सियाराम मय सब जग जानी

  1. मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी
  2. सिया राम मय सब जग जानी, राम सभी के हैं और सब राम के
  3. सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी : पंडित धीरेंद्र शास्त्री, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर के समक्ष 95 परिवारों ने की घर वापसी।
  4. मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी
  5. सिया राम मय सब जग जानी, राम सभी के हैं और सब राम के
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  7. सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी : पंडित धीरेंद्र शास्त्री, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर के समक्ष 95 परिवारों ने की घर वापसी।


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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना किसने कहा था मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna essay in hindi Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna yah pankti kisne likhi hai मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना किसने कहा था मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna essay in hindi Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna yah pankti kisne likhi hai - उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इकबाल के गीत की यह पंक्तियां अनेक बार दुहराई गई हैं। मजहब, सम्प्रदाय जिसे कभी-कभी धर्म भी कह दिया जाता है. हमें परस्पर शत्रुता करना नहीं सिखाता। इकबाल की इन पंक्तियों में एक ऐसी सच्चाई है जिसे कट्टरपंथी देखकर भी नहीं देखते।धर्म के नाम पर लोगों को उत्तेजित किया जाता है। धर्म के नाम पर हत्याएं की जाती हैं। पड़ोसियों के घरों में आग लगाई जाती है।मजहब की रक्षा या सेवा के नाम पर दंगे किये जाते हैं, मां बहनों की इज्जत नीलाम की जाती है, निरीह बच्चों की हत्या की जाती है। धर्म खतरे में है, की घण्टी बजा कर मुल्ला-मौलवी, पण्डित-पादरी धर्मान्धता को बढ़ावा देते हैं।धर्म के नाम पर मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग किया जाता है। सम्प्रदाय अत्याचार, भेदभाव तथा शोषण का साधन बन जाता है।साम्प्रदायिकता की आग में मनुष्यता जल ज...

सिया राम मय सब जग जानी, राम सभी के हैं और सब राम के

लोकसंस्कृति, लोकसाहित्य तथा लोकगीतों को जिस प्रकार रामकथा ने प्रभावित किया है, ऐसा दूसरा कोई और काव्य अलभ्य ही है। सियाराम तथा रामायण के पात्रों से जुड़ी अनेकानेक कथाएं, अनेकानेक गीत लोकजीवन का एक ऐसा अभिन्न अंग बन गए हैं कि उनमें सत्य और असत्य वाला भेद युगों पूर्व मिट चुका है। शेष है तो बस चिरकालिक रामरस-गंगा और उसमें डुबकी लगाने वाले आप और हम मर्त्य मानव। प्रभु श्रीराम के शिवधनुष भंग करते ही मिथिलावासियों में हर्ष की लहर दौड़ गई। माता जानकी अपनी सखियों के साथ वरमाला लिए धनुषयज्ञ मंडप में पधारीं। मिथिला के समस्त नर-नारी इस दिव्य क्षण में उपस्थित होकर अपने जीवन काे धन्य मान रहे हैं। मां सीता श्रीराम जी के सम्मुख आईं। जयमाला की शुभवेला आन पड़ी थी। हालांकि, ससुराल में जब तक जमाई के साथ सहज और सरल हास्य विनोद न हो तब तक विवाह का रस अधूरा ही रह जाता है। और फिर मिथिला के नर-नारी तो बड़भागी ही समझे जाने चाहिए कि देवीस्वरूपा जानकी मिथिला की कन्या हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम राम उनके दामाद हैं। तब भला इतने सलोने, इतने नयनाभिराम, इतने सुहावने रूप में साक्षात ईश्वर को पाकर हर्षोल्लसित मिथिलावासी क्यों न अपने प्रिय दामाद के साथ हास्य-विनोद करें! जब माता जानकी की सखियों ने देखा कि श्रीरामजी का क़द तो जानकी जी से अधिक है और जयमाला के लिए उन्हें जानकी जी के समक्ष अपना शीश झुकाना ही होगा, तब एक सखी ने रामजी से सरल विनोद में कहा, ‘प्रभु, हम जानते हैं कि आपको झुकने की आदत नहीं है, किंतु अब तो यह आपका ससुराल है और ससुराल में तो अच्छे-अच्छों को झुकना ही पड़ता है। इसलिए हमें न झुकाना पड़े, आप स्वयं ही झुक जाइए।’ इसी पर सखियां मिलकर गाती हैं- ‘ए रघुवर लाला, जयमाला पहीर ली, अपले तो ऋषि-मुनि सबके झुकवली,...

सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी : पंडित धीरेंद्र शास्त्री, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर के समक्ष 95 परिवारों ने की घर वापसी।

सागर में चल रही बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की श्री मद्भागवत कथा का रविवार को सातवें दिन समापन हुआ इस अवसर पर पहले दिन धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा कही गई सागर में कुछ बड़ा होने की बात सच होती दिखाई दी यहां कथा के आखिरी दिन 95 लोगों ने सनातन धर्म में वापसी की इस दौरान मंच से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वापसी करने वालों से बातचीत की उन्होंने कहा आगे कोई बड़ा प्रलोभन मिलेगा तो क्या फिर चले जाओगे जवाब में लोगों ने कहा कि हम आपके द्वारा प्रेरित होकर सनातन धर्म में आए हैं अब कभी वापस नहीं जाएंगे पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा की जब तक शरीर में सांस रहेगी तब तक हिंदू को बिखरने नहीं दूंगा इस बीच कथा में उपस्थित हजारों लोगों ने जय श्रीराम के जयकारे लगाए। उन्होंने कहा कि बारिश हो रही है ज़मीन जरूर गीली है लेकिन ज़मीर गीला नहीं होना चाहिए। जिस यज्ञ में बारिश हो जाती है वह यज्ञ सफल हो जाता है। मैं कह रहा था कि सागर में कुछ बड़ा होने वाला है। आज कुछ परिवार सनातन धर्म में वापसी कर रहे हैं। इसमें 50 से अधिक परिवारों के 95 लोग शामिल हैं जो भ्रमित होकर अन्य धर्म में चले गए थे। उन्होंने गुलाब रानी, दयाल और अन्य लोगों से बात की। उन्होंने कहा कि अब बताइये कहते हैं कि हम नफरत फैला रहे हैं या कोई हमारे भोले भाले सनातनियों को बहला रहा है। इसके बाद कथा में भागवत के प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया और कई दृष्टांत सुनाए। अंतिम दिन बारिश के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग कथा सुनने पहुँचे। कोई भी तूफान हमे कथा से नहीं रोक सकता कथा के आखिरी दिन जमकर बारिश हुई देर रात से ही लोग बागेश्वर धाम सरकार के दर्शन करने हजारों की संख्या में मौजूद थे। बारिश में भीगते श्रद्धालुओं को देख व...

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी

मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना किसने कहा था मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna essay in hindi Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna yah pankti kisne likhi hai मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना किसने कहा था मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना निबंध इन हिंदी mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna essay in hindi Hindi Essay on Mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna mazhab nahi sikhata aapas mein bair rakhna yah pankti kisne likhi hai - उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुहम्मद इकबाल के गीत की यह पंक्तियां अनेक बार दुहराई गई हैं। मजहब, सम्प्रदाय जिसे कभी-कभी धर्म भी कह दिया जाता है. हमें परस्पर शत्रुता करना नहीं सिखाता। इकबाल की इन पंक्तियों में एक ऐसी सच्चाई है जिसे कट्टरपंथी देखकर भी नहीं देखते।धर्म के नाम पर लोगों को उत्तेजित किया जाता है। धर्म के नाम पर हत्याएं की जाती हैं। पड़ोसियों के घरों में आग लगाई जाती है।मजहब की रक्षा या सेवा के नाम पर दंगे किये जाते हैं, मां बहनों की इज्जत नीलाम की जाती है, निरीह बच्चों की हत्या की जाती है। धर्म खतरे में है, की घण्टी बजा कर मुल्ला-मौलवी, पण्डित-पादरी धर्मान्धता को बढ़ावा देते हैं।धर्म के नाम पर मनुष्य को दूसरे मनुष्य से अलग किया जाता है। सम्प्रदाय अत्याचार, भेदभाव तथा शोषण का साधन बन जाता है।साम्प्रदायिकता की आग में मनुष्यता जल ज...

सिया राम मय सब जग जानी, राम सभी के हैं और सब राम के

लोकसंस्कृति, लोकसाहित्य तथा लोकगीतों को जिस प्रकार रामकथा ने प्रभावित किया है, ऐसा दूसरा कोई और काव्य अलभ्य ही है। सियाराम तथा रामायण के पात्रों से जुड़ी अनेकानेक कथाएं, अनेकानेक गीत लोकजीवन का एक ऐसा अभिन्न अंग बन गए हैं कि उनमें सत्य और असत्य वाला भेद युगों पूर्व मिट चुका है। शेष है तो बस चिरकालिक रामरस-गंगा और उसमें डुबकी लगाने वाले आप और हम मर्त्य मानव। प्रभु श्रीराम के शिवधनुष भंग करते ही मिथिलावासियों में हर्ष की लहर दौड़ गई। माता जानकी अपनी सखियों के साथ वरमाला लिए धनुषयज्ञ मंडप में पधारीं। मिथिला के समस्त नर-नारी इस दिव्य क्षण में उपस्थित होकर अपने जीवन काे धन्य मान रहे हैं। मां सीता श्रीराम जी के सम्मुख आईं। जयमाला की शुभवेला आन पड़ी थी। हालांकि, ससुराल में जब तक जमाई के साथ सहज और सरल हास्य विनोद न हो तब तक विवाह का रस अधूरा ही रह जाता है। और फिर मिथिला के नर-नारी तो बड़भागी ही समझे जाने चाहिए कि देवीस्वरूपा जानकी मिथिला की कन्या हैं और मर्यादा पुरुषोत्तम राम उनके दामाद हैं। तब भला इतने सलोने, इतने नयनाभिराम, इतने सुहावने रूप में साक्षात ईश्वर को पाकर हर्षोल्लसित मिथिलावासी क्यों न अपने प्रिय दामाद के साथ हास्य-विनोद करें! जब माता जानकी की सखियों ने देखा कि श्रीरामजी का क़द तो जानकी जी से अधिक है और जयमाला के लिए उन्हें जानकी जी के समक्ष अपना शीश झुकाना ही होगा, तब एक सखी ने रामजी से सरल विनोद में कहा, ‘प्रभु, हम जानते हैं कि आपको झुकने की आदत नहीं है, किंतु अब तो यह आपका ससुराल है और ससुराल में तो अच्छे-अच्छों को झुकना ही पड़ता है। इसलिए हमें न झुकाना पड़े, आप स्वयं ही झुक जाइए।’ इसी पर सखियां मिलकर गाती हैं- ‘ए रघुवर लाला, जयमाला पहीर ली, अपले तो ऋषि-मुनि सबके झुकवली,...

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सियाराम मय सब जग जानी, करहुं प्रणाम जोर जुग पानी : पंडित धीरेंद्र शास्त्री, बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर के समक्ष 95 परिवारों ने की घर वापसी।

सागर में चल रही बागेश्वर धाम सरकार पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री की श्री मद्भागवत कथा का रविवार को सातवें दिन समापन हुआ इस अवसर पर पहले दिन धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री द्वारा कही गई सागर में कुछ बड़ा होने की बात सच होती दिखाई दी यहां कथा के आखिरी दिन 95 लोगों ने सनातन धर्म में वापसी की इस दौरान मंच से पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने वापसी करने वालों से बातचीत की उन्होंने कहा आगे कोई बड़ा प्रलोभन मिलेगा तो क्या फिर चले जाओगे जवाब में लोगों ने कहा कि हम आपके द्वारा प्रेरित होकर सनातन धर्म में आए हैं अब कभी वापस नहीं जाएंगे पंडित धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने कहा की जब तक शरीर में सांस रहेगी तब तक हिंदू को बिखरने नहीं दूंगा इस बीच कथा में उपस्थित हजारों लोगों ने जय श्रीराम के जयकारे लगाए। उन्होंने कहा कि बारिश हो रही है ज़मीन जरूर गीली है लेकिन ज़मीर गीला नहीं होना चाहिए। जिस यज्ञ में बारिश हो जाती है वह यज्ञ सफल हो जाता है। मैं कह रहा था कि सागर में कुछ बड़ा होने वाला है। आज कुछ परिवार सनातन धर्म में वापसी कर रहे हैं। इसमें 50 से अधिक परिवारों के 95 लोग शामिल हैं जो भ्रमित होकर अन्य धर्म में चले गए थे। उन्होंने गुलाब रानी, दयाल और अन्य लोगों से बात की। उन्होंने कहा कि अब बताइये कहते हैं कि हम नफरत फैला रहे हैं या कोई हमारे भोले भाले सनातनियों को बहला रहा है। इसके बाद कथा में भागवत के प्रसंगों का सुंदर वर्णन किया और कई दृष्टांत सुनाए। अंतिम दिन बारिश के बावजूद भी बड़ी संख्या में लोग कथा सुनने पहुँचे। कोई भी तूफान हमे कथा से नहीं रोक सकता कथा के आखिरी दिन जमकर बारिश हुई देर रात से ही लोग बागेश्वर धाम सरकार के दर्शन करने हजारों की संख्या में मौजूद थे। बारिश में भीगते श्रद्धालुओं को देख व...