Sikhon ke dasven guru kaun the

  1. Mahapurushon Ke Guru Kaun The
  2. Kabir Das Ke Guru Kaun The
  3. 10 Gurus of Sikh, History in Hindi : सिखों के 10 गुरु
  4. दानवीर कर्ण Karan Ke Guru Kaun The , Eaarti
  5. तुलसीदास के गुरु कौन थे? और उनका जीवन परिचय
  6. Sikho Ke 10 Guru Kaun The : गुरु की महिमा पर अनमोल वचन , Eaarti
  7. Ten Gurus Of Sikh, The Sikh Gurus, Guru Granth Sahib, Das Sikh Gurus, Sikh Saints, Sikh Holy People, Gurus Of Sikhism, Sikhism Gurus, India


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Mahapurushon Ke Guru Kaun The

सूचना: दूसरे ब्लॉगर, Youtube चैनल और फेसबुक पेज वाले, कृपया बिना अनुमति हमारी रचनाएँ चोरी ना करे। हम कॉपीराइट क्लेम कर सकते है इतिहास में वर्णित कबीर , परशुराम , तुलसीदास, तानसेन , सूरदास के गुरु कौन थे शायद ही कोई जानता हो। क्या आप जानना चाहते हैं इन ( Guru Kaun The ) महापुरुषों के गुरु कौन थे ? तो हम आपके लिए लेकर आये हैं महापुरुषों के गुरुओं के नाम :- Mahapurushon Ke Guru Kaun The महापुरुषों के गुरु कौन थे Kabir Ke Guru Kaun The कबीर के गुरु कौन थे अपनी रचनाओं में गुरु का महत्त्व बनाने वाले कबीरदास जी ने गुरु मर्यादा व परंपरा ( गुरु शिष्य के नाते ) को निभाए रखने के लिए कलयुग में स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाया था। Parshuram Ke Guru Kaun The परशुराम के गुरु कौन थे परशुराम जी ने आरम्भिक शिक्षा महर्षिविश्वामित्रएवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त करने के साथ ही ब्रह्मर्षि कश्यपसे विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त किये। तदनन्तर ( इसके बाद )कैलाश गिरिश्रृंगपर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया।ज्यादातर लोग मात्र भगवान शिव को ही इनका गुरु बताते हैं। Tulsidas Ke Guru Kaun The तुलसीदास जी के गुरु कौन थे भगवानशंकरजीकी प्रेरणा से रामशैल पर रहने वाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्री नरहर्यानन्द जी ( नरहरि बाबा ) ने ही तुलसीदास जी को शिक्षा-दीक्षा दी। उन्होंने ही इनका नाम रामबोला के से बदलकर तुलसीराम रखा था। ज्ञान प्राप्ति के बाद तुलसीदास जी ने रामचरित मानस सहित भगवान राम को समर्पित कई रचनाओं का सृजन किया। Surdas Ke Guru Kaun The सूरदास के गुरु कौन थे सूरदास जी के विषय में ऐसी मान्यता है की जन्म से ही अंधे हो...

Kabir Das Ke Guru Kaun The

kabir das ke guru kaun the | कबीर दास के गुरु कौन थे | कबीर दास का जीवन परिचय, पत्नी, पुत्र, पुत्री, जन्म, मृत्यु, साहित्यिक विशेषताएँ – गुरु के बिना ज्ञान अधूरा होता है. गुरु ही व्यक्ति को मंजिल तक पहुँचता है चाहे आध्यात्म्क जीवन हो या सांसारिक जीवन हो. व्यक्ति के जीवन में गुरु माता पिता के बाद सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. इस आर्टिकल में हम राम भक्त रत्न कबीर दास के गुरु के बारे में जाने।गे इसके साथ ही इस आर्टिकल में हम जानेगे की कबीर दास को अपने गुरु कैसे प्राप्त होए थे. अनुक्रम • • • • • • • • • • कबीर दास के गुरु कौन थे | kabir das ke guru kaun the संत श्री कबीर दास जी ने रामानंद जी को अपना गुरु माना था. रामानंद जी ने कबीर दास जी को गुरु मंत्र के रूप में “भगवान राम” का नाम दिया था. रामानंद जी अपने समय के सुप्रसिद्ध ज्ञानी माने जाते थे. वह वेद और गीता ज्ञान का खूब प्रचार किया करते थे. जब रामानंद जी ने कबीर दास जी को अपना शिष्य बनाया तब रामानंद जी की आयु 104 वर्ष थी और कबीर दास जी की आयु 5 वर्ष थी. रामानंद जी को कबीर दास जी गंगा घाट पर बाल स्वरूप में मिले थे. जैन धर्म के संस्थापक कौन थे | जैन धर्म का इतिहास, शिक्षाएं, पाँच महाव्रत और सिद्धांत रामानंद और कबीर दास जी की मुलाकात की कहानी रामानंद जी को कबीर दास जी पंच गंगा घाट पर लीलामय रूप में लीला करते हुए मिले थे. रामानंद जी पंच गंगा घाट पर प्रतिदिन स्नान करने जाया करते थे. उसदिन रामानंद जी की खडाऊ कबीर दास जी के लीलामय शरीर में लगी और उनके मुख से ‘राम राम’ शब्द निकला तब कबीर ने रोने की लीला की और रामंनद जी ने उन्हें गोदी में उठाया उस दौरान रामानंद जी की कंठी कबीर के गले में आ गिरी तब से ही रामानंद जी कबीर दास जी के ...

10 Gurus of Sikh, History in Hindi : सिखों के 10 गुरु

1. गुरु नानक देव जी ( Guru Nanak Dev ji) – सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव का जन्म 15 अप्रैल, 1469 में ‘तलवंडी’ नामक स्थान पर हुआ था। नानक जी के पिता का नाम कल्यानचंद या मेहता कालू जी और माता का नाम तृप्ता था। नानक जी के जन्म के बाद तलवंडी का नाम ननकाना पड़ा। वर्तमान में यह जगह पाकिस्तान में है। उनका विवाह नानक सुलक्खनी के साथ हुआ था। इनके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीचन्द थे। उन्होंने कर्तारपुर नामक एक नगर बसाया, जो अब पाकिस्तान में है। इसी स्थान पर सन् 1539 को गुरु नानक जी का देहांत हुआ था। गुरु नानक की पहली ‘उदासी’ (विचरण यात्रा) 1507 ई. में 1515 ई. तक रही। इस यात्रा में उन्होंने हरिद्वार, अयोध्या, प्रयाग, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथपुरी, रामेश्वर, सोमनाथ, द्वारका, नर्मदातट, बीकानेर, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, पानीपत, कुरुक्षेत्र, मुल्तान, लाहौर आदि स्थानों में भ्रमण किया। 2. गुरु अंगद देव जी (Guru Angad Dev ji) – गुरु अंगद देव सिखों के दूसरे गुरु थे। गुरु नानक देव ने अपने दोनों पुत्रों को छोड़कर उन्हें अपना उत्तराधिकारी बनाया था। उनका जन्म फिरोजपुर, पंजाब में 31 मार्च, 1504 को हुआ था। इनके पिता का नाम फेरू जी था, जो पेशे से व्यापारी थे। उनकी माता का नाम माता रामो जी था। गुरु अंगद देव को ‘लहिणा जी’ के नाम से भी जाना जाता है। अंगद देव जी पंजाबी लिपि ‘गुरुमुखी’ के जन्मदाता हैं। गुरु अंगद देव का विवाह खीवी नामक महिला से हुआ था। इनकी चार संतान हुई, जिनमें दो पुत्र और दो पुत्री थी। उनके नाम दासू व दातू और दो पुत्रियों के नाम अमरो व अनोखी थे। वह लगभग सात साल तक गुरु नानक देव के साथ रहे और फिर सिख पंथ की गद्दी संभाली। वह सितंबर 1539 से मार्च 1552 तक गद्दी पर आसीन रहे। गुरु अंगद ...

दानवीर कर्ण Karan Ke Guru Kaun The , Eaarti

जिनका नाम ब्रह्स्थ था तो कर्ण के पुत्र का नाम ब्रह्स्थ था कर्ण का पुत्र कर्ण की तरह ही बहुत ही प्रतापी था और महान धनुर्धर योद्धा था और कर्ण की ही भांति ब्रह्स्थ ने भी महाभारत जेसे महान युद्ध में भाग लिया और वीरगति को प्राप्त हुआ और अंगराज कर्ण भी महाभारत के युद्ध में ही वीरगति को प्राप्त हुए महारथी कर्ण के पास एक अभेद्य कवच था जो कि उन्हें यह कवच उनके पिता की कृपा से प्राप्त हुआ था महारथी कर्ण को कवच जन्म से ही उनके साथ मिला था दानवीर कर्ण को कवच और कुंडल यह दो चीज जन्म से प्राप्त थी जब भी कर्ण पर कोई भी विपता आती तो यह कवच और कुंडल उनकी रक्षा करते कर्ण के पिता का नाम सूर्य देव था तो उन्हें एक झूठ का सहारा लेना पड़ा वह झूठ परशुराम के सत्या का तेज नहीं सह सका इसी के कारण कर्ण की मृत्यु हुई करण ने कहा कि वह ब्राह्मण है • • क्योंकि कर्ण और परशुराम से शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे और परशुराम केवल ब्राह्मणों को शिक्षा देते थे जब परशुराम को सत्य का पता चला तो इसलिए परशुराम ने उन्हें श्राप दिया कि जब तुम्हें मेरी विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी तब तुम्हें मेरी विद्या का कोई भी अक्सर याद नहीं रहेगा जब करण और अर्जुन का महाभारत में युद्ध चल रहा था दानवीर कर्ण का अंतिम दान क्या था तभी अंतिम क्षणों में करण की शिक्षा समाप्त हो गई तभी अर्जुन ने कर्ण का वध कर दिया इस युद्ध से पहले भगवान इंदर ने कर्ण से उनके कुंडल और कवच दान में ले लिए क्योंकि उन्हें भय था की अगर कर्ण से उनके कुंडल और कवच नहीं लिए तो कर्ण का मरना लगभग असंभव है तो ऐसा इसलिए भी हुआ क्योंकि अर्जुन के पिता का नाम इन्द्र है इस दान के बाद कर्ण को दानवीर कर्ण से विख्यात हुए karna of mahabharata कर्ण अपने वचन पर अडिग रहने वाले मह...

तुलसीदास के गुरु कौन थे? और उनका जीवन परिचय

तुलसीदास के गुरु कौन थे? और उनका जीवन परिचय आज के इस लेख में हम आपको बताने जा रहे है की गोस्वामी तुलसीदास के गुरु कौन थे और उनकी जीवनी और महत्वपूर्ण रचनाओं के बारें में आपको बताने जा रहे है। सबसे पहले हम बात करते है की तुलसीदास के गुरु कौन थे? तो आपको बताते चले की तुलसीदास के गुरु रामशील में रहने वाले श्री अनंतानंद जी के प्रिय शिष्य श्री नरहरिानंद जी (नरहरिदास बाबा) थे। भगवान शंकरजी से की प्रेरणा से रामबोला का नाम तुलसीराम रखा और यही से नरहरिदास बाबा तुलसीदास जी के गुरु बन गए। उसके बाद, वे उसे अयोध्या (उत्तर प्रदेश) ले गए और वहां 1561 में माघ शुक्ल पंचमी (शुक्रवार) को यज्ञोपवीत-संस्कार किया। अनुष्ठान के समय भी, बिना सिखाए रामबोला ने गायत्री मंत्र का उच्चारण स्पष्ट रूप से किया, जिससे सभी को आश्चर्य हुआ। इसके बाद, तुलसीदास के गुरु नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पांच अनुष्ठान किए और रामबोला (तुलसीदास) को राम-मंत्र में प्रवेश दिया और अयोध्या में रहकर उसे पढ़ाया। बालक रामबोला का दिमाग बहुत तेज था। वह शिक्षक के मुख से जो कुछ भी सुनता था, उसे तुरंत याद कर लेता था। वहां से कुछ देर बाद गुरु और शिष्य दोनों चक्रकास्त्र (सौरों) पहुंचे। वहां नरहरि बाबा ने बालक को राम की कथा सुनाई, लेकिन वह उसे ठीक से समझ नहीं पाई। नरहरि या नरहरिदास (जन्म: 1505, मृत्यु: 1610) हिंदी साहित्य की भक्ति परंपरा में एक ब्रजभाषा कवि थे। उन्हें संस्कृत और फारसी का भी अच्छा ज्ञान था। और पढ़े: नरहरिदास का जीवन नरहरिदास का जन्म उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के पखरौली नामक कस्बे में हुआ था। उसका संपर्क हुमायूँ, शेरशाह सूरी, सलीम शाह और रेवान नरेश रामचंद्र आदि शासकों से माना जाता है। हालाँकि, अकबर ने उन्हें अत्यधिक महत्व द...

Sikho Ke 10 Guru Kaun The : गुरु की महिमा पर अनमोल वचन , Eaarti

की सीखो के वे दस गुरु कोन कोन थे जिन्होंने सीखो को न केवल सर उठाकर जीना सिखाया बल्कि सीखो को महान धर्म के रूप में परवर्तित कर दिया सीखो • • • Sikho ke 10 guru kaun the • 1 गुरु नानक देव जी • 2 गुरु अंगद देव जी • 3 गुरु अमर दास जी • 4 गुरु रामदास जी • 5 गुरु अर्जन देव जी • 6 गुरु हरगोबिन्द सिंह जी • 7 गुरु हर राय जी • 8 गुरु हरकिशन साहिब जी • 9 गुरु तेग बहादुर सिंह जी • 10 गुरु गोबिन्द सिंह जी • Sikho ke 10 guru kaun the इसके बाद गुरु गोविन्द सिह जी ने इस प्रथा को समाप्त करते हुए गुरु ग्रंथ साहिब 11 गुरु के रूप में स्थापित कर दिया और गुरु प्रथा को समाप्त कर दिया हर सीखो के हर गुरु की अपनी एक कहानी है इतिहास है

Ten Gurus Of Sikh, The Sikh Gurus, Guru Granth Sahib, Das Sikh Gurus, Sikh Saints, Sikh Holy People, Gurus Of Sikhism, Sikhism Gurus, India

"The Palace of the Lord God is so beautiful. Within it, there are gems, rubies, pearls and flawless diamonds. A fortress of gold surrounds this Source of Nectar. How can I climb up to the Fortress without a ladder? By meditating on the Lord, through the Guru, • First Guru Guru Nanak Sahib • Second Guru Guru Angad Sahib • Third Guru Guru Amardas Sahib • Fourth Guru Guru Ramdass Sahib • Fifth Guru Guru Arjan Sahib • Sixth Guru Guru Hargobind Sahib • Seventh Guru Guru Har Rai Sahib • Eighth Guru Guru Harkrishan Sahib • Ninth Guru Guru Tegh Bahadur Sahib • Tenth Guru Guru Gobind Singh Sahib I am blessed and exalted. The Guru is the Ladder, the Guru is the Boat, and the Guru is the Raft to take me to the Lord's Name. The Guru is the Boat to carry me across the world-ocean; the Guru is the Sacred Shrine of Pilgrimage, the Guru is the Holy River. If it pleases Him, I bathe in the Pool of Truth, and become radiant and pure." (Guru Nanak, Sri Rag, pg. 17) The word 'Guru' in Sanskrit means teacher, honoured person, religious person or saint. Sikhism though has a very specific definition of the word 'Guru'. It means the descent of divine guidance to mankind provided through ten Enlightened Masters. This honour of being called a Sikh Guru applies only to the ten Gurus who founded the religion starting with Guru Nanak in 1469 and ending with Guru Gobind Singh in 1708; thereafter it refers to the Sikh Holy Scriptures the Guru Granth Sahib. The divine spirit was passed from one Guru to t...