शुक्ल युग की समय अवधि है

  1. हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श/रामचंद्र शुक्ल की सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना
  2. शुक्लोत्तर युग की प्रमुख गद्य विधाओं का उल्लेख कीजिए? » Shuklottar Yug Ki Pramukh Gadya Vidhaon Ka Ullekh Kijiye
  3. युग
  4. शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar
  5. भारतेन्दु युग का नामकरण, समय सीमा, प्रमुख विशेषताएं


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हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श/रामचंद्र शुक्ल की सैद्धांतिक और व्यावहारिक आलोचना

हिंदी आलोचना एवं समकालीन विमर्श आधुनिक हिंदी साहित्य की गद्य विधाओं में आलोचना भी एक प्रमुख विधा है। खड़ी बोली हिंदी में वास्तव में भारतेंदु युग में ही अधिकांश गद्य विधाओं का आरंभ हुआ है।आलोचना विधा का आरंभ भी इसी युग से हुआ है। यद्यपि भारतेंदु युग से पहले ही ग्रंथों की टीका लिखने की शैली में शंका समाधान की शैली विकसित हो चुकी थी। इस शैली के टीका लेखन से आधुनिक आलोचना विधा के बीज अंकुरित हुए जो आगे चलकर भारतेंदु युग में आलोचना के रूप में विकसित हुआ। भारतीय साहित्यशास्त्र में साहित्याचार्यों ने साहित्यशास्त्र का अति गंभीर विश्लेषण किया था,परंतु भारतेंदु युग में जिस नवीन आधुनिक चेतना का उदय हुआ वह निश्चित रूप से आधुनिक आलोचना विधा के आरंभ की घोषणा कही जा सकती है। संस्कृत के विद्वानों और साहित्याचार्यों ने सूक्ष्म सिद्धांत निरूपण किया था। रस, अलंकार, रीति, वक्रोक्ति, औचित्य, ध्वनि आदि सम्प्रदायों के माध्यम से साहित्य के सूक्ष्म तत्वों का सूक्ष्म निरूपण किया था। संस्कृत से चली आई साहित्यशास्त्र की परंपरा रीतिकालीन कवियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। रीतिकालीन आचार्यों ने साहित्यशास्त्र की रचना भी की और उसका पालन भी किया।परंतु रीतिकालीन साहित्य के आचार्यों ने सिद्धांतों की कसौटी पर रचना को कसते हुए उनका विस्तारपूर्वक ब्यौरेवार परीक्षण करने की परंपरा आरम्भ नहीं की। हिंदी आलोचना को भारतेंदु युग में ही आधुनिक आलोचना का रूप प्राप्त हो सका जिसमें साहित्यिक विधाओं का पूर्ण मूल्यांकन किया जाने लगा। नवीन शिक्षा पद्धति ने जिस प्रकार समाज को नवीन स्वरूप प्रदान किया उसी प्रकार साहित्यिक विधाओं को भी। आलोचना विधा भी अपने नवीन आधुनिक रूप में स्थापित हुई। इसी युग में आधुनिक आलोचना सैद्धांतिक...

शुक्लोत्तर युग की प्रमुख गद्य विधाओं का उल्लेख कीजिए? » Shuklottar Yug Ki Pramukh Gadya Vidhaon Ka Ullekh Kijiye

चेतावनी: इस टेक्स्ट में गलतियाँ हो सकती हैं। सॉफ्टवेर के द्वारा ऑडियो को टेक्स्ट में बदला गया है। ऑडियो सुन्ना चाहिये। शुक्ल युग यानी शुक्लोत्तर युग की प्रमुख गद्य विधाओं का उल्लेख आपने पूछा है तो उस समय जो भी प्रमुख एकांकी का थे उसमें राजकुमार वर्मा भुवनेश्वर प्रसाद मिश्र सेठ गोविंददास जैसे मुख्य तार नाम आते हैं shukla yug yani shuklottar yug ki pramukh gadya vidhaon ka ullekh aapne poocha hai toh us samay jo bhi pramukh ekanki ka the usme rajkumar verma bhubaneswar prasad mishra seth govindadas jaise mukhya taar naam aate hain शुक्ल युग यानी शुक्लोत्तर युग की प्रमुख गद्य विधाओं का उल्लेख आपने पूछा है तो उस समय जो भी

युग

अनुक्रम • 1 युग आदि का परिमाण • 2 गधर्म • 3 वैज्ञानिक प्रमाण • 4 कलियुग का आरम्भ • 5 इन्हें भी देखें युग आदि का परिमाण [ ] मुख्य लौकिक युग सत्य (उकृत), त्रेता, द्वापर और कलि नाम से चार भागों में (चतुर्धा) विभक्त है। इस युग के आधार पर ही मन्वंतर और कल्प की गणना की जाती है। इस गणना के अनुसार सत्य आदि चार युग संध्या (युगारंभ के पहले का काल) और संध्यांश (युगांत के बाद का काल) के साथ 12000 वर्ष परिमित होते हैं। चार युगों का मान 4000 + 3000 + 2000 + 1000 = 10000 वर्ष है; संध्या का 400 + 300 + 200 + 100 = 1000 वर्ष; संध्यांश का भी 1000 वर्ष है। युगों का यह परिमाण दिव्य वर्ष में है। दिव्य वर्ष = 360 मनुष्य वर्ष है; अत: 12000 x 360 = 4320000 वर्ष चतुर्युग का मानुष परिमाण हुआ। तदनुसार सत्ययुग = 1728000; त्रेता = 1296000; द्वापर = 864000; कलि = 432000 वर्ष है। ईद्दश 1000 चतुर्युग (चतुर्युग को युग भी कहा जाता है) से एक कल्प याने ब्रह्मा की आयु 100 वर्ष है। 71 दिव्ययुगों से एक मन्वंतर होता है। यह वस्तुत: महायुग है। अन्य अवांतर युग भी है। प्रत्येक संख्या में ३६० के गुणा करना होता है क्योंकि और कलियुग जो की १२०० दिव्यवर्ष अवधि का था वह मानव वर्षों के रूप में ४३२००० वर्ष का बना होता है चारों युगों की अवधि इस प्रकार है सत्य 17,28,000 वर्ष ,त्रेता 12,96,000 वर्ष ,द्वापर 8,64,000 वर्ष कलियुग 4,32,000 वर्ष चारों युगों का जोड़ 43,20,000 वर्ष यानी एक चतुर्युग | दुसरी गलती यह हुई कि जब द्वापर समाप्त हुआ तो उस समय २४०० वा वर्ष चल रहा था जब कलियुग शुरू हुआ तो उसको कलियुग प्रथम वर्ष लिखा जाना चाहिए था लेकिन लिखा गया कलियुग २४०१ तो जो कहा जाता है की २०१८ में कलियुग शुरू हुए ५१२० वर्ष हो गए हैं उसमे ...

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार और उनके निबंध । Shuklotar yug ke Nibandh Kaar

शुक्लोत्तर युग के निबंधकार • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी , डॉ. नगेन्द्र , आचार्य नंद दुलारे वाजपेयी , जैनेंद्र , डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल , डॉ. सत्येंद्र , शांति प्रिय द्विवेदी , डॉ. विनय मोहन शर्मा , डॉ. रामरतन भटनागर , डॉ. राम विलास शर्मा , डॉ. विश्वंभर ' मानव ', प्रभाकर माचवे , डॉ. पदम सिंह शर्मा कमलेश , इलाचन्द्र जोशी , डॉ. भगीरथ मिश्र , चन्द्रवली पांडेय , डॉ. भगवत शरण उपाध्याय , राम वक्ष बेनीपुरी , कन्हैया लाल मिश्र प्रभाकर , रामधारी सिंह दिनकर , शिवदान सिंह चौहान , प्रकाश चन्द्र गुप्त तथा देवेन्द्र सत्यार्थी आदि प्रमुख हैं। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी • शुक्ल परवर्ती निबंधकारों में आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी सर्वश्रेष्ठ निबंधकार हैं। इनके निबंध संग्रहों में अशोक के फूल , कल्पलता विचार और वितर्क , विचार प्रवाह तथा कुटज विशेष उल्लेखनीय संग्रह हैं। द्विवेदी का निबंध क्षेत्र अति व्यापक है। उन्होंने भारतीय साहित्य , भारतीय संस्कृति , प्रकृति , परंपरागत ज्ञान-विज्ञान , आधुनिक युगीन विभिन्न परिवेशों , प्रवतियों एवं समस्याओं का अपूर्व समन्वय किया है। उनके निबंध अध्ययन क्षेत्र की व्यापकता तथा चिंतन की गंभीरता से युक्त हैं किन्तु द्विवेदी की वैयक्तिक सरलता , सहजता , सरसता एवं विनोदी स्वभाव उसने नीसरता , शुष्कता या दुर्बोधता का प्रवेश नहीं होने देता है। व्यक्ति एवं विषय का पूर्ण तादात्म्य उनमें दष्टिगोचर होता है। उनके गंभीर से गंभीर निबंधों को पढ़ते समय पाठक ऊबता नहीं है अपितु उपन्यास या काव्यानंद की रस विभोरता का अनुभव करता है। जिन निबंधों के लेखन में द्विवेदी का मन रमा नहीं है वे सरसता के अपवाद स्वरूप हैं। जब लेखक का मन ही नहीं रमा है तो पाठक का...

भारतेन्दु युग का नामकरण, समय सीमा, प्रमुख विशेषताएं

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने आधुनिक काल का अंतर्विभाजन साहित्यिक विधा गद्य-पद्य के आधार पर मुख्य रूप से गद्य और काव्य रचना (पद्य) दो भागों में विभक्त किया है। पुन: इन दोनों उप विभागों के चार-चार प्रकरण किए हैं। प्रकरणों का पुनर्विभाजन उत्थानों में किया गया है। भारतेंदु युग से गद्य के प्रकरण 2 के प्रथम उत्थान तथा काव्य रचना के प्रकरण 2 के नई धारा (प्रथम उत्थान) को अभिहित किया है। आचार्य शुक्ल ने भारतेंदु के महत्व को गद्य-पद्य दोनों में बराबर रूप से स्वीकारा है। डॉ. नगेन्द्र को युग विशेष को व्यक्तिगत नाम देना रूचिकर नहीं लगा इसलिए उन्होंने लिखा है- “शुक्ल जी के परवर्ती इतिहासकारों ने प्राय: शुक्ल जी का अनुगमन किया। कुछ लोगों ने आधुनिक काल के विकास के प्रथम दो चरणों को भारतेंदु युग और द्विवेदी युग कहना अधिक संगत समझा। किंतु, इन नामों की ग्राह्यता को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है।” अंतिम वाक्य को संदर्भित करते हुए पाद टिप्पणी में लिखा है - “भारतेंदु-युग और द्विवेदी युग की परिकल्पना कर लेने पर युगों की बाढ़ आ गई। भारतीय हिंदी-परिषद, प्रयाग से प्रकाशित ‘हिंदी साहित्य’ (तृतीय खंड) में उपन्यासों के संदर्भ में‘प्रेमचन्द युग’ और नाटकों के संदर्भ में‘प्रसाद युग’ की कल्पना की गई है। पता नहीं, समीक्षा के संदर्भ में शुक्ल युग क्यों नहीं लिखा गया? जितने संदर्भ उतने युग!” डॉ. नगेंद्र भारतेंदु या द्विवेदी पर नाक-भौं चढ़ाते हैं तथा कहते हैं कि शुक्ल युग कहना औचित्यपूर्ण नहीं है। क्यों नहीं है क्या नई दिल्ली में दिवंगत प्रधानमंत्रियों के नाम पर स्थलों की क्या बाढ़ नहीं आ गई है? आधुनिक काल में विश्वविद्यालय का नाम स्थल के आधार न रखकर व्यक्ति विशेष के नाम पर नामकरण करने से कौन भी बाढ़ आ गई है? ...