Skinner ka siddhant

  1. स्कीनर के सीखने का सिद्धांत
  2. अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ
  3. ब्लूम का वर्गीकरण
  4. व्यक्तिगत विभिन्नता
  5. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत(प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत)
  6. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत ( Tharndikes's Theory of Learning in hindi)


Download: Skinner ka siddhant
Size: 39.30 MB

स्कीनर के सीखने का सिद्धांत

अमेरिकी मनोवैज्ञानिक स्कीनर (B.F. Skinner) ने सीखने की प्रक्रिया के स्वरूप को समझने के लिए सर्वप्रथम अन्य मनोवैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयोगों के निष्कर्षों और सिद्धांतों का अध्यन किया और पावलोव के प्रत्यावर्तन (Reflex Action) और पुनर्बलन (Reinforcement) संप्रत्यय को समझा. उसके बाद उन्होंने स्वतंत्र रूप से प्रयोग किए. इस संदर्भ में उनके दो प्रयोग- एक चूहे पर तथा दूसरा कबूतर पर किए गए प्रयोग प्रमुख हैं. स्कीनर बॉक्स में चूहे पर किया गया प्रयोग (Rat experiment in the Skinner Box) स्कीन्नर ने चूहा बंद करने के लिए एक पिंजड़ा बनवाया, जिसके अंदर एक स्थान पर एक लीवर फिट था. इस पिंजड़े में चूहे को अंदर करने के लिए दरवाजा था. लीवर को दबाने से भोजन की नली का रास्ता खुल जाता था और ऊपर रखा भोजन इस रास्ते से भोजन की प्लेट में गिर जाता था. इस पिंजड़े को स्कीन्नर बॉक्स कहते हैं. स्कीन्नर ने इस बॉक्स में एक भूखे चूहे को अंदर कर दिया और उसने देखा कि चूहे ने अंदर जाते ही उछल-कूद करना शुरू कर दिया. इस उछल-कूद में एक बार उसका पंजा अचानक उस लीवर पर पड़ गया और भोजन उसकी प्लेट में आ गया. उसने भोजन प्राप्त किया और अपनी भूख मिटाई. इससे उसे बड़ा संतोष मिला. अब उसे जब फिर कुछ खाने की इच्छा हुई तो उसने पुनः उछल-कूद करना शुरू किया. इस उछल-कूद में वह लीवर पुनः दब गया और उसने भोजन प्राप्त किया. स्कीनर ने देखा कि भोजन मिलने से चूहे की क्रिया को पुनर्बलन (Reinforcement) मिला. उसने इस चूहे पर यह प्रयोग कई बार दोहराया और देखा कि एक स्थिति ऐसी आई कि भूखे चूहे ने पिंजरे में पहुंचते ही लीवर दबाकर भोजन प्राप्त कर लिया. दूसरे शब्दों में उसने लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख लिया. स्कीनर बॉक्स में कबूतर पर किया ग...

अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ, परिभाषाएं, प्रकार, महत्त्व, उपयोग/लाभ, सीमाएँ

अनुक्रम (Contents) • • • • • • • • • • • • • • अभिक्रमित अनुदेशन का अर्थ सही शिक्षण का अर्थ है कि बालक को प्रेरित कर नये व्यवहारों को अर्जित करने में सहायत प्रदान करना। यह सहायता मुख्यतः अध्यापक द्वारा प्रदान की जाती है। अध्यापक पर कार्य-भार (Work-load) बढ़ जाने के कारण इस कार्य को शिक्षक के स्थान पर विशेष शिक्षण सामग्री को कुछ सीमा तक सौंपा जा रहा है, यह विशेष प्रकार की सामग्री जिसमें बालक स्वयं की सीखने की गति से सीखता है, उसे स्वयं अध्ययन करना होता है तथा उसके उत्तरों की जाँच तुरन्त की जाती है अभिक्रमित-अनुदेशन कहलाता है। प्रो. रूश के अनुसार, ’’अधिगम में एक विशेष प्रकार का निर्देशन जो विद्यार्थी को नयी सामग्री सिखाता है और अपने अधिगम को जाँचने का अवसर देता है, अभिक्रमित अनुदेशन या कभी-कभी स्वचालित अनुदेशन कहा जाता है।’’ एन. एस. मावी के अनुसार, ’’अभिक्रमित अनुदेशन प्राणवान अनुदेशनात्मक प्रक्रिया को स्व अधिगम अथवा स्व-अनुदेशन में परिवर्तित करने की वह तकनीक है जिसमें विषय-वस्तु को छोटी-छोटी शृंखलाओं में विभाजित किया जाता है। अधिगम कर्ता को इन्हें पढ़़कर सही अथवा गलत कैसी भी अनुक्रिया करनी होती है। अपनी गलत अनुक्रिया को ठीक करना होता है तथा सही अनुक्रिया करनी होती है। अपनी गलत अनुक्रिया को ठीक करना होता है तथा सही अनुक्रिया की प्रतिपुष्टि करनी होती है।’’ फ्रैड स्टोफेल के अनुसार, ’’ज्ञान के छोटे-छोटे घटकों की तार्किक क्रम में व्यवस्था की अभिक्रिया है तथा इस प्रकार की सम्पूर्ण अभिक्रमित अधिगम कहलाती है।’’ सुसान माइकल के अनुसार, ’’अभिक्रमित अधिगम वैयक्तिक अनुदेशन की एक ऐसी विधि है जिसमें विद्यार्थी स्वयं को संलग्र रखते हुए अपनी गति के अनुसार अग्रसर होता है एवं उसे परिणामों की ज...

ब्लूम का वर्गीकरण

ब्लूम के वर्गीकरण के आधार पर ही कई मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण किए और वह अपने परीक्षणों में सफल भी हुए। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि ब्लूम का यह सिद्धांत काफी हद तक सही हैं। बेंजामिन ब्लूम के वर्गीकरण ( संज्ञानात्मक उद्देश्य Cognitive Domain 1. ज्ञान (Knowledge) – ज्ञान को ब्लूम ने प्रथम स्थान दिया क्योंकि बिना ज्ञान के बाकी बिंदुओं की कल्पना करना असंभव हैं। जब तक किसी वस्तु के बारे में ज्ञान (knowledge) नही होगा तब तक उसके बारे में चिंतन करना असंभव है और अगर संभव हो भी जाये तो उसको सही दिशा नही मिल पाती। इसी कारण ब्लूम के वर्गीकरण में इसकी महत्ता को प्रथम स्थान दिया गया। 2. बोध (Comprehensive) – ज्ञान को समझना उसके सभी पहलुओं से परिचित होना एवं उसके गुण-दोषों के सम्बंध में ज्ञान अर्जित करना। 3. अनुप्रयोग (Application) – ज्ञान को क्रियान्वित (Practical) रूप देना अनुप्रयोग कहलाता हैं प्राप्त किये गए ज्ञान की आवश्यकता पड़ने पर उसका सही तरीके से अपनी जिंदगी में उसे लागू करना एवं उस समस्या के समाधान निकालने प्राप्त किये गए ज्ञान के द्वारा। यह ज्ञान को कौशल (Skill) में परिवर्तित कर देता है यही मार्ग छात्रों को अनुभव प्रदान करने में उनकी सहायता भी करता हैं। 4. विश्लेषण (Analysis) – विश्लेषण से ब्लूम का तात्पर्य था तोड़ना अर्थात किसी बड़े प्रकरण (Topic) को समझने के लिए उसे छोटे-छोटे भागों में विभक्त करना एवं नवीन ज्ञान का निर्माण करना तथा नवीन विचारों की खोज करना। यह ब्लूम का विचार समस्या-समाधान में भी सहायक हैं। 5. संश्लेषण (Sysnthesis) – प्राप्त किये गए नवीन विचारो या नवीन ज्ञान को जोड़ना उन्हें एकत्रित करना अर्थात उसको जोड़कर एक नवीन ज्ञान का निर्माण करना संश्लेषण कहलाता हैं...

व्यक्तिगत विभिन्नता

व्यक्तिगत विभिन्नता का अर्थ Meaning of Individual Differences प्राचीनकाल में आयु के अतिरिक्त थोड़ा बहुत शैक्षिक सम्प्राप्ति (Educational attainments) को भी महत्त्वपूर्ण माना जाता था। इस प्रकार प्राचीनकाल में और मध्यकाल में व्यक्तिगत विभिन्नताओं का तात्पर्य “ किसी विषय पर अधिकार करने की योग्यता से समझा जाता था।” आधुनिक स्कूलों में व्यक्तियों की अन्य प्रकार की योग्यताओं और व्यक्तिगत विशेषताओं पर भी ध्यान दिया जाता है। व्यक्तिगत विभिन्नताओं की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि उसमें मनुष्य व्यक्तिगत के वे सभी पहलू आते हैं, जिनको किसी न किसी प्रकार से मापा जा सकता है। इस प्रकार के पहलू अनेक हो सकते हैं; जैसे- परिवर्तनशीलता, सामान्यता, इस प्रकार भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में शिक्षण में अनेक प्रकार की समस्याएँ बालकों के व्यक्तिगत भेद उत्पन्न कर देते हैं; जैसे- अध्यापक किस कक्षा में किस प्रणाली से पढ़ाये कि सभी बालक समान रूप से लाभ उठा सके। वैयक्तिक दृष्टि से वैयक्तिक भेदों का अध्ययन सबसे पहले गाल्टन ने प्रारम्भ किया था तब से इस विषय पर अनेक अनुसन्धान हो चुके हैं, जिनके आधार पर मनोवैज्ञानिकों और शिक्षाशास्त्रियों ने शिक्षा की कई नयी प्रणालियों का विकास किया है। यद्यपि अध्यापक के लिये व्यक्तिगत तरीके से कई प्रकार की समस्याओं को उत्पन्न करते हैं। किन्तु समाज की और व्यक्ति की दृष्टि से वे बहुत महत्त्वपूर्ण है। एक समय था जब व्यक्ति की आवश्यकताएँ सीमित थी, जिनको वह सरलता से पूरा कर लेता था। आधुनिक युग में हमें विभिन्न प्रकार की विशेष योग्यताओं वाले व्यक्तियों को आवश्यकता है जो समाज के विकास में विभिन्न योग दे सकें। व्यक्तिगत भेद व्यक्ति विशेष के लिये भी महत्त्वपूर्ण होते हैं क्योंकि उसका उनके व...

थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत(प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत)

अनुक्रम (Contents) • • • • • • • थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत(प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत) दोस्तों आज के इस आर्टिकल में थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत के बारे में , प्रयास एवं त्रुटी का सिद्धांत, प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत ,आवृत्ति (बार-बार) का सिद्धांत, उद्दीपक अनुक्रिया का सिद्धांत, S-R Bond का सिद्धांत, सम्बन्धवाद का सिद्धांत, अधिगम का बन्ध सिद्धांत, इत्यादि के बारे में विस्तार से बतायेंगे. थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत thorndike theory of learning in hindi pdf, thorndike ke sabhi siddhant, problem ka siddhant,thorndike ka prayog in hindi, प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत, S-R Theory in Hindi, थार्नडाइक का प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत, थार्नडाइक का बिल्ली पर प्रयोग,थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत,अधिगम के सिद्धांत,adhigam ke sidhant, adhigam ke niyam,adhigam sthanantaran, adhigam ke prakar, थाईडाइक के सीखने के सिद्धांत :- सिद्धांत उपनाम :- (1) प्रयास एवं त्रुटी का सिद्धांत (2) प्रयत्न एवं भूल का सिद्धांत (3) आवृत्ति (बार-बार) का सिद्धांत (4) उद्दीपक (Stimulus) अनुक्रिया (Respones) का सिद्धांत (5) S-RBond का सिद्धांत (6) सम्बन्धवाद का सिद्धांत (7) अधिगम का बन्ध सिद्धांत नोट :- एक विशेष स्थिति/उद्दीपक (Stimulus) होता हैं। जो उसे एक विशेष प्रकार की प्रतिक्रिया/अनुक्रिया (Response) करने के लिए प्रेरित करती है। →इस प्रकार एक वि उद्दीपक का एक विशिष्ट प्रतिक्रिया से सम्बंध स्थापित हो जाता हैं जिसे उद्दीपक प्रक्रिया (S-R Bond) द्वारा व्यक्त किया जाता है > बिल्ली के समान ही बालक का चलना, चम्मच से खाना खाना, जूते पहनना। > व्यस्क लोग भी ड्राईविग, टाई की गांठ, कोई खेल इसी सिद्धांत क...

थार्नडाइक का सीखने का सिद्धांत ( Tharndikes's Theory of Learning in hindi)

सम्बद्धवाद का सिद्धांत उद्दीपक अनुक्रिया सिद्धान्त S-R बांड सिद्धान्त प्रयास एवम त्रुटि का सिद्धांत थार्नडाइक का प्रयोग (Experiment of Thorndike) Thorndike ने एक पिंजरे में भूखी बिल्ली को कैद किया। तथा पिंजरे का गेट लीवर के दबने से खुले ऐसी व्यवस्था की। बिल्ली भूख के कारण उछल-कूद करने लगती है। उछल-कूद के दौरान बिल्ली का पांव भूल से लीवर पर पड़ गया। जिससे पिंजरे का गेट खुल गया और भूखी बिल्ली को भोजन प्राप्त हो गया। इस प्रकार बिल्ली लीवर दबाकर भोजन प्राप्त करना सीख जाती है। अधिगम का व्यवहारवाद सिद्धांत (Learning Theory of Behaviourism) थार्नडाइक के अनुसार भूख एक उद्दीपन ना होकर एक स्वाभाविक उत्तेजना (Natural stimulus), आंतरिक उत्तेजना (Internal stimulus), आंतरिक ऊर्जाबल (internal energy force), पर्णोदन (propulsion), या चालक (driver) है। जबकि भूखी बिल्ली द्वारा उछल-कूद करना स्वाभाविक अनुक्रिया (Natural response) है। तथा भोजन की गंध एक उद्दीपक है। अधिगम के मुख्य तीन नियम दिए जो निम्न हैं। (1) तत्परता का नियम (2) अभ्यास का नियम (3) प्रभाव का नियम (1) तत्परता का नियम (law of readiness)- इस नियम से तात्पर्य यह है कि यदि हम किसी कार्य को सीखने के लिए तत्पर होते है तो उसे हम शीघ्र ही सिख लेते हैं। इस नियम के दो भाग हैं। (क)- उपयोग का नियम(law of use) – इस नियम का मतलब यह हैं कि यदि हम किसी कार्य को हरदम उपयोग में लाते रहते है तो उसे सरलतापूर्वक सीख जाते है। और उसमें प्रवीण हो जाते है। (ख) अनुप्रयोग का नियम (law of exercise)- इस नियम का मतलब यह हैं कि यदि हम किसी सीखे हुए कार्य को लगातार नहीं करते हैं तो उसे हम भूलने लगते है इसे ही अनुप्रयोग का नियम कहते है। 2. अभ्यास का नियम Rule o...