साधु की पाठशाला

  1. अध्याय 26
  2. जाति न पूछो साधू की ~ संत कबीर दास जी के दोहे
  3. पाठ्यक्रम 21अ
  4. साधु की पाठशाला में हरियाली का संसार
  5. NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11
  6. अध्याय 26
  7. साधु की पाठशाला में हरियाली का संसार
  8. जाति न पूछो साधू की ~ संत कबीर दास जी के दोहे
  9. NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11
  10. पाठ्यक्रम 21अ


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अध्याय 26

• Everywhere • This Category • This Record • Status Updates • Topics • Images • Albums • Files • Pages • Articles • Records • Records • प्रवचन संग्रह • Records • संस्मरण • Pages • काव्य • Records • Records • संयम कीर्ति स्तम्भ • प्रतियोगिता • Records • प्रवचन • Blog Entries • Events • Videos • Musicbox • Quizzes • Products • Members • चरणानुयोग • • पञ्चम परमेष्ठी के कितने मूलगुण एवं उत्तरगुण होते हैं, इसका वर्णन इस अध्याय में है। 1. साधु परमेष्ठी किसे कहते हैं ? जो सम्यकदर्शन, सम्यकज्ञान एवं सम्यकचारित्र रूप रत्नत्रयमय मोक्षमार्ग की निरन्तर साधना करते हैं तथा समस्त आरम्भ एवं परिग्रह से रहित होते हैं। पूर्ण नग्न दिगम्बर मुद्रा के धारी होते हैं जो ज्ञान,ध्यान और तप में लीन रहते हैं, उन्हें साधु परमेष्ठी कहते हैं। 2. साधु परमेष्ठी के कितने मूलगुण होते हैं ? साधु परमेष्ठी के 28 मूलगुण होते हैं - 5 महाव्रत, 5 समिति, 5 इन्द्रिय निरोध, 6 आवश्यक और 7 शेष गुण। 3. साधु परमेष्ठी के पर्यायवाची नाम कौन-कौन से हैं ? श्रमण, संयत, वीतराग, ऋषि, मुनि, साधु और अनगार। • श्रमण - तपश्चरण करके अपनी आत्मा को श्रम व परिश्रम पहुँचाते हैं। • संयत - कषाय तथा इन्द्रियों को शांत करते हैं, इसलिए संयत कहलाते हैं। • वीतराग - वीत अर्थात् नष्ट हो गया है राग जिनका वे वीतराग कहलाते हैं। • ऋषि - सप्त ऋद्धि को प्राप्त होते हैं, इसलिए ऋषि कहलाते हैं। • मुनि - आत्मा अथवा अन्य पदार्थों का मनन करते हैं, इसलिए मुनि कहलाते हैं। • साधु - रत्नत्रय को सिद्ध करते हैं, इसलिए साधु कहलाते हैं। • अनगार - नियत स्थान में नहीं रहते हैं, इसलिए अनगार कहलाते हैं। 4. महाव्रत किसे कहते हैं एवं उसके कितने भेद हैं ? हिंसादि पाँचों पाप...

जाति न पूछो साधू की ~ संत कबीर दास जी के दोहे

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, साधू से यह कभी नहीं पूछा जाता की वह किस जाति का है उसका ज्ञान ही, उसका सम्मान करने के लिए पर्याप्त है | जिस प्रकार एक तलवार का मोल का आंकलन उसकी धार के आधार पर किया जाता है ना की उसके म्यान के आधार पर ठीक उसी प्रकार, एक साधु की जाति भी तलवार के म्यान के समान है और उसका ज्ञान तलवार की धार के समान | Tags: Hindi Dohe, Kabir Amritwani in Hindi Words, Kabir Ke Dohe With Their Meanings in Hindi Language, Sant Kabir Ke Dohe in Hindi, Search Kabir Ke Dohe Google Hindi, संत कबीर दास, कबीर के दोहे मीठी वाणी, Kabir Das in Hindi, Kabir Das Ke Dohe in Hindi, Kabir Ke Dohe in Hindi pdf, Dohe in Hindi with Meaning, Kabir Dohe on Life, Jaati Na Pucho Sadhu Ki Pooch Lijiye Gyan

पाठ्यक्रम 21अ

• Everywhere • This Category • This Record • Status Updates • Topics • Images • Albums • Files • Pages • Articles • Records • Records • प्रवचन संग्रह • Records • संस्मरण • Pages • काव्य • Records • Records • संयम कीर्ति स्तम्भ • प्रतियोगिता • Records • प्रवचन • Blog Entries • Events • Videos • Musicbox • Quizzes • Products • Members • स्वध्याय पाठ • • जो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र रूप रत्नत्रय से युक्त होते हैं, सिद्ध पद की प्राप्ति हेतु निरन्तर साधना करते हैं ऐसे दिगम्बर मुद्रा धारी महापुरुष साधु कहलाते हैं। श्रमण, यति, मुनि, अनगार, वीतराग, संयत, ऋषि, जिनरूप धारी भिक्षु इत्यादि साधु के अपर नाम है। श्रमण के २८ मूलगुण जिनेन्द्र देव ने कहे हैं - • पाँच महाव्रत • पाँच समिति • पाँच इन्द्रियों को वश में करना (पंचेन्द्रिय विजय) • छह आवश्यक • सात विशेष गुण महाव्रत हिंसादि पाँच पापों का स्थूल एवं सूक्ष्म रूप से पूर्णत: त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है। महाव्रत पाँच होते हैं - १. अहिंसा महाव्रत, २. सत्य महाव्रत, ३. अचौर्य महाव्रत, ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत, ५. अपरिग्रह महाव्रत • अहिंसा महाव्रत - आत्मा में रागद्वेष आदि विकारी भावों की उत्पति नहीं होने देना तथा षट्काय के जीवों की मन, वचन एवं काय से विराधना न करना 'अहिंसा महाव्रत' कहलाता है। • सत्य महाव्रत - रागद्वेष, मोह के कारण असत्य वचन तथा दूसरों को सन्ताप करने वाले ऐसे सत्य वचन को छोड़ना 'सत्य महाव्रत' है। • अचौर्य महाव्रत - बिना दिये हुए किसी भी प्रकार के पदार्थ एवं उपकरण का ग्रहण न करना 'अचौर्य महाव्रत' है। • ब्रह्मचर्य महाव्रत - स्त्री विषयक राग का, संपर्क का मन-वचन-काय से पूर्ण त्यागकर, ब्रह्म स्वरूप अपने आत्म तत...

साधु की पाठशाला में हरियाली का संसार

रायबरेली : मन में उमंग और उल्लास सिर्फ इस बात का था कि पर्यावरण प्रदूषण की विभीषिका से निपटने के लिए एक मजबूत उपक्रम बनाया जाए। फिर क्या था एक ध्येय ने परिवर्तन की दुनिया बदल डाली । गांव- गांव पहुंचकर चौपाल लगा पर्यावरण संतुलन के लिए कारवां जुटा लिया । यह काम किसी और ने नही बल्कि रायबरेली में पर्यावरणविद् के नाम से विख्यात संत श्याम साधु ने कर दिखाया। समाज ने इस काम को कहीं दुत्कारा भी तो कुछ ने सराहा भी। सभ्यता और संस्कृति की जननी मानी जाने वाली मां गंगा की गोद जब मैली हुई तो श्याम साधु की सेना गंगा तटों में सफाई करने को पहुंचने लगी। हालात यह बने कि डलमऊ, खरौली और गोकना गंगा घाटों में नियमित रुप से गंगा भक्त गंगा सफाई के प्रति संवेदनशील दिखने लगे । तीन दशक पहले श्याम साधु पशु सरंक्षण के लिए जब डलमऊ में एक सभा करने गए तो यहां गंगा प्रदूषण की समस्या आड़े आई। बकौल श्याम साधु उस समय गंगा सफाई को लेकर एक दर्जन लोगों की टीम तैयार की थी जो धीरे- धीरे बढ़ने लगी और हर गांव- हर गंगा तटों में शाम सुबह स्वच्छता अभियान चलने लगें। साधु के अनुसार इस समय पूरे जिले में बीस हजार से अधिक पौधरोपण का लक्ष्य तैयार किया गया है। बारिश के पहले पौधरोपण के लिए गांव- गांव भ्रमण किया जा रहा है । कहा कि जब तक लोग पर्यावरण के लिए जागरुक नही होंगे तब तक धरती में अनेकों विपदाएं आती रहेंगी। हमें पर्यावरण के लिए हर हाल में जिम्मेदारियां निभानी होंगी।

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11

• NCERT Solutions for Social Science • Class 10 Social Science in Hindi Medium • Class 9 Social Science in Hindi Medium • Class 8 Social Science in Hindi Medium • Class 7 Social Science in Hindi Medium • Class 6 Social Science in Hindi Medium • NCERT Solutions for Class 10 • NCERT Solutions for Class 9 • NCERT Solutions for Class 11 प्रश्न 1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कंहलीते थे? उत्तर बालगोबिन भगत खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ थे फिर भी वे साधुता की श्रेणी में आते थे, क्योंकि- • वे कबीर को अपना साहब मानते थे। • वे कबीर के पदों को ही गाते थे और उनके आदेशों पर चलते थे। • वे सभी से खरा व्यवहार रखते थे, दो टूक बात कहने में न कोई संकोच करते थे, न किसी से झगड़ते थे। • वे अन्य किसी की चीज़ को बिना पूछे व्यवहार में नहीं लाते थे। • वह अपनी प्रत्येक वस्तु पर साहब का अधिकार मानते थे। इस प्रकार त्याग की प्रवृति और साधुता का व्यवहार उन्हें साधु की श्रेणी में खड़ा कर देता है। प्रश्न 2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? उत्तर भगत के पुत्र की मौत से आहत पतोहू अपना शेष जीवन भगत की सेवा करते हुए बिताना चाहती थी। वह भगत को अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी। वह जानती थी कि • बुढ़ापे में भगत को कौन भोजन कराएगा? • बीमार पड़े तो कौन सहारा देगा? • बीमार पड़ने पर कौन पानी देगा? • पुत्र की मृत्यु होने से घर में अकेले कैसे रहेंगे? इस प्रकार पतोहू भगत का सहारा बनकर वहीं वैधव्य जीवन काटना चाहती थी। प्रश्न 3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त कीं? उत्तर अपने बेटे की मृत्यु पर भगत ने अपनी भावनाएँ इस प्रकार व्यक्...

अध्याय 26

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साधु की पाठशाला में हरियाली का संसार

रायबरेली : मन में उमंग और उल्लास सिर्फ इस बात का था कि पर्यावरण प्रदूषण की विभीषिका से निपटने के लिए एक मजबूत उपक्रम बनाया जाए। फिर क्या था एक ध्येय ने परिवर्तन की दुनिया बदल डाली । गांव- गांव पहुंचकर चौपाल लगा पर्यावरण संतुलन के लिए कारवां जुटा लिया । यह काम किसी और ने नही बल्कि रायबरेली में पर्यावरणविद् के नाम से विख्यात संत श्याम साधु ने कर दिखाया। समाज ने इस काम को कहीं दुत्कारा भी तो कुछ ने सराहा भी। सभ्यता और संस्कृति की जननी मानी जाने वाली मां गंगा की गोद जब मैली हुई तो श्याम साधु की सेना गंगा तटों में सफाई करने को पहुंचने लगी। हालात यह बने कि डलमऊ, खरौली और गोकना गंगा घाटों में नियमित रुप से गंगा भक्त गंगा सफाई के प्रति संवेदनशील दिखने लगे । तीन दशक पहले श्याम साधु पशु सरंक्षण के लिए जब डलमऊ में एक सभा करने गए तो यहां गंगा प्रदूषण की समस्या आड़े आई। बकौल श्याम साधु उस समय गंगा सफाई को लेकर एक दर्जन लोगों की टीम तैयार की थी जो धीरे- धीरे बढ़ने लगी और हर गांव- हर गंगा तटों में शाम सुबह स्वच्छता अभियान चलने लगें। साधु के अनुसार इस समय पूरे जिले में बीस हजार से अधिक पौधरोपण का लक्ष्य तैयार किया गया है। बारिश के पहले पौधरोपण के लिए गांव- गांव भ्रमण किया जा रहा है । कहा कि जब तक लोग पर्यावरण के लिए जागरुक नही होंगे तब तक धरती में अनेकों विपदाएं आती रहेंगी। हमें पर्यावरण के लिए हर हाल में जिम्मेदारियां निभानी होंगी।

जाति न पूछो साधू की ~ संत कबीर दास जी के दोहे

भावार्थ: कबीर दास जी कहते हैं, साधू से यह कभी नहीं पूछा जाता की वह किस जाति का है उसका ज्ञान ही, उसका सम्मान करने के लिए पर्याप्त है | जिस प्रकार एक तलवार का मोल का आंकलन उसकी धार के आधार पर किया जाता है ना की उसके म्यान के आधार पर ठीक उसी प्रकार, एक साधु की जाति भी तलवार के म्यान के समान है और उसका ज्ञान तलवार की धार के समान | Tags: Hindi Dohe, Kabir Amritwani in Hindi Words, Kabir Ke Dohe With Their Meanings in Hindi Language, Sant Kabir Ke Dohe in Hindi, Search Kabir Ke Dohe Google Hindi, संत कबीर दास, कबीर के दोहे मीठी वाणी, Kabir Das in Hindi, Kabir Das Ke Dohe in Hindi, Kabir Ke Dohe in Hindi pdf, Dohe in Hindi with Meaning, Kabir Dohe on Life, Jaati Na Pucho Sadhu Ki Pooch Lijiye Gyan

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 11

• NCERT Solutions for Social Science • Class 10 Social Science in Hindi Medium • Class 9 Social Science in Hindi Medium • Class 8 Social Science in Hindi Medium • Class 7 Social Science in Hindi Medium • Class 6 Social Science in Hindi Medium • NCERT Solutions for Class 10 • NCERT Solutions for Class 9 • NCERT Solutions for Class 11 प्रश्न 1. खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ बालगोबिन भगत अपनी किन चारित्रिक विशेषताओं के कारण साधु कंहलीते थे? उत्तर बालगोबिन भगत खेतीबारी से जुड़े गृहस्थ थे फिर भी वे साधुता की श्रेणी में आते थे, क्योंकि- • वे कबीर को अपना साहब मानते थे। • वे कबीर के पदों को ही गाते थे और उनके आदेशों पर चलते थे। • वे सभी से खरा व्यवहार रखते थे, दो टूक बात कहने में न कोई संकोच करते थे, न किसी से झगड़ते थे। • वे अन्य किसी की चीज़ को बिना पूछे व्यवहार में नहीं लाते थे। • वह अपनी प्रत्येक वस्तु पर साहब का अधिकार मानते थे। इस प्रकार त्याग की प्रवृति और साधुता का व्यवहार उन्हें साधु की श्रेणी में खड़ा कर देता है। प्रश्न 2. भगत की पुत्रवधू उन्हें अकेले क्यों नहीं छोड़ना चाहती थी? उत्तर भगत के पुत्र की मौत से आहत पतोहू अपना शेष जीवन भगत की सेवा करते हुए बिताना चाहती थी। वह भगत को अकेला छोड़ना नहीं चाहती थी। वह जानती थी कि • बुढ़ापे में भगत को कौन भोजन कराएगा? • बीमार पड़े तो कौन सहारा देगा? • बीमार पड़ने पर कौन पानी देगा? • पुत्र की मृत्यु होने से घर में अकेले कैसे रहेंगे? इस प्रकार पतोहू भगत का सहारा बनकर वहीं वैधव्य जीवन काटना चाहती थी। प्रश्न 3. भगत ने अपने बेटे की मृत्यु पर अपनी भावनाएँ किस प्रकार व्यक्त कीं? उत्तर अपने बेटे की मृत्यु पर भगत ने अपनी भावनाएँ इस प्रकार व्यक्...

पाठ्यक्रम 21अ

• Everywhere • This Category • This Record • Status Updates • Topics • Images • Albums • Files • Pages • Articles • Records • Records • प्रवचन संग्रह • Records • संस्मरण • Pages • काव्य • Records • Records • संयम कीर्ति स्तम्भ • प्रतियोगिता • Records • प्रवचन • Blog Entries • Events • Videos • Musicbox • Quizzes • Products • Members • स्वध्याय पाठ • • जो सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र रूप रत्नत्रय से युक्त होते हैं, सिद्ध पद की प्राप्ति हेतु निरन्तर साधना करते हैं ऐसे दिगम्बर मुद्रा धारी महापुरुष साधु कहलाते हैं। श्रमण, यति, मुनि, अनगार, वीतराग, संयत, ऋषि, जिनरूप धारी भिक्षु इत्यादि साधु के अपर नाम है। श्रमण के २८ मूलगुण जिनेन्द्र देव ने कहे हैं - • पाँच महाव्रत • पाँच समिति • पाँच इन्द्रियों को वश में करना (पंचेन्द्रिय विजय) • छह आवश्यक • सात विशेष गुण महाव्रत हिंसादि पाँच पापों का स्थूल एवं सूक्ष्म रूप से पूर्णत: त्याग करना महापुरुषों का महाव्रत है। महाव्रत पाँच होते हैं - १. अहिंसा महाव्रत, २. सत्य महाव्रत, ३. अचौर्य महाव्रत, ४. ब्रह्मचर्य महाव्रत, ५. अपरिग्रह महाव्रत • अहिंसा महाव्रत - आत्मा में रागद्वेष आदि विकारी भावों की उत्पति नहीं होने देना तथा षट्काय के जीवों की मन, वचन एवं काय से विराधना न करना 'अहिंसा महाव्रत' कहलाता है। • सत्य महाव्रत - रागद्वेष, मोह के कारण असत्य वचन तथा दूसरों को सन्ताप करने वाले ऐसे सत्य वचन को छोड़ना 'सत्य महाव्रत' है। • अचौर्य महाव्रत - बिना दिये हुए किसी भी प्रकार के पदार्थ एवं उपकरण का ग्रहण न करना 'अचौर्य महाव्रत' है। • ब्रह्मचर्य महाव्रत - स्त्री विषयक राग का, संपर्क का मन-वचन-काय से पूर्ण त्यागकर, ब्रह्म स्वरूप अपने आत्म तत...