सामाजिक न्याय क्या है

  1. वितरणात्मक न्याय
  2. न्याय
  3. 04: सामाजिक न्याय / Rajniti Sidhant
  4. परिभाषा सामाजिक न्याय अवधारणा का कुल मूल्य। यह क्या है सामाजिक न्याय
  5. सामाजिक न्याय क्या है ?भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय। – डॉ ज्ञानचन्द जाँगिड़
  6. सामाजिक न्याय क्या है? सामाजिक न्याय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  7. सामाजिक न्याय


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वितरणात्मक न्याय

यह लेख कलकत्ता विश्वविद्यालय में एलएलबी (ऑनर्स) की पढ़ाई कर रही छात्रा Ishani Samajpati द्वारा लिखा गया है। यह लेख वितरणात्मक (डिस्ट्रीब्यूटिव) न्याय की अवधारणा के साथ-साथ इसके विभिन्न सिद्धांतों और महत्व पर एक विस्तृत अंतर्दृष्टि (इनसाइट) प्रदान करता है। इस लेख का अनुवाद Ashutosh के द्वारा किया गया है। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • • परिचय एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण समाज सभी के लिए समानता, निष्पक्षता और वस्तुओं, धन और सेवाओं के उचित वितरण की आवश्यकता को पूरा करता है ताकि समाज सुचारू रूप से चल सके। नैतिक दर्शन (मोरल फिलोसॉफी) का वह क्षेत्र जो उचित वितरण को मानता है, उसे वितरणात्मक न्याय के रूप में जाना जाता है। यह एक प्रकार का सामाजिक न्याय भी है क्योंकि यह संसाधनों तक ऐक जैसी पहुंच और समान अधिकारों और अवसरों की चिंता करता है। दूसरे शब्दों में, वितरणात्मक न्याय एक प्रकार का सामाजिक न्याय है जो न केवल वस्तुओं, धन और सेवाओं का बल्कि अधिकारों और अवसरों का भी उचित और उपयुक्त वितरण सुनिश्चित करने का प्रयास करता है। सीमित संसाधनों वाले समाज में, उचित आवंटन का मुद्दा चुनौतीपूर्ण होने के साथ-साथ कई बहसों और विवादों का मुद्दा भी है। यहाँ, वितरणात्मक न्याय एक प्रमुख नैतिक सिद्धांत के रूप में कार्य करता है जो सामाजिक वस्तुओं के प्रावधान पर लागू होता है। इसमें संसाधनों के आवंटन की निष्पक्षता और लोगों के बीच वांछित (डिजायर्ड) परिणामों का मूल्यांकन भी शामिल है। वितरणात्मक न्याय क्या है? वितरणात्मक न्याय उन मापों (मेजरमेंट्स) से संबंधित है जिनका उपयोग समाज के संसाधनों को आवंटित करने के लिए किया जाना चाहिए। यह विभिन्न ...

न्याय

अनुक्रम • 1 न्याय-विषयक राजनीतिक विचार • 2 सन्दर्भ • 3 इन्हें भी देखें • 4 बाहरी कड़ियाँ न्याय-विषयक राजनीतिक विचार [ ] यह तय करना मानव-जाति के लिए हमेशा से एक समस्या रहा है कि न्याय का ठीक-ठीक अर्थ क्या होना चाहिए और लगभग सदैव उसकी व्याख्या समय के संदर्भ में की गई है। मोटे तौर पर उसका अर्थ यह रहा है कि अच्छा क्या है इसी के अनुसार इससे संबंधित मान्यता में फेर-बदल होता रहा है। जैसा कि डी.डी. रैफल का मत है- न्याय द्विमुख है, जो एक साथ अलग-अलग चेहरे दिखलाता है। वह वैधिक भी है और नैतिक भी। उसका संबंध सामाजिक व्यवस्था से है और उसका सरोकार जितना व्यक्तिगत अधिकारों से है उतना ही समाज के अधिकारों से भी है।... वह रूढ़िवादी (अतीत की ओर अभिमुख) है, लेकिन साथ ही सुधारवादी (भविष्य की ओर अभिमुख) भी है। न्याय के अर्थ का निर्णय करने का प्रयत्न सबसे पहले यूनानियों और रोमनों ने किया (यानी जहाँ तक पाश्चात्य राजनीतिक चिंतन का संबंध है)। यूनानी दार्शनिक रोमनों तथा स्टोइकों (समबुद्धिवादियों) ने न्याय की एक किंचित् भिन्न कल्पना विकसित की। उनका मानना था कि न्याय कानूनों और प्रथाओं से निसृत नहीं होता बल्कि उसे तर्क-बुद्धि से ही प्राप्त किया जा सकता है। न्याय दैवी होगा और सबके लिए समान। समाज के कानूनों को इन कानूनों के अनुरूप होना चाहिए; तभी उनका कोई मतलब होगा, अन्यथा नहीं। मानव-निर्मित कानून वास्तव में कानून हो, इसके लिए यह आवश्यक है कि वह इस कानून और प्राकृतिक न्याय की कल्पना से मेल खाए। इस प्राकृतिक न्याय की कल्पना का विकास सर्वप्रथम स्टोइकों ने किया था और बाद में उसे रोमन कैथोलिक ईसाई पादरियों ने अपना लिया। इस न्याय की दृष्टि में सभी मनुष्य समान थे। अपनी कृति इन्स्टीच्यूट्स में जस्टिनियन तर्क-ब...

04: सामाजिक न्याय / Rajniti Sidhant

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परिभाषा सामाजिक न्याय अवधारणा का कुल मूल्य। यह क्या है सामाजिक न्याय

सामाजिक न्याय की अवधारणा उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में उभरी, जिसमें सामाजिक वस्तुओं के समान वितरण को प्राप्त करने की आवश्यकता थी। सामाजिक न्याय वाले समाज में, मानव अधिकारों का सम्मान किया जाता है और सबसे वंचित सामाजिक वर्गों के पास विकास के अवसर हैं। क्षेत्र के कई विशेषज्ञों के लिए यह माना जाता है कि सामाजिक न्याय की उत्पत्ति में पाया जाता है कि यूनानी दार्शनिक अरस्तू द्वारा उस समय स्थापित किए गए वितरणात्मक न्याय क्या थे। यह स्पष्ट करने के लिए आया था कि यह वह है जो यह सुनिश्चित करने के लिए प्रभारी था कि सभी लोग शिक्षा या भोजन जैसे आवश्यक सामानों की एक श्रृंखला का आनंद ले सकते हैं। 20 फरवरी है, जब सामाजिक न्याय का अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है, क्योंकि यह 2007 में संयुक्त राष्ट्र (संयुक्त राष्ट्र का संगठन) द्वारा स्थापित किया गया था। एक दिन यह है कि यह विश्व निकाय उन गतिविधियों के माध्यम से वकालत करता है जो वे करते हैं कि वे मानव गरिमा, विकास, पूर्ण रोजगार, लिंग समानता और सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देते हैं। सामाजिक न्याय राज्य की प्रतिबद्धता का तात्पर्य है बाजार में और समाज के अन्य तंत्रों में उत्पन्न असमानताओं की भरपाई के लिए। अधिकारियों को उन परिस्थितियों को स्वीकार करना चाहिए ताकि पूरा समाज आर्थिक दृष्टि से विकसित हो सके। इसका मतलब है, दूसरे शब्दों में, कि कुछ अरबपतियों और गरीबों का एक बड़ा जनसमूह नहीं होना चाहिए। उदाहरण के लिए, कोई सामाजिक न्याय नहीं है, तो 20% समाज प्रति माह 500, 000 से अधिक पेसोस कमाता है और 70% प्रति माह 1, 000 से कम पेसो पर रहता है। हालाँकि, विचार की विभिन्न धाराएँ हैं, जो इन असमानताओं को दूर करने के विभिन्न तरीकों का प्रस्ताव करती हैं। उदारवाद, ...

सामाजिक न्याय क्या है ?भारतीय संविधान और सामाजिक न्याय। – डॉ ज्ञानचन्द जाँगिड़

एक विचार के रूप में सामाजिक न्याय की बुनियाद सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसमें किसी के साथ सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वर्ग्रहों के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। हर किसी के पास इतने न्यूनतम संसाधन होने चाहिए कि वे ‘उत्तम जीवन’ की अपनी संकल्पना को धरती पर उतार पाएँ।• विकसित हों या विकासशील, दोनों ही तरह के देशों में राजनीतिक सिद्धांत के दायरे में सामाजिक न्याय की इस अवधारणा और उससे जुड़ी अभिव्यक्तियों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। • सामाजिक न्याय की अवधारणा सर्वप्रथम 1840 से 1848 में परिभाषित की गई थी इस बारे में अनेक विद्वानों की अलग-अलग विचार और मत्था दृष्टिकोण है • सामाजिक न्याय कोई अलग बात नहीं बल्कि समाज-निर्माण का ही अभिन्न अंग है। न्याय के बिना समाज की संकल्पना अधूरी है। मानवाधिकार तथा समानता आधार बिंदु हैं। • अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन के संविधान के अनुसार- ‘‘सामाजिक न्याय के बिना सर्वव्याप्त और अनंत शांति की प्राप्ति बेमानी है।’’ सामाजिक न्याय वैसे समाज या संगठन को स्थापित करने की अवधारणा है जो समानता तथा एकता के मूल्यों पर आधारित है,। • सामाजिक न्याय में भौतिक संसाधनों का समान रूप से वितरण सामाजिक शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक विकास सम्मिलित होता है। • सामाजिक न्याय के प्रमुख दे दो लक्ष्य होते हैं (1) अन्याय का अंत (2) व्यक्ति के सामाजिक धार्मिक आर्थिक राज।नीतिक शैक्षिक आदि स्तरों पर ए समानता का अंत करना • भारत जेसे देश में सामाजिक न्याय का नारा वंचित समूहों की राजनीतिक गोलबंदी का एक प्रमुख आधार रहा है। उदारतावादी मानकीय राजनीतिक सिद्धांत में उदारतावादी-समतावाद से आगे बढ़ते हुए सामाजिक न्याय के सिद्धांतीकरण में कई आयाम जुड़ते गये हैं। ...

सामाजिक न्याय क्या है? सामाजिक न्याय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।

सामाजिक न्याय क्या है? सामाजिक न्याय पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। सामाजिक न्याय (Social Justic इन हिंदी) सामाजिक न्याय का यह आशय है कि समाज के प्रत्येक सदस्य को जाति धर्म वंश आदि के भेदभाव के बिना समान सामाजिक अवसर प्राप्त हो, तो वहाँ सामाजिक न्याय होगा अन्यथा नहीं। सामाजिक न्याय का सामाजिक समानता तथा सामाजिक अधिकारों से गहरा सम्बन्ध है। किसी भी व्यक्ति को उपरोक्त आधारों पर किसी सुविधा से वंचित न किया जाय। सामाजिक न्याय की अवधारणा में यह बात निहित है कि सामाजिक दृष्टि से पिछड़े वर्गों के लिये राज्य द्वारा विशेष प्रावधान भी किये जा सकते हैं। सामाजिक न्याय केवल वहाँ उपलब्ध हो सकता है जहाँ एक मनुष्य का दूसरे के द्वारा शोषण न हो। सम्बंधित प्रश्न : 10 line essay,281,10 Lines in Gujarati,1,Aapka Bunty,3,Aarti Sangrah,3,Aayog,3,Agyeya,4,Akbar Birbal,1,Antar,26,anuched lekhan,50,article,17,asprishyata,1,Bahu ki Vida,1,Bengali Essays,135,Bengali Letters,20,bengali stories,12,best hindi poem,13,Bhagat ki Gat,2,Bhagwati Charan Varma,3,Bhishma Shahni,6,Bhor ka Tara,1,Biography,140,Biology,2,Boodhi Kaki,1,Buddhapath,2,Chandradhar Sharma Guleri,2,charitra chitran,94,chhand,1,Chief ki Daawat,3,Chini Feriwala,3,chitralekha,6,Chota jadugar,3,Claim Kahani,2,Countries,10,Dairy Lekhan,1,Daroga Amichand,2,Demography,10,deshbhkati poem,3,Dharmaveer Bharti,10,Dharmveer Bharti,1,Diary Lekhan,7,Do Bailon ki Katha,1,Dushyant Kumar,1,Eidgah Kahani,5,essay,727,Essay on Animals,2,festival poems,4,French Essays,1,funny hindi poem,1,funny hindi story,3,Gaban,12,Geography,1,German essays,1,Godan,8,gramma...

सामाजिक न्याय

एक विचार के रूप में सामाजिक न्याय (social justice) की बुनियाद सभी मनुष्यों को समान मानने के आग्रह पर आधारित है। इसके मुताबिक किसी के साथ सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पूर्वर्ग्रहों के आधार पर भेदभाव नहीं होना चाहिए। हर किसी के पास इतने न्यूनतम संसाधन होने चाहिए कि वे ‘उत्तम जीवन’ की अपनी संकल्पना को धरती पर उतार पाएँ। विकसित हों या विकासशील, दोनों ही तरह के देशों में राजनीतिक सिद्धांत के दायरे में सामाजिक न्याय की इस अवधारणा और उससे जुड़ी अभिव्यक्तियों का प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उसका अर्थ हमेशा सुस्पष्ट ही होता है। सिद्धांतकारों ने इस प्रत्यय का अपने-अपने तरीके से इस्तेमाल किया है। व्यावहारिक राजनीति के क्षेत्र में भी, यद्यपि एक विचार के रूप में विभिन्न धर्मों की बुनियादी शिक्षाओं में सामाजिक न्याय के विचार को देखा जा सकता है, लेकिन अधिकांश धर्म या सम्प्रदाय जिस व्यावहारिक रूप में सामने आये या बाद में जिस तरह उनका विकास हुआ, उनमें कई तरह के ऊँच-नीच और भेदभाव जुड़ते गये। समाज-विज्ञान में सामाजिक न्याय का विचार उत्तर-ज्ञानोदय काल में सामने आया और समय के साथ अधिकाधिक परिष्कृत होता गया। क्लासिकल उदारतावाद ने मनुष्यों पर से हर तरह की पुरानी रूढ़ियों और परम्पराओं की जकड़न को ख़त्म किया और उसे अपने मर्जी के हिसाब से जीवन जीने के लिए आज़ाद किया। इसके तहत हर मुनष्य को स्वतंत्रता देने और उसके साथ समानता का व्यवहार करने पर ज़ोर ज़रूर था, लेकिन ये सारी बातें औपचारिक स्वतंत्रता या समानता तक ही सिमटी हुई थीं। बाद में उन्नीसवीं सदी की शुरुआत में कई उदारतावादियों ने राज्य के हस्तक्षेप द्वारा व्यक्तियों की आर्थिक भलाई करने और उन्हें अपनी स्वतंत्रता क...