शिवसेना का चुनाव चिन्ह क्या है

  1. शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन
  2. सिकुड़ा हुआ राष्ट्रीय पदचिन्ह, संस्कारी राजनीति, शरद पवार पर निर्भरता—कैसे रहे एनसीपी के 24 वर्ष
  3. शिवसेना
  4. क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?
  5. एकनाथ शिंदे गुट की बड़ी जीत, शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह 'तीर
  6. शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन
  7. एकनाथ शिंदे गुट की बड़ी जीत, शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह 'तीर
  8. क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?
  9. शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन
  10. क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?


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शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन

मुंबई के अंधेरी विधानसभा का उपचुनाव 3 नवंबर को होना है.शिवसेना के ठाकरे गुट ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुका लटके को अपना उम्मीदवार बनाया है. शिंदे गुट बीजेपी के उम्मीदवार मुरजी पटेल को सपोर्ट कर रहा है. ठाकरे गुट ने चुनाव आयोग से कहा था कि जब शिंदे गुट अपने उम्मीदवार खड़े ही नहीं कर रहा है तो वह चुनाव आयोग पर जल्दी फैसले का दबाव क्यों बना रहा है? साथ ही जब तक फैसला नहीं हो जाता तब तक ठाकरे गुट को चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करते रहने दिया जाए. लेकिन चुनाव आयोग ने तत्काल के लिए इस चुनाव चिन्ह को फ्रीज करने का फैसला दे दिया. पहचान अब शिवसेना नहीं, बल्कि ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ सिर्फ चुनाव चिन्ह की ही बात नहीं है, चुनाव आयोग ने दोनों ही गुटों को फैसला होने तक पार्टी के नाम का भी इस्तेमाल करने से रोक दिया है. यानी दोनों ही गुट को यह साफ करना होगा कि वे किस गुट के हैं. वे यह कहते हुए मतदाता के पास नहीं जा सकेंगे कि वही असली शिवसेना है. जब तक अंतिम रूप से यह फैसला नहीं हो जाता कि शिवसेना किसकी, तब तक उनकी पहचान ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ होगी. ‘जातिव्यवस्था के लिए माफी काफी नहीं’- ब्राह्मणों पर भागवत के बयान के बाद शरद पवार नए चिन्ह के लिए दोनों गुट को सोमवार तक का समय अब सोमवार तक दोनों गुटों के पास नए चुनाव चिन्ह के प्रस्ताव और विकल्प होंगे. ठाकरे गुट यह चाह रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक चुनाव आयोग का फैसला ना आए. इसके लिए ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. खासकर ठाकरे गुट के लिए यह बड़ा झटका, क्योंकि चुनाव में वक्त बचा कम ठाकरे गुट ने अपने पक्ष के कागजात जमा करने में भी तीन-चार बार टालमटोल की और मोहलत मांगी. चुन...

सिकुड़ा हुआ राष्ट्रीय पदचिन्ह, संस्कारी राजनीति, शरद पवार पर निर्भरता—कैसे रहे एनसीपी के 24 वर्ष

मुंबई: कांग्रेस से नाता तोड़कर 1999 में जब शरद पवार ने अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया, तो वे पार्टी के गांधीवादी वैचारिक जड़ों को दर्शाने के लिए चरखा को अपनी पार्टी के चिन्ह के रूप में चाहते थे. जब चुनाव आयोग (ईसी) ने इस अनुरोध को खारिज कर दिया, तो पार्टी ने अपना चिन्ह घड़ी को बनाया. एनसीपी ने पार्टी के संविधान को अपनाया और 17 जून, 1999 को पहली बार पदाधिकारियों की नियुक्ति की. इसके लिए मुंबई के शनमुखानंद ऑडिटोरियम में सुबह 10:10 बजे बैठक शुरू हुई थी. और इसलिए, पार्टी के चिन्ह की घड़ी में समय हमेशा 10:10 दिखाया जाता है. आज 24 साल बाद भी एनसीपी अपने चुनाव चिन्ह की तरह ही रही है—कम से कम जहां तक इसके चुनावी प्रदर्शन का सवाल है, यह समय के साथ जमी हुई है. अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें. अभी सब्सक्राइब करें एनसीपी की अपने गृह क्षेत्र महाराष्ट्र और लोकसभा में चुनावी उपस्थिति लगभग वैसी ही है जैसी पार्टी के शुरुआती वर्षों में थी. एनसीपी का राष्ट्रीय पदचिह्न केवल महाराष्ट्र में सिकुड़ गया है यह पश्चिमी महाराष्ट्र और मराठवाड़ा के अपने गढ़ों से आगे नहीं बढ़ पाया है. इसके अलावा, पार्टी ने दूसरी पंक्ति के नेतृत्व को मजबूत किया है, यह अभी भी अपनी पहचान के लिए संस्थापक शरद पवार पर निर्भर है, जैसा कि पवार की घोषणा पर पार्टी कार्यकर्ताओं के भारी विरोध से स्पष्ट था जब वे पिछले महीने राकांपा प्रमुख के पद से इस्तीफा दे रहे थे. लेकिन 82-वर्षीय नेता को आखिरकार अ...

शिवसेना

अनुक्रम • 1 चुनावी इतिहास • 1.1 लोकसभा चुनाव • 1.2 महाराष्ट्र विधानसभा • 2 मुख्यमंत्रियों की सूची • 2.1 महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री • 2.2 लोकसभा अध्यक्ष • 2.3 केंद्रीय मंत्री चुनावी इतिहास [ ] लोकसभा चुनाव [ ] लोकसभा चुनाव वर्ष सीटें लड़ीं सीटें जीतीं प्राप्त मत मत% राज्य (सीटें) संदर्भ २२ १५ ५५,६७,४८४ १६़़.९ महाराष्ट्र (१५) २२ १२ ६८,८८,३०६ २०.१ महाराष्ट्र (१२) २२ ११ ६२,८७,९६४ १७.० महाराष्ट्र (११) २० १८ १,००,५१,०९० २०.८ महाराष्ट्र (१८) २३ १८ १,२५,८९,०६४ २३.२९ महाराष्ट्र (१८) महाराष्ट्र विधानसभा [ ] विधानसभा चुनाव वर्ष सीटें लड़ीं सीटें जीतीं प्राप्त मत मत% लड़ी सीटों पर मत% दसवीं विधानसभा १९९९ १६१ ६९ ५६,९२,८१२ १७.३३ १७.३ ग्यारहवीं विधानसभा २००४ १६३ ६२ ८३,५१,६५४ १९.९७ २०.० बारहवीं विधानसभा २००९ १६० ४५ ७३,६९,०३० १६.२६ २९.९० तेरहवीं विधानसभा २८२ ६३ १,०२,३५,९७२ १९.३० १९.८० चौदहवीं विधानसभा २०१९ १२६ ५६ ९०,४९,७८९ १६.४१ ३८.३ मुख्यमंत्रियों की सूची [ ] मुख्य लेख: महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री [ ] क्रम मुख्यमंत्री कार्यकाल विधानसभा १२ १९९५ से १९९९ नवीं विधानसभा १३ १९९९ १८ २०१९ से २०२२ तक १४वीं विधानसभा एकनाथ शिंदे - महाराष्ट्र के वर्तमान मुख्यमंत्री। लोकसभा अध्यक्ष [ ] क्रम लोकसभा सत्र निर्वाचित सांसद नियुक्ति तिथि निवृत्ति तिथि १ १० मई २००२ २ जून २००४ केंद्रीय मंत्री [ ] नेता मंत्रालय कार्यकाल लोकसभा प्रधानमंत्री २००२ से २००४ २०१४ से २०१९ मई २०१९ से नवंबर २०१९ • Joshi, R. (1970). The Shiv Sena: A Movement in Search of Legitimacy. Asian Survey, 10(11), 967–978. • Kulkarni, Dhaval. . अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2012. • Kaul, Vivek. . अभिगमन तिथि 27 अगस्त 2012. • Morkhandikar, R. S. (1967). The S...

क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?

भारत के निर्वाचन आयोग ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों को अंधेरी (पूर्व) के आगामी चुनावों में पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह “धनुष बाण” के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, दोनों गुटों को अलग-अलग राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता दी गई है. दोनों दलों के दो अलग-अलग नाम और चिन्ह प्रदान किए गए हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित की गई ये पार्टी अपने पारंपरिक चुनाव चिन्ह से अलग निशान पर चुनाव लड़ रही है. दिलचस्प बात यह है कि शिवसेना ने अतीत में उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट को सौंपे गए दोनों ही प्रतीकों का चुनावों में इस्तेमाल किया है और जीत हासिल की है. ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और ‘मशाल’ का चुनाव चिन्ह दिया गया, जबकि शिंदे गुट को बालासाहेबांची शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना) नाम व ‘तलवार और ढाल’ का प्रतीक दिया गया है. दोनों पक्ष इन प्रतीकों का उपयोग तब तक करेंगे, जब तक कि पार्टी और उसके प्रतीकों को लेकर चल रहे विवाद कानूनी रूप से सुलझ नहीं जाते. शिवसेना के निलंबन और उसके 'धनुष-बाण' चिन्ह के निलंबन के लिए दोनों ही गुट एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. हालांकि अतीत की एकजुट शिवसेना ने मशाल व तलवार और ढाल, दोनों ही चिन्हों पर चुनाव जीता है. सेना को 'धनुष बाण' चिन्ह मिलने की कहानी 1989 में परभणी में शुरू हुई थी. 1989 में परभणी से निर्दलीय उम्मीदवार अशोकराव देशमुख ने ‘धनुष-बाण’ के निशान पर लोकसभा चुनाव लड़ा, और उसी वर्ष चुनाव जीतकर शिवसेना में शामिल हो गए. देशमुख को 2,29,569 मत मिले और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रामराव यादव को 66,384 मतों से हराया. यह उनकी जीत का ही प्रतिशत था, जिसने शिवसेना...

एकनाथ शिंदे गुट की बड़ी जीत, शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह 'तीर

February 17, 2023 | 08:17 pm 1 मिनट में पढ़ें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मिला शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह आयोग ने कहा कि शिंदे गुट को पार्टी का समर्थन प्राप्त था, इसलिए पार्टी का नाम 'शिवसेना' और चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान' शिंदे गुट को दिया जाता है। 78 पेज के आदेश में उसने कहा कि शिंदे गुट का समर्थन करने वाले विधायकों की पार्टी के कुल वोटों में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी है। शिंदे ने किया फैसला का स्वागत, ठाकरे गुट जा सकता है कोर्ट चुनाव आयोग के फैसले पर खुशी जताते हुए शिंदे ने कहा, "मैं चुनाव आयोग का शुक्रिया अदा करता हूं। लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है। ये बालासाहेब की विरासत की जीत है। हमारी असली शिवसेना है।" वहीं NDTV के सूत्रों के अनुसार, ठाकरे गुट आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है। क्या है पूरा मामला? शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने जून, 2022 में 40 विधायकों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी और इससे शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और इसके बाद शिंदे ने इसके बाद दोनों गुटों में पार्टी पर कब्जे को लेकर लड़ाई हुई थी और मामला चुनाव आयोग पहुंचा था। चुनाव आयोग ने अक्टूबर में फ्रीज कर दिया था चुनाव चिन्ह मामले पर सुनवाई करते मामले पर फैसला आने तक उसने दोनों गुटों को अलग-अलग नाम और चिन्ह आवंटित किए थे। ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और 'जलती हुई टॉर्च' चिन्ह दिया गया, वहीं शिंदे गुट को 'बालासाहेबबांची शिवसेना' नाम और 'दो तलवार और ढाल' चिन्ह आवंटित किया गया। चुनाव आयोग में दोनों पक्षों ने क्या दलीलें दीं? चुनाव आयोग की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने खुद को असली शिवसेना बताते हुए पार्टी के नाम औऱ चुनाव चि...

शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन

मुंबई के अंधेरी विधानसभा का उपचुनाव 3 नवंबर को होना है.शिवसेना के ठाकरे गुट ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुका लटके को अपना उम्मीदवार बनाया है. शिंदे गुट बीजेपी के उम्मीदवार मुरजी पटेल को सपोर्ट कर रहा है. ठाकरे गुट ने चुनाव आयोग से कहा था कि जब शिंदे गुट अपने उम्मीदवार खड़े ही नहीं कर रहा है तो वह चुनाव आयोग पर जल्दी फैसले का दबाव क्यों बना रहा है? साथ ही जब तक फैसला नहीं हो जाता तब तक ठाकरे गुट को चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करते रहने दिया जाए. लेकिन चुनाव आयोग ने तत्काल के लिए इस चुनाव चिन्ह को फ्रीज करने का फैसला दे दिया. पहचान अब शिवसेना नहीं, बल्कि ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ सिर्फ चुनाव चिन्ह की ही बात नहीं है, चुनाव आयोग ने दोनों ही गुटों को फैसला होने तक पार्टी के नाम का भी इस्तेमाल करने से रोक दिया है. यानी दोनों ही गुट को यह साफ करना होगा कि वे किस गुट के हैं. वे यह कहते हुए मतदाता के पास नहीं जा सकेंगे कि वही असली शिवसेना है. जब तक अंतिम रूप से यह फैसला नहीं हो जाता कि शिवसेना किसकी, तब तक उनकी पहचान ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ होगी. ‘जातिव्यवस्था के लिए माफी काफी नहीं’- ब्राह्मणों पर भागवत के बयान के बाद शरद पवार नए चिन्ह के लिए दोनों गुट को सोमवार तक का समय अब सोमवार तक दोनों गुटों के पास नए चुनाव चिन्ह के प्रस्ताव और विकल्प होंगे. ठाकरे गुट यह चाह रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक चुनाव आयोग का फैसला ना आए. इसके लिए ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. खासकर ठाकरे गुट के लिए यह बड़ा झटका, क्योंकि चुनाव में वक्त बचा कम ठाकरे गुट ने अपने पक्ष के कागजात जमा करने में भी तीन-चार बार टालमटोल की और मोहलत मांगी. चुन...

एकनाथ शिंदे गुट की बड़ी जीत, शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह 'तीर

February 17, 2023 | 08:17 pm 1 मिनट में पढ़ें महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को मिला शिवसेना का नाम और चुनाव चिन्ह आयोग ने कहा कि शिंदे गुट को पार्टी का समर्थन प्राप्त था, इसलिए पार्टी का नाम 'शिवसेना' और चुनाव चिन्ह 'तीर-कमान' शिंदे गुट को दिया जाता है। 78 पेज के आदेश में उसने कहा कि शिंदे गुट का समर्थन करने वाले विधायकों की पार्टी के कुल वोटों में 76 प्रतिशत हिस्सेदारी है। शिंदे ने किया फैसला का स्वागत, ठाकरे गुट जा सकता है कोर्ट चुनाव आयोग के फैसले पर खुशी जताते हुए शिंदे ने कहा, "मैं चुनाव आयोग का शुक्रिया अदा करता हूं। लोकतंत्र में बहुमत मायने रखता है। ये बालासाहेब की विरासत की जीत है। हमारी असली शिवसेना है।" वहीं NDTV के सूत्रों के अनुसार, ठाकरे गुट आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे सकता है। क्या है पूरा मामला? शिवसेना नेता एकनाथ शिंदे ने जून, 2022 में 40 विधायकों के साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के खिलाफ बगावत कर दी थी और इससे शिवसेना, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) और इसके बाद शिंदे ने इसके बाद दोनों गुटों में पार्टी पर कब्जे को लेकर लड़ाई हुई थी और मामला चुनाव आयोग पहुंचा था। चुनाव आयोग ने अक्टूबर में फ्रीज कर दिया था चुनाव चिन्ह मामले पर सुनवाई करते मामले पर फैसला आने तक उसने दोनों गुटों को अलग-अलग नाम और चिन्ह आवंटित किए थे। ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और 'जलती हुई टॉर्च' चिन्ह दिया गया, वहीं शिंदे गुट को 'बालासाहेबबांची शिवसेना' नाम और 'दो तलवार और ढाल' चिन्ह आवंटित किया गया। चुनाव आयोग में दोनों पक्षों ने क्या दलीलें दीं? चुनाव आयोग की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों ने खुद को असली शिवसेना बताते हुए पार्टी के नाम औऱ चुनाव चि...

क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?

भारत के निर्वाचन आयोग ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों को अंधेरी (पूर्व) के आगामी चुनावों में पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह “धनुष बाण” के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, दोनों गुटों को अलग-अलग राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता दी गई है. दोनों दलों के दो अलग-अलग नाम और चिन्ह प्रदान किए गए हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित की गई ये पार्टी अपने पारंपरिक चुनाव चिन्ह से अलग निशान पर चुनाव लड़ रही है. दिलचस्प बात यह है कि शिवसेना ने अतीत में उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट को सौंपे गए दोनों ही प्रतीकों का चुनावों में इस्तेमाल किया है और जीत हासिल की है. ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और ‘मशाल’ का चुनाव चिन्ह दिया गया, जबकि शिंदे गुट को बालासाहेबांची शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना) नाम व ‘तलवार और ढाल’ का प्रतीक दिया गया है. दोनों पक्ष इन प्रतीकों का उपयोग तब तक करेंगे, जब तक कि पार्टी और उसके प्रतीकों को लेकर चल रहे विवाद कानूनी रूप से सुलझ नहीं जाते. शिवसेना के निलंबन और उसके 'धनुष-बाण' चिन्ह के निलंबन के लिए दोनों ही गुट एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. हालांकि अतीत की एकजुट शिवसेना ने मशाल व तलवार और ढाल, दोनों ही चिन्हों पर चुनाव जीता है. सेना को 'धनुष बाण' चिन्ह मिलने की कहानी 1989 में परभणी में शुरू हुई थी. 1989 में परभणी से निर्दलीय उम्मीदवार अशोकराव देशमुख ने ‘धनुष-बाण’ के निशान पर लोकसभा चुनाव लड़ा, और उसी वर्ष चुनाव जीतकर शिवसेना में शामिल हो गए. देशमुख को 2,29,569 मत मिले और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रामराव यादव को 66,384 मतों से हराया. यह उनकी जीत का ही प्रतिशत था, जिसने शिवसेना...

शिवसेना का चुनाव चिन्ह फ्रीज, ठाकरे शिंदे गुट की तनातनी के बीच EC का एक्शन

मुंबई के अंधेरी विधानसभा का उपचुनाव 3 नवंबर को होना है.शिवसेना के ठाकरे गुट ने दिवंगत विधायक रमेश लटके की पत्नी ऋतुका लटके को अपना उम्मीदवार बनाया है. शिंदे गुट बीजेपी के उम्मीदवार मुरजी पटेल को सपोर्ट कर रहा है. ठाकरे गुट ने चुनाव आयोग से कहा था कि जब शिंदे गुट अपने उम्मीदवार खड़े ही नहीं कर रहा है तो वह चुनाव आयोग पर जल्दी फैसले का दबाव क्यों बना रहा है? साथ ही जब तक फैसला नहीं हो जाता तब तक ठाकरे गुट को चुनाव चिन्ह का इस्तेमाल करते रहने दिया जाए. लेकिन चुनाव आयोग ने तत्काल के लिए इस चुनाव चिन्ह को फ्रीज करने का फैसला दे दिया. पहचान अब शिवसेना नहीं, बल्कि ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ सिर्फ चुनाव चिन्ह की ही बात नहीं है, चुनाव आयोग ने दोनों ही गुटों को फैसला होने तक पार्टी के नाम का भी इस्तेमाल करने से रोक दिया है. यानी दोनों ही गुट को यह साफ करना होगा कि वे किस गुट के हैं. वे यह कहते हुए मतदाता के पास नहीं जा सकेंगे कि वही असली शिवसेना है. जब तक अंतिम रूप से यह फैसला नहीं हो जाता कि शिवसेना किसकी, तब तक उनकी पहचान ‘ठाकरे गुट’ और ‘शिंदे गुट’ होगी. ‘जातिव्यवस्था के लिए माफी काफी नहीं’- ब्राह्मणों पर भागवत के बयान के बाद शरद पवार नए चिन्ह के लिए दोनों गुट को सोमवार तक का समय अब सोमवार तक दोनों गुटों के पास नए चुनाव चिन्ह के प्रस्ताव और विकल्प होंगे. ठाकरे गुट यह चाह रहा था कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले तक चुनाव आयोग का फैसला ना आए. इसके लिए ठाकरे गुट ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी दायर की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. खासकर ठाकरे गुट के लिए यह बड़ा झटका, क्योंकि चुनाव में वक्त बचा कम ठाकरे गुट ने अपने पक्ष के कागजात जमा करने में भी तीन-चार बार टालमटोल की और मोहलत मांगी. चुन...

क्या चुनाव चिन्ह में बदलाव अंधेरी उपचुनावों में उद्धव ठाकरे को नुकसान पहुंचाएगा?

भारत के निर्वाचन आयोग ने शिवसेना के उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के दोनों प्रतिद्वंद्वी गुटों को अंधेरी (पूर्व) के आगामी चुनावों में पार्टी के नाम और उसके चुनाव चिन्ह “धनुष बाण” के इस्तेमाल पर रोक लगा दी, दोनों गुटों को अलग-अलग राजनीतिक दलों के रूप में मान्यता दी गई है. दोनों दलों के दो अलग-अलग नाम और चिन्ह प्रदान किए गए हैं. हालांकि यह पहली बार नहीं है जब बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित की गई ये पार्टी अपने पारंपरिक चुनाव चिन्ह से अलग निशान पर चुनाव लड़ रही है. दिलचस्प बात यह है कि शिवसेना ने अतीत में उद्धव ठाकरे गुट और शिंदे गुट को सौंपे गए दोनों ही प्रतीकों का चुनावों में इस्तेमाल किया है और जीत हासिल की है. ठाकरे गुट को शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) नाम और ‘मशाल’ का चुनाव चिन्ह दिया गया, जबकि शिंदे गुट को बालासाहेबांची शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना) नाम व ‘तलवार और ढाल’ का प्रतीक दिया गया है. दोनों पक्ष इन प्रतीकों का उपयोग तब तक करेंगे, जब तक कि पार्टी और उसके प्रतीकों को लेकर चल रहे विवाद कानूनी रूप से सुलझ नहीं जाते. शिवसेना के निलंबन और उसके 'धनुष-बाण' चिन्ह के निलंबन के लिए दोनों ही गुट एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं. हालांकि अतीत की एकजुट शिवसेना ने मशाल व तलवार और ढाल, दोनों ही चिन्हों पर चुनाव जीता है. सेना को 'धनुष बाण' चिन्ह मिलने की कहानी 1989 में परभणी में शुरू हुई थी. 1989 में परभणी से निर्दलीय उम्मीदवार अशोकराव देशमुख ने ‘धनुष-बाण’ के निशान पर लोकसभा चुनाव लड़ा, और उसी वर्ष चुनाव जीतकर शिवसेना में शामिल हो गए. देशमुख को 2,29,569 मत मिले और उन्होंने कांग्रेस प्रत्याशी रामराव यादव को 66,384 मतों से हराया. यह उनकी जीत का ही प्रतिशत था, जिसने शिवसेना...