शनि स्तोत्र

  1. Shani Stotra in Marathi, शनि स्तोत्र
  2. शनि स्तोत्र से करे अपनी परेशानियों का हल
  3. शनि कवच का पाठ
  4. राजा दशरथ कृत
  5. दशरथ कृत शनि स्तोत्र ➜ Dashrath Krit Shani Stotra in Hindi Sanskrit
  6. दशरथकृत शनि स्तोत्र
  7. पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्रं
  8. Shani Chalisa in Hindi
  9. दशरथ कृत शनि स्तोत्र


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Shani Stotra in Marathi, शनि स्तोत्र

• The Second Day is called Narak-Chaturdashi or more popularly as Chhoti Diwali which falls....... • Guru Nanak Birthday celebrated as Gurpurab across India and all over the world.It is one of....... • Diwali or Deepavali, the festival of "rows of lights" (Deep = Lamp, Vali =Array), is one of the most...... • Tulsi is a sacred plant which can be found in almost every Hindu house.Tulsi vivah is celebrated on .....

शनि स्तोत्र से करे अपनी परेशानियों का हल

शनि स्तोत्र से करे अपनी परेशानियों का हल | Shani Stotraप्राचीन काल में दशरथ नामक प्रसिद्ध चक्रवती राजा हुए थे। राजा के कार्य से राज्य की प्रजा सुखी जीवन यापन कर रही थी सर्वत्र सुख और शांति का माहौल था। उनके राज्यकाल में एक दिन ज्योतिषियों ने शनि को कृत्तिका नक्षत्र के अन्तिम चरण में देखकर कहा कि अब यह शनि रोहिणी नक्षत्र का भेदन कर जायेगा। जिसे ‘रोहिणी-शकट-भेदन’भी कहा जाता हैं। शनि का रोहणी में जाना देवता और असुर दोनों ही के लिये कष्टकारी और भय प्रदान करनेवाला है तथा ‘रोहिणी-शकट-भेदन से बारह वर्ष तक अत्यंत दुःखदायी अकाल पड़ता है। इस पर वशिष्ठ जी कहने लगे- ‘शनि के रोहिणी नक्षत्र में में भेदन होने से प्रजाजन सुखी कैसे रह सकते हें। इस योग के दुष्प्रभाव से तो ब्रह्मा एवं इन्द्रादिक देवता भी रक्षा करने में असमर्थ हैं। वशिष्ठ जी के वचन सुनकर राजा सोचने लगे कि यदि वे इस संकट की घड़ी को न टाल सके तो उन्हें कायर कहा जाएगा। अतः राजा विचार करके साहस बटोरकर दिव्य धनुष तथा दिव्य आयुधों से युक्त होकर अपने रथ को तेज गति से चलाते हुए चन्द्रमा से भी 3 लाख योजन ऊपर नक्षत्र मण्डल में ले गए। मणियों तथा रत्नों से सुशोभित स्वर्ण-निर्मित रथ में बैठे हुए महाबली राजा ने रोहिणी के पीछे आकर रथ को रोक दिया। श्वेत अश्वो से युक्त और ऊँची-ऊँची ध्वजाओं से सुशोभित मुकुट में जड़े हुए बहुमुल्य रत्नों से प्रकाशमान राजा दशरथ उस समय आकाश में दूसरे सूर्य की तरह चमक रहे थे। शनि को कृत्तिका नक्षत्र के पश्चात् रोहिनी नक्षत्र में प्रवेश का इच्छुक देखकर राजा दशरथ बाण युक्त धनुष कानों तक खींचकर भृकुटियां तानकर शनि के सामने डटकर खड़े हो गए। अपने सामने देव-असुरों के संहारक अस्त्रों से युक्त दशरथ को खड़ा देखकर शनि थोड़ा ...

शनि कवच का पाठ

अष्टमस्थे सूर्यसुते व्यये जन्मद्वितीयगे। कवचं पठतो नित्यं न पीडा जायते क्वचित् ॥११॥ इत्येतत्कवचं दिव्यं सौरेर्यनिर्मितं पुरा। द्वादशाष्टमजन्मस्थदोषान्नाशायते सदा जन्मलग्नास्थितान्दोषान्सर्वान्नाशयते प्रभुः ॥१२॥ यह भी पढ़े – ॥ इति श्रीब्रह्मांडपुराणे ब्रह्म-नारदसंवादे शनैश्चरकवचं संपूर्णं ॥ ॥ ब्रह्मांड पुराण में ब्रह्म-नारद संवाद में शनि कवच स्तोत्र संपूर्ण हुआ ॥ एक अमेज़न एसोसिएट के रूप में उपयुक्त ख़रीद से हमारी आय होती है। यदि आप यहाँ दिए लिंक के माध्यम से ख़रीदारी करते हैं, तो आपको बिना किसी अतिरिक्त लागत के हमें उसका एक छोटा-सा कमीशन मिल सकता है। धन्यवाद! विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर शनि कवच (Shani Kavach) को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें शनि कवच रोमन में– Read Shani Kavach asya śrī śanaiścarakavacastotramaṃtrasya kaśyapa ṛṣiḥ। anuṣṭup chandaḥ। śanaiścaro devatā। śīṃ śaktiḥ। śūṃ kīlakam। śanaiścaraprītyarthaṃ jape viniyogaḥ। nilāṃbaro nīlavapuḥ kirīṭī gṛdhrasthitastrāsakaro dhanuṣmān। caturbhujaḥ sūryasutaḥ prasannaḥ sadā mama syādvaradaḥ praśāntaḥ ॥1॥ brahmovāca śruṇūdhvamṛṣayaḥ sarve śanipīḍāharaṃ mahat। kavacaṃ śanirājasya saureridamanuttamam ॥2॥ kavacaṃ devatāvāsaṃ vajrapaṃjarasaṃjñakam। śanaiścaraprītikaraṃ sarvasaubhāgyadāyakam ॥3॥ oṃ śrīśanaiścaraḥ pātu bhālaṃ me sūryanaṃdanaḥ। netre chāyātmajaḥ pātu pātu karṇau yamānujaḥ ॥4॥ nāsāṃ vaivasvataḥ pātu mukhaṃ me bhāskaraḥ sadā। snigdhakaṃṭhaḥśca me kaṃṭhaṃ bhujau pātu mahābhujaḥ ॥5॥ skaṃdhau pātu śaniścaiva karau pātu śubhapradaḥ। vakṣaḥ pātu ...

राजा दशरथ कृत

॥ श्री शनि स्तोत्र (हिन्दी) ॥ हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले। कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।। स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे। सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले। हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।। भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले। कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।। तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे। स्वीकारो नमन मेरे।स्वीकारो भजन मेरे।। हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा। हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।। हे भक्तों के सहारे, शनि! सब हवाले तेरे। हैं पूज्य चरण तेरे। स्वीकारो नमन मेरे।। हे सूर्य-सुत तपस्वी, भास्कर के भय मनस्वी। हे अधो दृष्टि वाले, हे विश्वमय यशस्वी।। विश्वास श्रद्धा अर्पित सब कुछ तू ही निभाले। स्वीकारो नमन मेरे। हे पूज्य देव मेरे।। अतितेज खड्गधारी, हे मन्दगति सुप्यारी। तप-दग्ध-देहधारी, नित योगरत अपारी।। संकट विकट हटा दे, हे महातेज वाले। स्वीकारो नमन मेरे।स्वीकारो नमन मेरे।। नितप्रियसुधा में रत हो, अतृप्ति में निरत हो। हो पूज्यतम जगत में, अत्यंत करुणा नत हो।। हे ज्ञान नेत्र वाले, पावन प्रकाश वाले। स्वीकारो भजन मेरे। स्वीकारो नमन मेरे।। जिस पर प्रसन्न दृष्टि, वैभव सुयश की वृष्टि। वह जग का राज्य पाये, सम्राट तक कहाये।। उत्तम स्वभाव वाले, तुमसे तिमिर उजाले। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हो वक्र दृष्टि जिसपै, तत्क्षण विनष्ट होता। मिट जाती राज्यसत्ता, हो के भिखारी रोता।। डूबे न भक्त-नैय्या पतवार दे बचा ले। स्वीकारो नमन मेरे। शनि पूज्य चरण तेरे।। हो मूलनाश उनका, द...

दशरथ कृत शनि स्तोत्र ➜ Dashrath Krit Shani Stotra in Hindi Sanskrit

• संस्कृत में दशरथ कृत शनि स्तोत्र • नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ।।१।। नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते।।२।। नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते।।३।। नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम: । नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने।।४।। नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च ।।५।। अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते । नमो मन्दगते तुभ्यं निरिाणाय नमोऽस्तुते ।।६।। तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ।।७।। ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज सूनवे । तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ।।८।। देवासुरमनुष्याश्च सिद्घविद्याधरोरगा: । त्वया विलोकिता: सर्वे नाशंयान्ति समूलत:।।९।। प्रसाद कुरु मे देव वाराहोऽहमुपागत । एवं स्तुतस्तद सौरिग्र्रहराजो महाबल: ।।१०।। .. • हिंदी में दशरथ कृत शनि स्तोत्र • हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले। कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले।। स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे। सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे।। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हे दाढ़ी-मूछों वाले, लम्बी जटायें पाले। हे दीर्घ नेत्र वालेे, शुष्कोदरा निराले।। भय आकृति तुम्हारी, सब पापियों को मारे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हे पुष्ट देहधारी, स्थूल-रोम वाले। कोटर सुनेत्र वाले, हे बज्र देह वाले।। तुम ही सुयश दिलाते, सौभाग्य के सितारे। स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भजन मेरे।। हे घोर रौद्र रूपा, भीषण कपालि भूपा। हे नमन सर्वभक्षी बलिमुख शनी अनूपा ।। हे भक्तों ...

दशरथकृत शनि स्तोत्र

Read in English दशरथ उवाच: प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः ॥ रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन् । सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी ॥ याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं । एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम् ॥ प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा । पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥ दशरथकृत शनि स्तोत्र: नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च । नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥1॥ नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च । नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते ॥2॥ नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम: । नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तु ते ॥3॥ नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम: । नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने ॥4॥ नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तु ते । सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च ॥5॥ अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते । नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते ॥6॥ तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च । नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम: ॥7॥ ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे । तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात् ॥8॥ देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा: । त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत: ॥9॥ प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे । एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल: ॥10॥ दशरथ उवाच: प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम् । अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित् ॥ शनि स्तोत्र हिन्दी पद्य रूपान्तरण हे श्यामवर्णवाले, हे नील कण्ठ वाले। कालाग्नि रूप वाले, हल्के शरीर वाले॥ स्वीकारो नमन मेरे, शनिदेव हम तुम्हारे। सच्चे सुकर्म वाले हैं, मन से हो तुम हमारे॥ स्वीकारो नमन मेरे। स्वीकारो भ...

पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्रं

पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्रं धन सुख शांति और शनिदेव की कृपा पाने के लिए पीपल के पेड़ के सामने बैठकर पांच दीपक जलाकर पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्र का पाठ करे मन में शनिदेव का लगातार ध्यान करते रहे पिप्पलाद ऋषि ने शनि के कष्टों से मुक्ति के लिए इस स्तोत्र की रचना की थी राजा नल ने भी इसी स्तोत्र के पाठ द्वारा अपना खोया राज्य पुन: पा लिया था और उनकी राजलक्ष्मी भी लौट आई थी। यदि आप पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्र का पाठ करना चाहते है तो नीचे में लिंक दिया हुआ है वहा से आप इस पाठ को पढ़ सकते है पिप्पलाद ऋषिकृत शनि स्तोत्रं य: पुरा नष्टराज्याय , नलाय प्रददौ किल । स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं , स मे सौरि: प्रसीद तु।। 1 ।। केशनीलांजन प्रख्यं , मनश्चेष्टा प्रसारिणम्। छाया मार्तण्ड सम्भूतं , नमस्यामि शनैश्चरम्।। 2 ।। नमो s र्कपुत्राय शनैश्चराय , नीहार वर्णांजनमेचकाय । श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च , फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं।। 3 ।। नमो s स्तु प्रेतराजाय , कृष्णदेहाय वै नम: । शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने।। 4 ।। य एभिर्नामाभि: स्तौति , तस्य तुष्टो ददात्य सौ। तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्यति।। 5 ।। कोणस्थ: पिंगलो बभ्रू: , कृष्णो रोद्रो s न्तको यम: । सौरि: शनैश्चरो मन्द: , प्रीयतां मे ग्रहोत्तम: ।। 6 ।। नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमो s स्तुते। नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमो s स्तुते।। 7 ।। नमस्ते रौद्र देहाय , नमस्ते बालकाय च । नमस्ते यज्ञ संज्ञाय , नमस्ते सौरये विभो।। 8 ।। नमस्ते मन्दसंज्ञाय , शनैश्चर नमो s स्तुते। प्रसादं कुरु देवेश , दीनस्य प्रणतस्य च ।। 9 ।। शनि स्तोत्र के बाद दशरथकृत शनि स्तवन पाठ का भी जाप करना चाहिए जिससे लाभ दोगुना हो जाता है :-

Shani Chalisa in Hindi

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दशरथ कृत शनि स्तोत्र

प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा । पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत ॥ ॥ दशरथकृत शनि स्तोत्र ॥ नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठनिभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम: ॥ नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥ नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घायशुष्काय कालदष्ट्र नमोऽस्तुते॥ नमस्ते कोटराक्षाय दुर्निरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥ नमस्ते सर्वभक्षाय वलीमुखायनमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करे भयदाय च॥ अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तुते। नमो मन्दगते तुभ्यं निरिस्त्रणाय नमोऽस्तुते॥ तपसा दग्धदेहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥ विदेशों में बसे कुछ हिंदू स्वजनों के आग्रह पर दशरथ कृत शनि स्तोत्र को हम रोमन में भी प्रस्तुत कर रहे हैं। हमें आशा है कि वे इससे अवश्य लाभान्वित होंगे। पढ़ें दशरथकृत शनि स्तोत्र रोमन में– Read Dashrathkrit Shani Stotra ॥ daśaratha uvāca ॥ prasanno yadi me saure ! ekaścāstu varaḥ paraḥ ॥ rohiṇīṃ bhedayitvā tu na gantavyaṃ kadācan । saritaḥ sāgarā yāvadyāvaccandrārkamedinī ॥ yācitaṃ tu mahāsaure ! na’nyamicchāmyahaṃ । evamastuśaniproktaṃ varalabdhvā tu śāśvatam ॥ nama: puṣkalagātrāya sthūlaromṇe’tha vai nama:। namo dīrghāyaśuṣkāya kāladaṣṭra namo’stute॥ namaste koṭarākṣāya durnirīkṣyāya vai nama:। namo ghorāya raudrāya bhīṣaṇāya kapāline॥ namaste sarvabhakṣāya valīmukhāyanamo’stute। sūryaputra namaste’stu bhāskare bhayadāya ca॥ adhodṛṣṭe: namaste’stu saṃvartaka namo’stute। namo mandagate tubhyaṃ niristraṇāya namo’stute॥ tapasā dagdhade...