Ritikal ke veer ras ke prasidh kavi hain

  1. सेनापति
  2. रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं
  3. 15+ वीर रस की प्रसिद्ध कविताएं
  4. Ritimukt Kavi
  5. RitiKal
  6. रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ


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सेनापति

senapati • senapati • inake rritu varnan mean prakriti varnan hai jo sahity mean advitiy hai. senapati bahut sahriday kavi the. inake saman 'rritu varnan' kisi shrriangari kavi ne nahian kiya hai. inake 'rritu varnan' mean prakriti ka sookshm nirikshan paya jata hai. • senapati ka pad vinyas bhi lalit hai. kahian kahian viramoan par • ye apane samay ke bahut hi bhavuk aur nipun dikshit parashuram dada haian vidit nam, jin kinhean jajn, jaki vipul b daee hai. gangadhar pita gangadhar ke saman jake, gangatir basati 'anoop' jin paee hai maha janamani, vidyadan hoo mean chiantamani, hiramani dikshit tean paee panditaee hai. senapati soee, sitapati ke prasad jaki, sab kavi kan dai sunat kavitaee hai • inaki garvoktiyaan khatakati nahian, uchit jan p dati haian. apane jivan ke aantim samay mean ye sansar se kuchh virakt ho chale the. keto karau koi, paie karam likhoi, tatean, doosari n hoi, ur soi thaharaie. adhi tean saras biti gee hai baras, ab durjan daras bich ras n badhaie chianta anuchit, dharu dhiraj uchit, senapati hvai suchit raghupati gun gaie. chari bar dani taji payan kamalechchhan ke, payak malechchhan ke kahe ko kahaie • 'shivasianh saroj' mean likha hai ki bad mean inhoanne sannyas le liya tha. inake bhaktibhav se poorn anek maha mohakandani mean jagat jakandani mean, din dukhaduandani mean jat hai bihay kai. sukh ko n les hai, kales sab bhaantin ko; senapati yahian te kahat akulay kai avai man aisi gharabar parivar tajauan, darauan lokalaj ke samaj visaray kai. h...

रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं

वस्तुतः उत्तर मध्य काल के नामकरण को लेकर विद्वानों में मतभेद रहे हैं। मिश्रबधुओं ने इसे अलंकृत काल कहा है तो आचार्य शुक्ल ने इसे रीतिकाल नाम दिया है। पं. विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने इसे शृंगार काल कहा। इसी प्रकार डाॅ. रमाशंकर शुक्ल रसाल ने इसे कला कला कहा है और डाॅ. भगीरथ मिश्र ने इसे रीति शृंगारकाल कहा है। इन सभी नामों में केवल रीतिकाल नाम ही अधिक उपर्युक्त एवं न्याय संगत है, क्योंकि इस काल के अधिकांश ग्रंथ रीति सम्बन्धी ही थे और कवियों की प्रवृत्ति भी केवल रीति ग्रंथों को रचने की थी। रीतिकाल के प्रमुख कवि, रीतिकाल के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएंइस प्रकार है - • केशवदास • बिहारीलाल • चिन्तामणि त्रिपाठी • भूषण • मतिराम • देव • भिखारीदास • पद्माकर • घनानन्द केशवदासपरिचय पीछे‘भक्तिकाल’ के अन्तर्गत दिया जा चुका है। यद्यपि ये अलंकारों को महत्व देने वाले चमत्कारवादी कवि माने जाते हैं, प्रमाणस्वरूप इनकी प्रसिद्ध उक्ति- ‘भूषण बिन न बिराजई कविता बनिता मित्त’ को उद्धृत किया जाता है। किन्तु इनके दो काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ ‘रसिकप्रिय’ और ‘कविप्रिया’ इन्हें अलंकारवादी सिद्ध नहीं करते हैं।‘रसिकप्रिया’ कविता के श्रृंगार अलंकारों का विवेचन ग्रन्थ है। कुछ विद्वानों ने केशव को रीतिकाल का प्रवर्त्तक कवि नहीं माना है और उन्हें भक्तिकाल में रखा है, किन्तु कुछ उन्हें रीतिकाल का प्रवर्त्तक आचार्य कवि मानते हैं। बिहारीलालइनका जन्म ग्वालियर के पास बहुवा गोविन्दपुर नामक स्थान पर संवत् 1660 (सन् 1603 ई.) में हुआ था। इनका बचपन बुन्देलखण्ड में बीता और युवावस्था में अपनी ससुराल मथुरा में आ बसे थे। ये आमेर (जयपुर) के मिर्जा राजा जयसिंह के दरबार में रहा करते थे। कहा जाता है कि राजा से इन्हें प्रत्येक दोहे पर एक...

15+ वीर रस की प्रसिद्ध कविताएं

विषय सूची • • • • • • • • • • • • • • • • Short Veer Ras ki Kavita in Hindi साजि चतुरंग सैन अंग में उमंग धरि सरजा सिवाजी जंग जीतन चलत है भूषण भनत नाद बिहद नगारन के नदी-नद मद गैबरन के रलत है ऐल-फैल खैल-भैल खलक में गैल गैल गजन की ठैल–पैल सैल उसलत है तारा सो तरनि धूरि-धारा में लगत जिमि थारा पर पारा पारावार यों हलत है। आज हिमालय की चोटी से आज हिमालय की चोटी से फिर हम ने ललकरा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। जहाँ हमारा ताज-महल है और क़ुतब-मीनारा है जहाँ हमारे मन्दिर मस्जिद सिक्खों का गुरुद्वारा है इस धरती पर क़दम बढ़ाना अत्याचार तुम्हारा है। शुरू हुआ है जंग तुम्हारा जाग उठो हिन्दुस्तानी तुम न किसी के आगे झुकना जर्मन हो या जापानी आज सभी के लिये हमारा यही क़ौमी नारा है दूर हटो ऐ दुनिया वालों हिन्दुस्तान हमारा है। -प्रदीप राणा प्रताप की तलवार Veer Ras ki Kavita चढ़ चेतक पर तलवार उठा, रखता था भूतल पानी को। राणा प्रताप सिर काट काट, करता था सफल जवानी को।। कलकल बहती थी रणगंगा, अरिदल को डूब नहाने को। तलवार वीर की नाव बनी, चटपट उस पार लगाने को।। वैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन सी फुफकार गिरी। था शोर मौत से बचो बचो, तलवार गिरी तलवार गिरी।। पैदल, हयदल, गजदल में, छप छप करती वह निकल गई। क्षण कहाँ गई कुछ पता न फिर, देखो चम-चम वह निकल गई।। क्षण इधर गई क्षण उधर गई, क्षण चढ़ी बाढ़ सी उतर गई। था प्रलय चमकती जिधर गई, क्षण शोर हो गया किधर गई।। लहराती थी सिर काट काट, बलखाती थी भू पाट पाट। बिखराती अवयव बाट बाट, तनती थी लोहू चाट चाट।। क्षण भीषण हलचल मचा मचा, राणा कर की तलवार बढ़ी। था शोर रक्त पीने को यह, रण-चंडी जीभ पसार बढ़ी।। -श्यामनारायण पाण्डेय उठो धरा के अमर सपूतो Veer Ras ki Kav...

Ritimukt Kavi

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि और रचनाएँ नमस्कार दोस्तों ! हम पिछले नोट्स में रीतिकाल के नामकरण और विभाजन तथा रीतिकाल के रीतिबद्ध कवियों के बारे में विस्तार से चर्चा कर चुके है। आज हम रीतिकाल के “Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि और रचनाएँ”के बारे में बात करने जा रहे है। तो चलिए शुरू करते है : रीतिमुक्त कवि उन्हें कहा जाता है जो रीति के बंधन से पूर्णतया मुक्त हो। ऐसे कवि जिन्होंने काव्यांग निरूपण करने वाले लक्षण ग्रंथों की रचना नहीं की है। रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि है : आलम, बोधा, घनानंद, ठाकुर, द्विजदेव। Ritimukt Kavi | रीतिमुक्त काव्य धारा के प्रमुख कवि आलम | Aalam यह ब्राह्मण जाति के थे, परंतु एक रंगरेज से विवाह करने के बाद मुसलमान बन गए। यह औरंगजेब के पुत्र मुअज्जमशाह (बहादुर शाह) के समकालीन थे। ” दिल से दिलासा दीजै हाल के न ख्याल हूजै बेखुदी फकीर वह आशिक दीवाना है।।” डॉ. बच्चन सिंह ने आलम को फकीराना ठाठ और आशिकी का कवि कहा है। आलम :“ कनक छरी सी कामिनी काहे को कटी छीन। शेख भणिती (रंगरेजिन) : कटी को कंचन काटि के कुचन मध्य धरी दीन।।” आचार्य रामचंद्र शुक्ल : “यह प्रेमोन्मत कवि थे और अपनी तरंग के अनुसार कविता रचना करते थे। प्रेम की पीर या इश्क का दर्द इनके एक-एक वाक्य में भरा पाया जाता है।” “प्रेम की तन्मयता की दृष्टि से आलम की गणना रसखान व घनानंद की कोटि में करनी चाहिए।” आलम की प्रमुख रचनाएँ : • आलम केलि • सुदामा चरित बोधा | Bodha यह बांदा जिला उत्तर प्रदेश के राजापुर के रहने वाले थे। इनका वास्तविक नाम – बुद्धि सेन था। यह पन्ना नरेश खेत सिंह के दरबार में रहते थे ...

RitiKal

Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन नमस्कार दोस्तों ! आज हम आपसे RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा का नामकरण एवं विभाजन के बारे में चर्चा करने जा रहे है। इसमें रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी काव्य धाराओं का तुलनात्मक अध्ययन, रीतिकाल के प्रवर्तक, रीतिकाल की कविताओं की प्रमुख विशेषताएं और इसके बारे में परीक्षा की दृष्टि से कुछ महत्वपूर्ण तथ्य आदि पर नज़र डाल रहे है। तो आइए RitiKal | रीतिकाल काव्य धारा के बारे में विस्तार से जानते है। RitiKal | रीतिकाल : हिंदी साहित्य के विकास क्रम में रीतिकाल एक महत्वपूर्ण काल है। इस काल में काव्य के कला पक्ष पर अधिक सूक्ष्मता और व्यापकता के साथ कार्य किया गया है। इस काल में श्रृंगार रस की प्रधानता है। रीति काल का समय 1643 ई. से 1843 ई. माना जाता है। रीति शब्द से तात्पर्य : काव्यांगों की बंधी बंधाई परिपाटी का अनुसरण करना। काव्यागं अर्थात :रस, छंद, अलंकार, दोष, गुण, लक्षण, नायिका भेद ,प्रभेद आदि के लक्षण ग्रंथों का निर्माण। रीतिबद्ध और रीति सिद्ध कवि इस परिभाषा में आ जाते हैं। रीतिमुक्त पर जो परिभाषा लागू है : आचार्य वामन के अनुसार : ” विशिष्टा पद रचना रीति:” वे आगे विशिष्ट शब्द को स्पष्ट करते हुए लिखते हैं : ” विशेषो गुणात्मा:” विशेषो गुणात्मा: अर्थात् – विशिष्ट पद रचना ही रीति है। रीतिमुक्त कविता का अंत: भाव इस परिभाषा में हो जाता है। RitiKal | रीतिकाल का नामकरण RitiKal | रीतिकाल का नामकरण : रीतिकाल का नामकरण करने वाले प्रथम विद्वान ग्रियर्सन है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने रीति शब्द इन्हीं से ग्रहण किया है। • रामचंद्र शुक्ल : रीतिकाल (प्रवृति मूलक) । हजारी प्रसाद द्विवेदी और नगेंद्र...

रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ

रीतिबद्ध काव्यधारा के कवि और उनकी रचनाएँ रीतिबद्ध कवि जिन कवियों नें शास्त्रीय ढंग पर लक्षण उदाहरण प्रस्तुत कर अपने ग्रंथों की रचना किया उन्हें रीतिबद्ध श्रेणी में रखा गया है। हिन्दी के प्रमुख रीतिबद्ध कवि और उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्न हैं- रचनाकार प्रमुख रचनाएँ चिन्तामणि मुक्तक काव्य: रस विलास, छन्द विचार, पिगल, श्रृंगार मंजरी,कविकुल कल्पतरु, काव्य विवेक, काव्य प्रकाश, कवित विचार प्रबंध काव्य: रामायण, रामाश्वमेघ, कृष्णचरित कुलपति मिश्र रस रहस्य,संग्राम सार,युक्ति तरंगिणी, नख शिख,द्रोण पर्व कुमार मणि रसिक रंजन,रसिक रसाल देव भावविलास,भवानी विलास,काव्य रसायन, जाति विलास,देवमाया प्रपंच (नाटक),रस विलास,रस रत्नाकर,सुख सागर तरंग सोमनाथ रस पीयूष निधि,श्रृंगार विलास,कृष्ण लीलावती,पंचाध्यायी,सुजान विलास,माधव विनोद भिखारीदास रस सारांश,काव्य निर्णय,श्रृंगार निर्णय,छंदार्णव पिंगल,शब्दनाम कोश,विष्णु पुराण भाषा,शतरंजशतिका रसिक गोविन्द रसिक गोविन्दानन्दघन,पिंगल,रसिक गोविन्द,युगल रस माधुरी,समय प्रवन्ध,लछिमन चंद्रिका,अष्टदेश भाषा प्रताप साहि व्यंग्यार्थ कौमुदी (1825 ई.),काव्य विलास (1809 ई.),जयसिह प्रकाश,श्रृंगार मंजरी,शृंगार शिरोमणि,अलंकार चिन्तामणि,काव्य विनोद,जुगल नखशिख अमीरदास सभा मंडन (1827 ई.),वृत्त चन्द्रोदय (1820 ई.),व्रजविलास सतसई (1832 ई.),श्री कृष्ण साहित्य सिन्धु (1833 ई.),शेर सिंह प्रकाश (1240 ई.),फाग पचीसी,ग्रीष्म विलास,भागवत रलाकर,दूषण उल्लास,अमीर प्रकाश,वैद्य कल्पतरु,अश्व-संहिता प्रकाश ग्वाल यमुना लहरी,भक्त भावन,रसरूप,रसिकानंद, रसरंग,कृष्ण जू को नखशिख,दूषण दर्पण,राधा माधव मिलन,राधाष्टक,कवि हृदय विनोद,विजय विनोद,कवि दर्पण, नेह निर्वाह, वंसी बीसा,कुब्जाष्टक,षड्ऋतु वर्णन,अलंकार ...