रमेश भंवरा का कजरी

  1. कजरी
  2. सावन स्पेशल:कजरी में नायिका के मन की टीस विरह के रूप में व्यक्त होती है
  3. सावन स्पेशल:कजरी में नायिका के मन की टीस विरह के रूप में व्यक्त होती है
  4. कजरी


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कजरी

कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया बदरिया घेरि आइल ननदी ।। तू त चललू अकेली, केहू सँगे ना सहेली; गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी ।। केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी; केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी ।। --परंपरागत सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमिर के हिसाब से कजरी की गीतिन में बिबिध बिसय मिले ला। गीतन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला। पति-पत्नी के प्रेम संबाद आ बिरह बरणन, इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात (साइड में कोटेशन देखीं) बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा: पहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि "ए ननद! इ तऽ बादर घेरि आइल बा, हम एइसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि?" ननद कहत बाड़ी – "ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे। डहरी में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब!" ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – "कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी।" एकरे अलावा खेती-किसानी से ले के बिबिध अन्य बिसय के बरनन कजरी के गीतन में मिले ला। दयानिधि मिसिर के कहनाम बा: (कजरी में)... बारिश के इतने रंग-रूप, चित्र-प्रयोजन, मूड-भाव सँजोये हैं भोजपुरी साहित्य ने कि इस वैविध्य के सामने कोई भी साहित्य रश्क करे। • भोजपुरी लोक गीत. हिंदी साहित्य सम्मलेन, {{ Invalid |ref=harv ( • दयानिधि मिश्र (2015). लोक और शास्त्र: अन्वय और समन्वय. वाणी प्रकाशन. 978-93-5072-996-0. {{ Invalid |ref=harv ( • प्रीती राजपाल (2013). भारतीय संगीत:सामाजिक स्वरुप एवं परिवर्तन. यूनिस्टार बुक्स. 978-93-5113-251-6. {{ Invalid |ref=harv ( • राजेश्वरी शांडिल्य (2009). भारतीय पर्व एवं त्यौहार. ...

सावन स्पेशल:कजरी में नायिका के मन की टीस विरह के रूप में व्यक्त होती है

वर्षा ऋतु में ख़ासकर सावन महीने की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। दिल को घेरती कारी घटाओं को देख नायिका के मन में बहुत ख़ुशी भी होती है और एक टीस भी उठती है। कजरी में यह टीस विरह के रूप में व्यक्त हुई है। सावनी फुहारें पड़ती हैं और प्रियतम पास नहीं होते तो जैसे मन भटकने लगता है, कहीं दूर चला जाता है। फिर जो भाव उठता है वह गीतों में कहीं मल्हार है तो कही मेघ और कहीं ठुमरी तो कहीं कजरी के रूप में लोक मानस में रचा बसा है। बारिश की फुहारों के साथ महिलाएं बरबस गीत गुनगुनाने लगती हैं। ख़ुशी के झूले पड़ जाते हैं। ख्याल, टप्पा से लेकर बोल बनाव की ठुमरी को सुरों की मिठास में उतारने वाली बनारस घराने की गायिका नबनीता सावन को स्त्रियों के जीवन की सबसे बड़ी संपदा मानती हैं। वह कहती हैं कि सावन खुशियों की सौगात बनकर आता है। वह बचपन के अपने अनुभवों को साझा करती है, जब वह काली घटा छाने के बाद बारिश की बूंदों को हथेलियों पर रोकने के लिए छतों पर खड़ी हो जाया करती थीं। वह बंदिश सुनाती हैं- बरसन लागी रे बदरिया सावन की अतिकारी अतिभारी डरपावनी...। वह कहती हैं कि इस कारी घटा को देख कर दिल में उठने वाले डर को बयां करना आसान नहीं होता। राग मिया मल्हार की बंदिश का वह उदाहरण देती हैं- बूंदन भीगे मोरी सारी अब तो जाने दे बनवारी...। वह बताती हैं कि प्रेमी से मिलने के बाद नायिका की सारी भीग जाती है तब वह कहती है कि अब मुझे जाने दो भीग गई हूं....। भीतर से भीगना प्रेम का एहसास कराता है। बरसन लागी सावन बूंदिया राजा तोरे बिन लागे ना मोरा जिया... प्रेम अरजिया भीनी भीनी प्रेम की पतिया मीठी मीठी दुखवा अपना मैं ना कहूंगी देखन तड़पत देख मरुंगी तोरे बिना लागे ना मोरा जिया राजा ....। इस बंदिश में नायि...

सावन स्पेशल:कजरी में नायिका के मन की टीस विरह के रूप में व्यक्त होती है

वर्षा ऋतु में ख़ासकर सावन महीने की अनुभूति शब्दों में व्यक्त नहीं की जा सकती। दिल को घेरती कारी घटाओं को देख नायिका के मन में बहुत ख़ुशी भी होती है और एक टीस भी उठती है। कजरी में यह टीस विरह के रूप में व्यक्त हुई है। सावनी फुहारें पड़ती हैं और प्रियतम पास नहीं होते तो जैसे मन भटकने लगता है, कहीं दूर चला जाता है। फिर जो भाव उठता है वह गीतों में कहीं मल्हार है तो कही मेघ और कहीं ठुमरी तो कहीं कजरी के रूप में लोक मानस में रचा बसा है। बारिश की फुहारों के साथ महिलाएं बरबस गीत गुनगुनाने लगती हैं। ख़ुशी के झूले पड़ जाते हैं। ख्याल, टप्पा से लेकर बोल बनाव की ठुमरी को सुरों की मिठास में उतारने वाली बनारस घराने की गायिका नबनीता सावन को स्त्रियों के जीवन की सबसे बड़ी संपदा मानती हैं। वह कहती हैं कि सावन खुशियों की सौगात बनकर आता है। वह बचपन के अपने अनुभवों को साझा करती है, जब वह काली घटा छाने के बाद बारिश की बूंदों को हथेलियों पर रोकने के लिए छतों पर खड़ी हो जाया करती थीं। वह बंदिश सुनाती हैं- बरसन लागी रे बदरिया सावन की अतिकारी अतिभारी डरपावनी...। वह कहती हैं कि इस कारी घटा को देख कर दिल में उठने वाले डर को बयां करना आसान नहीं होता। राग मिया मल्हार की बंदिश का वह उदाहरण देती हैं- बूंदन भीगे मोरी सारी अब तो जाने दे बनवारी...। वह बताती हैं कि प्रेमी से मिलने के बाद नायिका की सारी भीग जाती है तब वह कहती है कि अब मुझे जाने दो भीग गई हूं....। भीतर से भीगना प्रेम का एहसास कराता है। बरसन लागी सावन बूंदिया राजा तोरे बिन लागे ना मोरा जिया... प्रेम अरजिया भीनी भीनी प्रेम की पतिया मीठी मीठी दुखवा अपना मैं ना कहूंगी देखन तड़पत देख मरुंगी तोरे बिना लागे ना मोरा जिया राजा ....। इस बंदिश में नायि...

कजरी

कइसे खेले जाइबि सावन में कजरिया बदरिया घेरि आइल ननदी ।। तू त चललू अकेली, केहू सँगे ना सहेली; गुंडा घेरि लीहें तोहरी डगरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी ।। केतने जना खइहें गोली, केतने जइहें फँसिया डोरी; केतने जना पीसिहें जेहल में चकरिया ।। बदरिया घेरि आइल ननदी ।। --परंपरागत सावन की मौसम आ गावे वालिन के उमिर के हिसाब से कजरी की गीतिन में बिबिध बिसय मिले ला। गीतन में अधिकतर चंचलता आ प्रेम भरल विषय मिलेला। पति-पत्नी के प्रेम संबाद आ बिरह बरणन, इहाँ कजरी क एगो उदहारण दिहल जात (साइड में कोटेशन देखीं) बा जवना में ननद-भउजाई क संवाद बा: पहिले भउजाई ननद से कहत बाड़ी कि "ए ननद! इ तऽ बादर घेरि आइल बा, हम एइसना में सावन में कजरी खेले कइसे जाइबि?" ननद कहत बाड़ी – "ए भउजी तू त अकेलही कजरी खेले जात बाडू आ तोहरी संघे केहू सहेलियो नइखे। डहरी में तोहके गुंडा रोकि लिहें तब!" ए पर भउजाई जवाब देत बाड़ी – "कि अगर एइसन होई त केतने लोग गोली खाई, केतने फाँसी पर चढ़ी आ केतने लोगन के जेल में चक्की पीसे के पड़ी।" एकरे अलावा खेती-किसानी से ले के बिबिध अन्य बिसय के बरनन कजरी के गीतन में मिले ला। दयानिधि मिसिर के कहनाम बा: (कजरी में)... बारिश के इतने रंग-रूप, चित्र-प्रयोजन, मूड-भाव सँजोये हैं भोजपुरी साहित्य ने कि इस वैविध्य के सामने कोई भी साहित्य रश्क करे। • भोजपुरी लोक गीत. हिंदी साहित्य सम्मलेन, {{ Invalid |ref=harv ( • दयानिधि मिश्र (2015). लोक और शास्त्र: अन्वय और समन्वय. वाणी प्रकाशन. 978-93-5072-996-0. {{ Invalid |ref=harv ( • प्रीती राजपाल (2013). भारतीय संगीत:सामाजिक स्वरुप एवं परिवर्तन. यूनिस्टार बुक्स. 978-93-5113-251-6. {{ Invalid |ref=harv ( • राजेश्वरी शांडिल्य (2009). भारतीय पर्व एवं त्यौहार. ...