सकट चौथ माता की कहानी

  1. Sakat Chauth sankashti chaturthi 2023 vrat katha lyrics three stories of Sakat Chauth fast vrat
  2. चौथ व्रत में ये कहानी जरूर पढ़ें
  3. भादवा की चौथ माता की कहानी। Bhadwa Ki Chauth Mata Ki Katha(kahani ). – HIND IP
  4. सकट चौथ की कहानी। Sakat Chauth Ki Kahani(katha). – HIND IP


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Sakat Chauth sankashti chaturthi 2023 vrat katha lyrics three stories of Sakat Chauth fast vrat

Sakat Chauth Vrat Katha 1. शंकर भगवान की कथा इसे पीछे ये कहानी है कि मां पार्वती एकबार स्नान करने गईं। स्नानघर के बाहर उन्होंने अपने पुत्र गणेश जी को खड़ा कर दिया और उन्हें रखवाली का आदेश देते हुए कहा कि जब तक मैं स्नान कर खुद बाहर न आऊं किसी को भीतर आने की इजाजत मत देना।गणेश जी अपनी मां की बात मानते हुए बाहर पहरा देने लगे। उसी समय भगवान शिव माता पार्वती से मिलने आए लेकिन गणेश भगवान ने उन्हें दरवाजे पर ही कुछ देर रुकने के लिए कहा। भगवान शिव ने इस बात से बेहद आहत और अपमानित महसूस किया। गुस्से में उन्होंने गणेश भगवान पर त्रिशूल का वार किया। जिससे उनकी गर्दन दूर जा गिरी।स्नानघर के बाहर शोरगुल सुनकर जब माता पार्वती बाहर आईं तो देखा कि गणेश जी की गर्दन कटी हुई है। ये देखकर वो रोने लगीं और उन्होंने शिवजी से कहा कि गणेश जी के प्राण फिर से वापस कर दें ।इसपर शिवजी ने एक हाथी का सिर लेकर गणेश जी को लगा दिया । इस तरह से गणेश भगवान को दूसरा जीवन मिला । तभी से गणेश की हाथी की तरह सूंड होने लगी. तभी से महिलाएं बच्चों की सलामती के लिए माघ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी कोगणेश चतुर्थीका व्रत करने लगीं। सकट चौथ : आज जरूर करें गणेश जी की ये आरती, जय गणेश, जय गणेश देवा... Sakat Chauth Vrat Katha 2. किसी नगर में एक कुम्हार रहता था। एक बार जब उसने बर्तन बनाकर आंवां लगाया तो आंवां नहीं पका। परेशान होकर वह राजा के पास गया और बोला कि महाराज न जाने क्या कारण है कि आंवां पक ही नहीं रहा है। राजा ने राजपंडित को बुलाकर कारण पूछा। राजपंडित ने कहा, ''हर बार आंवां लगाते समय एक बच्चे की बलि देने से आंवां पक जाएगा।'' राजा का आदेश हो गया। बलि आरम्भ हुई। जिस परिवार की बारी होती, वह अपने बच्चों में से एक बच्चा ब...

चौथ व्रत में ये कहानी जरूर पढ़ें

“बेटा इस नगर की पहाड़ी पर एक दैत्य रहता है। पहले तो वह खाने के लिए इस नगर के लोगों को मार दिया करता था वह लोगों को मारकर खा जाता था। उसके इस अत्याचार को रोकने के लिए नगर में यह व्यवस्था की गई कि हर घर से एक आदमी को दैत्य के पास भेजा जायेगा और आज मेरे बेटे की बारी है इसीलिए रो रही हूँ और उसी के लिए पुए बना रही हूँ।”

भादवा की चौथ माता की कहानी। Bhadwa Ki Chauth Mata Ki Katha(kahani ). – HIND IP

भादवा की चौथ को भादुड़ी चौथ या बहुला चौथ भी कहा जाता है इस दिन चौथ माता का व्रत किया जाता है और कहानी(भादुड़ी चौथ माता की कहानी) सुनी जाती है। इसके साथ ही बिंदायक जी की कहानी सुनी जाती हैं। कुंवारी कन्याये सुंदर सुशील और अच्छे पति की प्राप्ति के लिए चौथ का व्रत करती हैं और स्त्रियां इस व्रत को अपने सुहाग और पति की लंबी आयु के लिए करती हैं। आज हम आपके लिए दो भादवा की चौथ माता की कहानी लेकर आए हैं। आप इन दोनों में से कोई भी भादवा चौथ की कथा जो आपको पसंद आए चौथ के व्रत के दिन पढ़ सकते हैं। तो आइए जानते हैं भादुड़ी चौथ व्रत कथा भादवा की चौथ माता की कहानी – 1. bhadwa ki chauth ki kahani. भादवा की चौथ माता की कहानी भादवा की चौथ माता की कहानी – एक बुढ़िया माई के ग्वालिया – बछालिया नाम का बेटा था। बुढ़िया माई अपने बेटे के लिए बारह महीने की चारों चौथ करती थी। बेटा लकड़ी लेकर आता था और दोनों मां बेटा उनको बेचकर गुजारा करते थे। बुढ़िया माई रोजाना लकड़ी में से दो लकड़ी रख लेती और चौथ के दिन बेटे से छुप कर बेचकर सामान लाती थी और पांच पुआ बनाती थी। एक पुआ गणेश जी महाराज को, एक चौथ माता को चढाती, एक ब्राह्मण को और एक अपने बेटे को खिलाती थी और एक पुआ खुद खाती थी। एक चौथ के दिन बेटा अपनी पड़ोसन के घर गया वह पुआं बना रही थी जब उसने पूछा कि आज क्या है जो पूऐ बना रखे हैं तब वह बोली मैंने तो आज ही बनाए हैं पर तेरी मां तो चारों चौथ को पूऐ बनाती है। उसने जाकर मां से पूछा मां तू रोज पुऐ बनाती है मैं इतनी मेहनत से कमाता हूं। बुढ़िया माई बोली मैं तो चौथ माता का व्रत करती हूं। वह बोला कि तू मुझे रख ले या तो तू चौथ माता को ही रख ले। बुढ़िया माई बोली मैं तो तेरे लिए ही चौथ का व्रत करती हूं इसलिए मैं त...

सकट चौथ की कहानी। Sakat Chauth Ki Kahani(katha). – HIND IP

सकट चौथ व्रत हर साल माघ मास की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं भगवान गणेश से अपने बेटे की लंबी उम्र और सुखी जीवन की प्रार्थना करती हैं। इस व्रत को निर्जल रखा जाता है यानी इसमें जल और भोजन नहीं किया जाता है। वैसे तो साल में 12 संकष्टी चतुर्थी व्रत होते हैं, लेकिन कुल मिलाकर माघ मास के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है सकट चौथ की कहानी। sakat chauth ki kahani सकट चौथ की कहानी –पौराणिक कथा के अनुसार सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र के शासनकाल में कुम्हार था। वह मिट्टी के बर्तन बनाने का कार्य करता था एक बार तमाम कोशिशों के बावजूद उससे बर्तन नहीं रहे थे और बर्तन कच्चे रह रहे थे। उसने यह बात जाकर तांत्रिक को बताई। तांत्रिक ने कहा कि तुम्हारे बर्तन तब ही बनेंगे जब तुम एक छोटे बच्चे की बलि दोगे। तांत्रिक के बताए अनुसार कुम्हार ने एक छोटे बच्चे को पकड़ कर भट्ठी में डाल दिया। जिस दिन कुम्हार ने बच्चे की बलि दी वह संकट चौथ का दिन था। उस बच्चे की मां गणेश जी की भक्त थी। जब उसको उसका बालक नहीं मिला तो उसने गणेश जी के समक्ष जाकर सच्चे मन से प्रार्थना की ,कि मेरा लड़का वापस आ जाए। उधर जब कुमार ने सुबह उठकर देखा तो भट्टी में बर्तन तो पक गए थे लेकिन साथ में वह बच्चा भी सुरक्षित बैठा था। इस घटना से कुम्हार बहुत डर गया और उसने जाकर राजा को सारी बात बताई। इसके बाद राजा ने उस बच्चे और उसकी मां को बुलवाया। तब मां संकटों को दूर करने वाले संकट चौथ के व्रत की महिमा का वर्णन किया और कहां की विघ्न विनायक श्री गणेश जी की कृपा से ही मेरा लड़का वापस आया है। तभी से महिलाएं अपने संतान और परिवार के सुख सौभाग्य और लंबी आयु के लिए संकट चौथ का व्रत करती है।