संत रविदास की मृत्यु कैसे हुई

  1. संत रविदास मंदिर दिल्ली का ताज़ा अपडेट, संत रविदास जयंती २०१९, Shri Guru Ravidas delhi tughlaqabad temple history and story of Sant Ravidas
  2. संत रैदास : वाणी और मानव
  3. संत रविदास (रैदास)
  4. Sant Ravidas Jayanti 2022 : जानिए कैसे प्रचलित हुई संत रविदास की कहावत 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'
  5. एक जीवन ऐसा भी
  6. जयंती विशेष: जानें इस दिन का महत्व और रविदास जी कैसे बने संत?


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संत रविदास मंदिर दिल्ली का ताज़ा अपडेट, संत रविदास जयंती २०१९, Shri Guru Ravidas delhi tughlaqabad temple history and story of Sant Ravidas

संत रविदास मंदिर दिल्ली का ताज़ा अपडेट, संत रविदास जयंती २०१९, Shri Guru Ravidas delhi tughlaqabad temple history and story of Sant Ravidas Shri Guru Ravidas: संत रविदास का मंदिर तोड़े जाने पर पंजाब-हरियाणा में हंगामा, 500 साल पुराना है इतिहास By August 13, 2019 10:27 AM 2019-08-13T10:27:28+5:30 2019-08-13T10:27:28+5:30 Shri Guru Ravidas: संत रविदास का मंदिर तोड़े जाने से पंजाब में उग्र विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और अब ये चिंगारी हरियाणा भी जा पहुंची है। हरियाणा के करनाल के घरौंडा में सोमवार को रविदास समाज के लोग सड़कों पर उतर आये और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पुतला फूंका। Highlights दिल्ली के तुगलकाबाद रोड में श्री गुरु रविदास का मंदिर टूटने से मचा है बवाल पंजाब और हरियाणा में विरोध प्रदर्शन, पीएम मोदी के पुतले फूंके गये पंजाब में आज बंद का आह्वान, 500 साल पुराना है तोड़े गये मंदिर का इतिहास दिल्ली के तुगलकाबाद रोड में करीब 500 साल पुराने संत रविदास के एक मंदिर के प्रशासन द्वारा तोड़े जाने के बाद हंगामा मचा है। वहीं, Shri Guru Ravidas: संत रविदास कौन थे? 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'...ये कहावत हम सभी ने सुनी है। इसकी रचना संत रविदास ने ही की थी और इसके रचे जाने के पीछे भी बहुत रोचक कहानी है। संत रविदास का जन्म माघ मास की पूर्णिमा के दिन साल 1433 में वाराणसी में हुआ था। इन्हें रैदास के नाम से भी जाना जाता है। इनके पिता का नाम राघवदास और माता का नाम करमा बाई था। संत रविदास के पिता जूते बनाने का काम करते थे। रविदास उन्हीं के साथ रहकर उनके काम में हाथ बंटाते थे। हालांकि, रविदास का शुरू से ही मन मन साधु-संतों के साथ ज्यादा लगता था। कहते हैं इस वजह से वह जब भी किसी साधु-संत या फ...

संत रैदास : वाणी और मानव

रविदास की मानव मुक्ति में न पौराणिक स्वर्गारोहण है और न ही किसी अदृश्य लोक में बैकुण्ठ वास। इस मुक्ति में कोई दुरूह ब्रह्म विद्या ज्ञान भी नहीं है। वे अपनी वाणी में अपने परिवेश की समस्याओं का आत्मनिष्ठरूप प्रतिपादित करते हुए व्यक्ति को एक उच्चभावपूर्ण स्थिति में ले जाना चाहते हैं जिसमें उसके समस्त बन्धनों का अस्तित्व बना नहीं रह सकता। (लेख से) डॉ. सेवा सिंह संत रविदास की वाणी में मानव मुक्ति की चिन्ता सर्वोपरि है। उनकी यह प्रतिश्रुति मानवीय दुःख से सीधे-सीधे जुड़ी हुई है। भारतीय परम्परा में गौतम बुद्ध के बाद, इस दीर्घावधि में इन सन्तों ने ही मनुष्य की त्रासदी को गहराई से अनुभव करते हुए मुक्ति के सरोकारों पर ध्यान केन्द्रित किया, यद्यपि उनके सरोकार भावात्मक ही हो सकते थे। बुद्ध को चारों ओर साधारण जन दुख और पीड़ा के सागर में उतरते दिखाई दे रहे थे, उन्होंने बताया – जन्म दुख है, वृद्धावस्था दुःख है, रुग्णावस्था दुःख है, मृत्यु दुःख है, अप्रिय जन के साथ मिलन दुःख है, प्रिय जन से विछोह दुःख है, अभीष्ट की प्राप्ति न होना दुःख है। दुःख की उत्पत्ति के सम्बन्ध में बुद्ध का कहना था कि यह अस्तित्व में आने की तृष्णा है जिससे मनुष्य बार-बार जन्म लेता है और साथ ही लालसा और इच्छा चलती है, जिसकी तुष्टि का प्रयत्न किया जाता है : सुख भोगने की तृष्णा, अस्तित्व में आने की तृष्णा, सत्ता तथा वैभव की तृष्णा । गौतम बुद्ध राज्य सत्ताओं के उद्भव के तहत गणों के समानता, बन्धुत्व और लोकतन्त्रीय मूल्यों के विनाश में जनजातीय जन की पीड़ा का एक तत्व मीमांसीय समाधान प्रस्तुत कर रहे थे। यदि गणों की उत्पादन पद्धति का वर्गीय उत्पादन पद्धति में रूपान्तरण रोका नहीं जा सकता था, पर बुद्ध अपनी जनजातियों के गणों के ...

संत रविदास (रैदास)

संत रविदास कौन थे रविदास भारत में 15वीं शताब्दी के एक महान संत, दर्शनशास्त्री, कवि, समाज-सुधारक और ईश्वर के अनुयायी थे। वो निर्गुण संप्रदाय अर्थात् संत परंपरा में एक चमकते नेतृत्वकर्ता और प्रसिद्ध व्यक्ति थे तथा उत्तर भारतीय भक्ति आंदोलन को नेतृत्व देते थे। ईश्वर के प्रति अपने असीम प्यार और अपने चाहने वाले, अनुयायी, सामुदायिक और सामाजिक लोगों में सुधार के लिये अपने महान कविता लेखनों के जरिये संत रविदास ने विविध प्रकार की आध्यात्मिक और सामाजिक संदेश दिये। वो लोगों की नजर में उनकी सामाजिक और आध्यात्मिक जरुरतों को पूरा करने वाले मसीहा के रुप में थे। आध्यात्मिक रुप से समृद्ध रविदास को लोगों द्वारा पूजा जाता था। हर दिन और रात, रविदास के जन्म दिवस के अवसर पर तथा किसी धार्मिक कार्यक्रम के उत्सव पर लोग उनके महान गीतों आदि को सुनते या पढ़ते है। उन्हें पूरे विश्व में प्यार और सम्मान दिया जाता है हालाँकि उन्हें सबसे अधिक सम्मान उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्रा में अपने भक्ति आंदोलन और धार्मिक गीतों के लिये मिलता था। संत रविदास जयंती पूरे भारत में खुशी और बड़े उत्साह के साथ माघ महीने के पूर्ण चन्द्रमा दिन पर माघ पूर्णिमा पर हर साल संत रविदास की जयंती या जन्म दिवस को मनाया जाता है। जबकि; वाराणसी में लोग इसे किसी उत्सव या त्योहार की तरह मनाते है। 2020 (643 वां) – 9 फरवरी इस खास दिन पर आरती कार्यक्रम के दौरान मंत्रों के रागों के साथ लोगों द्वारा एक नगर कीर्तन जुलूस निकालने की प्रथा है जिसमें गीत-संगीत, गाना और दोहा आदि सड़कों पर बने मंदिरों में गाया जाता है। रविदास के अनुयायी और भक्त उनके जन्म दिवस पर गंगा- स्नान करने भी जाते है तथा घर या मंदिर में बनी छवि की पूजा-अर्चना करते है। इस पर...

Sant Ravidas Jayanti 2022 : जानिए कैसे प्रचलित हुई संत रविदास की कहावत 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'

Sant Ravidas Jayanti 2022 : जानिए कैसे प्रचलित हुई संत रविदास की कहावत ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ 'मन चंगा तो कठौती में गंगा' एक ऐसी कहावत है जिसे आज भी लोग अक्सर इस्तेमाल करते हैं. लेकिन क्या आपको वो किस्सा पता है, जिसके कारण ये कहावत इतनी मशहूर हो गई ? आइए आज संत रविदास जयंती के मौके पर आपको बताते हैं इस कहावत से जुड़ा किस्सा. अक्सर आपने लोगों को कहते सुना होगा ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’. ये एक मशहूर कहावत है जो लोगों को ये संदेश देती है कि अगर किसी काम को करने के लिए आपकी मंशा अच्छी है, तो आपका काम मां गंगा की तरह पवित्र है. उसे करने में कोई हिचक न करें. ये कहावत Sant Ravidas) ने कही थी. संत रविदास का जन्म एक चर्मकार परिवार में हुआ था. अपने परिवार के भरण पोषण के लिए वो जूता बनाने का काम करते थे, जो उनका पैतृक काम था. लेकिन उनके मन में भगवान की भक्ति बसी थी. इन परिस्थितियों के बीच एक ऐसा किस्सा सामने आया जिसने लोगों को संत रविदास की भक्ति की शक्ति को दिखाया और लोगों को उनका मुरीद बना दिया. इसी से ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ की कहावत सबके सामने आयी. हर साल माघ मास की पूर्णिमा ( Magh Purnima) तिथि को संत रविदास जयंती ( Sant Ravidas Jayanti 2022) मनाई जाती है. इस मौके पर आप भी जानिए इस कहावत से जुड़ा किस्सा. जानिए कैसे सच साबित हुई संत रविदास की कहावत संत रविदास अपने जन्म के समय से ही काफी दयालु थे. वे संतों, फकीरों और जरूरतमंदों का बहुत ध्यान रखते थे. ऐसा कोई भी उनके समक्ष आ जाए तो वे उसकी सेवा करते और बिना पैसे लिए ही अपने हाथों से बने जूते पहना देते थे. उनके इस स्वभाव से उनका परिवार परेशान था, क्योंकि इससे घर का खर्च चलाना भी मुश्किल हो जाता था. ऐसे में रविदास के पिता ...

एक जीवन ऐसा भी

संत श्री रविदास जी की लेखन शैली व उनकी रचनाओं में हमेशा मानवीय एकता व समानता पर बल दिया जाता था। वे मानते थे कि जब तक हमारा अंतर्मन पवित्र नहीं होगा, तब तक हमें ईश्वर का सानिध्य नहीं मिल सकता है। दूसरी ओर, यदि हमारा ध्यान कहीं और लगा रहेगा, तो हमारा मुख्य कर्म भी बाधित होगा तथा हमें कभी-भी लक्ष्य की प्राप्ति नहीं हो सकती है। जो बातें उन्होंने स्वयं पर आजमाई, उन्हें ही रचनाओं के माध्यम से आम जन को बताया। उनके जीवन की एक घटना से पता चलता है कि वे गंगा स्नान की बजाय खुद के कार्य को संपन्न करने को प्राथमिकता देते हैं। संत श्री रविदास जी ने कहा कि लगातार कर्म पथ पर बढ़ते रहने पर ही सामान्य मनुष्य को मोक्ष की राह दिखाई दे सकती है। अपने पदों व साखियों में वे किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए श्रम को ही मुख्य आधार बताते हैं। इसलिए वे मध्यकाल में भी अपनी बातों से आधुनिक कवि समान प्रतीत होते हैं। वे लिखते हैं, 'जिह्वा सों ओंकार जप हत्थन सों करि कार /राम मिलहिं घर आइ कर कहि संत श्री रविदास जी विचार।' एक पद में नाम की महत्ता को बताते हुए राम नाम के जप पर जोर देते हैं, जिससे सगुण ब्रह्म की शक्तिशाली सत्ता का मोह टूट जाता है और शासन की जगह समानता का नारा बुलंद होता है। अपने समय के नानक, कबीर, सधना व सेन जैसे संत कवियों की तरह संत श्री रविदास जी भी इस बात को समझते हैं कि सगुण अवतार जहां शासन व्यवस्था को जन्म देता है, वहीं निर्गुण राम समानता के मूल्य के साथ खड़े होते हैं, जो अपनी चेतना में एक आधुनिक मानस को निर्मित करते हैं। 'नामु तेरो आरती भजनु मुरारे / हरि के नाम बिनु झूठै सगल पसारे ..' जैसे पद के आधार पर संत श्री रविदास जी अपने समय की शक्तिशाली प्रभुता को उसके अहंकार का बोध कराते ह...

जयंती विशेष: जानें इस दिन का महत्व और रविदास जी कैसे बने संत?

हिंदू कैलेंडर के अनुसार माघ महीने की पूर्णिमा के दिन संत रविदास जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष गुरु रविदास जयंती 27 फरवरी-शनिवार के दिन मनाई जाएगी। संत रविदास जी का जन्म वाराणसी के नजदीक एक गांव में हुआ था। कहा जाता है कि, लगभग सन 1450 में जन्मे संत रविदास जी की माता का नाम श्रीमती कलसा देवी था और पिता का नाम श्री संतोख दास जी था। संत रविदास के बारे में प्रचलित सबसे अधिक महत्वपूर्ण बात के अनुसार बताया जाता है कि, वह बिना लोगों में भेदभाव यह आपस में सद्भाव और प्रेम से रहने की शिक्षा देने के लिए जाने जाते हैं। संत रविदास जयंती के दिन पवित्र नदी में स्नान करने की है मान्यता मान्यता के अनुसार संत रविदास जयंती के दिन उनके अनुयायी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और इसके बाद अपने गुरु यानी की संत रविदास जी के जीवन से जुड़ी महान और रोचक घटनाओं को याद करके उनसे प्रेरित होते हैं। संत रविदास जी के जीवन में एक दो नहीं बल्कि कई ऐसे प्रेरक प्रसंग है जो हमें अपने जीवन को सुख पूर्वक जीने की सीख देते हैं। संत रविदास जयंती का यह दिन रविदास जी के अनुयायियों के लिए वार्षिक उत्सव की तरह होता है। इस दिन उनके जन्म स्थान पर लाखों भक्तों की भीड़ उमड़ती है और बड़े और भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों में संत रविदास जी के दोहे गाए जाते हैं उनसे प्रेरणा ली जाती है और भजन-कीर्तन आदि किया जाता है। एस्ट्रोसेज वार्ता से दुनियाभर के विद्वान ज्योतिषियों से करें फ़ोन पर बात रविदास जी कैसे बने संत? रविदास संत कैसे बने इसके बारे में प्रचलित एक कथा के अनुसार बताया जाता है कि, एक दिन रविदास जी अपने साथी के साथ खेल रहे थे। अगले दिन खेल वाली जगह पर रविदास जी तो आ गए लेकिन उनका दोस्त नहीं आया। ऐसे...