था। डॉ॰ नगेन्द्र लिखते हैं- "वासना का सागर ऐसे प्रबल वेग से उमड़ रहा था कि शुद्धिवाद सम्राट के सभी ...

रीतिसिद्ध काव्य की विशेषताएं

रीति सिद्ध काव्य की विशेषताएं रीतिसिद्ध काव्य की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-- 1. रीतिसिद्ध काव्य के रचयिता के कवित्व में अधिक उद्घाटन मिलता है जबकि रीतिबद्ध काव्य के रचयिता अपने आचार्यत्व की झलक अपनी कृतियों में छोड़ते हैं। 2. रीतिबद्ध कवियों ने रीति-परंपरा की न तो उपेक्षा की न उसका अंधानुकरण। रीति सिद्ध कवि रीतिबद्ध और रीतिमुक्त कवियों से इस बात में भिन्न कि वे आचार्य बनने के आकांक्षी न होते हुए भी रीति-परंपरा द्वारा प्राप्त काव्य के उपकरणों से अपनी रचनाओं को मंडित करने में संकोच नहीं करते। रीतिमुक्त कवियों की तरह रीतिसिद्ध कवि काव्यशास्त्रीय परंपरा की नितांत उपेक्षा नहीं करते। रीतिसिद्ध कवि रीति-ग्रंथों का निर्माण नहीं करते। इस प्रकार ये न तो रीति से बंधे है न पूर्णतः उदासीन हैं। 3. रीतिबद्ध कवियों की अपेक्षा इन कवियों ने काव्य में अपने व्यक्तित्व का प्रतिबिम्बन अधिक किया हैं, परंतु रीतिमुक्त कवियों की अपेक्षा इनमें सामान्य तत्व अधिक हैं। 4. इस वर्ग के कवि चमत्कार की चिंता लक्षण-ग्रंथों के अनुमोदन की अपेक्षा संस्कृत के श्रृंगार मुक्तकों के अधिक अनुगामी हैं। 5. संस्कृत की शास्त्रीय परंपरा की अपेक्षा संस्कृत के श्रृंगार मुक्तकों के अनुगामी कवि। 6. ऐहिक जीवन के मार्मिक खंड-चित्र प्रस्तुत करने के कारण इनके मुक्तक रीतिबद्ध कवियों के लक्षण अनुगामी मुक्तकों की अपेक्षा अधिक रसात्मक हैं। इसी से कतिपय रीतिसिद्ध कवियों को समीक्षकों ने रस-सिद्ध भी माना हैं। 7. रीतिसिद्ध के कवियों ने दोहा-छंद का अधिक प्रयोग किया है। मुक्तक शैली तथा श्रृंगार का प्राधान्य इन्हीं कवियों की रचनाओं में सबसे अधिक उभर कर सामने आया हैं। 8. अपनी काव्य कृतियों के लिए इन कवियों ने अलंकार, रस तथा ध्वनि संप्...