शाहू माता की कहानी

  1. कोल्हापूर के शाहू
  2. भादवा की चौथ माता की कहानी
  3. कार्तिक माह में नितनेम बाबा की सीता माता की कथा
  4. Sampda Mata Ki Kahani
  5. शीतला माता की कहानी शीतला सप्तमी की


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कोल्हापूर के शाहू

कोल्हापूर के राजर्षि शाहू महाराज का चित्र (1912) शासनावधि 1894–1922 1894 पूर्ववर्ती उत्तरवर्ती जन्म 26 जून 1874 लक्ष्मी विलास पॅलेस,कसबा बावडा,कोल्हापूर,महाराष्ट्र निधन मई 6, 1922 ( 1922-05-06) (उम्र47) खेतवडी,मुंबई भोंसले पिता जयसिंगराव (आबासाहेब)घाटगे माता राधाबाई शाहू (जिन्हें राजर्षि शाहू महाराज, छत्रपति शाहू महाराज या शाहू महाराज भी कहा जाता है) मराठा के भोंसले राजवंश के (26 जून, 1874 - 6 मई, 1922) राजा (शासनकाल 1894 - 1900) और कोल्हापुर की भारतीय रियासतों के महाराजा (1900-1922) थे। उनका जन्म कोल्हापुर जिले के कागल गाँव के घाटगे शाही मराठा परिवार में 26 जून, 1874 में जयश्रीराव और राधाबाई के रूप में यशवन्तराव घाटगे के रूप में हुआ था। जयसिंहराव घाटगे गाँव के प्रमुख थे, जबकि उनकी पत्नी राधाभाई मुधोल के शाही परिवार से सम्मानित थीं। नौजवान यशवन्तराव ने अपनी माँ को खो दिया जब वह केवल तीन थे। 10 साल की उम्र तक उनकी शिक्षा उनके पिता द्वारा पर्यवेक्षित की गई थी। उस वर्ष, उन्हें कोल्हापुर की रियासत राज्य के राजा शिवाजी चतुर्थ की विधवा रानी आनन्दबीई ने अपनाया था। यद्यपि उस समय के गोद लेने के नियमों ने निर्धारित किया कि बच्चे को अपने नस में भोसले राजवंश का खून होना चाहिए, यशवन्तराव की पारिवारिक पृष्ठभूमि ने एक अनोखा मामला प्रस्तुत किया। उन्होंने राजकुमार कॉलेज, राजकोट में अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी की और भारतीय सिविल सेवा के प्रतिनिधि सर स्टुअर्ट फ्रेज़र से प्रशासनिक मामलों के सबक ले लिए। 1894 में उम्र के आने के बाद वह सिंहासन पर चढ़ गए, इससे पहले ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त एक राजसी परिषद ने राज्य मामलों का ख्याल रखा। अपने प्रवेश के दौरान यशवन्तराव का नाम छत्रपति शाहूजी महाराज रख...

भादवा की चौथ माता की कहानी

हेलो दोस्तों नमस्कार बढ़ती हुई कहानी के क्रम में आज हम आपको भादवा की चौथ माता की कहानी के विषय मे बताएंगे। यह कहानी बहुत रोचक है और बहुचर्चित भी। आप इस कहानी को अंत तक जरूर पढ़िएगा। एक बार एक शहर में एक व्यापारी रहा करता था। व्यापारी बहुत ही आलसी किस्मका इंसान था। उसके पास उसके दादा परदादा की कमाई हुई दौलत उसको विरासत में मिली थी, जिसके कारण वही व्यापारी कोई काम धंधा नहीं किया करता था और उन्हीं पैसों से अय्याशी किया करता था और अपने सारे मजे किया करता था। व्यापारी का एक बेटा था, जो व्यापारी की तरह बहुत आलसी और मक्कार था। व्यापारी ने अपने बेटे का विवाह एक अच्छी सुंदर और सुशील कन्या से किया था। विवाह होने के बाद भी व्यापारी का बेटा कुछ नहीं करता था। वह घर पर आलसी बना पड़ा रहता था। व्यापारी और उसका बेटा दोनों घर पर ही रहते थे और विरासत में मिली दौलत को उड़ाया करते थे और अपनी जिंदगी के मजे लिया करते थे और अपनी जिंदगी जी रहे थे। व्यापारी के बेटे की पत्नी जब भी बाहर कूड़ा फेंकने के लिए जाती थी, तब उससे उसके पड़ोस में रहने वाली महिला उससे पूछती थी कि,” आज तुमने खाने में क्या खाया है? अपनी पड़ोसी महिला की बात सुनकर व्यापारी के बेटे की पत्नी उस महिला से कहती है कि,” मैंने आज खाने में ठंडी ठंडी और बासी रोटी खाई है और वह यह बोलकर अंदर आ गई । जब भी व्यापारी के लड़के की पत्नी कूड़ा फेंकने बाहर आती तो, पड़ोस में रहने वाली महिला उससे रोज यही पूछने लगी और व्यापारी की बहू बस यही जवाब देती थी की ठंडी ठंडी और बासी रोटी खाई है। एक दिन अचानक से जब व्यापारी के लड़के की पत्नी कूड़ा फेंकने के लिए बाहर आई, तब पड़ोस में रहने वाली महिला ने जब उससे पूछा कि आज तुमने खाने में क्या खाया है? तब लड़के की प...

कार्तिक माह में नितनेम बाबा की सीता माता की कथा

राम आये लक्ष्मण आये देश के पुजारी आये नितनेम का नेम लाये आओ राम बैठो राम माखन मिसरी खाओ राम, दूध बताशा पियो राम सूत के पलका पोटो राम, शाल दुशाला ओढ़ो राम राम संवारें सब के काम खाली घर भंडार भरेंगे सब का बेड़ा पार करेंगे जय श्री राम जय-जय राम यह कहानी सीता माता कहती थी और श्रीराम इसे सुना करते थे. एक दिन श्रीराम भगवान को किसी काम के लिए बाहर जाना पड़ गया तो सीता माता कहने लगी कि भगवान मेरा तो बारह वर्ष का नितनेम है. अब आप बाहर जाएंगे तो मैं अपनी कहानी किसे सुनाऊँगी? श्रीराम ने कहा कि तुम कुएँ की पाल पर जाकर बैठ जाना और वहाँ जो औरतें पानी भरने आएंगी उन्हें अपनी कहानी सुना देना. सीता माता कुएँ की पाल पर जाकर बैठ जाती हैं. एक स्त्री आई उसने रेशम की जरी की साड़ी पहन रखी थी और सोने का घड़ा ले रखा था. सीता माता उसे देख कहती हैं कि बहन मेरा बारह वर्ष का नितनेम सुन लो. पर वह स्त्री बोली कि मैं तुम्हारा नितनेम सुनूँगी तो मुझे घर जाने में देर हो जाएगी और मेरी सास मुझसे लड़ेगी. उसने कहानी नहीं सुनी और चली गई. उसकी रेशम जरी की साड़ी फट गई, सोने का घड़ा मिट्टी के घड़े में बदल गया. सास ने देखा तो पूछा कि ये किस का दोष अपने सिर लेकर आ गई है? बहू ने कहा कि कुएँ पर एक औरत बैठी थी उसने कहानी सुनने के लिए कहा लेकिन मैने सुनी नही जिसका यह फल मिला. बहू की बात सुनकर अगले दिन वही साड़ी और घड़ा लेकर सास कुएँ की पाल पर गई. सास को वहीँ माता सीता बैठी मिली तो माता सीता ने कहा कि बहन मेरी कहानी सुन ले. सास बोली कि एक बार छोड़, मैं तो चार बार कहानी सुन लूँगी. राम आये लक्ष्मण आये देश के पुजारी आये नितनेम का नेम लाये आओ राम बैठो राम तपी रसोई जियो राम, माखन मिसरी खाओ राम दूध बताशा पियो राम,सूत के पलका मोठ...

Sampda Mata Ki Kahani

Sampda Mata Ki Kahani Sampda Mata Ki Kahani- एक नल राजा था। उसकी रानी का नाम दमयंती था। एक दिन उनके महल में एक बुढ़िया आई जो सांपदा माता का डोरा बांट रही थी और कहानी सुना रही थी। दासी वहां जाकर देखती है और वापस आकर रानी दमयंतीको बताती है कि एक बुढ़िया सांपदा माता का डोरा बांट रही है। बुढ़िया बता रही थी कि यह डोरा कच्चे सूत की 16 तार की 16 गांठ देकर हल्दी में रंग कर पूजा करके 16 नये जौ के आखे हाथ में लेकर सांपदा माता की कहानी सुनकर गले में बांधने से धन और लक्ष्मी घर में आती है। तब रानी ने भी डोरे की पूजा करके अपने हार में बांध लिया जब राजा बाहर से आया और डोरा देखकर बोला की रानी आज हार में क्या बांध रखा है तो रानी बोली की शारदा माता का डोरा बांध रखा है इससे धन लक्ष्मी बढ़ती है तो राजा बोला कि अपने पास तो बहुत दिन है और यह कहकर राजा ने डोरा फेंक दिया। उसी दिन रात को सपने में सांपदा Sampda Mata Ki Kahani रानी ने तीतर भून लिए जब दोनों खाने बैठे तो तीतर उड़ गए। इसके बाद राजा अपनी रानी के साथ बहन के घर पहुंचे बहन ने उन्हें पुराने घर में ठहरा दिया राजा रानी बहन के घर में गए तो वहां बहन के सोने का बच्छी बच्छेड़ा पड़ा था।वह जमीन खा गई तो राजा रानी से बोला यहां से चलो नहीं तो अपने सिर चोरी लग जाएगी और वहां से दोनों चले गए। वहां से राजा अपने मित्र के घर गया तो उसने उन्हें पुराने महल में ठहरा दिया वहां पर गए तो वहां एक करोड़ का हार खूंटी पर टंगा हुआ था वहां पर मोर बना था वह हार निगल गया।तब राजा से रानी ने कहा कि यहां से चलो नहीं तो अपने सिर हार की चोरी लग जाएगी रानी ने कहा कि किसी के घर जाने के बजाय जंगल में लकड़ी काटकर बेच कर हम अपना पेट भर लेंगे। और पढ़ें:- • • वे एक सुखे बगीचे में प...

शीतला माता की कहानी शीतला सप्तमी की

शीतला माता की कहानी Shitla mata ki Kahani शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी की पूजा करने के बाद सुनी जाती है। इससे पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है। शीतला सप्तमी या अष्टमी की पूजा करने की विधि जानने के लिए शीतला माता की कहानी एक गाँव में बूढ़ी कुम्हारी रहती थी , जो बासोड़ा के दिन माता की पूजा करती थी और ठंडी रोटी खाती थी। उस गाँव में और ना तो कोई माता की पूजा करता था और ना ही कोई ठंडी रोटी खाता था। ( sheetla mata ki kahani ….) यह कहानी यू ट्यूब पर सुनने के लिए क्लिक करें – शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया गांव में आई और घर-घर जाकर कहने लगी – ” कोई मेरी जुएँ निकाल दो , कोई मेरी जुएँ निकाल दो “ हर घर से यही आवाज आई – ” बाद में आना , अभी हम खाना बनाने में व्यस्त हैं “ कुम्हारी को खाना नही बनाना था क्योंकि वह तो उस दिन ठंडा खाना खाती थी। ( sheetla mata ki kahani ….) कुम्हारी बोली –” आओ माई , मैं तुम्हारी जुएँ निकाल देती हूँ ” कुम्हारी ने बुढ़िया की सब जुएँ निकाल दी। बुढ़िया असल में शीतला माता थी। उन्होंने खुश होकर बूढ़ी माँ को साक्षात दर्शन दिए और आशीवार्द दिया। उसी दिन किसी कारण से पूरे गांव में आग लग गयी लेकिन कुम्हारी का घर सकुशल रहा।( sheetla mata ki kahani ….) पूछने पर बूढ़ी माँ ने इसे शीतला माता की कृपा बताया। उसने कहा – ” बासोड़ा के दिन शीतला माता की पूजा करने और ठंडा खाना खाने से शीतला माता की कृपा से मेरा घर बच गया ” राजा को यह पता लगने पर उसने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि – ~ सभी शीतला माता की पूजा करें , ~ बासोड़े की पूजा करें , ~ एक दिन पहले खाना बनाकर रख लें , दूसरे दिन पूजा करके यह ठंडा खाना खाएँ। तभी से सारा गांव वैसा ही करने लगा। ( sheetla mata ki katha …. ) हे शीतला...