संत तुकाराम का जीवन चरित्र

  1. संत तुकाराम का जीवन दर्शन
  2. संत तुकाराम महाराज निबंध Essay on Sant Tukaram Maharaj in Marathi
  3. विद्रोही संत तुकाराम का जीवन परिचय
  4. Sant Tukaram Jayanti: ये हैं तुकाराम जी के जीवन चरित्र से जुड़ी खास बातें


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संत तुकाराम का जीवन दर्शन

– सौ. प्रांजली अजय आफळे अणूरेणिया थोकडा तुका आकाशाएवढा ।।१।। अर्थात् कभी अणु की तरह सूक्ष्म संत तुकाराम गगन की तरह असीम हो गये हैं। इस पंक्ति में संत तुकाराम के सूक्ष्म रूप से समग्र, विस्तृत और व्यापक व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं। महाराष्ट्र में दो संप्रदाय हैं, वारकरी संप्रदाय और भागवत संप्रदाय, उनमें क्या अंतर है? ऐसा सवाल आम जनता पूछने लगती है। देखा जाये तो – कोई अंतर नहीं है। वारकरी संप्रदाय श्री विष्णु को केंद्र में मानता है। जबकि भागवत संप्रदाय श्रीकृष्ण को मानता है। मनुष्य द्वारा संप्रदाय जाति और धर्म की व्यवस्था बनायी गयी। भक्ति, आस्था, विश्वास में तो कोई अंतर नहीं है। संत बाहिनाबाई ने इस संत संप्रदाय का वर्णन किया है, जो एक बहुत ही प्रासंगिक अभंग में भक्ति की इमारत है। ज्ञानदेवे रचिला पाया उभारिले देवालया ।। नामा तयाचा किंकर त्याने केला हा विस्तार ।। जनार्दन एकनाथ खांब दिला भागवत ।। तुका झालासे कळस भजन करा सावकाश ।। भक्ती की इमारत है, जिसकी नींव संत ज्ञानदेव ने रखी है। संत नामदेव एकनाथ जनार्दन ने मिलकर ये इमारत बनाई है। जिसका मुकुट है संत तुकाराम। हर मानव अपना जीवन आनंद में बिताना चाहता है। लेकिन हर किसी को मनचाहा जीवन नही मिलता और आम लोगों को यह भी समझ नहीं आता कि ये सभी खुशियाँ क्षणभंगुर हैं। गीता का उपदेश यह है कि हमें निरंतर कर्म करते रहना चाहिये। संतों ने इसी तत्त्वज्ञान को सरल भाषा में कहने का प्रयास किया …यह ज्ञान बांटने के लिए ही इस दुनिया में जन्म लिया है। यादवों के पतन के पहले और बाद के कुछ वर्षों तक, विदेशियों के हमलों से पीड़ित-शोषित जनता त्रस्त थी। इन लोगों का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं था। भेदभाव की प्रणाली दुखद थी। संत ज्ञानेश्वर और उनके भाई-बहनों को इन...

संत तुकाराम महाराज निबंध Essay on Sant Tukaram Maharaj in Marathi

संत तुकाराम महाराज निबंध Essay on Sant Tukaram Maharaj in Marathi मित्रहो, आज आपण संत तुकाराम महाराज या विषयावर निबंध या ठिकाणी पाहणार आहोत. सहज, सोप्या आणि सुंदर शैलीतील भाषेमध्ये संत तुकाराम महाराज निबंध Essay on Sant Tukaram Maharaj in Marathi निबंध देत आहोत. संत तुकाराम महाराजांचे कुटुंब हे विठ्ठल भक्त होते. संत तुकाराम महाराजांचे आठवे पूर्वज विश्वंभर बाबा हे संत ज्ञानेश्वर कालीन महान साधू होते. विश्वंभर बाबांनी संत तुकारामांच्या कुळामध्ये विठ्ठल भक्तीला खऱ्या अर्थाने सुरुवात केली असे म्हणता येईल. अवश्य वाचा संत तुकाराम महाराज यांना एक मोठा भाऊ होता, त्याचे नाव सावजी. एक छोटा भाऊ होता त्याचे नाव कान्होबा. संत तुकारामांना दोन बहिणी होत्या. संत तुकाराम क्षत्रिय मराठा समाजात जन्माला आले होते असे असले तरी ते स्वतःला शूद्र , कुणबी, यातीहिन समजत. अर्थात संत तुकारामांचा जातीव्यवस्था आणि वर्णव्यवस्था या गोष्टींवर अजिबात विश्वास नव्हता. “यारे यारे लहानथोर, याती भलती नारी नर” असे म्हणणारे संत तुकाराम हे एक समतावादी थोर पुरुष होते. संत तुकाराम यांच्या घरामध्ये व्यापार-उदीम या गोष्टीला महत्त्व होते सावकार कि होती हे कुटुंब आपला व्यवसाय अतिशय निष्ठेने आणि प्रामाणिकपणे करीत होते.तुकारामांचा मोठा भाऊ सावजी संन्यास घेऊन घरातून निघून गेला. त्यानंतर कुटुंबातील मोठा मुलगा म्हणून कुटुंबाची जबाबदारी संत तुकाराम महाराज यांच्यावर आली. संत तुकाराम यांनी आपल्यावर आलेली ही जबाबदारी अतिशय प्रामाणिकपणे पार पाडली. अवश्य वाचा. संत तुकाराम यांचे लग्न त्यांच्या वडिलांनी लोहगाव येथील रुक्मिणीशी लावून दिले. लोहगाव येथे तुकाराम महाराजांचे मामाचे गाव होते. आणि सासरवाडी सुद्धा होती. पुढे त्यांची याठिकाणी ...

विद्रोही संत तुकाराम का जीवन परिचय

आज के दौर में भी समाज संत के रूप में एक ऐसे संत को खोजता है की जो लोभ, मोह, माया, कामना या हीनता आदि से परे हो संत तुकाराम एक ही संतो में से एक थे| संत तुकाराम का जन्म तुकोब के नामम से जाने जाने वाले संत तुकाराम, 17वीं शताब्दी में वारकरी सम्प्रदाय के एक सच्चे संत और कवि थे| तुकाराम को को लेकर लोगों का मानना है की उनके जन्म 1608 ई. में महाराष्ट्र के पुणे जिले में देहू नामक स्थान पर हुआ था हालाँकि तुकाराम के जन्म को लेकर लोगों में आज भी मतभेद है| विट्ठल स्वामी यानी भगवन विष्णु के परम भक्त संत तुकाराम (Sant Tukaram) जी शिवाजी के समकालीन संत थे उन्होंने शिवाजी के ही शासनकाल में महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन की शुरुआत की| तुकाराम ने भक्ति गीतों और कृतनों के माध्यम से समाज के लोगों को जागरूक करने का काम किया| साथ ही समाज के कुछ ऐसे रीतियों पर भी चोट किया और उसे चुनौती दी, जिस कारण तुकाराम को विद्रोही कवि के तौर पर जाना जाने लगा| महाराष्ट्र में धर्म और जाति के नाम पर चल रहे भ्रष्टाचार का पुरजोर विरोध किया और यह विरोध ही आगे चलकर 19वीं शताब्दी में महाराष्ट्र में हुए पुनर्जागरण का कारण रहा| यह एकनाथ, ज्ञानेश्वर और कबीर जैसे संतों की शिक्षा के काफी प्रभावित थे इनका कहना था की धर्म का पालन पाखंड का खंडन करने के लिए होता था| संत तुकाराम के भक्तिपदों के चार हजार से अधिक रचनाएँ मौजूद है, इन पदों को दिलीप चित्रे ने अंग्रेजी में अनुवाद किया, इस अनुवादक को साल 1904 ई. साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मनित किया गया| समाज के लोग संत तुकाराम (Sant Tukaram) को एक गृहस्त संत के रूप में देखते थे क्योंकि यह आध्यात्मिकता के साथ-साथ सांसारिक विचारों पर भी खुलकर बातें किया करते थें| पुरुष व महिलाएँ दोनो...

Sant Tukaram Jayanti: ये हैं तुकाराम जी के जीवन चरित्र से जुड़ी खास बातें

Sant Tukaram Jayanti: भक्ति परम्परा में अपना खास स्थान रखने वाले संत तुकाराम महाराज ने संसार के सभी सुख-दुखों का सामना साहस से कर अपनी वृत्ति विट्ठल चरणों में स्थिर की। संत तुकाराम महाराज का जन्म पुणे के निकट देहू गांव में हुआ था। पिता जी बोल्होबा तथा मां कनकाई के सुपुत्र तुकाराम महाराज का उपनाम अंबिले था। उनके कुल के मूल पुरुष विश्वंभर बुवा महान विट्ठल भक्त थे। उनके कुल में पंढरपुर की यात्रा करने की परम्परा थी। सावजी उनके बड़े तथा कान्होबा छोटे भाई थे। उनकी बाल्यावस्था सुख में व्यतीत हुई थी। बड़े भाई सावजी विरक्त वृत्ति के थे। इसलिए घर का पूरा उत्तरदायित्व तुकाराम महाराज पर था। पुणे के आप्पाजी गुलवे की कन्या जिजाई (आवडी) के साथ उनका विवाह हुआ था। तुकाराम महाराज को उनके सांसारिक जीवन में अनेक दुखों का सामना करना पड़ा। 17-18 वर्ष की आयु में उनके माता-पिता की मृत्यु हो गई तथा बड़े भाई विरक्ति के कारण तीर्थयात्रा पर चले गए। उन्हें भीषण अकाल का भी सामना करना पड़ा। अकाल में उनके बड़े पुत्र की मृत्यु हो गई तथा घर का पशुधन नष्ट हो गया। संत तुकाराम महाराज को उनके सद्गुरु बाबाजी चैतन्य ने स्वप्र में दृष्टांत देकर गुरुमंत्र दिया। पांडुरंग के प्रति भक्ति के कारण उनकी वृत्ति विट्ठल के चरणों में स्थिर होने लगी। आगे मोक्ष प्राप्ति की तीव्र उत्कंठा के कारण तुकाराम महाराज ने देहू के निकट एक पर्वत पर एकांत में ईश्वर साक्षात्कार के लिए निर्वाण प्रारंभ किया। वहां पंद्रह दिन एकाग्रता से अखंड नामजप करने पर उन्हें दिव्य अनुभव प्राप्त हुआ। सिद्धावस्था प्राप्त होने के पश्चात संत तुकाराम महाराज ने संसार सागर में डूबने वाले ये लोग आंखों से देखे नहीं जाते, (बुडती हे जन देखवेना डोलां) ऐसा दुख व्यक्त ...