Ritikal ke kavi the

  1. रीतिकाल का नामकरण वर्गीकरण
  2. रीतिकाल
  3. रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय
  4. भूषण


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रीतिकाल का नामकरण वर्गीकरण

रीतिकाल का नामकरण वर्गीकरण रीतिकाल का वर्गीकरण रीतिकाल का अर्थ रीतिकाल का परिचय रीतिबद्ध काव्य धारा रीतिकाल ppt रीति का अर्थ रीतिकाल की परिभाषा ritikal ka naamkaran ritikal ka naamkaran riti kal ki paristhiti ritikal ka itihas hindi sahitya ka itihas ritikal tak ritikal ke kavi ke naam in hindi riti badh kavya रीतिकाल का दूसरा नाम रीतिकाल का वर्गीकरण रीतिकाल का परिचय रीतिकाल की विशेषताएँ रीतिकाल को श्रृंगार काल किसने कहा रीतिकाल को कलाकाल किसने कहा रीतिकाल के नामकरण की सार्थकता पर प्रकाश डालिए रीतिकाल की प्रमुख विशेषताएँ ritikal in hindi literature ritikal ka pravartak ritikal ka naamkaran ritikal ka vargikaran हिंदी साहित्य में रीतिकाल सन १६४३ से १८४३ ई .तक माना जाता है .इस काल तक हिंदीकाव्य अपनी प्रौढ़ता को प्राप्त कर चुका था .कवियों ने काव्यांगों ,रस ,छंद ,अलंकार ,शब्द शक्तियों आदि के विवेचनों की प्रवृत्ति उभर कर सामने आ चुकी .इस प्रकार के विवेचन हेतु लिखे गए लक्षण ग्रन्थ रीति ग्रन्थ कहे गए . विशेष पद रचना . अर्थात काव्य के शोभाकारक शब्द अर्थ के धर्मों से युक्त पद रचना ही रीति है .शब्द अलंकार ध्वनि आदि जिससे शब्द सौन्दर्य बढ़ता है रीति के बहिरंग तत्व हैं .गुण ,रस ,ध्वनि,वाक्,चातुर्य अलंकार काव्य्दोश आदि अर्थमय सौन्दर्य का बोध कराते हैं .इनको रीति का अन्तरंग तत्व माना जाता है .इन रीति ग्रंथों के कर्ता,भावुक ,सहृदय और निर्गुण कवि थे .अतः उनके द्वारा रसों और अलंकारों के सरस और स्पर्शी उदाहरण प्रस्तुत किये गए .आचार्य शुक्ल ने इस युग में रीति ग्रंथों की अधिकता देखकर ही उसका नाम रीतिकाल रखा . विभिन्न विद्वानों ने रीतिकाल को अनेक नामों से पुकारा है .मिश्रबन्धु ने इसे अलंकृत काल ...

रीतिकाल

ritikal (1658-1857 ee.) riti shabd ki vyakhya 'riti' shabd sanskrit ke kavyashastriy 'riti' shabd se bhinn arth rakhane vala hai. namakaran ritikal 1700 se 1900 tak ka kal hai. mote taur par samriddhi aur vilasita ka kal ritikal samriddhi aur vilasita ka kal hai. sadhana ke kal bhaktiyug se yah isi bat mean bhinnata rakhata hai ki isamean kori vilasita hi upasy ban gayi, vairagyapoorn sadhana ka samadar n raha. navab, jagiradar, shrriangarik sahity sajav-shrriangar ki ek adamy lipsa is yug ke rachanaean • ek to ve rachanaean, jinamean mukhyat: kavyashastr siddhantoan ko chhandobaddh kiya gaya hai. spashtat: hindi kaviyoan ka yah prayas bahut mahattvapoorn nahian ho saka hai. siddhant pratipadan ki drishti se inaka adhik mahattv is karan nahian hai ki unamean maulikata ka aansh bahut kam hai. is prakar ke ritigranth adhikatar • doosare varg ke antargat ve rachanaean ati haian, jo kavy lakshanoan ko pratipadit karane ki drishti se nahian likhi gayian. is prakar ke kavy mean sahity ka vikas hindi mean riti sahity ke vikas ke anek karan haian. ek karan to riti-kavy ke vikas mean tatkalin rajanitik tatha samajik paristhitiyoan ka mahattvapoorn yog raha hai. vastut: ye paristhitiyaan is prakar ke kavy sarjan ke anukool thian. is samay ki rajanitik uthal-puthal aur satta evan vaibhav ki kshanabhangurata ne jivan ke do atirekapoorn drishtikon vikasit karane mean sahayata di. ek ne jivan ke prati poorn virakti aur tyag ka bhav jagarit kiya, jabaki doosare ne poorn bhog ka drishtiko...

रीतिकाल कवि देव का जीवन परिचय

जन्म स्थल – इटावा (उत्तरप्रदेश) भक्ति – हितहरिवंश के राधावल्लभ संप्रदाय में दीक्षित वास्तविक नाम : देवदत्त द्विवेदी स्वभाव : अक्खड़ स्वभाव आश्रयदाता – औरंगजेब का पुत्र आजमशाह, भवानीदत्त वैश्य, कुशलसिंह, सेठ भोगीलाल, राजा उद्योतसिंह, सुजानमणि, अली अकबर खाँ, मोतीलाल रचनाएँ – • भाव विलास • अष्टयाम • भवानीविलास • सुजानविनोद • प्रेमतरंग • रागरत्नाकर • कुशलविलास • देवचरित • प्रेमचंद्रिका • जातिविलास • रसविलास • काव्य रसायन • सुख सागर तरंग • वृक्षविलास • पावसविलास • ब्रह्मदर्शनपचीसी • तत्वदर्शन पचीसी • आत्मदर्शन पचीसी • जगदर्शन पचीसी • देव विलास • रसानंद लहरी • प्रेमदीपिका • नखशिख • प्रेमदर्शन डाॅ. नगेन्द्र के अनुसार निम्न 15 ग्रंथ उपलब्ध है – Table of Contents • • • • 🔸 भावविलास – 1689 ई. में मात्र 16 वर्ष की आयु में रचित प्रथम ग्रंथ ’शृंगार रस, नायक-नायिकाभेद एवं 39 अलंकारों का निरुपण। आजमशाह के आश्रय में रचित। 🔹 अष्टयाम – दिन के आठ प्रहरों में होने वाले नायक-नायिकाओं के विविध विलासों का वर्णन। आजमशाह के आश्रय में रचित। 🔸 कुशल विलास – कुशलसिंह (फफूँद नरेश) का प्रशस्ति काव्य। 🔹 भवानी विलास – भवानीदत्त वैश्य का प्रशस्ति काव्य। 🔸 प्रेमचंद्रिका – उद्योतसिंह वैश्य के आश्रय में रचित। विषय वासना के तिरस्कार, प्रेम के महात्म्य एवं उसके विविध रुपों का वर्णन। 🔹 रसविलास – 1726 ई. में राजा मोतीलाल के आश्रय में रचित। नायिका भेद सम्बन्धी ग्रन्थ । 🔸 सुजानविनोद – राजा सुजानमणि के आश्रय में रचित। 🔹 देवशतक – आध्यात्मक संबंधी रचना जिसमें जीव, जगत, ब्रह्मतत्त्व एवं प्रेम का महात्म्य वर्णन। 🔸 देवचरित – श्री कृष्ण का प्रबंधात्मक चरित्र वर्णन। 🔹 देवमाया प्रपंच – संस्कृत कृष्ण कवि के ’प्रबोद्ध चंद्रोदय...

भूषण

• • • जीवनकाल– संवत् 1670-1772 जन्मस्थल – तिकवापुर (कानपुर) पिता – रत्नाकर त्रिपाठी सहोदर – मतिराम, चिंतामणि, जटाशंकर मूलनाम – गणपति चंद्र गुप्त के अनुसार पतिराम या मनीराम। विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार घनश्याम। उपाधियाँ – • भूषण – रुद्रशाह सोलंकी चित्रकूट • हिन्दी का रीतिकाल का विलक्षण कवि – नगेन्द्र • शुक्ल जी – हिन्दी जाती के प्रतिनिधि कवि • हिन्दी का प्रथम राष्ट्रकवि आश्रयदाता – छत्रपति शिवाजी, उनके पौत्र शाहूजी एवं छत्रसाल बुंदेला रचनाएँ – शिवराजभूषण, शिवाबावनी, छत्रसालदशक, अलंकार प्रकाश, छंदोहृदयप्रकाश, भूषण उल्लास, दूषण उल्लास, भूषण हजारा। ⇒ डाॅ. नगेन्द्र ने अलंकार प्रकाश एवं छंदोहृदयप्रकाश मुरलीधर भूषण की रचना मानी तथा अंतिम तीन अभी अप्राप्य है। ⇒ शिवराज भूषण – 1673 ई. में रचित शिवाजी की प्रशस्ति मय अलंकार ग्रंथ। अलंकारों के लक्षण जयदेव के चन्द्रालोक एवं मतिराम के ललितललाम के आधार पर एवं उदाहरण शिवाजी के प्रशस्ति में रचे गये। लक्षण दोहा छंद एवं उदाहरण सवैया छंद में रचित। उदाहरण रूप में 385 पद रचित। कुल 105 अलंकारों जिनमें 99 अर्थालंकार, 4 शब्दालंकार, 1 चित्रालंकार एवं 1 संकर अलंकार शामिल। ⇒ शिवाबावनी – 52 कवित्तों में शिवाजी की प्रशस्ति ⇒ छत्रसाल दशक – छत्रसाल बुंदेला की प्रशस्ति ⇒ कहा जाता है कि चित्रकूट के राजा रूद्रसाह सोलंकी ने इन्हें ’भूषण’ की उपाधि से सम्मानित किया। इनका वास्तविक नाम शोध का विषय बन गया है। (घनश्याम माना जाता है।) ⇒ ’शिवराज भूषण’ (1673 ई.), ’शिवाबावनी’ शिवाजी के आश्रय में लिखे। ⇔ ’छत्रशालदशक’ की रचना ’छत्रशाल’ की प्रशस्ति में की। ⇒चित्रकूट नरेश रूद्रराम सोलंकी ने इन्हें भूषण की उपाधि दी थी भूषण की प्रमुख काव्य पंक्तियाँ वेद राखे विदित पुरान ...