सिद्ध

  1. The Hindi Page सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa
  2. सिद्ध
  3. वेदान्त दर्शन
  4. Durga Saptashati Siddha Mantra
  5. दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मंत्र
  6. इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...
  7. सिद्ध साहित्य


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The Hindi Page सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa

सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa : व्यक्तित्व एवं कृतित्व सिद्ध सरहपा Siddh Sarhapa प्रथम हिन्दी कवि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व, जीवन परिचय, रचनाएं, भाषा शैली, 84 सिद्धों के नाम एवं प्रमुख कथन हिंदी साहित्य का आरंभिक कवि सरहपा को माना जाता है। यह 84 सिद्धों में प्रथम माने जाते हैं। सरहपा के बारे में चर्चा करने से पहले सिद्ध संप्रदाय की संक्षिप्त जानकारी आवश्यक है। सामान्य रूप से जब कोई साधक साधना में प्रवीण हो जाता है और विलक्षण सिद्धियां प्राप्त कर लेता है तथा उन सिद्धियों से चमत्कार दिखाता है, उसे सिद्ध कहते हैं। प्रथम हिन्दी कवि-सिद्ध सरहपा लगभग आठवीं शताब्दी में बौद्ध धर्म से सिद्ध संप्रदाय का विकास हुआ था। बहुत संप्रदाय विघटित होकर दो शाखाओं- हीनयान तथा महायान में बँट गया। कालांतर में महायान पुनः दो उपशाखाओं में विभाजित हुआ- (क) वज्रयान (ख) सहजयान इन्हीं शाखाओं के अनुयाई साधकों को सिद्ध कहा गया है। वज्रयानियों का केंद्र श्री पर्वत रहा है। सिद्धों के समय को लेकर विद्वानों में मतभेद है। महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने सिद्धों का समय सातवीं शताब्दी स्वीकार किया है। डॉ रामकुमार वर्मा ने इनका समय संवत् 797 से 1257 तक माना है। जबकि आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने इनका समय दसवीं शताब्दी स्वीकार किया है। सिद्धों की संख्या संख्या 84 मानी जाती है। तंत्र साधना में 84 का गूढ़ तांत्रिक अर्थ तथा विशेष महत्व होता है। योग तथा तंत्र में आसन भी 84 माने गए हैं। 84 सिद्धों का संबंध 84 लाख योनियों से भी माना जाता है। काम शास्त्र में 84 आसन भी स्वीकार किए गए हैं। हिंदी साहित्य कोश के अनुसार 12 राशियों तथा 7 नक्षत्रों का गुणनफल भी 84 होता है। उस समय प्रत्येक संप्रदाय 84 की संख्या को महत्व देता था। सिद्धों क...

सिद्ध

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वेदान्त दर्शन

अनुक्रम • 1 'वेदान्त’ का अर्थ • 2 वेदान्त का साहित्य • 3 अद्वैत वेदान्त • 4 विशिष्टाद्वैत वेदान्त • 5 द्वैत वैदान्त • 6 द्वैताद्वैत वेदान्त • 7 शुद्धाद्वैत वेदान्त • 8 अचिंत्य भेदाभेद वेदान्त • 9 स्वामिनारायण वेदान्त (अक्षरपुरुषोत्तम दर्शन) • 10 सन्दर्भ ग्रंथ • 11 इन्हें भी देखें 'वेदान्त’ का अर्थ [ ] ‘वेदान्त’ का शाब्दिक अर्थ है ‘वेदों का अन्त’। आरम्भ में (1) उपनिषद् ‘वेद’ के अन्त में आते हैं। ‘वेद’ के अन्दर प्रथमतः वैदिक संहिताएँ- ऋक्, यजुः, साम तथा अथर्व आती हैं और इनके उपरान्त ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद् आते हैं। इस साहित्य के अन्त में होने के कारण उपनिषद् वेदान्त कहे जाते हैं। (2) वैदिक अध्ययन की दृष्टि से भी उपनिषदों के अध्ययन की बारी अन्त में आती थी। सबसे पहले (3) उपनिषदों में वेदों का ‘अन्त’ अर्थात् वेदों के विचारों का परिपक्व रूप है। यह माना जाता था कि वेद-वेदांग आदि सभी शास्त्रों का अध्ययन कर लेने पर भी बिना उपनिषदों की शिक्षा प्राप्त किये हुए मनुष्य का ज्ञान पूर्ण नहीं होता था। आचार्य वेदादि में विधिपूर्वक अध्ययन, मनन तथा उपासना आदि के अन्त में जो तत्त्व जाना जाये उस तत्त्व का विशेष रूप से यहाँ निरूपण किया गया हो, उस शास्त्र को ‘वेदान्त’ कहा जाता है। वेदान्त का साहित्य [ ] ऊपर कहा जा चुका है ‘वेदान्त’ शब्द मूलतः उपनिषदों के लिए प्रयुक्त होता था। अलग-अलग संहिताओं तथा उनकी शाखाओं से सम्बद्ध अनेक उपनिषद् हमें प्राप्त हैं। जिनमें प्रमुख तथा प्राचीन हैं - ईश, केन, कठ, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य, श्रताश्वर तथा बृहदारण्यक। इन उपनिषदों के दार्शनिक सिद्धान्तों में काफी कुछ समानता है किन्तु अनेक स्थानों पर विरोध भी प्रतीत होता है। कालान्तर में यह आवश्...

Durga Saptashati Siddha Mantra

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दुर्गा सप्तशती सिद्ध सम्पुट मंत्र

❀ सामूहिक कल्याण के लिये मंत्र - देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्‍‌र्या । तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ॥ ❀ विश्‍व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिये मंत्र - यस्याः प्रभावमतुलं भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्‍च न हि वक्तुमलं बलं च । सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥ ❀ विश्‍व की रक्षा के लिये मंत्र - या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः । श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्‍वम् ॥ ❀ विश्‍व के अभ्युदय के लिये मंत्र - विश्‍वेश्‍वरि त्वं परिपासि विश्‍वं विश्‍वात्मिका धारयसीति विश्‍वम् । विश्‍वेशवन्द्या भवती भवन्ति विश्‍वाश्रया ये त्वयि भक्तिनम्राः ॥ ❀ विश्‍वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिये मंत्र - देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्‍वेश्‍वरि पाहि विश्‍वं त्वमीश्‍वरी देवि चराचरस्य ॥ ❀ विश्‍व के पाप-ताप-निवारण के लिये मंत्र - देवि प्रसीद परिपालय नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्यः । पापानि सर्वजगतां प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्‍च महोपसर्गान् ॥ ❀ विपत्ति-नाश के लिये मंत्र - शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे । सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ॥ ❀ विपत्तिनाश और शुभ की प्राप्ति के लिये मंत्र - करोतु सा नः शुभहेतुरीश्‍वरी शुभानि भद्राण्यभिहन्तु चापदः । ❀ भय-नाश के लिये मंत्र - सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते । भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते ॥ एतत्ते वदनं सौम्यं लोचनत्रयभूषितम् । पातु नः सर्वभीतिभ्यः कात्यायनि नमोऽस्तु ते ॥ ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम् । त्रिशूलं पातु नो...

सिद्ध

सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार नौ चक्रो के नाम 1. ब्रहमचक्र - मूलाधार मे स्थित है, कामनाओं की पूर्ति होती हैं। 2. स्वाधिष्ठान चक्र - इससे हम चीजो को आकर्षित कर सकते है। 3. नाभी चक्र - सिद्धि की प्राप्ति होती है। 4. अनाहत चक्र - हृदय में स्थित होता है। 5. कण्ठचक्र - विशुद्धि-संकल्प पूर्ति, आवाज मधुर होती है। 6. तालुचक्र - घटिका में, जिह्वा के मूल भाग में, लय सिद्धि प्राप्त होती है। 7. भ्रुचक्र - आज्ञा चक्र - वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है। 8. निर्वाणचक्र - ब्रहमरन्ध्र, सहस्त्रार चक्र, मोक्ष प्राप्ति 9. आकाश चक्र - सहस्त्रारचक्र के ऊपर, भय- द्वेष की समाप्ति होती है। सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार सोहल आधार (1) पादांगुष्ठ (2) मूलाधार (3) गुदाद्वार (4) मेद् आधार (5) उड्डियान आधार (6) नाभी आधार (7) हृदयाधार (8) कण्ठाधार (9) घटिकाधार (10) तालु आधार (11) जिह्वा आधार सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार तीन लक्ष्य (Aim) 1. अन्तर लक्ष्य (Internal) - मेद्‌ - लिंग से उपर एवं नाभी से नीचे के हिस्से पर अन्दर ध्यान लगाना। 2. बर्हि: लक्ष्य (Outer) - नासिका के अग्र भाग पर ध्यान लगाना | 3. मध्यम लक्ष्य (Middle) - रंगीन गोले, पते, पंखुडी आदि पर ध्यान लगाना। सबसे अच्छा अन्तर लक्ष्य (Internal) है। व्योम पंचक (पाँच आकाश) - 1. आकाश, 2. पराकाश, 3. महाकाश, 4. तत्वाकाश, 5. सूर्याकाश सिद्ध-सिद्धांत-पद्धति के अनुसार अष्टांग योग 1. यम - इन्द्रियो को वश में करना, विषयो से हटाना, शान्ति बनाये रखना ही यम है। 2. नियम- मन के विचारो को नियन्त्रित करना। 3. आसन - स्वयं एवं परमात्मा में लीन होना। तीन आसनों की चर्चा की है। (i) स्वासतिकासन (ii) पद्मासन (iii) सिद्धासन 4. प्राणायाम- नाडियों में प्राण के प्रवाह को स्...

इस तरीके से तुरंत सिद्ध हो जाते हैं मंत्र, जानिए रहस्य...

मुख्यत: 3 प्रकार के मंत्र होते हैं- 1.वैदिक 2.तांत्रिक और 3.शाबर मंत्र।..पहले तो आपको यह तय करना होगा कि आप किस तरह के मंत्र को जपने का संकल्प ले रहे हैं। साबर मंत्र बहुत जल्द सिद्ध होते हैं, तांत्रिक मंत्र में थोड़ा समय लगता है और वैदिक मंत्र थोड़ी देर से सिद्ध होते हैं। लेकिन जब वैदिक मंत्र सिद्ध हो जाते हैं और उनका असर कभी समाप्त नहीं होता है। मंत्र जप तीन प्रकार हैं:- 1.वाचिक जप, 2. मानस जप और 3. उपाशु जप। वाचिक जप में ऊंचे स्वर में स्पष्ट शब्दों में मंत्र का उच्चारण किया जाता है। मानस जप का अर्थ मन ही मन जप करना। उपांशु जप का अर्थ जिसमें जप करने वाले की जीभ या ओष्ठ हिलते हुए दिखाई देते हैं लेकिन आवाज नहीं सुनाई देती। बिलकुल धीमी गति में जप करना ही उपांशु जप है। मंत्र नियम : मंत्र-साधना में विशेष ध्यान देने वाली बात है- मंत्र का सही उच्चारण। दूसरी बात जिस मंत्र का जप अथवा अनुष्ठान करना है, उसका अर्घ्य पहले से लेना चाहिए। मंत्र सिद्धि के लिए आवश्यक है कि मंत्र को गुप्त रखा जाए। प्रतिदिन के जप से ही सिद्धि होती है। किसी विशिष्ट सिद्धि के लिए सूर्य अथवा चंद्रग्रहण के समय किसी भी नदी में खड़े होकर जप करना चाहिए। इसमें किया गया जप शीघ्र लाभदायक होता है। जप का दशांश हवन करना चाहिए और ब्राह्मणों या गरीबों को भोजन कराना चाहिए। इसी तरह लगातार जप का अभ्यास करते रहने से आपके चित्त में वह मंत्र इस कदर जम जाता है कि फिर नींद में भी वह चलता रहता है और अंतत: एक दिन वह मंत्र सिद्ध हो जाता है। दरअसल, मन जब मंत्र के अधीन हो जाता है तब वह सिद्ध होने लगता है। अब सवाल यह उठता है कि सिद्ध होने के बाद क्या होता है या कि उसका क्या लाभ? आओ अगले पन्नों पर इसे जानते हैं। मंत्र सिद्ध होने पर क्या...

सिद्ध साहित्य

Table of Contents • • • • • • • • • सिद्ध साहित्य “बौद्ध धर्म के वज्रयान शाखा से जो साहित्य देशभाषा में लिखा गया वही सिद्ध साहित्य(Siddh Sahitya) कहलाता है।” बौद्ध धर्म विकृत होकर वज्रयान संप्रदाय के रूप में देश के पूर्वी भागों में फैल चुका था बिहार से लेकर आसाम तक यह फैले थे। बिहार के नालंदा और तक्षशिला विद्यापीठ इनके प्रमुख अड्डे माने जाते हैं। इन बौद्ध तांत्रिकों में वामाचार की गहरी प्रवृत्ति पाई जाती थी। राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है। यह सिद्ध अपने नाम के अंत में आदर के रूप मे ‘ पा’ शब्द का प्रयोग करते थे जैसे : सरह पा, लुई पा “सिद्धों की भाषा संध्या भाषा के नाम से पुकारी जाती है जिसका अर्थ होता है कुछ स्पष्ट और कुछ अस्पष्ट “मुनि अद्वय वज्र तथा मुनिदत्त सूरी ने कहा है। बौद्ध- ज्ञान -ओ -दोहा नाम से हरप्रसाद शास्त्री ने इनका संग्रह प्रकाशित करवाया। सिद्ध साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ : • इस साहित्य में तंत्र साधना पर अधिक बल दिया जाता था। • जाति प्रथा और वर्ण भेद व्यवस्था का विरोध किया गया। • वैदिक धर्म का खंडन किया गया। • सिद्धो में पंचमकार की दुष्प्रवृत्ति देखने को मिलती है मांस,मछली, मदिरा,मुद्रा और मैथुन राहुल सांकृत्यायन ने 84 सिद्धों के नामों का उल्लेख किया है जिनमें सिद्ध सरहपा से यह साहित्य आरंभ होता है। सिद्धो की भाषा में उलट भाषा शैली का पूर्व रूप देखने को मिलता है जो आगे चलकर सिद्ध साहित्य के प्रमुख कवि सरहपा ⇒ सरहपा को हिन्दी का पहला कवि माना गया है। ⇒ इनका समय 769 ई.माना जाता है। ⇒ यह जाति से ब्राह्मण माने जाते हैं। ⇒ इन्हें सरहपाद,सरोज वज्र, राहुल भद्र आदि नामों से भी जाना जाता है। ⇒ इनके द्वारा रचित कुल 32 ग्रंथ थे। ⇒ जिनमें से द...