शंकर भगवान की अमृतवाणी

  1. भगवान शंकर संबंधी 10 महत्वपूर्ण सवाल
  2. शंकर भगवान किस जाति के थे
  3. सम्पूर्ण शिव अमृतवाणी
  4. शिव अमृतवाणी
  5. संध्या आरती
  6. श्री कृष्ण के साथ भगवान शंकर का घोर युद्ध और बाणासुर
  7. शिव


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भगवान शंकर संबंधी 10 महत्वपूर्ण सवाल

भगवान शंकर को आदि और अनादि माना गया है। हिन्दू धर्म में वे सर्वोच्च हैं। उनका किसी भी तरह से जाने और अनजाने अपमान करने वाले का जीवन सही नहीं रहता। हम यहां बात करेंगे त्रिदेवों में (ब्रह्मा, विष्णु औरमहेश) से एक महेश की जो माता पार्वती के पति हैं जिन्हें शंकर कहा जाता है और जिनको भक्तलोग शिव भी कहते हैं। इसका जवाब है कि भगवान शिव के संपूर्ण चरित्र को पढ़ना जरूरी है। उनके जीवन को लीला क्यों कहा जाता है? लीला उसे कहते हैं जिसमें उन्हें सबकुछ मालूम रहता है फिर भी वे अनजान बनकर जीवन के इस खेल को सामान्य मानव की तरह खेलते हैं। लीला का अर्थ नाटक या कहानी नहीं। एक ऐसा घटनाक्रम जिसकी रचना स्वयं प्रभु ही करते हैं और फिर उसमें इन्वॉल्व होते हैं। वे अपने भविष्य के घटनाक्रमों को खुद ही संचालित करते हैं। दरअसल, भविष्य में होने वाली घटनाकों को अपने तरह से घटाने की कला ही लीला है। यदि भगवान शिव ऐसा नहीं करते तो आज गणेश प्रथम पूज्जनीय देव न होते और न उनकी गणना देवों में होती। उत्तर : त्रिदेवों में से एक महेष को ही भगवान शिव या शंकर भी कहा जाता है। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। कहते हैं कि उन्हीं में से एक महाकाल हैं। दूसरे तारा, तीसरे बाल भुवनेश, चौथे षोडश श्रीविद्येश, पांचवें भैरव, छठें छिन्नमस्तक, सातवें द्यूमवान, आठवें बगलामुख, नौवें मातंग, दसवें कमल। अन्य जगह पर रुद्रों के नाम:- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शम्भू, चण्ड तथा भव का उल्लेख मिलता है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विलय के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान ...

शंकर भगवान किस जाति के थे

शंकर भगवान किस जाति के थे | शंकर भगवान की 5 बेटियों के नाम –आज के समय में भगवान शिव के लाखों भक्त इस दुनिया में मौजूद हैं. इसके पीछे की वजह यह है की भगवान शिव उनके भक्तो को कभी भी निराश नहीं करते हैं. जो भी भक्त भगवान शिव के चरणों में जाता है और उनकी पूजा अर्चना करता है. उनकी सभी मनोकामना भगवान शिव जल्दी पूर्ण करते हैं. भगवान शिव सभी भक्तो की मनोकामना जल्दी पूर्ण करते है. इसलिए उन्हें भोलेनाथ के नाम से भी जाना जाता हैं. इसके अलावा शंकर भगवान को महादेव के नाम से भी जाना जाता हैं. अर्थात यह देवो के भी देव माने जाते हैं. लेकिन कुछ लोग इंटरनेट पर शंकर भगवान की जाति के बारे में पूछते हैं. की उनकी जाति क्या थी. जो भी इस सवाल का जवाब चाहते हैं. वह हमारा यह आर्टिकल अंत तक जरुर पढ़े. दोस्तों आज हम आपको इस आर्टिकल के माध्यम से बताने वाले है की शंकर भगवान किस जाति के थे तथा शंकर भगवान की 5 बेटियों के नाम क्या हैं. इसके अलावा इस टॉपिक जुडी अन्य और भी जानकारी प्रदान करने वाले हैं. वह तो स्वयं इस दुनिया का संचालन करने वाले हैं. धर्म जाति आदि तो मनुष्य ने इस धरती पर जन्म लेकर बनाई हैं. लेकिन भगवान के धाम में ऐसा किसी भी प्रकार का जाति वाद नहीं हैं. इसलिए भगवान शंकर की भी किसी भी प्रकार की कोई जाति नही हैं. वह तो स्वयं देवो के देव महादेव हैं. परिवार में शांति के उपाय जाने – सम्पूर्ण जानकारी शंकर भगवान की 5 बेटियों के नाम हम सभी लोग शिव परिवार के बारे में तो जानते ही हैं. की शिव परिवार में भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान गणेश और कार्तिकेय नामक दो पुत्र हैं. लेकिन शंकर भगवान की पांच पुत्रियां भी थी. जिसके के बारे में काफी कम लोग जानते हैं. शंकर भगवान की 5 बेटियों के नाम हमने नीचे बताए हैं. • ...

सम्पूर्ण शिव अमृतवाणी

॥ भाग १ ॥ कल्पतरु पुन्यातामा, प्रेम सुधा शिव नाम हितकारक संजीवनी, शिव चिंतन अविराम पतिक पावन जैसे मधुर, शिव रसन के घोलक भक्ति के हंसा ही चुगे, मोती ये अनमोल जैसे तनिक सुहागा, सोने को चमकाए शिव सुमिरन से आत्मा, अद्भुत निखरी जाये जैसे चन्दन वृक्ष को, डसते नहीं है नाग शिव भक्तो के चोले को, कभी लगे न दाग ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! दयानिधि भूतेश्वर, शिव है चतुर सुजान कण कण भीतर है बसे, नील कंठ भगवान चंद्रचूड के त्रिनेत्र, उमा पति विश्वास शरणागत के ये सदा, काटे सकल क्लेश शिव द्वारे प्रपंच का, चल नहीं सकता खेल आग और पानी का, जैसे होता नहीं है मेल भय भंजन नटराज है, डमरू वाले नाथ शिव का वंदन जो करे, शिव है उनके साथ ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! लाखो अश्वमेध हो, सौ गंगा स्नान इनसे उत्तम है कही, शिव चरणों का ध्यान अलख निरंजन नाद से, उपजे आत्मज्ञान भटके को रास्ता मिले, मुश्किल हो आसान अमर गुणों की खान है, चित शुद्धि शिव जाप सत्संगति में बैठ कर, करलो पश्चाताप लिंगेश्वर के मनन से, सिद्ध हो जाते काज नमः शिवाय रटता जा, शिव रखेंगे लाज ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! शिव चरणों को छूने से, तन मन पावन होये शिव के रूप अनूप की, समता करे न कोई महाबलि महादेव है, महाप्रभु महाकाल असुराणखण्डन भक्त की, पीड़ा हरे तत्काल सर्व व्यापी शिव भोला, धर्म रूप सुख काज अमर अनंता भगवंता, जग के पालन हार शिव करता संसार के, शिव सृष्टि के मूल रोम रोम शिव रमने दो, शिव न जईओ भूल ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! ॐ नमः शिवाय, ॐ नमः शिवाय! ॥ भाग २ – ३ ॥ शिव अमृत की पावन धारा, धो देती हर कष्ट हमारा शिव का काज सदा सुखदायी, शिव के बिन है कौन सहायी शिव की निसदिन कीजो भक्ति, देंगे शिव हर भय से मुक्ति माथे धरो शिव नाम क...

शिव अमृतवाणी

Table of Contents • • • • • • शिव अमृतवाणी | Shiv Amritwani Lyrics कल्पतरु पुन्यातामा, प्रेम सुधा शिव नाम हितकारक संजीवनी, शिव चिंतन अविराम पतिक पावन जैसे मधुर, शिव रसन के घोलक भक्ति के हंसा ही चुगे, मोती ए अनमोल जैसे तनिक सुहागा, सोने को चमकाए शिव सुमिरन से आत्मा, अध्भुत निखरी जाए जैसे चन्दन वृक्ष को, दस्ते नहीं है नाग शिव भक्तो के चोले को, कभी लगे न दाग ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय दया निधि भूतेश्वर, शिव है चतुर सुजान कण कण भीतर है, बसे नील कंठ भगवान चंद्र चूड के त्रिनेत्र, उमा पति विश्वास शरणागत के ए सदा, काटे सकल क्लेश शिव द्वारे प्रपंच का, चल नहीं सकता खेल आग और पानी का, जैसे होता नहीं है मेल भय भंजन नटराज है, डमरू वाले नाथ शिव का वंधन जो करे, शिव है उनके साथ || ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय लाखो अश्वमेध हो, सोउ गंगा स्नान इनसे उत्तम है कही, शिव चरणों का ध्यान अलख निरंजन नाद से, उपजे आत्मा ज्ञान भटके को रास्ता मिले, मुश्किल हो आसान अमर गुणों की खान है, चित शुद्धि शिव जाप सत्संगती में बैठ कर, करलो पश्चाताप लिंगेश्वर के मनन से, सिद्ध हो जाते काज नमः शिवाय रटता जा, शिव रखेंगे लाज ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय शिव चरणों को छूने से, तन मन पवन होए शिव के रूप अनूप की, समता करे न कोई महा बलि महा देव है, महा प्रभु महा काल असुराणखण्डन भक्त की, पीड़ा हरे तत्काल शर्वा व्यापी शिव भोला, धर्म रूप सुख काज अमर अनंता भगवंता, जग के पालन हार शिव करता संसार के, शिव सृष्टि के मूल रोम रोम शिव रमने दो, शिव न जईओ भूल || ओम नमः शिवाय, ओम नमः शिवाय शिव अमृत की पावन धारा धो देती है हर कष्ट हमारा शिव का कार्य सदा सदा सुखदाई शिव के बिन है कौन सहाई शिव की निशदिन निशदिन की जो भक्ति देंगे शिव हर भय से मुक्ति ...

संध्या आरती

संध्या आरती | Sandhya Aarti संध्या आरती ।।अथ मंगलाचरण।। गरीब नमो नमो सत् पुरूष कुं, नमस्कार गुरु कीन्ही। सुरनर मुनिजन साधवा, संतों सर्वस दीन्ही।1। सतगुरु साहिब संत सब डण्डौतम् प्रणाम। आगे पीछै मध्य हुए, तिन कुं जा कुरबान।2। नराकार निरविषं, काल जाल भय भंजनं। निर्लेपं निज निर्गुणं, अकल अनूप बेसुन्न धुनं।3। सोहं सुरति समापतं, सकल समाना निरति लै। उजल हिरंबर हरदमं बे परवाह अथाह है, वार पार नहीं मध्यतं।4। गरीब जो सुमिरत सिद्ध होई, गण नायक गलताना। करो अनुग्रह सोई, पारस पद प्रवाना।5। आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा। चरण कवंल ल्यो लाऊँ, आदि अंत करहूं सेवा।6। परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई। अबिगत गुणह अतीतं, सतपुरुष निर्मोही।7। Page 51 जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी। तन मन अरपुं शीशं, भक्ति मुक्ति भण्डारी।8। सुर नर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा। शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा।9। इन्द कुबेर सरीखा, वरुण धर्मराय ध्यावैं। सुमरथ जीवन जीका, मन इच्छा फल पावैं।10। तेतीस कोटि अधारा, ध्यावैं सहंस अठासी। उतरैं भवजल पारा, कटि हैं यम की फांसी।11। आरती (1) पहली आरती हरि दरबारे, तेजपुंज जहां प्राण उधारे।1। पाती पंच पौहप कर पूजा, देव निंरजन और न दूजा।2। खण्ड खण्ड में आरती गाजै, सकलमयी हरि जोति विराजै।3। शान्ति सरोवर मंजन कीजै, जत की धोति तन पर लीजै।4। ग्यान अंगोछा मैल न राखै, धर्म जनेऊ सतमुख भाषै।5। दया भाव तिलक मस्तक दीजै, प्रेम भक्ति का अचमन लीजै।6। जो नर ऐसी कार कमावै, कंठी माला सहज समावे।7। गायत्री सो जो गिनती खोवै, तर्पण सो जो तमक न होवैं।8। Page 52 संध्या सो जो सन्धि पिछानै, मन पसरे कुं घट में आनै।9। सो संध्या हमरे मन मानी, कहैं कबीर सुनो रे ज्ञानी।10। (2) ऐसी आरती त्...

श्री कृष्ण के साथ भगवान शंकर का घोर युद्ध और बाणासुर

Shiv Puran Katha – शिव पुराण कथा Shiv Puran ki Katha – दानवीर दैत्यराज बलि के सौ प्रतापी पुत्र थे, उनमें सबसे बड़ा बाणासुर था। बाणासुर ने भगवान शंकर की बड़ी कठिन तपस्या की। शंकर जी ने उसके तप से प्रसन्न होकर उसे सहस्त्र बाहु तथा अपार बल दे दिया। उसके सहस्त्र बाहु और अपार बल के भय से कोई भी उससे युद्ध नहीं करता था। इसी कारण से बाणासुर अति अहंकारी हो गया। बहुत काल व्यतीत हो जाने के पश्चात् भी जब उससे किसी ने युद्ध नहीं किया तो वह एक दिन शंकर भगवान के पास आकर बोला, “हे चराचर जगत के ईश्वर! मुझे युद्ध करने की प्रबल इच्छा हो रही है किन्तु कोई भी मुझसे युद्ध नहीं करता। अतः कृपा करके आप ही मुझसे युद्ध करिये।” उसकी अहंकारपूर्ण बात को सुन कर भगवान शंकर को क्रोध आया किन्तु बाणासुर उनका परमभक्त था इसलिये अपने क्रोध का शमन कर उन्होंने कहा, “रे मूर्ख! तुझसे युद्ध करके तेरे अहंकार को चूर-चूर करने वाला उत्पन्न हो चुका है। जब तेरे महल की ध्वजा गिर जावे तभी समझ लेना कि तेरा शत्रु आ चुका है।” बाणासुर की उषा नाम की एक कन्या थी। एक बार उषा ने स्वप्न में श्रीकृष्ण के पौत्र तथा प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध को देखा और उसपर मोहित हो गई। उसने अपने स्वप्न की बात अपनी सखी चित्रलेखा को बताया। चित्रलेखा ने अपने योगबल से पहले प्रद्युम्न का चित्र बनाया और उषा को दिखा कर पूछा कि “क्या इसी को तुमने स्वप्न में देखा था”? तब उषा बोली कि इसकी सूरत तो उससे मिलती है किन्तु ये वो नहीं है।” तब चित्रलेखा ने श्रीकृष्ण का चित्र बनाया। अनिरुद्ध श्रीकृष्ण का प्रतिरूप ही था। श्रीकृष्ण की तस्वीर देख कर उषा ने कहा –“हाँ ये वही है किन्तु पता नहीं क्यों इसे देख कर मेरे मन में पितृ तुल्य भाव आ रहे हैं।” ये सुनकर चित्रलेखा सम...

शिव

इस लेख में अतिरिक्त संदर्भ अथवा स्रोतों की आवश्यकता है। कृपया विश्वसनीय स्रोत जोड़कर (2017) स्रोत खोजें: · · · · शिव शांति, विनाश, समय, योग, ध्यान, नृत्य, प्रलय और वैराग्य के देवता, सृष्टि के संहारकर्ता और जगतपिता अन्य नाम नीलकंठ, महादेव, शंकर, पशुपतिनाथ, नटराज, संबंध निवासस्थान ॐ नमः शिवाय अस्त्र जीवनसाथी भाई-बहन संतान सवारी शंकर या महादेव आरण्य संस्कृति जो आगे चल कर सनातन शिव धर्म नाम से जाने जाते है में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। शंकर जी को भगवान शिव को रूद्र नाम से जाना जाता है रुद्र का अर्थ है रुत् दूर करने वाला अर्थात दुखों को हरने वाला अतः भगवान शिव का स्वरूप कल्याण कारक है। रुद्राष्टाध्यायी के पांचवे अध्याय में भगवान शिव के अनेक रूप वर्णित हैं रूद्र देवता को स्थावर जंगम सर्व पदार्थ रूप, सर्व जाति मनुष्य देव पशु वनस्पति रूप मानकर के सर्व अंतर्यामी भाव एवं सर्वोत्तम भाव सिद्ध किया गया है इस भाव का ज्ञाता होकर साधक अद्वैतनिष्ठ बनता है। संदर्भ रुद्राष्टाध्यायी पृष्ठ संख्या 10 अनुक्रम • 1 शिव स्वरूप • 1.1 शिव स्वरूप सूर्य • 1.1.1 शिव पुराण • 1.2 शिव स्वरूप शंकर जी • 1.3 शिवलिंग • 2 शिव के नंदी गण • 3 शिव की अष्टमूर्ति • 4 व्यक्तित्व • 5 पूजन • 6 अनेक नाम • 7 शिवरात्रि • 8 महाशिवरात्रि • 9 शिव महापुराण • 10 कैलाश मानसरोवर • 11 इन्हें भी देखें • 12 सन्दर्भ • 13 बाहरी कड़ियाँ शिव स्वरूप शिव स्वरूप सूर्य जिस प्रकार इस ब्रह्माण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत, उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे। शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्...