सिकंदर बादशाह की कहानी

  1. सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) की जीवनी
  2. सिकंदर बादशाह की यह है सच्चा कहानी
  3. सिकंदर की शपथ
  4. सिकंदर महान और पोरस के बीच हुए युद्ध की हकीकत
  5. Mughal History: कहानी उस मुगल बादशाह की जिसने गद्दी संभालते ही मचाया कत्ल ए आम
  6. कबीर दास जी और बादशाह सिकंदर लोदी/संत कबीर दास जी/hindi story
  7. सिकंदर महान की कहानी (जीवन परिचय / भारत पर आक्रमण) व उनकी मृत्यु


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सिकंदर (अलेक्जेंडर द ग्रेट) की जीवनी

मानव मन की सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह मृत्यु के खिलाफ है। आप जिस पल मृत्यु को नकारते करते हैं, उसी के साथ ज़िंदगी को भी नकार देते हैं। मृत्यु भविष्य नहीं है। जन्म के साथ ही आधी मृत्यु हो जाती है। आधा तो हो चुका है, आधा ही होना बाकी है। यहां आप हर पल जिस तरह जी रहे हैं, जिस प्रक्रिया से गुज़र रहे हैं, उसे ‘जीवन ’ भी कह सकते हैं और ‘मृत्यु ’ भी। यह एक प्रक्रिया है जो चल रही है, बस इसे एक दिन पूरा हो जाना है। लेकिन ‘मृत्यु ’ शब्द ही लोगों को बहुत डरा देता है। उसने पूछा, ‘लोग कहते हैं कि भारत में योगी हजारों साल तक जीवित रहते हैं। वे अमरत्व पा चुके हैं। क्या तुम मुझे अमरता सिखा सकते हो? उसके बदले तुम जो चाहो, मैं तुम्हें दे सकता हूं ’। योगी ने पूछा, ‘तुम्हारे पास क्या है? ’सिर्फ इसलिए क्योंकि लोग उसके बारे में गलतफ़हमी के शिकार होते हैं। प्राचीन काल से ही अमरता की कल्पना हमेशा लोगों को लुभाती रही है। संपन्‍न और प्रभावशाली लोगों को किसी चीज की कमी नहीं थी, बस वे ज़िंदगी नहीं जी पाए। इसलिए स्वाभाविक रूप से उन्हें अमरता की चाहत थी। धरती का हर राजा, हर शक्तिशाली व्यक्ति किसी न किसी तरह अमर होना चाहता था। अगर आप वाकई किसी को श्राप देना चाहते हैं, तो उनकी मृत्यु की कामना मत कीजिए, उनकी अंतहीन ज़िंदगी की कामना कीजिए। यह किसी के लिए भी सबसे बुरा श्राप होगा। आप कह सकते हैं ‘अरे, ऐसा क्यों? अभी मेरी ज़िंदगी बहुत सुंदर है ’। चाहे वह कितनी भी सुंदर क्यों न हो – यह घटित होना ही है। आपने सिकंदर महान का नाम सुना होगा। सिकंदर अपने अहंकार के चरम पर था। इस दुनिया में सबसे अहंकारी लोगों को महान बताया गया है। आप जितने अहंकारी होते हैं, जीवन-प्रक्रिया के उतने ही विरोध में होते हैं। जो भी सबसे ज्...

सिकंदर बादशाह की यह है सच्चा कहानी

विश्व विजय प्राप्त करने वाले सिकंदर के जीवन कहानी जानने केलिए हमारे साथ बने रहे। सबसे पहले हमारे वेबसाइट में आपका स्वागतम। 🙏 दुनिया में बहुत सारे राजा हुए लेकिन एक ऐसा राजा है जिसके नाम सुनते ही सर झुकाने लगाते थे हर एक राजा उन्हें देखकर भयंकर डरते थे वो है अलेक्जेंडर पूरी दुनिया सिकंदर के नाम से जानती हैं। वह एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन नाम से भी जाना जाता है। सिकंदर अपनी मृत्यु से पहले वह उस तमाम भूमि को जीत चुका था जिसकी जानकारी प्राचीन ग्रीक लोगों को पास थी। इसीलिए उसे विश्वविजेता भी कहा जाता है और उसके नाम के साथ महान या दी ग्रेट भी लगाया जाता हैं। इतिहास में वह सबसे कुशल और बुद्धिमान सेनापति माना गया है। कौन थे सिकन्दर जानिए उसका परिचय। सिकंदर का जन्म 👉20 जुलाई, 356 ईसा पूर्व में प्राचीन नेपोलियन की राजधानी पेला में हुआ था। sikander, के पिता का नाम फिलीप द्धितीय था जो कि मेक्डोनिया और ओलम्पिया के शासक थे और उनकी माता का नाम ओलिम्पिया था। ऐसा मना जाता है कि वे एक 👉जादूगरनी थी जिन्हें सांपो के बीच रहने का पसंद करते थे। सिकंदर की एक छोटा बहन थी जिसका नाम क्लियोपैट्रा था। इन दोनों भाई बहन की परवरिश पेला के शाही दरबार में की गई थी। उसे Cleopatra of Macedon भी कहा जाता है। वह सिकंदर महान की एकमात्र सहोदर थी। सिकंदर, बचपन से तेज दिमाग एवं बुद्धि से निपुण थे। 12 वर्ष की उम्र में सिकन्दर ने घुड़सवारी बहुत अच्छे से सीख ली थी। जीवन के प्रथम शिक्षा सिकंदर ने अपने रिश्तेदार दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ एपिरुस से ली थी। सिकंदर के पिता फिलीप चाहते थे कि सिकंदर को पढ़ाई के साथ-साथ युद्ध विद्या का भी पूरा ज्ञान हो। इसलिए उन्होनें अपने एक अनुभवी और कुशल रिश्तेदार को सिकंदर ...

सिकंदर की शपथ

सूर्य की चमकीली किरणों के साथ, यूनानियों के बरछे की चमक से ‘मिंगलौर’-दुर्ग घिरा हुआ है। यूनानियों के दुर्ग तोड़नेवाले यन्त्र दुर्ग की दीवालों से लगा दिये गये हैं, और वे अपना कार्य बड़ी शीघ्रता के साथ कर रहे हैं। दुर्ग की दीवाल का एक हिस्सा टूटा और यूनानियों की सेना उसी भग्न मार्ग से जयनाद करती हुई घुसने लगी। पर वह उसी समय पहाड़ से टकराये हुए समुद्र की तरह फिरा दी गयी, और भारतीय युवक वीरों की सेना उनका पीछा करती हुई दिखाई पड़ने लगी। सिकंदर उनके प्रचण्ड अस्त्राघात को रोकता पीछे हटने लगा। अफगानिस्तान में ‘अश्वक’ वीरों के साथ भारतीय वीर कहाँ से आ गये? यह शंका हो सकती है, किन्तु पाठकगण! वे निमन्त्रित होकर उनकी रक्षा के लिये सुदूर से आये हैं, जो कि संख्या में केवल सात हजार होने पर भी ग्रीकों की असंख्य सेना को बराबर पराजित कर रहे हैं। सिकंदर को उस सामान्य दुर्ग के अवरोध में तीन दिन व्यतीत हो गये। विजय की सम्भावना नहीं है, सिकंदर उदास होकर कैम्प में लौट गया, और सोचने लगा। सोचने की बात ही है। ग़ाजा और परसिपोलिस आदि के विजेता को अफगानिस्तान के एक छोटे-से दुर्ग के जीतने में इतना परिश्रम उठाकर भी सफलता मिलती नहीं दिखाई देती, उलटे कई बार उसे अपमानित होना पड़ा। बैठे-बैठे सिकंदर को बहुत देर हो गयी। अन्धकार फैलकर संसार को छिपाने लगा, जैसे कोई कपटाचारी अपनी मन्त्रणा को छिपाता हो। केवल कभी-कभी दो-एक उल्लू उस भीषण रणभूमि में अपने भयावह शब्द को सुना देते हैं। सिकंदर ने सीटी देकर कुछ इंगित किया, एक वीर पुरुष सामने दिखाई पड़ा। सिकंदर ने उससे कुछ गुप्त बातें कीं, और वह चला गया। अन्धकार घनीभूत हो जाने पर सिंकदर भी उसी ओर उठकर चला, जिधर वह पहला सैनिक जा चुका था। 2 दुर्ग के उस भाग में, जो टूट चुका ...

सिकंदर महान और पोरस के बीच हुए युद्ध की हकीकत

विस्तार सिकंदर को दुनिया जितना महान मानती है, उतना ही सम्मान भारत में राजा पोरस(पुरु) का भी हैं। पुरू का नाम यूनानी इतिहासकारों ने 'पोरस' लिखा है। इतिहास को निष्पशक्ष और सही तरिके से लिखने वाले प्लूटार्क ने लिखा है, "सिकंदर सम्राट पुरु की 20,000 की सेना के सामने तो ठहर नहीं पाया। आगे विश्व की महानतम राजधानी मगध के सम्राट धनानंद की 3,50,000 की सेना उसका स्वागत करने के लिए तैयार थी जिसमें 80,000 घुड़सवार, 80,000 युद्धक रथ एवं 70,000 विध्वंसक हाथी सेना थी।" लेकिन सिकंदर को तो राजा पोरस ने ही रोक लिया था। आइए जानते हैं इस ऐतिहासिक महासंग्राम से जुड़ी कुछ खास बातें: सिकन्दर(Alexander) यूनान के उत्तर में स्थित मकदूनिया(mecedoniya) के बादशाह फिलिप के बेटे थे। केवल बीस वर्ष की आयु में सिकन्दर बादशाह बन गए। प्राचीन काल से ईरान और यूनान के बीच शत्रुता चली आ रही थी। सिकन्दर ने विश्वविजेता बनने का प्रण लिया और बड़ी सेना के साथ अपनी विजय यात्रा प्रारम्भ कर दी। उस समय यूरोप में यूनान, रोम को छोडकर शेष जगह सभ्यता न के बराबर थी और प्राचीन सभ्यताएं एशिया महाद्वीप, मिस्र, में ही स्थित थी। इसलिए सिकन्दर ने सेना लेकर पूर्व का रूख किया वह थीव्स, मिस्र, इराक, मध्य एशिया को जीतता हुआ ईरान पहुंचा जहां क्षर्याश का उतराधिकारी दारा शासन कर रहा था। सिकंदर ने दारा को हराकर उसके महल को आग लगा दी और इस प्रकार क्षर्याश द्वारा एथेंस को जलाए जाने का बदला लिया। इसके बाद वो आगे बढकर हिरात, काबुल, समरकंद को जीतता हुआ सिंध नदी की उत्तरी घाटी तक पहुंच गया। जब सिकन्दर ने सिन्धु नदी को पार किया तो भारत में उत्तरी क्षेत्र में तीन राज्य थे-झेलम नदी के चारों ओर राजा अम्भि का शासन था जिसकी राजधानी तक्षशिला थी। पोरस का...

Mughal History: कहानी उस मुगल बादशाह की जिसने गद्दी संभालते ही मचाया कत्ल ए आम

मुगलों में सत्ता हासिल करने के लिए भाई-भाई खून के प्यासे थे हरम से लेकर लेकर दरबार तक इसके लिए षडयंत्र रचे गए. इसकी शुरुआत हुई अकबर के दौर से. जब अकबर बूढ़े हो चले तो सवाल उठा कि आखिर सत्ता कौन संभालेगा. सलीम यानी जहांगीर पहले ही बागी हो चुके थे. दानियाल सत्ता संभालने में कामयाब होंगे, अकबर को इस बात पर संदेह था. तमाम षडयंत्र और राजनीतिक दांवपेच के बाद अंतत: जहांगीर ने मुगल सल्तनत की कमान संभाली. यहीं से कई षडयंत्रों के जन्म की नींव पड़ी. जहांगीर को सत्ता मिलने के बाद उसकी बेगम नूरजहां ने कई षडयंत्र रचे और अपनों को सत्ता के करीब लाने की कोशिशें शुरू हुईं. 28 अक्टूबर, 1627 को जहांगीर के इंतकाल के बाद मुगल सत्लनत हासिल करने के लिए बेटों के लिए संघर्ष शुरू हुआ. शहरयार और खुर्रम के बीच दांवपेच शुरू हुए. इसमें अहम भूमिका निभाई नूरजहां ने. सल्तनत के लिए भिड़े भाई-भाई जहांगीर की मौत के बाद उसके सबसे छोटे बेटे मिर्जा शहरयार को बादशाह घोषित किया गया. शहरयार चाहता था कि मुगल साम्राज्य को लाहौर से चलाया जाए, लेकिन जहांगीर का तीसरा बेटा शहजादा खुर्रम यानी शाहजहां एक अलग योजना बना रहा था. कई मौकों पर दोनों भाइयों के बीच इसको लेकर भिड़ंत भी हुई. दोनों के रिश्ते सामान्य नहीं रहे. जहांगीर की बेगम नूरजहां चाहती थीं कि अघोषित तौर पर सत्ता पर उनका कब्जा बरकरार रहे, इसलिए खुर्रम की शादी अपनी भतीजी अर्जुमंद बानो बेगम यानी मुमताज महल से कराई. मात्र 11 साल की उम्र में दोनों का निकाह कर दिया गया. मुगल सल्तनत की कमान शहरयार के हाथों में थी, लेकिन आसफ खान चाहते थे हिन्दुस्तान पर उनका दामाद शाहजहां राज करे. मां को कैद में रखा शाहजहां और आसफ खान ने मिलकर योजना बनाई. योजना के मुताबिक, आसफ खान ने लाहौर...

सिकंदर

हम लोग हमेशा यही सोचते हैं की जिंदगी में पैसा ही सब कुछ है | लेकिन हमारी सोच गलत है क्योंकि पैसा बहुत कुछ तो हो सकता है लेकिन सब कुछ नहीं | हां पैसा हमारी जरूरत तो है लेकिन सब कुछ नहीं | अगर पैसा सब कुछ होता तो हम पैसे से स्वास्थ्य खरीद सकते, कभी बीमार नहीं होते | अगर पैसा ही सब कुछ होता तो इंसान उससे जिंदगी भी खरीद लेता | आपने बड़े बड़े अमीर लोग भी देखे होंगे, जिनके पास बेशुमार दौलत थी लेकिन अस्पताल में वह कितने बेबस नजर आते हैं | बीमारी की वजह से | आपको मैं सिकंदर महान की कहानी सुनाती हूं जिनके पास दुनिया भर की दौलत थी, लेकिन अंत समय वह दौलत भी काम नहीं आई | सिकंदर-ए-आजम, जिसको विश्व विजेता कहते हैं, जब सारी दुनिया को जीतता हुआ भारत के उत्तर पश्चिम व्यास नदी के पास आया, तो फौज ने आगे बढ़ने से इनकार कर दिया | मजबूर होकर वापस लौट पड़ा | उसने ज्योतिषियों से पूछा कि मेरी मौत कब होगी ? ज्योतिष समझदार थे | उन्होंने हिसाब लगाकर देखा कि उम्र बहुत थोड़ी है, करीब-करीब खत्म हो चुकी है | अब झूठ कहना नहीं और सच कहने से अपनी जान का डर था | सोच विचार कर कहा कि आप की मौत तब होगी जब आसमान सोने का और जमीन लोहे की होगी | सिकंदर खुश हो गया और कहने लगा, फिर क्या फिकर है, मुझे तो कभी मरना ही नहीं | जब आसमान सोने का और जमीन लोहे की होगी, तब मैं मरूंगा | जब वह पश्चिम फारस जाते हुए सिस्तान के रेगिस्तान में से गुजर रहा था तो उसे मलेरिया हो गया | पीछे पीछे फौज थी, आगे आगे आप खुद और वजीर | जैसे-जैसे आगे बढ़ता गया, बुखार तेज होता गया | फौज पीछे रह गई | आखिर वजीर से कहने लगा, वजीर ! मुझे तो बुखार हो गया है | वजीर ने कहा कि बादशाह सलामत ! दो 4 किलोमीटर आगे चलो, कोई पेड़ आ जाए जहां आराम किया जाए | जब आ...

कबीर दास जी और बादशाह सिकंदर लोदी/संत कबीर दास जी/hindi story

श्री कबीर दास जीकी बढ़ती हुई महिमा को देख कर ब्राह्मणों के हृदय में ईर्ष्या पैदा हो गई , उस समय भारत का तत्कालीन बादशाह सिकंदर लोदी काशी आया हुआ था | भक्ति विमुख ब्राह्मणों ने कबीर दास जी की माता को भी अपने पक्ष में कर लिया और इकट्ठे होकर सिकंदर लोदी के दरबार में गए , सब उन्हें पुकार की थी इस कबीर दास ने सारे गांव को दुखी कर रखा है, मुसलमान होकर हिंदू बाबा जी बन गया है किसी धर्म को ना मानकर ढोंग फैलाता रहता है | बादशाह ने तुरंत आज्ञा दे दी कि उसे अभी पकड़ कर मेरे पास ले आओ मैं उसे देख लूंगा कि वह कैसा मक्कार है | बादशाह की आज्ञा पाकर सिपाही लोग से कबीर दास जी को ले आए और बादशाह के सामने खड़ा कर दिया | तब किसी काजी ने कबीर दास जी से कहा यह बादशाह सलामत हैं, इन्हें सलाम करो ? उन्होंने उत्तर दिया कि हम श्री राम के अतिरिक्त दूसरे किसी को सलाम करना जानते ही नहीं | श्री कबीर दास जी की बातें सुनकर बादशाह ने इन्हें लोहे की जंजीरों से बंधवाकर गंगा जी की धारा में डुबो दिया, परंतु यह जीवित ही रहे लोहे की जंजीर ना जाने कहां गई यह गंगा जी की धार से निकलकर तटपर खड़े हो गए | पश्चात बादशाह की आज्ञा से बहुत सी लकड़ियों में इन्हें दबा कर आग लगा दी गई उस समय नया आश्चर्य हुआ सभी लकड़िया जलकर भस्म हो गई और उनका शरीर इस प्रकार चमकने लगा जिसे देखकर तपे हुए सोने की चमक भी लज्जित हो जाए | जब यह उपाय भी व्यर्थ हो गया तो एक मतवाला हाथी लाकर उसे उनके ऊपर झपटाया गया परंतु लाख प्रयत्न करने पर भी हाथी श्री कबीर दास जी के पास नहीं आया, बड़ी जोर से चिघांडकर वह दूर भाग जाता था |इसके समीप में हाथी के ना आने का कारण यह था कि स्वयं श्री रामजी सिंह का रूप धारण कर कबीर दास जी के आगे बैठे थे |बादशाह सिकंदर लोदी ...

सिकंदर महान की कहानी (जीवन परिचय / भारत पर आक्रमण) व उनकी मृत्यु

सिकंदर महान की कहानी : सिकंदर महान का जन्म 20 और 21 जुलाई 356 ई पू को मैसिडोनिया में हुआ था| (यह यूनान में है) सिकंदर मेसेडोनिया का ग्रीक शाषक था| इतिहास मै सिकंदर को महान और सबसे अधिक यशस्वी शासक माना गया है. सिकंदर ने मैसिडोनिया, फिनिशिया, जुदेआ, गाझा, बॅक्ट्रिया, सीरिया , मिस्र तथा भारत में पंजाब तक के प्रदेशों पर अपना कब्जा जमा लिया था| यह हिस्सा पूरी पृथ्वी का सिर्फ 5 चौथाई हिस्सा ही था. सिकंदर महान की कहानी सिकंदर महान के पिता और माता का क्या नाम था ? सिकंदर के पिता फिलिप द्वितीय (अंग्रेजी : Philip II of Macedon) और सिकंदर की माता का नाम ओलंपियाज था| सिकन्दर जब 16 वर्ष का था तब वह अरस्तु से शिक्षा प्राप्त करके सिकंदर अपने राज्य में वापस आ गया था और जब वह अपने राज्य वापस आया था तभी फिलिप ने बेजान्टियम के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया था और सिकंदर को अपने राज्य का प्रभारी बनाकर राज्य की देख रेख के लिए छोड़ दिया. जब फिलिप वहा उपस्थित नही था तब थ्रेसियन मैदी ने मैसिडोनिया के खिलाफ विद्रोह कर दिया था| सिकंदर बहुत बहादुरी से उन्हें वहा खदेड़ कर भगा दिया और बाद में उसी इलाके में सिकंदर ने यूनानी लोगो के साथ एक उपनिवेश स्थापित करके अलेक्जेंड्रोपोलिस नामक शहर की स्थापना की थी. फिलिप वापस लोटा तो उसे अपने सेनापती अटलुस की भतीजी क्लियोपेट्रा ईरीडिइस से प्यार हो गया था| फिलिप ने उससे विवाह कर लिया| इस विवाह से सिकंदर की उत्तराधिकारी की दावेदारी संकट में आ चुकी थी क्यूंकि फिलिप का होने वाला पुत्र पुरे तरीके से उत्तराधिकारी होता. सिकन्दर अपनी माँ को लेकर मेसेडोनिया से भाग गया और अपनी माँ को अपने मामा के यहा छोड़ आया और खुद इलियारिया चला गया| वहा जाकर उसने इलियारिया के राजा से संरक्षण की मांग ...