शिव स्तुति

  1. श्री शङ्कराचार्य कृतं
  2. नटराज स्तुति
  3. Shiv Stuti with Meaning
  4. Shiva Stuti
  5. शिव स्तुति: मंत्र, श्लोक व अर्थसहित, Shiv Stuti Lyrics In Hindi, Shiv Ji Ki Stuti


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श्री शङ्कराचार्य कृतं

Read in English साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ईशगिरीश नरेश परेश महेश बिलेशय भूषण भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ उमया दिव्य सुमङ्गल विग्रह यालिङ्गित वामाङ्ग विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ऊरी कुरु मामज्ञमनाथं दूरी कुरु मे दुरितं भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ ॠषिवर मानस हंस चराचर जनन स्थिति लय कारण भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ अन्तः करण विशुद्धिं भक्तिं च त्वयि सतीं प्रदेहि विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ करुणा वरुणा लय मयिदास उदासस्तवोचितो न हि भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ जय कैलास निवास प्रमाथ गणाधीश भू सुरार्चित भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ झनुतक झङ्किणु झनुतत्किट तक शब्दैर्नटसि महानट भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ धर्मस्थापन दक्ष त्र्यक्ष गुरो दक्ष यज्ञशिक्षक भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ बलमारोग्यं चायुस्त्वद्गुण रुचितं चिरं प्रदेहि विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ शर्व देव सर्वोत्तम सर्वद दुर्वृत्त गर्वहरण विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ भगवन् भर्ग भयापह भूत पते भूतिभूषिताङ्ग विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ षड्रिपु षडूर्मि षड्विकार हर सन्मुख षण्मुख जनक विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ सत्यं ज्ञानमनन्तं ब्रह्मे त्येल्लक्षण लक्षित भो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ हाऽहाऽहूऽहू मुख सुरगायक गीता पदान पद्य विभो। साम्ब सदाशिव शम्भो शङ्कर शरणं मे तव चरणयुगम्॥ श्री शङ्कराचार्य कृतं!

शिवसूक्तिः

जय हे शिव दर्पकदाहक दैत्यविघातक भूतपते दशमुखनायक शायकदायक कालभयानक भक्तगते। त्रिभुवनकारकधारकमारक संसृतिकारक धीरमते हरिगुणगायक ताण्डवनायक मोक्षविधायक योगरते॥१॥ हे मदनदाहक ! दैत्यकदन! भूतनाथ ! हे दशशीश-स्वामिन् ! हे [अर्जुनको] धनुष देनेवाले! हे कालको भी भयभीत करनेवाले! हे भक्तोंके आश्रय! हे त्रिलोकीकी उत्पत्ति, स्थिति और संहार करनेवाले! हे जगद्रचयिता धीरधी महादेव! हे हरिगुणगायक ताण्डवनायक मोक्षप्रदायक योगपरायण शंकर! आपकी जय हो! जय हो॥ १॥ शिशिरकिरणधारी शैलबालाविहारी भवजलनिधितारी योगिहृत्पद्मचारी। शमनजभयहारी प्रेतभूमिप्रचारी कृपयतु मयि देव: कोऽपि संहारकारी॥२॥ जो चन्द्रकलाको धारण किये हैं, पार्वती-रमण हैं, संसारसमुद्रसे पार करनेवाले हैं, योगियोंके हृदयरूप कमलमें विहार करनेवाले हैं, मृत्यु-भयको दूर करनेवाले तथा श्मशानभूमिमें विचरनेवाले हैं, वे कोई सृष्टिसंहारकारी देव मुझपर कृपा करें॥ २॥ shiva slokas in sanskrit pdf यः शङ्करोऽपि प्रणयं करोति स्थाणुस्तथा यः परपूरुषोऽपि। उमागृहीतोऽप्यनुमागृहीतः पायादपायात्स हिनः स्वयम्भूः॥३॥ जो मुक्तिदाता होकर भी प्रेम करता है, जो परमपुरुष होनेपर भी स्थाणु (निष्क्रिय) है, जो उमासे गृहीत होकर भी अनुमा (अनुमान या उमाभिन्न) से गृहीत होता है, वही स्वयम्भू शंकर हमारी मृत्युसे रक्षा करें॥३॥ मूर्द्धप्रोद्भासिगङ्गेक्षणगिरितनयादुःखनिःश्वासपात- स्फायन्मालिन्यरेखाछविरिव गरलं राजते यस्य कण्ठे। सोऽयं कारुण्यसिन्धुः सुरवरमुनिभिः स्तूयमानो वरेण्यो नित्यं पायादपायात्सततशिवकरः शङ्करः किङ्करं माम्॥४॥ मस्तकपर सुशोभित हुई गङ्गाजीको देखकर पार्वतीजीका शोकोच्छ्वास पड़नेके कारण बढ़े हुए मालिन्यकी श्यामल रेखाके समान मानो जिनके कण्ठमें गरल-चिह्न शोभित हो रहा है,बड़े-बड़े दे...

नटराज स्तुति

Table of Contents • • • • • • • • नटराज शिव नटराज दो शब्दों के समावेश से बना है – नट (अर्थात कला) और राज । इस स्वरूप में शिव कालाओं के आधार हैं। नटराज का स्वरूप न सिर्फ उनके संपूर्ण काल एवं स्थान को ही दर्शाता है; अपितु यह भी बिना किसी संशय स्थापित करता है कि ब्रह्माण्ड में स्थित सारा जीवन, उनकी गति कंपन तथा ब्रह्माण्ड से परे शून्य की नि:शब्दता सभी कुछ एक शिव में ही निहित है। शिव का तांडव नृत्य प्रसिद्ध है। शिव के तांडव के दो स्वरूप हैं। पहला उनके क्रोध का परिचायक, प्रलयकारी रौद्र तांडव तथा दूसरा आनंद प्रदान करने वाला आनंद तांडव पर ज्यादातर लोग तांडव शब्द को शिव के क्रोध का पर्याय ही मानते हैं। रौद्र तांडव करने वाले शिव रुद्र कहे जाते हैं, आनंद तांडव करने वाले शिव नटराज के रूप में जाने जाते है । नटराज नटराज स्तुति के लाभ • नटराज स्तुति • नटराज स्तुति का पाठ बहुत चमत्कारी पाठ है • नटराज शब्द “नट “राज” शब्द से मिलकर बना है • नटराज स्तुति का पाठ बहुत ही लाभकारी पाठ है • यह पाठ करने से मन को बहुत शांति मिलती है • इस पाठ को करने शिवजी जी बहुत प्रसन होते है • यह पाठ करने से हर मनोकामना पूर्ण होती है • इस पाठ को नटराज जी की प्रतिमा के सामने बैठकर करना चाहिए • यह पाठ सोमवार के दिन करना शुभ मन जाता है यह भी जरूर पढ़े:- • • • • • • FAQ’S

Shiv Stuti with Meaning

दोहा श्री गिरिजापति वंदिकर, चरण मध्य शिरनाय । कहत अयोध्यादास तुम, मोपर होहु सहाय ।। कविता नन्दी की सवारी नाग अंगीकार धारी नित, संत सुखकारी नीलकंठ त्रिपुरारी हैं । गले मुण्डमाला धारी, सिर सोहे जटाधारी वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी हैं ।। दानी देख भारी, शेष शारदा पुकारी । काशीपति मदनारी, कर त्रिशूल चक्रधारी हैं ।। कला उजियारी, लख देव सो निहारी । यश गावें वेदचारी, सो हमारी रखवारी है ।। शम्भु बेठे हैं विशाला, भंग पीवें सो निराला । नित रहे मतवाला, अहि अंग पै चढ़ाये हैं ।। गले सोहे मुंडमाला, कर डमरू विशाला । अरु ओढ़े मृगछाला, भस्म अंग में लगाये हैं ।। संग सुरभि सुतशाला, करें भक्त प्रतिपाला । मृत्यु हरें अकाला, शीश जाता को बढ़ाये हैं ।। कहैं रामलाला, करो मोहि तुम निहाला अब । गिरिजापति कसाला, जैसे काम को जलाये हैं ।। मारा है जलंधर और त्रिपुर को संहारा जिन । जारा है काम जाके शीश गंगधारा है ।। धारा है अपार जासु , महिमा है तीनों लोक । भाल सौहे इन्दु , जाके सुषमा की सारा है ।। सारा अहिबात सब , खायो हलाहल जानि । भक्तन के अधारा जाहि वेदन उचारा है ।। चारों हैं भाग जाके द्वार हैं गिरीश कन्या । कहत अयोध्या सोई मालिक हमारा है ।। अष्ट गुरु ज्ञानी , जाके मुख वेदबानी । सोहै भवन में भवानी सुख संपत्ति लहा करें ।। मुण्डन की माला जाके चंद्रमा ललाट सोहे । दासन के दास जाके दारिद दहा करें ।। चारों द्वार बन्दी, जेक द्वारपाल नंदी । कहत कवी आनन्दी, नर नाहक हा हा करें।। जगत रिसाय, यमराज की कहा बसाय । शंकर सहाय, तो भयंकर कहा करें ।। सवैया गौर शरीर में गौर विराजत। मौर जटा सिर सोहत जाके ।। नागन को उपवीत लसै । अयोध्या कहे शशि भल में ताके ।। दान करै पल में फल चारि । और टारत अंक लिखे विधनाके ।। शंकर नाम नि: ...

Shiva Stuti

ॐ नमः शिवाय श्री गिरिजापति बंदि कर, चरण मध्य शिर नाय। कहत गीता राधे तुम, मो पर हो सहाय ॥ नंदी की सवारी, नाग अंगीकार धारी नित। संत सुखकारी, नीलकण्ठ त्रिपुरारी हैं।। गले मुण्डमाला धारी, सर सोहै जटाधारी। वाम अंग में बिहारी, गिरिजा सुतवारी हैं ॥ दानी बड़े भारी, शेष शारदा पुकारी। काशीपति मदनारी, कर शूल च्रकधारी हैं ॥ कला उजियारी, लख देव सो निहारी । यश गावें वेदचारी, सो हमारी रखवारी हैं ॥ शम्भू बैठे हैं विशाला, पीवें भंग का प्याला । नित रहे मतवाला, अहि अंग पै चढ़ाये हैं ॥ गले सोहे मुण्डमाला, कर डमरू विशाला । अरु ओढ़ मृगछाला, भस्म अंग में लगाए हैं ॥ संग सुरभी सूत माला, करै भक्त प्रति पला । मृत्यु हरते हैं अकाला, सीस जटा को बढ़ाए हैं ॥ कहे रामलाला, करो मोहि तुम निहाला । गिरिजापति आला, जैसे काम को जलाए हैं ॥ मारा है जलन्धर औ त्रिपुर को संहारा । जिन जारा है काम जाके, सीस गंग धारा है ॥ धारा है अपार जासु, महिमा तीनों लोक । भाल सोहैं चन्द्र, जाकी सुषमा के सारा है ॥ सारा अहिबात सब, खायो हालाहल जानि । जगत के आधार, जाहि वेदन उचारा है ॥ चारा हैं भाँग जाके, दूार हैं गिरीश कन्या । कहत गीता सोई, मालिक हमारा है ॥ अष्ट गुरु ज्ञानी जाके, मुख वेद बानी शुभ । भवन में भवानी सुख सम्पत्ति लहा करें ॥ मुण्डन की माला जाके चन्द्रमा ललाट सोहै । दासन के दस जाके दारिद दहा करै ॥ चारों दूार बन्दी जाके दूार पाल नंदी । कहत कवि अनंदी, नाहक नर हाहा करें ॥ जगत रिसाय यमराज, की कहा बसाय । शंकर सहाय तो, भयंकर कहा करैं ॥

शिव स्तुति: मंत्र, श्लोक व अर्थसहित, Shiv Stuti Lyrics In Hindi, Shiv Ji Ki Stuti

भगवान शिव का नाम लेने मात्र से ही वे अपने भक्तों पर कृपा बरसाते हैं। इसलिए आज हम आपके साथ शिव स्तुति (Shiv Stuti) का पाठ करेंगे। वैसे तो शिव स्तुति कई तरह की उपलब्ध (Shiv Stuti In Hindi) है जिसमें से आदि गुरु शंकराचार्य जी द्वारा रचित शिव स्तुति एक है तो एक तुलसीदास जी द्वारा लिखी शिव रुद्राष्टक। इसके अलावा कई अन्य शिव स्तुतियों में प्रसिद्ध गायिका अनुराधा पौडवाल द्वारा गायी गयी शिव स्तुति इत्यादि भी प्रचलित है। इसमें सबसे अधिक प्रचलित शिव जी की स्तुति (Shiv Ji Ki Stuti) शंकराचार्य जी की है। इस लेख में सर्वप्रथम आपको शिव स्तुति मंत्र पढ़ने को मिलेगा। तत्पश्चात शिव स्तुति लिरिक्स के साथ पढ़ने को मिलेगी। अंत में शिव स्तुति को हिंदी अर्थ सहित समझाया जाएगा। आइए पढ़ते हैं शंकचार्य द्वारा रचित शिव स्तुति लिरिक्स के साथ। शिव स्तुति (Shiv Stuti) ।। शिव स्तुति मंत्र ।। कर्पुरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारं। सदा वसन्तं हृदयारविन्दे भवं भवानीसहितं नमामि।। ।। शिव स्तुति श्लोक ।। पशूनां पतिं पापनाशं परेशं गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम। जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम।। महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्। विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम्।। गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्। भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम्।। शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्। त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूप: प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप।। परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्। यतो जायते पाल्यते येन विश्वं तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम्।। न भूमिर्नं ...

शिव

शिव-स्तुतिविनयपत्रिकागोस्वामीतुलसीदासकृत Shiva Stuti Vinay Patrika Meaning in Hindi शिव-स्तुति कोजाँचियेसंभुतजिआन। दीनदयालुभगत-आरति-हर, सबप्रकारसमरथभगवान॥१॥ कालकूट-जुरजरतसुरासुर, निजपनलागिकियेबिषपान। दारुनदनुज, जगत-दुखदायक, मारेउत्रिपुरएकहीबान॥२॥ जोगतिअगममहामुनिदुर्लभ, कहतसंत, श्रुति, सकलपुरान। सोगतिमरन-कालअपनेपुर, देतसदासिवसबहिंसमान॥३॥ सेवतसुलभ, उदारकलपतरु, पारबती-पतिपरमसुजान। देहुकाम-रिपुराम-चरन-रति, तुलसिदासकहँकृपानिधान॥४॥ हिंदीअर्थ–भगवान्शिवजीकोछोड़करऔरकिससेयाचनाकीजाय? आपदीनोंपरदयाकरनेवाले, भक्तोंकेकष्टहरनेवालेऔरसबप्रकारसेसमर्थईश्वरहैं॥१॥ समुद्र-मन्थनकेसमयजबकालकूटविषकीज्वालासेसबदेवताऔरराक्षसजलउठे, तबआपअपनेदीनोंपरदयाकरनेकेप्रणकीरक्षाकेलियेतुरंतउसविषकोपीगये।जबदारुणदानवत्रिपुरासुरजगत्कोबहुतदुःखदेनेलगा, तबआपनेउसकोएकहीबाणसेमारडाला।२॥ जिसपरमगतिकोसंत-महात्मा, वेदऔरसबपुराणमहान्मुनियोंकेलियेभीदुर्लभबतातेहैं, हेसदाशिव! वहीपरमगतिकाशीमेंमरनेपरआपसभीकोसमानभावसेदेतेहैं॥३॥ हेपार्वतीपति ! हे।परमसुजान!! सेवाकरनेपरआपसहजमेंहीप्राप्तहोजातेहैं, आपकल्पवृक्षकेसमानमुँहमाँगाफलदेनेवालेउदारहैं, आपकामदेवकेशत्रुहैं।अतएव, हेकृपानिधान! तुलसीदासकोश्रीरामकेचरणोंकीप्रीतिदीजिये॥४॥ रागधनाश्री(४) दानीकहुँसंकर-समनाहीं। दीन-दयालुदिबोईभावै, जाचकसदासोहाहीं॥ मारिकैमारथप्यौजगमें, जाकीप्रथमरेखभटमाहीं। ताठाकुरकोरीझिनिवाजिबौ, कह्यौक्योंपरतमोपाहीं॥२॥ जोगकोटिकरिजोगतिहरिसों, मुनिमाँगतसकुचाहीं। बेद-बिदिततेहिपदपुरारि-पुर, कीटपतंगसमाहीं॥३॥ ईसउदारउमापतिपरिहरि, अनतजेजाचनजाहीं। तुलसिदासतेमूढ़माँगने, कबहुँनपेटअघाहीं॥४॥ हिंदीअर्थ–शंकरकेसमानदानीकहींनहींहै।वेदीनदयालुहैं, देनाहीउनकेमनभाताहै, माँगनेवालेउन्हेंसदासुहातेहैं॥१॥ वीरों...