साधु की पाठशाला गुरुजी का गेम

  1. गुरु तेग़ बहादुर
  2. साधु
  3. गाँव की पाठशाला (कहानी) : वेलूरि शिवराम शास्त्री
  4. आनंद सर की पाठशाला :तीसरा दिन :मिडिल गेम !
  5. संगति का प्रभाव साधु
  6. Doha of Sahjobai


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गुरु तेग़ बहादुर

गुरु तेग बहादुर ਗੁਰੂ ਤੇਗ਼ ਬਹਾਦਰ A mid-17th-century portrait of Guru Tegh Bahadur painted by Ahsan धर्म अन्य नाम हिंद दी चादर ("Shield of India") Ninth Master Ninth Nanak Srisht-di-Chadar ("Shield of Humanity") व्यक्तिगत विशिष्ठियाँ जन्म त्याग मल वैशाख कृष्ण पंचमी 21 April 1621 ( 1621-04-21) (present-day निधन 24 November 1675 ( 1675-11-25) (aged54) (present-day जीवनसाथी बच्चे पिता पद तैनाती कार्यकाल 1665–1675 पूर्वाधिकारी उत्तराधिकारी पर एक सिख धर्म ग्रंथ सम्बन्धित विषय श्री गुरु तेग बहादुर जी श्री गुरु तेग बहादुर जी विश्व मे प्रभावशील गुरू है। "धरम हेत साका जिनि कीआ सीस दीआ पर सिरड न दीआ।" —एक सिक्ख स्रोत उन्होने इस महावाक्य अनुसार गुरुजी का बलिदान न केवल धर्म पालन के लिए नहीं अपितु समस्त मानवीय सांस्कृतिक विरासत की रक्षा के लिए बलिदान दिया था। धर्म उनके लिए सांस्कृतिक मूल्यों और जीवन विधान का नाम था। इसलिए धर्म के सत्य शाश्वत मूल्यों के लिए उनका बलि चढ़ जाना वस्तुतः सांस्कृतिक विरासत और इच्छित जीवन विधान के पक्ष में एक परम साहसिक अभियान था। आततायी शासक की धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतन्त्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुरजी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी। यह गुरुजी के निर्भय आचरण, धार्मिक अडिगता और नैतिक उदारता का उच्चतम उदाहरण था। गुरुजी मानवीय धर्म एवं वैचारिक स्वतन्त्रता के लिए अपनी महान शहादत देने वाले एक क्रान्तिकारी युग पुरुष थे। सी' तक नहीं कहा। आपके अद्वितीय बलिदान के बारे में तिलक जंञू राखा प्रभ ताका॥ कीनो बडो कलू महि साका॥ साधन हेति इती जिनि करी॥ सीसु दीया परु सी न उचरी॥ धरम हेत साका जिनि कीआ॥ सीसु दीआ परु सिररु न दीआ॥ ( अनुक्रम • 1 ज...

साधु

संस्कृत शब्दों sādhu ("अच्छा आदमी") और sādhvī ("अच्छी औरत") का उल्लेख करने के लिए renouncers चुना है, जो जीवन जीने के लिए अलग से या किनारों पर समाज का ध्यान केंद्रित करने के लिए अपने स्वयं के आध्यात्मिक प्रथाओं. शब्दों से आते हैं जड़ sādh, जिसका अर्थ है "एक तक पहुँचने के लक्ष्य", "समलैंगिक", या "लाभ से अधिक शक्ति". साधु अनुष्ठान [ ] वहाँ रहे हैं 4 से 5 लाख साधुओं में भारत और आज वे व्यापक रूप से सम्मान के लिए उनकी पवित्रता. [ प्रशस्ति पत्र की जरूरत] आज, विशेष रूप से लोकप्रिय तीर्थ शहरों में, के रूप में प्रस्तुत एक साधु का मतलब हो सकता है प्राप्त आय के लिए गैर-भक्त भिखारी है। [ प्रशस्ति पत्र की जरूरत] वहाँ रहे हैं ( jataहै। एक लोकप्रिय विशेषता के साधु कर्मकाण्ड है उनके उपयोग के लिए चरस) एक फार्म के रूप में संस्कार के साथ लाइन में उनकी पूजा की साधु संप्रदायों [ ] साधुओं में संलग्न एक विस्तृत विविधता की धार्मिक प्रथाओं. कुछ अभ्यास चरम तप जबकि दूसरों पर ध्यान केंद्रित प्रार्थना, जप या ध्यान. वहाँ रहे हैं दो प्राथमिक सांप्रदायिक डिवीजनों के भीतर साधु समुदाय: के chhaavni या सशस्त्र शिविरों, और नकली duels अभी भी कर रहे हैं कभी कभी उन दोनों के बीच आयोजित है। जबकि साधुओं जाहिरा तौर पर पीछे छोड़ पारंपरिक [ प्रशस्ति पत्र की जरूरत] महिला साधुओं ( साध्वीएस) में मौजूद कई संप्रदायों. कई मामलों में, महिलाओं है कि लेने के लिए जीवन का त्याग कर रहे हैं, विधवाओं, और इन प्रकार के sadhvis अक्सर रहते हैं एकांत जीवन में तपस्वी यौगिकों. Sadhvis कर रहे हैं कभी कभी कुछ लोगों द्वारा माना जाता है के रूप में अभिव्यक्तियों या रूपों की देवी, या देवी है, और सम्मानित महसूस कर रहे हैं के रूप में इस तरह के। व...

गाँव की पाठशाला (कहानी) : वेलूरि शिवराम शास्त्री

(आन्ध्र प्रदेश की चटसालों में सब से पहले पहुँचने वाले छात्र के हाथ में गुरु उंगली से 'श्री' लिखता है। दूसरे के हाथ में 'तारा' लिखा जाता है और देर से आने वाले छात्रों के हाथ पर छड़ी पड़ती है। 'श्री' पाने वाला छात्र छड़ी मारता है। देर से आने वाले छात्र को क्रमश: अधिक छड़ियाँ लगती हैं।) (प्रभात) प्रातः दही मथते समय ज्यों ही नृत्य, गीत और वाद्य का संयोग हुआ, तिरुमलाचारी 'श्री' प्राप्त करने के लिए पाठशाला की ओर वेग से दौड़ पड़ा। रेड्डी साहब के चबूतरे पर पाठशाला लगती है। बालक तिरुमलाचारी ने चबूतरे पर चढ़कर देखा तो इधर-उधर कुछ दिखाई नहीं दिया। तब तक उजाला नहीं हुआ था। उसने दीवर भी टटोल डाली, कोई लड़का उस समय तक नहीं आया था। उसे यह जानकर बहुत संतोष हुआ कि आज की 'श्री' उसे ही मिलेगी। उसने रेड्डी साहब के बेटे को बुलाया, किंतु उत्तर नहीं मिला। वह बैठ गया। शाबाशी पाने का नशा और चढ़ गया। थोड़ी सी देर में निद्रा देवी ने उसे अपनी गोद में ले लिया। गाँव के कोने में एक घर है। इस घर का बालक जानार्दन चौंककर उठा। उसने देखा, दनिया को छोडते समय अंधकार इधर-उधर घूम-घूमकर देख रहा है। जनार्दन 'श्री' पाने के लिए उतावला हो गया। उसने जल्दी-जल्दी बस्ता उठाया, दवात में पानी डाला और पाठशाला की ओर भाग खड़ा हुआ। उसने पाठशाला में देखा, उसकी 'श्री' लूटकर कोई पहले से ही वहाँ लेटा हुआ है। जनार्दन ईर्ष्या से जलने लगा। तिरुमलाचारी को मारने के लिए जनार्दन का पाँव गज भर ऊपर उठा, किंतु वह मार न सका। लात ऊपर ही रुक गई। उसने मन-ही-मन धर्मयुद्ध करने का निश्चय किया। चुपचाप बैठकर वह दतौन करने लगा। दतौन करते समय मन में कई प्रकार के विचार उठते हैं। जनार्दन भी एक के बाद एक उठनेवाले विचारों में डूब गया। वह सोचने लगा कि तिरुम...

आनंद सर की पाठशाला :तीसरा दिन :मिडिल गेम !

by निकलेश जैन - 21/03/2017 शुरुआत अच्छी होने के बाद भी जीवन में जो लोग समय को या स्थिति को नहीं समझ पाते वो लड़खड़ा जाते है,शतरंज मैं भी ऐसा होना बेहद सामान्य घटना है ,कई बार शानदार ओपेनिंग खेल कर भी समय के दबाव में या स्थिति के गलत आकलन से मिडिल गेम में गलतियाँ कर मैच खो देना अधिकतर देखा गया है ऐसे में आनंद नें प्रशिक्षण शिविर के तीसरे दिन बच्चो को मिडिल गेम की बारीकियाँ सिखाई उन्होने अपनी समझ बेहतर करने ,स्थिति का बेहतर आकलन करने ,अपने समय को नियंत्रित करने के कई शानदार सुझाव बच्चो को दिये । इसके साथ ही तीन दिवसीय यह शानदार आयोजन सफलता पूर्वक सम्पन्न हो गया । आनंद का एक प्रशिक्षक के तौर पर देखना अपने आप में एक इतिहासिक बात है और इस कार्यक्रम से जुड़ कर चेसबेस इंडिया खुद को सम्मानित महसूस कर रहा है .. चेन्नई में कल तीन दिवसीय शतरंज प्रशिक्षण शिविर का समापन हो गया । 17 से 19 मार्च तक पूर्व विश्व चैम्पियन विश्वानाथन आनंद नें प्रतिदिन बच्चो को 4 घंटे प्रशिक्षण दिया यह पहली बार है की आनंद बच्चो को प्रशिक्षण दे रहे थे । खैर पहले दो दिन एंडगेम और ओपेनिंग पे बात के बाद आज समय था मिडिल गेम का स्थिति को समझने की क्षमता आनंद नें बताया की किसी भी स्थिति में एक प्यादे और मोहरो के बदले जब हम बोर्ड पर कुछ क्षतिपूर्ति या कहे की कुछ फायदा उठाना चाहे तो ऐसी स्थिति को समझने के लिए या अपनी समझ को बेहतर करने के लिए हमें इस तरह की पोजीशन लगातार हल करना चाहिए । इस बात को समझाने के लिए आनंद नें स्मिथ -मोरा गेंबिट का उदाहरण चुना जहां सफ़ेद कभी प्यादे तो कभी मोहरे भी कुर्बान कर देता है और बदले में काले के राजा के उपर हमला करने का प्रयास करता है इस दौरान आनंद नें बताया की कैसे इवान्स गेंबिट जैसी ओपनिं...

संगति का प्रभाव साधु

संगति का प्रभाव: साधु-संतों की संगति आम जन के लिए लाभदायी, पुण्यदायी और मोक्षदायी ‘संगत से गुण होत है संगत से गुण जात। बास-फास मिसरी सब एके भाव बिकात।’ अच्छी और बुरी संगति का प्रभाव उनके अनुसार पड़ता ही है। इसलिए जीवन में सुख प्राप्त करने के लिए हमारे पूर्वजों ने अच्छी संगति को श्रेयस्कर बताया। ऐसी संगति ही जीवन को सुवासित करती है। साधु-संतों की संगति आम जन के लिए लाभदायी, पुण्यदायी और मोक्षदायी मानी गई है। ब्रह्मा, विष्णु और महेश की तरह सृजन, पोषण एवं कल्याण के अधिष्ठाता साधु-संत ही होते हैं। समाज और राष्ट्र में संस्कार का सृजन, शुभ विचारों से व्यक्तित्व का उत्थान करना, वैचारिक पोषण और दिव्य कर्मों से जन-जन के कल्याण का काम साधुओं द्वारा होता है। जब मानव का जीवन कामना और वासना के वशीभूत होकर पतित हो जाता है तब साधु-संतों के उपदेश मानव के अंतर्मन में ज्ञान की ज्योति जलाकर और अंत:करण के अंधियारे को मिटाकर उसे भटकने से बचाते हैं। वास्तव में साधु-संतों के पास उत्कृष्ट विचारों का दिव्य स्त्रोत होता है। उनके माध्यम से वे परोपकार, सेवा, सत्कर्म, यज्ञ, पूजा, प्रवचन और सत्संग कर मानव को सही दिशा दिखाकर उसका कल्याण करते हैं। उनकी संगति जन-जन के कल्याण के लिए दिव्य कर्मों की प्रेरणा देकर पोषण व उत्प्रेरणा प्रदान करती रहती है। साधु-संतों के प्रभाव से मानव में दिव्य कर्म करने की आदत बन जाती है और निकृष्ट कर्म से व्यक्ति मुक्ति पाता है। साधु-संत पारस पत्थर की तरह अपनी संगति का लाभ देते हैं। जैसे कुरूप और मूल्यहीन लोहा पारस पत्थर की संगति से मूल्यवान स्वर्ण बन जाता है। उसी प्रकार तुच्छ व्यक्ति साधु की संगति से स्वर्ण की तरह मूल्यवान ही नहीं, अपितु महान बन जाता है। जिस तरह चंदन वन के आसपा...

Doha of Sahjobai

सहजोबाई कहती हैं कि गुरु चार प्रकार के होते हैं तथा उनकी अपनी अलग विशेषता होती है। एक गुरु पारस पत्थर के समान शिष्य को खरा सोना बनाता है, दूसरा गुरु शिष्य को दीपक के समान ज्ञान का मार्ग दिखाता है, तीसरा गुरु मलयाचल की तरह सुगंध युक्त अर्थात् गुण सम्पन्न बनाता है और चौथा गुरु भौंरे की तरह तत्त्वग्राही बनाता है। सहजो कहती हैं कि मेरे गुरुजी चरणदास सब तरह से समर्थ एवं योग्य हैं। वे सभी विशेषताओं तथा सभी विद्याओं से मंडित हैं। वे जैसा शिष्य मिलता है उसे उसी प्रकार ज्ञान सम्पन्न बनाते हैं, परंतु किसी को रीता अर्थात् अज्ञानग्रस्त नहीं छोड़ते हैं।