शीशम के पत्ते के फायदे धातु रोग में

  1. शीशम के पेड़ से आपको मिलती है इन 5 गंभीर समस्याओं से राहत
  2. धात (धातु) रोग क्या है, कारण, लक्षण, इलाज, और घरेलू उपाय
  3. प्रमेह रोग के कारण ,लक्षण ,इलाज ,दवा और उपचार
  4. शीशम के पत्ते इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? आइये जानें
  5. दिल की बिमारी में पीपल के पत्ते के फायदे
  6. शीशम परिचय और फायदे
  7. ANUSHKABNT: शीशम
  8. क्या शीशम के पत्ते से बवासीर का इलाज हो सकता है?


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शीशम के पेड़ से आपको मिलती है इन 5 गंभीर समस्याओं से राहत

2) साइटिका के इलाज के लिए • इसकी मोटी छाल का 10 किलो पाउडर लें और 23।5 लीटर पानी में उबाल लें। • जब तक पानी 1।8 हिस्सा ना हो जाए, तब तक उबाल लें। • एक कपड़े के माध्यम से मिश्रण को छान लें और इसे मोटा होने तक फिर पकाएं। • इस मोटे तरल को घी या दूध के साथ यानी 10 ग्राम मात्रा में एक दिन में तीन बार लें। • 21 दिनों के लिए खुराक जारी रखें।

धात (धातु) रोग क्या है, कारण, लक्षण, इलाज, और घरेलू उपाय

Spermatorrhea In Hindi धातु रोग या धात रोग पुरुष यौन सम्बंधित समस्या है जो आकस्मिक और अनैच्छिक वीर्यपात का कारण बनती है इस समस्या से पीड़ित व्यक्तियों में स्खलन (वीर्यपात) अक्सर यौन फिल्मों / दृश्यों / को देखने, विपरीत लिंग के व्यक्ति को छूने या बात करने के दौरान भी होता है। यह समस्या व्यक्तियों को मानसिक विकारों और यौन सम्बन्धी आदतों के कारण अधिक प्रभावित करती है। यह समस्या विषय सूची 1. 2. 3. 4. 5. 6. 7. 8. • • • • • • • 9. 10. धात रोग या धातु रोग क्या है – What is Spermatorrhea in Hindi धात (धातु) रोग (Spermatorrhea) पुरुषों से सम्बंधित एक यौन समस्या है, जो पीड़ित व्यक्ति में बिना किसी यौन गतिविधि के सामान्य और आकस्मिक रूप से स्खलन (वीर्यपात) का कारण बनती है। यह समस्या पीड़ित व्यक्तियों में, उनकी इच्छा के बिना आकस्मिक वीर्यपात (ejaculation) को बढ़ावा देती है। कभी-कभी नींद के दौरान वीर्यपात होता है, जिसे धात (धातु) रोग (Spermatorrhea) के दौरान मरीज सपने देखे बिना भी वीर्य के बहाव का अनुभव कर सकता है, या दिन के दौरान सचेत (जागरूक) रहते हुए भी इस समस्या का अनुभव कर सकता है। यह समस्या एक बीमारी नहीं है बल्कि वास्तव में एक लक्षण है; जो एक कमजोर तंत्रिका तंत्र की ओर संकेत करती है। उत्सर्जन के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए यह एक तंत्रिका विकार है। यदि कोई मरीज एक सप्ताह में दो या तीन बार धात (धातु) रोग (Spermatorrhea) का अनुभव करता है तो उसे डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए। क्योंकि यह व्यक्ति में अनेक समस्याओं का कारण बन सकती है। (और पढ़े – धातु (धात) रोग के लक्षण – Spermatorrhea Symptoms in Hindi धातु रोग या धात रोग (Spermatorrhea) के लक्षण विभिन्न प्रकार के है और दृश्यमान भी हैं...

प्रमेह रोग के कारण ,लक्षण ,इलाज ,दवा और उपचार

5 प्रमेह रोग की दवा : prameha rog ki dawa प्रमेह रोग क्या होता है ? : prameh rog kya hota hai यह रोग वात-पित्त और कफ के दूषित हो जाने के फलस्वरूप उत्पन्न होता है । इसमें मूत्र के साथ एक प्रकार का गाढ़ा-पतला विभिन्न रंगों का स्राव निकलता है । इस रोग की यदि उचित चिकित्सा व्यवस्था न की जाये तो रोगी कुछ ही समय में हड्डियों का ढाँचा बन जाता है । प्रमेह रोग के लक्षण : prameh rog ke lakshan समस्त प्रकार के प्रमेह रोगों में पेशाब अधिक होना तथा पेशाब गन्दला होना रोग का प्रमुख लक्षण होता है। पेशाब के साथ या पेशाब त्याग के पूर्व अथवा बाद में वीर्यस्राव होना ही प्रमेह है। प्रमेह रोग के कारण : prameh rog ke karan • अधिक दही, मिर्च-मसाला, कडुवा तेल, खटाई इत्यादि तीक्ष्ण और अम्ल पदार्थ खाने, • घी, मलाई, रबड़ी इत्यादि मिठाइयां तथा बादाम, काजू आदि स्निग्ध और पौष्टिक पदार्थों का प्रयोग करते हुए शारीरिक परिश्रम न करने, • दिन-रात सोते रहने, • सदैव विषय-वासना (Sexul) कार्यों और विचारों में लिप्त रहने से प्रमेह रोग की उत्पत्ति होती है। प्रमेह हो जाने से वीर्य क्षीण होकर पुंसत्व (मर्दाना) शक्ति का ह्रास हो जाता है फलस्वरूप शरीर दिन प्रतिदिन क्षीण होता जाता है । जब तक शुद्ध और सात्विक विचारों के साथ पूर्ण रूप से ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए प्रमेह या अन्य वीर्य विकारों का उपचार नहीं किया जाता, तब तक ये विकार नष्ट नहीं हो सकते । ये कटु सत्य है । खान-पान के नियम-संयम सहित विचारों की शुद्धता, प्रमेह आदि विकारों को दूर (नष्ट) करने हेतु अनिवार्य शर्त है। आइये जाने प्रमेह का आयुर्वेदिक इलाज ,prameh rog ka gharelu upchar प्रमेह रोग का घरेलू उपचार : prameh rog ka ilaj 1). आंवला – 24 ग्राम करेलों के रस के ...

शीशम के पत्ते इतने महत्वपूर्ण क्यों हैं? आइये जानें

शीशम के पेड़ का उपयोग लोकप्रिय रूप से फर्नीचर और भवन बनाने के लिए किया जाता है। भारत में, यह मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश और पंजाब जैसे उत्तरी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसके उपयोग की एक विस्तृत श्रृंखला है जिसमें स्वास्थ्य लाभ शामिल हैं। भारत स्व-विकसित शीशम के पौधे की मातृभूमि है। दिखने में भले ही यह देखने में साधारण है, लेकिन इसके बहुत सारे उपयोग और उपचारात्मक गुण हैं। शीशम की लकड़ी की पहचान कैसे होती है? शीशम की लकड़ी सुनहरे भूरे रंग से लेकर शाहबलूत रंग या गहरे भूरे रंग के विभिन्न रंगों में आती है। इसकी समृद्ध और चमकदार उपस्थिति के कारण इसका व्यापक रूप से फर्नीचर बनाने के लिए उपयोग किया जाता है। लकड़ी की एक रैखिक सतह होती है और यह मजबूत और सख्त भी होती है। इसमें प्राकृतिक चमक और मध्यम से खुरदरी बनावट है।आइए अब जानते हैं शीशम के पत्ते, बीज, और तेल से जुड़े कई बेहतरीन फायदों के बारे में। Table of Contents • • • • • • • • • • • • • शीशम के पत्ते के फायदे शीशम का पत्ता के शीर्ष लाभ निम्नलिखित हैं। 1. एनीमिया का इलाज करता है एनीमिया शरीर में आयरन और खून की कमी के कारण होता है। उपचार के लिए 10 से 15 मिलीलीटर शीशम के पत्तों का रस लेना चाहिए। सबसे अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए इसे सुबह सबसे पहले लेना चाहिए। 2. मूत्र रोग को ठीक करता है बार-बार पेशाब आना, पेशाब में दर्द होना, पेशाब करते समय जलन होना जैसे मूत्र संबंधी रोग शीशम के पत्तों से ठीक हो जाते हैं। शीशम के पत्तों का 20 से 40 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर दिन में तीन बार सेवन करें। आपको मूत्र संबंधी सभी समस्याओं से काफी राहत मिलेगी। साथ ही इसके पत्तों का 10 से 20 मिलीलीटर काढ़ा बनाकर सेवन करने से भी फ़ायदा हो...

दिल की बिमारी में पीपल के पत्ते के फायदे

विशेषकर पीपल की ​पत्तियों के प्रयोग से 90 प्रतिशत तक हृदय के ब्लाकेज (Blockage) समाप्त हो जाते हैं। हिंदू धर्म में पीपल के वृक्ष को पूज्यनीय माना जाता है व इसकी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि पीपल में के पेड़ में देवताओं की तरह ही कई प्रकार के गुण पाये जाते हैं जो हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। इतना ही नहीं पृथ्वी में मिलने वाले सम्पूर्ण पेड़ों में पीपल का पेड़ ही एक पेड़ है जो ऑक्सिजन को साफ करने वाला अहम वृक्ष माना जाता है। यह पूरे दिन अर्थात पूरे 24 घंटे हमें ऑक्सिजन देता है जबकि शेष वृक्ष रात के समय कार्बन डाईऑक्साइड छोड़ते हैं। इसी कारण इसे जीवनदायनी वृक्ष भी कहा जाता है। इसका सम्पूर्ण भाग अर्थात तना, जड़, छाल, बीज एवं पत्तियां किसी न किसी तरह उपयोग में लाया जाता है। विशेषकर इसकी पत्तियों का उपयोग हृदय से सम्बन्धित बिमारियों के किया जाता है। पीपल के पत्तों से हमें कई स्वास्थ्य लाभ होत हैं इसका कारण है इसमें पाये जाने वाले पोषक तत्व व पदार्थ जैसे टैनिक एसिड, एस्पार्टिक एसिड, फ्लैवोनोइड्स, स्टेरॉयड, विटामिन, मेथियोनीन, ग्लिसिन इत्यादि में परिपूर्ण होता है। पीपल के पत्‍तों में ग्‍लूकोज, फेनोलिक, मेनोस आदि पोषक तत्वों के साथ ही सकी छाल में विटामिन K और फाइटोस्‍टेरोलिन (phaetosteroline) की मात्रा पाई जाती है। इनमें उच्च मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट व खनिज पदार्थ भी पाये जाते हैं। भी होते है। इसी कारण से पीपल के पेड़ को औषधी से युक्त पेड़ कहा जाता है। आइये इस लेख में हम पीपल के पत्तों से हमारे हृदय के लिए होने वाले सम्पूर्ण लाभों के बारे में जानते हैं। Table of Contents • • • • • • • • • • • पीपल के पत्ते के फायदे दिल के रोगों के लिए – Benefits of Peepal Leaf for...

शीशम परिचय और फायदे

शीशम परिचय और फायदे Sheesham ke fayde. सभी जगह पर आसानी से मिलने वाला शीशम त्वचा रोगों, कुष्ठ रोगों, धातु रोगों, पीरियड्स के रोगों, प्रमेह, जोड़ों के दर्द, उल्टी के रोगों में अत्यंत प्रभावकारी है. शीशम क्षत्रिय जाती का वृक्ष है, यह वनस्पति जगत के फेबसी कुल का सदस्य है. शीशम सर्वत्र पाया जाने वाला एक मध्यम श्रेणी का सदा हरित वृक्ष है. असम, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, राजस्थान सहित सम्पूर्ण भारत में बहुतायत से मिलने वाला छायादार वृक्ष है, ये प्राय सड़कों के किनारे लगा हुआ मिल जाता है. यह छोटा किन्तु सघन, चिकनी, चमकीली पत्तियों वाला एक स्वच्छ दिखाई देने वाला वृक्ष है. पत्तियां, संलंग्न किनारे एवम नुकीले शीर्श्वाली, जालीय विन्यास युक्त होती हैं. फूल छोटे छोटे एवम गुच्छों में विकसित होती हैं. फल चपटे, फलीदार 2-4 बीजों वाले होते हैं. इस वृक्ष की लकड़ी अत्यंत मजबूत होती है, इसलिए फर्नीचर, इमारत आदि में इसका अधिक प्रयोग किया जाता है. शीशम के विभिन्न नाम. हिंदी – शीशम या सीसम, असमी – शीशु, बंगला – सिस्सू, गुजरती – शीशम, पंजाबी – शीशम, टाहली, कन्नड़ – बिराड़ी, शिस्सू, कोंकणी – बिरोंडी, मराठी – शिसावी, मलयालम – विटी, उड़िया – सिसु, अंग्रेजी – इंडियन रेड वुड, लेटिन – Dalberagia sissoo. शीशम के औषधीय महत्व. त्वचा रोगों में. त्वचा में उत्पन्न होने वाले कृमि अथवा एक्जिमा के उपचारार्थ सम्बंधित स्थान पर शीशम के बीजों का तेल लगाना हितकारी है. इसके लगाने से 2 सप्ताह के भीतर ही रोग से निवृति होती है. इसका तेल बीजों के संपीडन से प्राप्त किया जा सकता है. कुष्ठ रोग उपचारार्थ कुष्ठ रोग में शीशम कि लकड़ी के सत्व से स्नान करने से प्रयाप्त लाभ की प्राप्ति होती है अथवा सम्बंधित व्यक्ति को इसकी कुछ ताज़...

ANUSHKABNT: शीशम

शीशम घरों में ईमारती लकड़ी के लिए विख्यात है। शीशम वृक्ष भारत, नेपाल, लंका, इत्यादि जगहों पर बहु मात्रा में मिलते हैं.....शीशम पेड़ की लम्बाई लगभग 80 से 100 फीट के आसपास होती है...... शीशम को शीशु, शिनसपा, विटी, शीशम, शिसु, अगुरू, बिराडी, शिशावी, प्रारादु आदि नामों से जाना जाता है...... शीशम ईमारती लकड़ी के साथ-साथ एक अमूल्य आयुर्वेदिक ओषधि है त्वचा रोगों, कुष्ठ रोगों, धातु रोगों, पीरियड्स के रोगों, प्रमेह, जोड़ों के दर्द, उल्टी के रोगों में अत्यंत प्रभावकारी है..... .....धातु रोग में शीशम के पत्ते 8-10 ले कर इसमें 25 ग्राम मिश्री के साथ पीसकर प्रातः काल शौच जाने के 15 मिनट बाद साधारण जल से नियमित सेवन करने से धातु रोग में लाभ होता है....आओ #शीशम लगाये • ► (104) • ► (4) • ► (11) • ► (4) • ► (1) • ► (24) • ► (17) • ► (9) • ► (16) • ► (18) • ► (533) • ► (7) • ► (18) • ► (12) • ► (16) • ► (31) • ► (19) • ► (15) • ► (32) • ► (66) • ► (60) • ► (130) • ► (127) • ▼ (838) • ► (175) • ► (463) • ► (114) • ► (44) • ► (31) • ► (5) • ▼ (1) • • ► (5) • ► (1) • ► (1) • ► (1) • ► (1) • ► (6) • ► (1) • ► (1) • ► (4) • ► (11) • ► (9) • ► (2) • ► (29) • ► (5) • ► (24)

क्या शीशम के पत्ते से बवासीर का इलाज हो सकता है?

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