साकेत किस युग की रचना है

  1. साकेत अष्टम सर्ग सारांश Material for 2023 Exam
  2. मैथिलीशरण गुप्त ‘साकेत’
  3. साकेत
  4. साकेत की रचना किस काल में हुई?
  5. हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/मैथिलीशरण गुप्त
  6. Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai
  7. हिन्दी उपन्यास


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साकेत अष्टम सर्ग सारांश Material for 2023 Exam

हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में ‘दद्दा’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें ‘राष्ट्रकवि’ की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती 3 अगस्त को हर वर्ष ‘कवि दिवस‘ के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण सम्मान साकेत अष्टम सर्ग साकेत महाकाव्यमें कुल 12सर्ग हैं। जिनमे अष्टमएवं नवमसर्ग का विशेष महत्व है। अष्टम सर्ग में चित्रकूट में घटी घटनाओं का वर्णन किया है। अष्टम सर्ग में वर्णित घटना केवल इतिवृत्त नहीं है, अपितु घटनाओं का संयोजन युग की आकांक्षाओं की अभिव्यक्ति करने के उद्देश्य से इस प्रकार किया है कि वह अपनी आधुनिक चेतना के कारण प्रासंगिक हो उठा है। कवि अष्टम सर्ग का आरंभ बड़े ही आकर्षक ढंग से करता है। सीता जी चित्रकूट में अपनी पर्णकुटी के आसपास के पेड़ पौधों का सिंचन कर रही है साथ ही एक गीत गुनगुना रही है। पति के सानिध्य में रहकर जंगल में भी उन्हें राज भवन का सुख प्राप्त हो रहा है। श्री रामचंद्र सीता का विनोद, दांपत्य जीवन की मधुरता, स्नेह, त्याग की प्रेरणा देते हैं। कवि ने साकेत अष्टम सर्ग में श्री राम और सीता के संवाद में अपने युग चेतना को वर्णित किया है। श्री राम अपने वनागमन का उद्देश्य वन में द्वित वानर के सद्रश्य वन में रह रहे लोगों को आर्य तत्व प्रदान करना बताते हैं। धरती को स्वर्ग बनाने मानवीय मूल्यों की प्रतिष्ठा करने के लिए प्रभु श्री राम का अवतार हुआ है। इस प्रकार श्री राम सीता संवाद महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त साकेत अष्टम सर्ग में, • वन में जोर का कोलाहल सुन सीता का घबरान...

मैथिलीशरण गुप्त ‘साकेत’

(जन्म 3 अगस्त 1886 – 12 दिसंबर 1964) रचनाकाल: ‘साकेत’ 1931ई० में प्रकाशित कूल सर्ग 12 है। महाकाव्यों की परम्परा में ‘रामचरित चिंतामणि’ के बाद मैथिलीशरण गुप्त के ‘साकेत’ का नाम आता है। यह एक सर्गबद्ध रचना है। ‘साकेत’ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी का प्रसिद्ध काव्य है। गुप्त जी के समस्त कृतियों में साकेत को सर्वाधिक गौरवशाली स्थान प्राप्त है। साकेत हिन्दी साहित्य की अमूल्य निधि है। साकेत प्रबंधकाव्य है, अतएव उसकी शैली भी प्रबंधात्मक है। काव्य की भाषा खड़ीबोली है। इसका प्रथम प्रकाशन ई० में हुआ था। इस काव्य की कथा उर्मिला और लक्षमण के संयोग सुख से प्रारंभ होती है, और वनवास के बाद समाप्त हो जाती है। साकेत बारह सर्गों का महाकाव्य तथा वृहद प्रबंधकाव्य है। साकेत का कथानक रामकथा पर आधारित है लेकिन रामकथा का वर्णन करना कवि का उद्देश्य नहीं है। साकेत का मुख्य उद्देश्य रामकथा में उपेक्षित पात्रों को प्रकाश में लाना है। ‘साकेत’ की कथा रामायण की ही कथा है। अयोध्या का पुराना नाम ‘साकेत’ था। आचार्य नंददुलारे वाजपेयी के शब्दों में- “साकेत महाकाव्य ही नहीं यह आधुनिक हिन्दी का युग प्रवर्तक महाकाव्य है।” मैथिलीशरण गुप्त को आधुनिक काल का तुलसी स्वीकार किया गया है। गुप्त जी ने नारी को भारतीय आदर्श में ढालने की चेष्टा की है। भौतिक पक्ष में नारी ‘रति’ का प्रतिरूप है। वह विश्व की मधुर कल्पना है। अतः नारी पुरुष की अनिवार्य आवश्यकता के रूप में आई है। बौद्धिक क्षेत्र में वह उच्च है। हृदय की विशालता तथा सहानुभूति उसके आभूषण रहे हैं। अतः साकेत एक चरित्र प्रधान काव्य है। उसमे उर्मिला का चरित्र, कथा से संबंधित अन्य पात्रों के बीच विकसित होता है। आरम्भिक सर्गों में श्रीराम को वनवास का आदेश, अयोध्यावासियों...

साकेत

• दे • वा • सं साकेत साकेत का मुखपृष्ठ लेखक मैथिली शरण गुप्त देश भारत भाषा हिंदी विषय महाकाव्य प्रकाशक सत्साहित्य प्रकाशन प्रकाशन तिथि सितम्बर २५, २००५ पृष्ठ 288 साकेत साकेत राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की अमर कृति है। इसकी रचना वैदर्भी काव्यात्मक गीति शैली में हुई हैं। इसे द्विवेदी युग की सर्वश्रेष्ठ रचना माना जाता हैं। इस कृति में हिन्दुस्तान के आराध्य अयोध्याधिपति प्रभु श्रीराम के भाई लक्ष्मण की पत्नी श्रीमति उर्मिला के विरह का जो चित्रण गुप्त जी ने किया है वह अत्यधिक मार्मिक और गहरी मानवीय संवेदनाओं और भावनाओं से ओत-प्रोत है। साकेत श्रीरामकथा पर आधारित है, किन्तु इसके केन्द्र में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला है। साकेत में कवि ने उर्मिला और लक्ष्मण के दाम्पत्य जीवन के हृदयस्पर्शी प्रसंग तथा उर्मिला की विरह दशा का अत्यन्त मार्मिक चित्रण किया है, साथ ही कैकेयी के पश्चात्ताप को दर्शाकर उसके चरित्र का मनोवैज्ञानिक एवं उज्ज्वल पक्ष प्रस्तुत किया है। बाहरी कड़ियाँ [ ] • साकेत (कविता कोश)

साकेत की रचना किस काल में हुई?

1. साकेत की रचना किस काल में हुई? उत्तर - साकेत हिंदी साहित्य का महाकव्य है जिसकी रचना मैथिलीशरण गुप्त ने द्वेदी युग में की थी इसका प्रथम प्रकाशन 1931 में हुआ था। इस रचना के लिए 1932 में उन्हें मंगलाप्रसाद पारितोषिक पुरस्कार मिला था। यह एक वैदर्भी काव्यात्मक गीति शैली में लिखा गया महाकाव्य है। Saket ki rachna kis kaal me hui?

हिंदी कविता (आधुनिक काल छायावाद तक) सहायिका/मैथिलीशरण गुप्त

मैथिलीशरण गुप्त मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६–१२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें साहित्य जगत में 'दद्दा' नाम से जाना जाता है। बोधित किया जाता था। उनकी कृति भारत-भारती (1912) भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के समय में काफी प्रभावशाली सिद्ध हुई थी और और इसी कारण महात्मा गांधी ने उन्हें राष्ट्रकवि की पदवी भी दी थी। उनकी जयन्ती ३ अगस्त को हर वर्ष कवि दिवस के रूप में मनाया जाता है। सन १९५४ में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से गुप्त जी ने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। इस तरह ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य-भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण नये कवियों ने इसे ही अपनी काव्य-अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया। हिन्दी कविता के इतिहास में यह गुप्त जी का सबसे बड़ा योगदान है। घासीराम व्यास जी उनके मित्र थे। पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य के प्रथम गुण हैं, जो 'पंचवटी' से लेकर 'जयद्रथ वध', 'यशोधरा' और 'साकेत' तक में प्रतिष्ठित एवं प्रतिफलित हुए हैं। 'साकेत' उनकी रचना का सर्वोच्च शिखर है। जीवन परिचय मैथिलीशरण गुप्त का जन्म पिता सेठ रामचरण कनकने और माता काशी बाई की तीसरी संतान के रूप में उत्तर प्रदेश में झांसी के पास चिरगांव में हुआ। माता और पिता दोनों ही वैष्णव थे। विद्यालय में खेलकूद में अधिक ध्यान देने के कारण पढ़ाई अधूरी ही रह गयी। रामस्वरूप शास्त्री, दुर्गादत्त पंत, आ...

Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai

भारत की इस दिव्य भूमि में अनेक महान लेखक व कवि हुए हैं, उन्ही में से एक है जयशंकर प्रसाद। प्रसाद जी ने हिंदी भाषा में कामायनी नामक एक महाकाव्य लिखा है। कामायनी प्रसाद जी की आखरी रचना है जो 1936 ई. में प्रकाशित हुई थी। आईये जानते हैं कि Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai – कामायनी किस युग की रचना है? Kamayani Kis Yug Ki Rachna Hai? कामायनी छायावादी युग की काव्यकला का प्रतिक चिन्ह है जिसे ‘चिंता’ से लेकर ‘आनंद’ तक 15 सर्गो में बाँट कर मानव मन की अंतर्वृत्तियोंको इस प्रकार से उकेरा गया है कि इसमें मानव के जीवन प्रारंभ से अब तक के जीवन के मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक विकास का इतिहास भी स्पष्ट हो जाता है। कामायनी के 15 सर्ग निम्नलिखित हैं – 1. चिन्ता 2. आशा 3. श्रद्धा 4. काम 5. वासना 6. लज्जा 7. कर्म 8. ईर्ष्या 9. इड़ा (तर्क, बुद्धि) 10. स्वप्न 11. संघर्ष 12. निर्वेद (त्याग) 13. दर्शन 14. रहस्य 15. आनन्द। इस महाकाव्य के प्रधान पात्र ‘मनु’ और कामपुत्री कामायनी ‘श्रद्धा’हैं। जिसमे मनु मन के समान ही अस्थिरमति के हैं ओरश्रद्धा में आस्तिक्य भाव तथा बौद्धिक क्षमता के गुण देखने को मिलते हैं। कामायनी मानव को एक महान सन्देश देती है कि तप नहीं केवल जीवनसत्य के रूप में मानव जीवन को देखे।इस जीवन में प्रेम ही एकमात्र श्रेय और प्रेय है। कामायनी के विषय में डॉ.नगेन्द्रकहते हैं, कि कामायनी मानव चेतना के विकास का महाकाव्य है। कुछ और महत्वपूर्ण लेख – • • •

हिन्दी उपन्यास

हिंदी हिंदी में सामाजिक उपन्यासों का आधुनिक अर्थ में सूत्रपात मनोवैज्ञानिक उपन्यास ऐतिहासिक उपन्यासों में यथार्थवादी शैली सामाजिक यथार्थवाद की ओर मुड़ी और "दिव्या' और "झूठा सच' के लेखक भूतपूर्व क्रांतिकारी यशपाल और "बलचनमा' के लेखक नागार्जुन इस धारा के उत्तम प्रतिनिधि हैं। कहीं कहीं इनकी रचनाओं में प्रचार का आग्रह बढ़ गया है। हिंदी की नवीनतम विधा आंचलिक उपन्यासों की है, जो शुरु होती है फणीश्वरनाथ "रेणु' के "मैला आँचल' से और उसमें अब कई लेखक हाथ आजमा रहे हैं, जैसे राजेंद्र यादव, मोहन राकेश, शैलेश मटियानी, राजेंद्र अवस्थी, मनहर चौहान, शिवानी इत्यादि। हिंदी के प्रारंभिक उपन्यास [ ] हिंदी के मौलिक कथासाहित्य का आरम्भ भारतेंदु तथा उनके सहयोगियों ने राजनीतिज्ञ या समाजसुधारक के रूप में लिखा। बावू देवकीनंदन सर्वप्रथम ऐसे उपन्यासलेखक थे जिन्होंने विशुद्ध उपन्यासलेखक के रूप में लिखा। उन्होंने कहानी कहने के लिए ही कहानी कही। वह अपने युग के घात प्रतिघात से प्रभावित थे। हिंदी उपन्यास के क्षेत्र में खत्री जी ने जो परंपरा स्थापित की वह एकदम नई थी। प्रेमचंद ने भारतेंदु द्वारा स्थापित परंपरा में एक नई कड़ी जोड़ी। इसके विपरीत बाबू देवकीनंदन खत्री ने एक नई परंपरा स्थापित की। घटनाओं के आधार पर उन्होंने कहानियों की एक ऐसी शृंखला जोड़ी जो कहीं टूटती नजर नहीं आती। खत्री जी की कहानी कहने की क्षमता को हम ईशांकृत "रानी केतकी की कहानी' के साथ सरलतापूर्वक संबद्ध कर सकते हैं। वास्तव में कथासाहित्य के इतिहास में खत्री जी की "चंद्रकांता' का प्रवेश एक महत्वपूर्ण घटना है। यह हिंदी का प्रथम मौलिक उपन्यास है। खत्री जी के उपन्यास साहित्य में भारतीय संस्कृति की स्पष्ट छाप देखने को मिलती है। मर्यादा आपके उपन्य...