Ritikal ke kavi kaun the

  1. रीतिकाल किसे कहते है? रीतिकाल विशेषताएं
  2. रीतिकाल के कवि और रचनाएँ लिखिए
  3. रीतिकाल के कवि हैं? » Ritikal Ke Kavi Hain
  4. रीतिकाल की पूरी जानकारी


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रीतिकाल किसे कहते है? रीतिकाल विशेषताएं

राति का अर्थ है प्रणाली, पद्धति, मार्ग, पंथ, शैली, लक्षण आदि। संस्कृत साहित्य मे "रीति" का अर्थ होता है " विशिष्ट पद रचना। " सर्वप्रथम वामन ने इसे " काव्य की आत्मा " घोषित किया। यहाँ रीति को काव्य रचना की प्रणाली के रूप मे ग्रहण करने की अपेक्षा प्रणाली के अनुसार काव्य रचना करना, रीति का अर्थ मान्य हुआ। यहाँ पर रीति का तात्पर्य लक्षण देते हुए या लक्षण को ध्यान मे रखकर लिखे गए काव्य से है। इस प्रकार रीति काव्य वह काव्य है, जो लक्षण हैं के आधार पर या उसको ध्यान मे रखकर रचा जाता है। रीतिकाल से आश्य हिन्दी साहित्य के उस काल से है, जिसमे निर्दिष्ट काव्य रीति या प्रणाली के अंतर्गत रचना करना प्रधान साहित्यिक प्रवृत्ति बन गई थी। "रीति" "कवित्त रीति" एवं "सुकवि रीति" जैसे शब्दों का प्रयोग इस काल मे बहुत होने लगा था। हो सकता है आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जी ने इसी कारण इस काल को रीतिकाल कहना उचित समझा हो। काव्य रीति के ग्रन्थों मे काव्य-विवेचन करने का प्रयास किया जाता था। हिन्दी मे जो काव्य विवेचन इस काल मे हुआ, उसमे इसके बहाने मौलिक रचना भी की गई है। यह प्रवृत्ति इस काल मे प्रधान है,लेकिन इस काल की कविता प्रधानतः श्रंगार रस की है। इसीलिए इस काल को श्रंगार काल कहने की भी बात की जाती है। "श्रंगार" और "रीति" यानी इस काल की कविता मे वस्तु और इसका रूप एक-दूसरे से अभिन्न रूप से जुड़े हुए है। रीतिकालीन कवियों के प्रमुख वर्ण्य विषय प्रायः एक से थे। जिनमें राज्य विलास, राज्य प्रशंसा, दरबारी कला विनोद, मुगलकालीन वैभव, अष्टयाम संयोग, वियोग वर्णन, ॠतु वर्णन, किसी सिद्धांत के लक्ष्य लक्षणों का वर्णन, श्रृंगार के अनेक पक्षों के स्थूल एवं मनोवैज्ञानिक चित्रों की अवतारणा आदि विषय प्रायः सभी कवियों के क...

रीतिकाल के कवि और रचनाएँ लिखिए

ritikal ke kavi kaun hai in hindi रीतिकाल के कवि और रचनाएँ लिखिए | रीतिकाल की विशेषताएँ बताओ परिभाषा परिस्थितियाँ क्या है , नाम परिभाषा किसे कहते है ? रीतिकाल (1650-1850 ई.) अन्य नाम-उत्तर मध्यकाल, श्रृंगार काल, अलंकृत काल, कलाकाल। रीति निरूपण (काव्यांगों के लक्षण, उदाहरण वाले ग्रन्थ-रीति ग्रन्थ या लक्षण ग्रन्थ कहे जाते हैं) की प्रधानता होने से आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने इसे रीतिकाल नाम दिया। रीतिकाल को पहले उत्तर मध्यकाल कहा जाता था, परन्तु शुक्ल जी ने रीति की प्रमुखता को लक्ष्य कर इसका नाम रीतिकाल रखा। उनके अनुसार इस काल के कवियों में रीति निरूपण की प्रमुखता परिलक्षित होती है। श्रृंगार काल नाम विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने दिया तथा अलंकृत काल – मिश्रबंधुओं ने कला की प्रधानता देखकर कुछ विद्वानों ने इसे कला काल नाम भी दिया है। रीतिकाल के वर्ग रीतिकालीन कवियों को तीन वर्गों में बाँटा गया है- 1. रीतिबद्ध-जिन्होंने लक्षण ग्रन्थ (रीति ग्रन्थ) लिखकर रीति निरूपण किया, जैसे-देव, केशवदास, चिन्तामणि आदि । 2. रीतिमुक्त-जो रीति के बंधन से पूरी तरह मुक्त हैं, जैसे-घनानन्द, बोधा, आलम, ठाकुर। 3. रीति सिद्ध-जिन्हें रीति की जानकारी थी, परन्तु उन्होंने लक्षण ग्रन्थ नहीं लिखा, जैसे-बिहारी। रीतिकाल के प्रतिनिधि कवि बिहारी हैं। उनके ग्रन्थ का नाम है सतसई । बिहारी सतसई का सम्पादन रत्नाकर ने ‘बिहारी रत्नाकर‘ के नाम से किया है। बिहारी सतसई के दोहों की कुल संख्या 713 है। अन्य दोहे अप्रामाणिक हैं। रीतिकाल के प्रमुख कवि कवि रचनाएँ 1. चिन्तामणि कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक, श्रृंगार मंजरी, रस विलास। 2. भूषण शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक, शिवाबावनी, अलंकार प्रकाश। 3. मतिराम ललित ललाम, मतिराम सतसई, अलंकार पंचाशिक...

रीतिकाल के कवि हैं? » Ritikal Ke Kavi Hain

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रीतिकाल की पूरी जानकारी

रीतिकाल की पूरी जानकारी इस आलेख में रीतिकाल की पूरी जानकारी एवं कवि तथा रचनाएं, प्रमुख काव्य धाराएं, रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल की पूरी जानकारी रीतिकाल को रीतिकाल क्यों कहा जाता है? हिंदी साहित्य का उत्तर मध्यकाल (1643 ई. – 1842ई. तक लगभग) जिसमें सामान्य रूप से श्रृंगार परक लक्षण ग्रंथों की रचना हुई है रीतिकाल कहलाता है। नामकरण की दृष्टि से रीतिकाल के संबंध में विद्वानों में पर्याप्त मतभेद है– अलंकृत काल— मिश्र बंधु रीतिकाल— आचार्य शुक्ल कलाकाल— डॉ रामकुमार वर्मा कलाकाल— डॉ रमाशंकर शुक्ल प्रसाद श्रृंगारकाल— पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र रीतिकाल की पूरी जानकारी सर्वमान्य मान्यता के अनुसार रीतिकाल नाम उपयुक्त है। सामान्य के संस्कृत के लक्षण ग्रंथों का अनुसरण करके हिंदी में भी रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, रीति, गुण, दोष, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि का वर्णन किया गया इसे ही रीतिकाल कहा जाता है। रीतिकाल के प्रवर्तक कवि एवं काव्य धाराएं रीतिकाल का वर्गीकरण रीतिकाल को कितने भागों में बांटा गया है? रीतिकाल कितने प्रकार के होते हैं? रीतिकाल के उदय के कारण अपने आश्रय दाताओं की रुचि के कारण रीतिकालीन साहित्य का उदय हुआ— आचार्य शुक्ल संस्कृत साहित्य के लक्षण ग्रंथों से प्रेरित होकर विधि साहित्य लिखा गया था— आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी दरबारी संस्कृति होने के कारण कभी हताश और निराश हो गए थे अतः अपनी निराशा को दूर करने के लिए रीति साहित्य का उदय हुआ— डॉ. नगेंद्र रीतिकाल के पतन के कारण मंगल की भावना का भाव। चमत्कार की अतिशयता। श्रृंगार की अतिशयता। रीतिकालीन काव्य की प्रवृत्तियां : रीतिकाल की पूरी जानकारी रीति निरूपण की प्रवृत्ति काव्य में साहित्य के विविध अंगों पर (रस, छंद, अलंकार, शब्द शक्ति, गु...