स्पष्ट

  1. आनन्द
  2. स्पष्ट का विलोम
  3. स्पष्ट
  4. रामचन्द्र चन्द्रिका
  5. संस्कृति क्या है, अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं
  6. अनुवाद का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप एवं सीमाएं
  7. प्रयोजनमूलक हिन्दी


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आनन्द

अनुक्रम • 1 दार्शनिक विचार • 1.1 आनंद से जुड़े दर्शन • 2 तंत्रिका जीव विज्ञान • 3 आनंद एक अद्वितीय मानव अनुभव • 4 स्वपीड़ासक्ति • 5 इन्हें भी देखें • 6 सन्दर्भ • 7 आगे पढ़ें दार्शनिक विचार [ ] एपिकुरुस (Epicurus) और उनके अनुयायियों की परिभाषा के अनुसार, सर्वोत्तम आनंद पीड़ा रूह अल नफस वैल रूह में आनंद का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण विभिन्न प्रकार के आनंदों का विश्लेषण कामुक और बौद्धिक के रूप में किया और इनके एक दूसरे से तुलनात्मक सम्बन्ध की विवेचना की. उन्होंने दृढ़ता पूर्वक कहा की "सुखद अनुभूति का अगर सूक्ष्म परीक्षण किया जाए तो यह प्रकट होगा कि यह अनिवार्य रूप से सिर्फ पीड़ा का उन्मूलन मात्र है।" तत्पश्चात वह निम्न उदाहरण देते हैं,:"व्यक्ति जितना अधिक भूखा होगा खाना खाने पर उसके आनंद की अनुभूति उतनी ही गहरी होगी." उन्होंने यह भी तर्क दिया है कि " आनंद की संतुष्टि जीव के आवश्यकता और अभिलाषा के अनुपात में ही होती है।" और " जब इन जरूरतों की पूर्ति या अभिलाषाओं की संतुष्टि होती है तो यह अनुभूति वास्तव में विकर्षण में तब्दील हो जाती है" क्योंकि" काम अथवा भोजन की अधिकता सुखदाई न हो कर पीड़ादायक बन जाती है। आनंद से जुड़े दर्शन [ ] तंत्रिका जीव विज्ञान [ ] सुख की अनुभूति का केंद्र मस्तिष्क संरचना में एक समुच्चय है, मुख्यतः यह नाभिकीय अकुम्बेंस है जो सिद्धांत के अनुसार विद्युत्तीय तरंगो द्वारा उत्तेजित होने पर अत्याधिक सुख उत्पन्न करता है। कुछ संदर्भ यह उल्लेख करते हैं कि सेप्टम पेल्लुसिदियम (septum pellucidium) ही आम तौर पर सुखद अनुभूति का केंद्र है आनंद एक अद्वितीय मानव अनुभव [ ] इस पर विवाद रहा है कि सुख की अनुभूति का एहसास दूसरे पशु भी करते हैं या यह सर्वथा मानव जाति का ही गुणधर्म ...

स्पष्ट का विलोम

स्पष्ट का विलोम/विपरीतार्थक शब्द | Antonyms of Spasht शब्द विलोम स्पष्ट अस्पष्ट Spasht Aspasht इसे भी जानें ⇓ ‘ विलोम ‘ शब्द की व्युत्पत्ति(निर्वचन) लोम्नो विपरीतं विलोम भवति विलोम इव यः शब्दः सोपि विलोम भवति उपमार्थे अयं शब्दः भविष्यति | अर्थात् उपमा अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है | जैसे लोम का विपरीत विलोम होता है उसी प्रकार जो शब्द है उसमे सादृश्य से इस शब्द का प्रयोग होता है | लोम का अर्थ शारीरिक केश अथवा सीधा होता है अतः यदि लोम को सीधा अर्थ में माना जाय तो उसका उलटा विलोम होगा | ‘ विलोम ’ शब्द का सामान्य अर्थ [वि. ] 1. विपरीत | उलटा | उल्टा | प्रतिकूल | प्रतिलोम | व्युत्क्रांत | विरुद्ध | 2. प्रतिकूल क्रम में उत्पन्न | विपरीत क्रम में उत्पन्न | 3. जिसके शरीर पर लोम न हों | लोम-रहित | रोम-रहित | केश विहीन | केश-रहित | 4. पिछड़ा हुआ | 5. जो सामान्य प्रथा के विपरीत हो | नियम वा रीती के विरुद्ध | 6. क्रम की दृष्टि से ऊपर से नीचे जाने वाला | [ संज्ञा ] 1. विपर्याय | उलटा क्रम | विपरीत क्रम | क्रम विपर्यय | 2. सर्प | साँप | 3. वरुण | 4. कुत्ता | 5. संगीत स्वरों का अवरोहात्मक साधन | अर्थात् ऊँचे स्वर से नीचे स्वर की ओर आना | स्वर का अवरोह | उतार | 6. रहट | 7. किसी प्रमेय की परिकल्पना और निष्कर्ष को परस्पर बदल देने से बनने वाला प्रमेय (गणित.) | ‘ विलोम ’ शब्द का पर्यायवाची विपर्याय। अपर्याय। विपरीतार्थ। विपरीतार्थक | उल्टा | उलटा | प्रतिकूल | प्रतिलोम | व्युत्क्रांत | विरुद्ध | केश विहीन | लोम रहित | रोम रहित| ‘ विलोम ’ शब्द का विपरीतार्थक शब्द | विलोम शब्द की व्याख्या | विपरीत अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्दों को विलोम शब्द अथवा विपरीतार्थक शब्द कहा जाता है | दूसरे अर्थ...

स्पष्ट

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रामचन्द्र चन्द्रिका

अनुक्रम • 1 सामान्य-परिचय एवं प्रमुख प्रकाशित संस्करण • 2 रचनात्मक स्वरूप • 3 इन्हें भी देखें • 4 सन्दर्भ • 5 बाहरी कड़ियाँ सामान्य-परिचय एवं प्रमुख प्रकाशित संस्करण [ ] 'रामचंद्र चंद्रिका' सोरह सै अट्ठावने कातिक सुदि बुधवार। रामचन्द्र की चन्द्रिका तब लीन्हों अवतार।। इस प्रकार इसका रचनाकाल १६०१ ई० (सं० १६५८) है। इसके मूल पाठ का संस्करण लिथो छपाई में कन्हैयालाल राधेलाल, लखनऊ के द्वारा प्रकाशित हुआ था। इसकी जानकी प्रसाद कृत टीका रचनात्मक स्वरूप [ ] 'रामचंद्र चंद्रिका' ३९ प्रकाशों में कथा सूची सहित १७१७ छंदों में पूरा हुआ है। इन्ही कारणों की वजह से रामस्वरूप चतुर्वेदी जी ने इसे छन्दों का अजायब घर तक कह दिया है। आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र के अनुसार यद्यपि इस में सुप्रसिद्ध रामकथा वर्णित है तथापि यह काव्य का ग्रंथ है, भक्ति का नहीं। केशव ' वाल्मीकि मुनि स्वप्न में, दीन्हों दर्शन चारु। केशव तिनसों यों कह्यो क्यों पाऊँ सुख सारु।। मुनि पति यह उपदेश दै, जब ही भये अदृष्ट। केशवदास तहीं कर्यो रामचन्द्र जू इस्ट।। इस के पूर्वार्ध की कथा वाल्मीकीय रामायण से कुछ-कुछ साम्य भी रखता है किंतु उत्तरार्ध में कवि की निजी उद्भावना एवं व्यवस्था ही प्रमुख है। इस काव्य के माध्यम से कवि का पांडित्य प्रदर्शित हुआ है। संवाद-योजना, अलंकार-योजना, छंद-योजना की दृष्टि से यह काव्य कवि के आचार्यत्व के कौशल को ही प्रस्तुत करता है। इसमें कवि ने सुसंबद्ध कथात्मक परंपरा को तोड़ दिया है। केशव को रीतिकाल का युगनिर्माता साहित्यकार तथा हिन्दी का प्रथम आचार्य कवि माना गया है। इन्हें भी देखें [ ] • • सन्दर्भ [ ] • केशव-कौमुदी, प्रथम भाग (रामचंद्रिका सटीक पूर्वार्ध), टीकाकार- लाला भगवानदीन, रामनारायण लाल, अरुण कुमार ...

संस्कृति क्या है, अर्थ परिभाषा एवं विशेषताएं

Sanskriti ka arth paribhasha visheshtayen;समूह मे साथ-साथ जीवन व्यतीत करने के लिये आवश्यकता हैं कुछ नियम, विधान की जो व्यक्ति के पारस्परिक संबंधों, व्यवहारों व क्रियाओं को निर्देशित व नियमित कर सकें। सामूहिक जीवन के ये नियम, विधान, व्यवहार प्रणालियाँ, मूल्य, मानक एवं आचार-विचार व्यक्ति की सांस्कृतिक विरासत का अंग होते हैं। दूसरे शब्दों मे," संस्कृति हमारे द्वारा सीखा गया वह व्यवहार है जो पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तांतरित होता रहता है। एडवर्ड टायलर का कथन है कि संस्कृति वह जटिल समग्रता हैं जिसमे ज्ञान, विश्वास, कला, आर्दश, कानून, प्रथा एवं अन्य किन्ही भी आदतों एवं क्षमताओं का समावेश होता है जिन्हे मानव ने समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त किया हैं। इस लेख मे हम संस्कृति की परिभाषा और संस्कृति की विशेषताएं जानेगें। व्यक्ति का समाज तथा संस्कृति के साथ समान रूप से संबंध है। व्यक्ति के व्यवहार के ये दोनों ही महत्वपूर्ण आधार हैं। इस रूप मे व्यक्ति, समाज एवं संस्कृति तीनों ही अन्योन्याश्रित हैं। व्यक्ति का समग्र विकास समाज तथा संस्कृति दोनों के प्रभाव से होता हैं। इस समीकरण द्वारा स्पष्ट है कि समाज का सामूहिक जीवन भी व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता हैं। तथा दूसरी तरफ संस्कृति के आर्दश नियम भी मानव-व्यवहार को दिशा प्रदान करते हैं। विभिन्न विद्वानों द्वारा दी गई संस्कृति की परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-- रेडफील्ड के अनुसार, " रेडफील्ड ने संस्कृति की संक्षिप्त परिभाषा इस प्रकार उपस्थित कि हैं, " संस्कृति कला और उपकरणों मे जाहिर परम्परागत ज्ञान का वह संगठित रूप है जो परम्परा के द्वारा संरक्षित हो कर मानव समूह की विशेषता बन जाता हैं।" हर्षकोविट के अनुसार," संस्कृति मानव व्यवहार का सीखा हुआ भ...

अनुवाद का अर्थ, परिभाषा, स्वरूप एवं सीमाएं

हिन्दी में अनुवाद के स्थान पर प्रयुक्त होने वाले अन्य शब्द हैं : छाया, टीका, उल्था, भाषान्तर आदि। अन्य भारतीय भाषाओं में‘अनुवाद’ के समानान्तर प्रयोग होने वाले शब्द हैं : भाषान्तर(संस्कृत, कन्नड़, मराठी), तर्जुमा (कश्मीरी, सिंधी, उर्दू), विवर्तन, तज्र्जुमा(मलयालम), मोषिये चण्र्यु(तमिल), अनुवादम्(तेलुगु), अनुवाद (संस्कृत, हिन्दी, असमिया, बांग्ला, कन्नड़, ओड़िआ, गुजराती, पंजाबी, सिंधी)। अंग्रेजी विद्वान मोनियर विलियम्स ने सर्वप्रथम अंग्रेजी में‘translation’ शब्द का प्रयोग किया था।‘अनुवाद’ के पर्याय के रूप में स्वीकृत अंग्रेजी‘translation’ शब्द, संस्कृत के‘अनुवाद’ शब्द की भाँति, लैटिन के‘trans’ तथा‘lation’ के संयोग से बना है, जिसका अर्थ है‘पार ले जाना’-यानी एक स्थान बिन्दु से दूसरे स्थान बिन्दु पर ले जाना। यहाँ एक स्थान बिन्दु‘स्रोत-भाषा’ या 'Source Language’ है तो दूसरा स्थान बिन्दु‘लक्ष्य-भाषा’ या‘Target Language’ है और ले जाने वाली वस्तु‘मूल या स्रोत-भाषा में निहित अर्थ या संदेश होती है। ऐसे ही‘वैब्स्टर डिक्शनरी’ का कहना है-’Translation is a rendering from one language or representational system into another. Translation is an art that involves the recreation of work in another language, for readers with different background.’ अनुवाद के इस दोहरी क्रिया को निम्नलिखित आरेख से आसानी से समझा जा सकता है : भारतीय संदर्भ में, अनुवाद पाली, प्राकृत, देवनागरी और अन्य क्षेत्राीय भाषाओं में पवित्रा ग्रंथों के अनुवाद के साथ शुरू हुआ। यह दुनिया भर में नैतिक मूल्यों, लोकाचार, परंपरा, मान्यताओं और संस्कृति के संचारण करने में मदद करता है। अनुवाद के क्षेत्र आज की दुनिया में अनुवाद का क्षेत्र...

प्रयोजनमूलक हिन्दी

प्रयोजनमूलक हिन्दी (Functional Hindi) से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा विभिन्न रूपों में बरती जाने वाली सामान्य भाषा और प्रयोजनमूलक भाषा इन दो भागों में विभक्त किया है। कुछ लोग भाषा को 'बोलचाल की भाषा', 'साहित्यिक भाषा' और 'प्रयोजनमूलक भाषा' - इन तीन भागों में विभाजित करते हैं। जिस भाषा का प्रयोग किसी विशेष प्रयोजन के लिए किया जाए, उसे 'प्रयोजनमूलक भाषा' कहा जाता है। यह एक सर्वमान्य तथ्य है कि प्रयोजन के अनुसार शब्द-चयन, वाक्य-गठन और भाषा-प्रयोग बदलता रहता है। अन्य नाम व्यावहारिक हिन्दी, कामकाजी हिन्दी, प्रयोजनी हिन्दी, प्रयोजनपरक हिन्दी, प्रायोगिक हिन्दी, प्रयोगपरक हिन्दी । अनुक्रम • 1 इतिहास • 2 प्रयोग के क्षेत्र • 2.1 साहित्यिक प्रयुक्ति • 2.2 वाणिज्यिक प्रयुक्ति • 2.3 कार्यालयी प्रयुक्ति • 2.4 जनसंचार एवं विज्ञापन प्रयुक्ति • 2.5 विधि एवं कानूनी भाषा प्रयुक्ति • 2.6 वैज्ञानिक एवं तकनीकी भाषा प्रयुक्ति • 3 प्रयोजनमूलक हिन्दी की विशेषताएँ • 3.1 वैज्ञानिकता • 3.2 अनुप्रयुक्तता • 3.3 वाच्यार्थ प्रधानता • 3.4 सरलता और स्पष्टता • 4 प्रयोजनमूलक हिन्दी एवं केन्द्रीय हिन्दी संस्थान • 5 इन्हें भी देखें • 6 बाहरी कड़ियाँ इतिहास [ ] हिन्दी भारत की राजभाषा ही नहीं, प्रयोजनमूलक हिन्दी आज भारत के बहुत बड़े फलक और धरातल पर प्रयुक्त हो रही है। केन्द्र और राज्य सरकारों के बीच संवादों का पुल बनाने में आज इसकी महती भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। आज इसने कम्प्यूटर, टेलेक्स, तार, इलेक्ट्रॉनिक, टेलीप्रिंटर, दूरदर्शन, रेडियो, अखबार, डाक, फिल्म और विज्ञापन आदि जनसंचार के माध्यमों को अपनी गिरफ्त में ले लिया है। शेयर बाजार, रेल, हवाई जहाज, बीमा उद्योग, बैंक आदि औद्योगिक उपक्रम, रक्षा, सेना, इन्जीनियरिं...