Savinay avagya andolan kya tha

  1. Savinay Awagya Andolan
  2. सविनय अवज्ञा आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?
  3. सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »
  4. सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारण क्या था?
  5. असहयोग आन्दोलन
  6. सविनय अवज्ञा आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?
  7. Savinay Awagya Andolan
  8. असहयोग आन्दोलन
  9. सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »
  10. सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »


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Savinay Awagya Andolan

Savinay Awagya Andolan | सविनय अवज्ञा आंदोलन | Civil Disobedience Movement in Hindi| दांडी मार्च-Dandi March in Hindi Table of Contents 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि • · असहयोग आन्दोलन • · स्वराज दल • · साइमन कमीशन • · कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929 2. सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत • · गाँधीजी की 11 की सूत्रीय मांगे • · दांडी मार्च • · आंदोलन के लिए तय किये गये कार्यक्रम 3. सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति 4. सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया 5. अंग्रेज सरकार की प्रतिक्रिया 6. सविनय अवज्ञा आंदोलन में ठहराव • · गाँधी- इरविन समझौता, 1931 • · कांग्रेस का कराची अधिवेशन, 1931 • · दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7. सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारंभ 8. सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्ति का निर्णय 9. सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेने का कारण 10. सविनय अवज्ञा आंदोलन की सफलताएं - उपलब्धियां 11. सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़े व्यक्तित्व 12. FAQ 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन(Savinay Awagya Andolan) की पृष्ठभूमि| सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण (a) आन्दोलन (Asahyog Andolan) गाँधी जी द्वारा 1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement) की शुरुआत की गई थी। इस आंदोलन का लक्ष्य स्वराज की प्राप्ति था। लेकिन असहयोग आन्दोलन को लगभग एक साल से ज्यादा का समय हो चूका था और अंग्रेज सरकार समझौता करने के लिए राजी नहीं थी। इस कारण गांधीजी पर राष्ट्रीय स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का दबाव पड़ने लगा था। गाँधी जी द्वारा यह आंदोलन सूरत के बारदोली तालुका से शुरू किया जाने वाला था। लेकिन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में घटित चौरी चौरा की घटनाने सविनय अवज्ञा आंदोलन को 1...

सविनय अवज्ञा आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?

Explanation : सविनय अवज्ञा आंदोलन साबरमती से शुरू हुआ था। 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 385 किमी. दूर स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की। 25 दिन की 241 मील लंबी यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी (नौसारी जिला, गुजरात) पहुंचकर गांधीजी ने सांकेतिक रूप से एक मुट्ठी नमक उठाकर नमक कानून को तोड़ा। नमक कानून की अवज्ञा के साथ ही पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रसार हो गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभाव स्वरूप इसने ब्रिटिश सरकार के प्रति जन आस्था को हिला दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन की सामाजिक जड़ों को स्थापित किया,साथ ही प्रभात फेरी और पर्चे बांटने जैसे प्रचार के नए तरीकों को ख्याति दिलाई। Tags : Explanation : मुहम्मद आदिल शाह का मकबरा बीजापुर, कर्नाटक में स्थित है। इसे गोल गुंबज या गोल गुंबद कहा जाता है। बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिल शाह के मकबरे गोल गुंबज का निर्माण फारसी वास्तुकार दाबुल के याकूत ने 1656 ई. में कराया था। गोल गुंबज • राज्य सभा में सदस्य बनने के लिए किसी भी व्यक्ति की कम से कम आयु कितनी होनी चाहिए?

सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »

गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर चलाया गया दूसरा महत्त्वपूर्ण आंदोलन नागरिक (सविनय) अवज्ञा आंदोलन था, जिसे ‘नमक सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है। सविनय अवज्ञा आंदोलन ऐसे समय में चलाया गया, जब एक ओर विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और दूसरी ओर पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सफलताओं तथा चीन में चल रहे क्रांति के प्रभाव से विश्व के विभिन्न पूँजीवादी देशों में श्रमजीवी जनता समाजवादी क्रांति की ओर और पराधीन देशों में आम जनता राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर बढ़ रही थी। आंदोलन की पृष्ठभूमि (Movement Background) 1928 में गांधीजी सक्रिय राजनीति में वापस लौट आये और दिसंबर 1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सम्मिलित हुए। इस समय कांग्रेस का पहला काम जुझारू वामपंथ से तालमेल स्थापित करना था। गांधीजी ने एक समझौता-प्रस्ताव सामने रखा, जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था, और यह कहा गया था कि यदि सरकार 31 दिसंबर 1930 तक उसे स्वीकार नहीं करती, तो कांग्रेस पूर्ण स्वाधीनता पाने के लिए एक असहयोग आंदोलन चलायेगी। किंतु जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के दबाव में इस समय-सीमा को घटाकर 1929 तक कर दिया गया। इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि कांग्रेस ने प्रतिबद्धता जाहिर की कि डोमिनियन स्टेट्स पर आधारित संविधान को यदि सरकार ने एक साल के अंत तक स्वीकार नहीं किया तो कांग्रेस न सिर्फ ‘पूर्ण स्वराज्य’ को अपना लक्ष्य घोषित करेगी, बल्कि इस लक्ष्य के लिए वह सविनय अवज्ञा आंदोलन भी चलायेगी। इस आशय का एक प्रस्ताव रखा गया, जिसका सदस्यों के बहुमत ने समर्थन किया और पूर्ण स्वराज्य के पक्ष में पेश किये गये संशोधन के प्रस्ताव स्वीकार नहीं किये गये। इसके साथ ही गांधीजी ने एक विस्तृत रचनात्मक कार्य...

सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारण क्या था?

असहयोग आन्दोलन के बाद लगभग 8 वर्ष तक देश के राजनीतिक जीवन में शिथिलता रही। काँग्रेस ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध कोई कदम नहीं उठाया, केवल स्वराज्य पार्टी ने विधायिकाओं में पहुँचकर अपनी असहयोग नीति को कार्यान्वित किया और जब जहाँ अवसर मिला संविधान में गतिरोध उत्पन्न किया। इस बीच कुछ ऐसी परिस्थितियाँ बनीं जिसने एक जन आन्दोलन- सविनय अवज्ञा आन्दोलन को जन्म दिया जो 1930 से 1934 ई. तक चला। इस आन्दोलन में पहली बार बड़ी संख्या में भारतीयों ने भाग लिया जिसमें मजदूर और किसानों से लेकर उच्चवर्गीय लोग तक थे। (1) इन आन्दोलनकारियों की विशेषता थी कि सरकार के सारे अत्याचारों के बावजूद उन्होंने अहिंसा को नहीं त्यागा जिससे भारतीयों में आत्मबल की वृद्धि हुई । (2) इस आन्दोलन में कर बंदी का भी प्रावधान था। जिससे किसानों में राजनीतिक चेतना एवं अधिकारों की माँग के लिए संघर्ष करने की क्षमता का विकास हुआ । (3) इस आन्दोलन ने काँग्रेस की कमजोरियों को भी स्पष्ट कर दिया। (4) इस आन्दोलन के माध्यम से गाँधी जी ने एक सौम्य तथा निष्क्रिय राष्ट्र को शताब्दियों की निद्रा से जगा दिया था सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारणसविनय अवज्ञा आंदोलन चलाए जाने के मुख्य कारण थे। • साइमन कमीशन के बहिष्कार आंदोलन के दौरान जनता के उत्साह को देखकर यह लगने लगा अब एक आंदोलन आवश्यक है। • सरकार ने मोतीलाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट अस्वीकार कर दी थी इससे असंतोष व्याप्त था। • चौरी-चौरा कांड (1922) को एकाएक रोकने से निराशा फैली थी, उस निराशा को दूर करने भी यह आंदोलन आवश्यक प्रतीत हो रहा था। • 1929 की आर्थिक मंदी भी एक कारण थी। • क्रांतिकारी आंदोलन को देखते हुए गांधीजी को डर था कि कहीं समस्त देश हिंसक आंदोलन की ओर न बढ़ जा...

असहयोग आन्दोलन

अनुक्रम • 1 असहयोग (नॉन कॉपरेशन)आंदोलन का आरंभ • 2 आंदोलन की तैयारी • 3 प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार • 4 आन्दोलन समाप्ति का निर्णय • 5 नेताओं के विचार • 6 इन्हेंभीदेखें • 7 सन्दर्भ असहयोग (नॉन कॉपरेशन)आंदोलन का आरंभ [ ] असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रूप से शुरू हुआ था और बाद में आंदोलन का प्रस्ताव आंदोलन की तैयारी [ ] गाँधी जी ने यह आशा की थी कि असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख समुदाय- हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर देंगे। इन आंदोलनों ने निश्चय ही एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था और ये चीजें औपनिवेशिक भारत में बिलकुल ही अभूतपूर्व थीं। विद्यार्थियों ने अंग्रेजी सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख का नुकसान हुआ था। ग्रामीण क्षेत्र भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था। पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवधि के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाउँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन विरोधी आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसानों, श्रमिकों और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथा औपनिवेशिक शासन के साथ ‘असहयोग’ के लिए उन्होंने ऊपर से प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने के बजाय अपने हितों से मेल खाते तरीकों का इस्तेमाल कर कार्यवाही की। महात्मा गाँधी के अमरीकी जीवनी-लेखक लुई फ़िशर ने लिखा है कि ‘असहयोग भारत...

सविनय अवज्ञा आंदोलन कहाँ से शुरू हुआ था?

Explanation : सविनय अवज्ञा आंदोलन साबरमती से शुरू हुआ था। 12 मार्च 1930 को साबरमती आश्रम से गाँधी जी और आश्रम के 78 अन्य सदस्यों ने दांडी, अहमदाबाद से 385 किमी. दूर स्थित भारत के पश्चिमी तट पर स्थित एक गाँव, के लिए पैदल यात्रा आरम्भ की। 25 दिन की 241 मील लंबी यात्रा के बाद 6 अप्रैल, 1930 को दांडी (नौसारी जिला, गुजरात) पहुंचकर गांधीजी ने सांकेतिक रूप से एक मुट्ठी नमक उठाकर नमक कानून को तोड़ा। नमक कानून की अवज्ञा के साथ ही पूरे देश में सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रसार हो गया। सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रभाव स्वरूप इसने ब्रिटिश सरकार के प्रति जन आस्था को हिला दिया और स्वतंत्रता आन्दोलन की सामाजिक जड़ों को स्थापित किया,साथ ही प्रभात फेरी और पर्चे बांटने जैसे प्रचार के नए तरीकों को ख्याति दिलाई। Tags : Explanation : मुहम्मद आदिल शाह का मकबरा बीजापुर, कर्नाटक में स्थित है। इसे गोल गुंबज या गोल गुंबद कहा जाता है। बीजापुर के सुल्तान मुहम्मद आदिल शाह के मकबरे गोल गुंबज का निर्माण फारसी वास्तुकार दाबुल के याकूत ने 1656 ई. में कराया था। गोल गुंबज • राज्य सभा में सदस्य बनने के लिए किसी भी व्यक्ति की कम से कम आयु कितनी होनी चाहिए?

Savinay Awagya Andolan

Savinay Awagya Andolan | सविनय अवज्ञा आंदोलन | Civil Disobedience Movement in Hindi| दांडी मार्च-Dandi March in Hindi Table of Contents 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि • · असहयोग आन्दोलन • · स्वराज दल • · साइमन कमीशन • · कांग्रेस का लाहौर अधिवेशन 1929 2. सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत • · गाँधीजी की 11 की सूत्रीय मांगे • · दांडी मार्च • · आंदोलन के लिए तय किये गये कार्यक्रम 3. सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति 4. सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति लोगों की प्रतिक्रिया 5. अंग्रेज सरकार की प्रतिक्रिया 6. सविनय अवज्ञा आंदोलन में ठहराव • · गाँधी- इरविन समझौता, 1931 • · कांग्रेस का कराची अधिवेशन, 1931 • · दूसरा गोलमेज सम्मेलन 7. सविनय अवज्ञा आंदोलन पुनः प्रारंभ 8. सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्ति का निर्णय 9. सविनय अवज्ञा आंदोलन को वापस लेने का कारण 10. सविनय अवज्ञा आंदोलन की सफलताएं - उपलब्धियां 11. सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़े व्यक्तित्व 12. FAQ 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन(Savinay Awagya Andolan) की पृष्ठभूमि| सविनय अवज्ञा आन्दोलन के कारण (a) आन्दोलन (Asahyog Andolan) गाँधी जी द्वारा 1 अगस्त 1920 को औपचारिक रूप से असहयोग आंदोलन (Non Cooperation Movement) की शुरुआत की गई थी। इस आंदोलन का लक्ष्य स्वराज की प्राप्ति था। लेकिन असहयोग आन्दोलन को लगभग एक साल से ज्यादा का समय हो चूका था और अंग्रेज सरकार समझौता करने के लिए राजी नहीं थी। इस कारण गांधीजी पर राष्ट्रीय स्तर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का दबाव पड़ने लगा था। गाँधी जी द्वारा यह आंदोलन सूरत के बारदोली तालुका से शुरू किया जाने वाला था। लेकिन संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) के गोरखपुर जिले में घटित चौरी चौरा की घटनाने सविनय अवज्ञा आंदोलन को 1...

असहयोग आन्दोलन

अनुक्रम • 1 असहयोग (नॉन कॉपरेशन)आंदोलन का आरंभ • 2 आंदोलन की तैयारी • 3 प्रिन्स ऑफ़ वेल्स का बहिष्कार • 4 आन्दोलन समाप्ति का निर्णय • 5 नेताओं के विचार • 6 इन्हेंभीदेखें • 7 सन्दर्भ असहयोग (नॉन कॉपरेशन)आंदोलन का आरंभ [ ] असहयोग आंदोलन 1 अगस्त 1920 में औपचारिक रूप से शुरू हुआ था और बाद में आंदोलन का प्रस्ताव आंदोलन की तैयारी [ ] गाँधी जी ने यह आशा की थी कि असहयोग को खिलाफ़त के साथ मिलाने से भारत के दो प्रमुख समुदाय- हिन्दू और मुसलमान मिलकर औपनिवेशिक शासन का अंत कर देंगे। इन आंदोलनों ने निश्चय ही एक लोकप्रिय कार्यवाही के बहाव को उन्मुक्त कर दिया था और ये चीजें औपनिवेशिक भारत में बिलकुल ही अभूतपूर्व थीं। विद्यार्थियों ने अंग्रेजी सरकार द्वारा चलाए जा रहे स्कूलों और कॉलेजों में जाना छोड़ दिया। वकीलों ने अदालत में जाने से मना कर दिया। कई कस्बों और नगरों में श्रमिक-वर्ग हड़ताल पर चला गया। सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 1921 में 396 हड़तालें हुई जिनमें 6 लाख श्रमिक शामिल थे और इससे 70 लाख का नुकसान हुआ था। ग्रामीण क्षेत्र भी असंतोष से आंदोलित हो रहा था। पहाड़ी जनजातियों ने वन्य कानूनों की अवहेलना कर दी। अवधि के किसानों ने कर नहीं चुकाए। कुमाउँ के किसानों ने औपनिवेशिक अधिकारियों का सामान ढोने से मना कर दिया। इन विरोधी आंदोलनों को कभी-कभी स्थानीय राष्ट्रवादी नेतृत्व की अवज्ञा करते हुए कार्यान्वित किया गया। किसानों, श्रमिकों और अन्य ने इसकी अपने ढंग से व्याख्या की तथा औपनिवेशिक शासन के साथ ‘असहयोग’ के लिए उन्होंने ऊपर से प्राप्त निर्देशों पर टिके रहने के बजाय अपने हितों से मेल खाते तरीकों का इस्तेमाल कर कार्यवाही की। महात्मा गाँधी के अमरीकी जीवनी-लेखक लुई फ़िशर ने लिखा है कि ‘असहयोग भारत...

सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »

गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर चलाया गया दूसरा महत्त्वपूर्ण आंदोलन नागरिक (सविनय) अवज्ञा आंदोलन था, जिसे ‘नमक सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है। सविनय अवज्ञा आंदोलन ऐसे समय में चलाया गया, जब एक ओर विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और दूसरी ओर पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सफलताओं तथा चीन में चल रहे क्रांति के प्रभाव से विश्व के विभिन्न पूँजीवादी देशों में श्रमजीवी जनता समाजवादी क्रांति की ओर और पराधीन देशों में आम जनता राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर बढ़ रही थी। आंदोलन की पृष्ठभूमि (Movement Background) 1928 में गांधीजी सक्रिय राजनीति में वापस लौट आये और दिसंबर 1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सम्मिलित हुए। इस समय कांग्रेस का पहला काम जुझारू वामपंथ से तालमेल स्थापित करना था। गांधीजी ने एक समझौता-प्रस्ताव सामने रखा, जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था, और यह कहा गया था कि यदि सरकार 31 दिसंबर 1930 तक उसे स्वीकार नहीं करती, तो कांग्रेस पूर्ण स्वाधीनता पाने के लिए एक असहयोग आंदोलन चलायेगी। किंतु जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के दबाव में इस समय-सीमा को घटाकर 1929 तक कर दिया गया। इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि कांग्रेस ने प्रतिबद्धता जाहिर की कि डोमिनियन स्टेट्स पर आधारित संविधान को यदि सरकार ने एक साल के अंत तक स्वीकार नहीं किया तो कांग्रेस न सिर्फ ‘पूर्ण स्वराज्य’ को अपना लक्ष्य घोषित करेगी, बल्कि इस लक्ष्य के लिए वह सविनय अवज्ञा आंदोलन भी चलायेगी। इस आशय का एक प्रस्ताव रखा गया, जिसका सदस्यों के बहुमत ने समर्थन किया और पूर्ण स्वराज्य के पक्ष में पेश किये गये संशोधन के प्रस्ताव स्वीकार नहीं किये गये। इसके साथ ही गांधीजी ने एक विस्तृत रचनात्मक कार्य...

सविनय अवज्ञा आंदोलन » भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन »

गांधीजी के नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर चलाया गया दूसरा महत्त्वपूर्ण आंदोलन नागरिक (सविनय) अवज्ञा आंदोलन था, जिसे ‘नमक सत्याग्रह’ के नाम से भी जाना जाता है। सविनय अवज्ञा आंदोलन ऐसे समय में चलाया गया, जब एक ओर विश्व में आर्थिक मंदी छाई हुई थी और दूसरी ओर पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सफलताओं तथा चीन में चल रहे क्रांति के प्रभाव से विश्व के विभिन्न पूँजीवादी देशों में श्रमजीवी जनता समाजवादी क्रांति की ओर और पराधीन देशों में आम जनता राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन की ओर बढ़ रही थी। आंदोलन की पृष्ठभूमि (Movement Background) 1928 में गांधीजी सक्रिय राजनीति में वापस लौट आये और दिसंबर 1928 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में सम्मिलित हुए। इस समय कांग्रेस का पहला काम जुझारू वामपंथ से तालमेल स्थापित करना था। गांधीजी ने एक समझौता-प्रस्ताव सामने रखा, जिसमें नेहरू रिपोर्ट को स्वीकार किया गया था, और यह कहा गया था कि यदि सरकार 31 दिसंबर 1930 तक उसे स्वीकार नहीं करती, तो कांग्रेस पूर्ण स्वाधीनता पाने के लिए एक असहयोग आंदोलन चलायेगी। किंतु जवाहरलाल नेहरू और सुभाषचंद्र बोस के दबाव में इस समय-सीमा को घटाकर 1929 तक कर दिया गया। इसमें महत्त्वपूर्ण बात यह हुई कि कांग्रेस ने प्रतिबद्धता जाहिर की कि डोमिनियन स्टेट्स पर आधारित संविधान को यदि सरकार ने एक साल के अंत तक स्वीकार नहीं किया तो कांग्रेस न सिर्फ ‘पूर्ण स्वराज्य’ को अपना लक्ष्य घोषित करेगी, बल्कि इस लक्ष्य के लिए वह सविनय अवज्ञा आंदोलन भी चलायेगी। इस आशय का एक प्रस्ताव रखा गया, जिसका सदस्यों के बहुमत ने समर्थन किया और पूर्ण स्वराज्य के पक्ष में पेश किये गये संशोधन के प्रस्ताव स्वीकार नहीं किये गये। इसके साथ ही गांधीजी ने एक विस्तृत रचनात्मक कार्य...