सप्तश्रृंगी माता की कहानी

  1. शीतला माता की कहानी
  2. सप्तश्रृंगी माता मंदिर कहाँ पर स्थित है?
  3. सप्तशृंगी
  4. लोहड़ी माता की कथा: Lohri Mata Story in Hindi
  5. सती
  6. भीष्म साहनी :: :: :: माता
  7. लक्ष्मी माता की कहानी / लक्ष्मी माता की कथा। Lakshmi Mata Ki Kahani. – HIND IP


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शीतला माता की कहानी

पढ़िए sheetla mata kahani in hindi शीतला माता जी की पूर्ण कथा एवं शीतला सप्तमी से जुड़ी सभी घटनाओं की कहानी हिंदी भाषा में (Sheetla Mata Story in Hindi) भारतीय पुराणिक कथाओं एवं कहानियों के अनुसार इस धरती पर अलग अलग युगों में कई देवी देवताओं ने मनुष्य रूप अवतार लिया हैं। उससे एक नई पुराणिक कथा/कहानी का आरम्भ होता हैं, जो भारतीय संस्कृति एवम रीति रिवाजों के प्रमुख आधार बनते हैं। • माता रानी भटियाणी सा (जसोल माजीसा) इतिहास व चमत्कार कथा • महाभारत की कहानी कौन है देवी शीतला माता। Who is MAA sheetla? — श्री शीतला माता जी एक पुराणिक प्रसिद्ध हिन्दू देवी है ये चेचक जैसे रोग की देवी हैं, इनके हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी पर अभय मुद्रा में विराजमान हैं। कहते हैं कि शीतला माता की पूजा से चेचक का रोग ठीक होता है। शीतला माता हर प्रकार के तापों का नाश करती हैं और अपनी पूजा करनेवालों एवं भक्तों के तन-मन को शीतल करती हैं। देवी शीतला माता की उत्पत्ति पौराणिक स्कंद पुराण कथा के अनुसार माता शीतला देवी की उत्पत्ति भगवान ब्रह्मा जी से हुई थी तथा यह देवी भगवान शिव की यह जीवनसंगिनी और शक्ति अवतार है। शीतला माता का पर्व Mata Sheetla देवी का पर्व हिन्दू पंचांग के अनुसार होली के सात दिनों बाद चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी (सातम) तिथि को मनाया जाता है। इसे देवी शीतला माता मंत्र । Sheetla Mata Mantra जय जय माता शीतला तुमही धरे जो ध्यान। होय बिमल शीतल हृदय विकसे बुद्धी बल ज्ञान।। घट घट वासी शीतला शीतल प्रभा तुम्हार। शीतल छैंय्या शीतल मैंय्या पल ना दार।। श्री देवी शीतला माता की कथा (history of sheetla mata) MATA SHEETALA DEVI KI KATHA — चैत...

सप्तश्रृंगी माता मंदिर कहाँ पर स्थित है?

सप्तश्रृंगी माता मंदिर नासिक में स्थित है| यह मंदिर गांव से 100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है| इस मंदिर में जाने के लिए श्रद्धालुओं को 500 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है| हाल ही में फ्यूनिक्युलर ट्रॉली की सुविधा शुरू की गई है| इस ट्रॉली की टिकट की कीमत प्रति पुरुष और प्रति महिला की 80 रुपये तथा बच्चों की 40 रुपये रखी गई है| इस ट्रॉली में एक बार में 60 श्रद्धालु जा सकते है|

सप्तशृंगी

या लेखातील हा साचा सप्तशृंगी गड नाव सप्तशृंगी गड उंची ४५६९ फूट प्रकार गिरीदुर्ग चढाईची श्रेणी सप्तशृंगी हा अलंकार [ ] देवीची मूर्ती ८ फूट उंचीची आहे. ही मूर्ती भौगोलिक स्थान [ ] हे स्थान इतिहास [ ] कथा [ ] कोणत्याही पुरुषाकडून मरण मिळणार नाही असा वर प्रत्यक्ष शंकराकडून मिळाल्यामुळे स्वरूप [ ] देवीचे दर्शन घेण्यासाठी एका बाजूने चढणीचा मार्ग असून, दर्शन घेतल्यानंतर दुसऱ्या बाजूने परतीचा मार्ग आहे. हे दोन्ही मार्ग पायऱ्यांचे आहेत. २०१७ पासून भक्तासाठी, माल चढवणे व उतरवणे यासाठी लिफ्टची सोय केली आहे. पूजन [ ] पहाटे पाच वाजता सप्तशृंगी देवीचे मंदिर उघडते. साडेपाच वाजता गडावरील इतर ठिकाणे [ ] • कालीकुंड • सूर्यकुंड • जलगुंफा • शिवतीर्थ • शितकडा • गणपती मंदिर • गुरुदेव आश्रम गडावर जाण्याच्या सोई [ ] गडावर जाण्यासाठी बसगाड्या नाशिक सी.बी.एस. (जुने) व दिंडोरी नाका येथून मिळतात. तसेच उत्सव काळात जास्तीच्या एस. टी. बसेसची सोय करण्यात आलेली असते. नवरात्र (घट) त्या काळात जळगाव, अंबळनेर, येथून कळवण मार्गे देवीचे भक्त पायवाटेने येतात. गडाच्या पायथ्याशी नांदुरी हे एक छोटेसे गाव गाव आहे. अधिक वाचन [ ] • • हेसुद्धा पहा [ ] देवीची साडेतीन शक्तिपीठे • श्री क्षेत्र • श्री क्षेत्र • श्री क्षेत्र • संदर्भ आणि नोंदी [ ]

लोहड़ी माता की कथा: Lohri Mata Story in Hindi

लोहड़ी माता की कथा लोहड़ी माता का इतिहास जानने के लिए संपूर्ण लेख पढ़ना अनिवार्य है। लोहड़ी माता की कहानी जानने से पहले आप सभी को नरवर किले के बारे में जानना जरूरी है। तो चलिए फिर पहले हम बात करते हैं नरवर किले के बारे में। नरवर किला एक ऐतिहासिक किला माना गया है जिसके ऊपर बहुत ही प्राचीन कथाएं हैं जिनमें से एक Lohri Mata Ki Kahani है। तो आज हम केवल लोहड़ी माता की कथा के बारे में ही जानेंगे। लोहड़ी माता के बारे में विख्यात रूप से तो कोई भी नहीं बता सकता परंतु जितना हो पाएगा हम कोशिश करेंगे कि आपको लोड़ी माता के बारे में संपूर्ण जानकारी प्राप्त हो जाए। नरवर किला का इतिहास नरवर किला और लोहड़ी माता का इतिहास ग्वालियर से करीब 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जिला शिवपुरी के नरवर शहर से संबंधित है। नरवर का इतिहास करीब 200 वर्ष पुराना है। 19वीं सदी में नरवर राजा ‘नल’ की राजधानी हुआ करती थी। नल नामक एक राजा हुआ करते थे। नरवर जोकि बीसवीं शताब्दी में नल पुर निसदपुर नाम से भी जाना जाता था। बताया जाता है कि नरवर का किला समुद्र से 1600 और भू तल से 5 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। नरवर किले का क्षेत्रफल करीब 7 किलोमीटर में फैला हुआ है और इसी नरवर किले के सबसे नीचे वाले हिस्से में लोड़ी माता का मंदिर है। वहां का लोहड़ी माता का मंदिर बहुत ही विख्यात है और इतनी प्रसिद्दि के साथ वहां बहुत लोग दर्शन करने जाते हैं। उत्तर भारत और मध्य भारत में लोहड़ी माता की काफी अधिक प्रसिद्धि है। इस किले के खंडहर होने का एकमात्र कारण पुरातत्व विभाग का सही रखरखाव ना रखना ही है। अगर वह पुरातत्व वाले इस किले का रखरखाव सही से करते तो आज यह खंडहर नहीं होता। अब इस किले को टूरिस्ट एडवेंचर स्पोर्ट के रूप में इस्तेमाल किया जा रह...

सती

सती शक्ति, ऊर्जा, वैवाहिक सुख, दीर्घायु, सौंदर्य, सद्भाव, आकर्षण, युद्ध, शांति, रौद्रता, सौम्यता, सुख, प्रकृति, पतिव्रत धर्म, स्त्रीत्व, संस्कार और सदाचार की देवी Member of त्रिदेवी देवी सती के मृत शरीर पर विलाप करतेहुए भगवान अन्य नाम संबंध निवासस्थान ॐ सर्वसमोहन्ये विद्महे विश्वजनन्ये धीमही तन्नो शक्ति प्रचोद्यात । अस्त्र त्रिशूल, चक्र, शंख, ढाल, तलवार, धनुष बाण, गदा और कमल जीवनसाथी माता-पिता अनुक्रम • 1 पुराणों में वर्णित आरम्भिक जीवन • 2 दक्ष-यज्ञ एवं सती का आत्मदाह • 2.1 पौराणिक मान्यताओं की विभिन्नता • 3 इन्हें भी देखें • 4 बाहरी कड़ियाँ • 5 सन्दर्भ पुराणों में वर्णित आरम्भिक जीवन [ ] शैव पुराणों में भगवान शिव की प्रधानता के कारण शिव को परम तत्त्व तथा शक्ति (शिवा) को उनकी अनुगामिनी बताया गया है। इसी के समानान्तर शाक्त पुराणों में शक्ति की प्रधानता होने के कारण शक्ति (शिवा) को दक्ष-यज्ञ एवं सती का आत्मदाह [ ] प्रयाग में प्रजापतियों के एक यज्ञ में दक्ष के पधारने पर सभी देवतागण खड़े होकर उन्हें आदर देते हैं, परन्तु ब्रह्मा जी के साथ शिवजी भी बैठे ही रह जाते हैं। पौराणिक मान्यताओं की विभिन्नता [ ] शाक्त मत में शक्ति की सर्वप्रधानता होने के कारण ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव तीनों को शक्ति की कृपा से ही उत्पन्न माना गया है। देवीपुराण (महाभागवत) में वर्णन है कि पूर्णा प्रकृति जगदम्बिका ने ही ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों को उत्पन्न कर उन्हें सृष्टि कार्यों में नियुक्त किया। उन्होंने ही ब्रह्मा को सृजनकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता तथा अपनी इच्छानुसार शिव को संहारकर्ता होने का आदेश दिया। उक्त वरदान के अनुरूप पूर्णा प्रकृति ने सती के नाम से दक्ष की पुत्री रूप में जन्म ग्रहण किया और उसक...

भीष्म साहनी :: :: :: माता

पंद्रह डाउनलोड गाड़ी के छूटने में दो-एक मिनट की देर थी। हरी बत्ती दी जा चुकी थी और सिगनल डाउनलोड हो चुका था। मुसाफिर अपने-अपने डिब्‍बों में जाकर बैठ चुके थे, जब सहसा दो फटेहाल औरतों में हाथापाई होने लगी। एक औरत, दूसरी की गोद में से बच्‍चा छीनने की कोशिश करने लगी और बच्‍चेवाली औरत एक हाथ से बच्‍चे को छाती से चिपकाए, दूसरे से उस औरत के साथ जूझती हुई, गाड़ी में चढ़ जाने की कोशिश करने लगी। ''छोड़, तुझे मौत खाए, छोड़, गाड़ी छूट रही है...।'' ''नहीं दूँगी, मर जाऊँगी तो भी नहीं दूँगी...'' दूसरी ने बच्‍चे के लिए फिर से झपटते हुए कहा। कुछ देर पहले दोनों औरतें आपस में खड़ी बातें कर रही थीं, अभी दोनों छीना-झपटी करने लगी थीं। आस-पास के लोग देखकर हैरान हुए। तमाशबीन इकट्ठे होने लगे। प्‍लेटफार्म का बावर्दी हवलदार, जो नल पर पानी पीने के लिए जा रहा था, झगड़ा देखकर, छड़ी हिलाता हुआ आगे बढ़ आया। ''क्‍या बात है? क्‍या हल्‍ला मचा रही हो?'' उसने दबदबे के साथ कहा। हवलदार को देखकर दोनों औरतें ठिठक गईं। दोनों हाँफ रही थीं और जानवरों की तरह एक-दूसरी को घूरे जा रही थीं। दो-एक मुसाफि़रों को गाड़ी पर चढ़ते देखकर बच्‍चेवाली औरत फिर गाड़ी की ओर लपकी, लेकिन दूसरी ने झपटकर उसे पकड़ लिया और उसे खींचती हुई फिर प्‍लेटफार्म के बीचोंबीच ले आई। लटकते-से अंगोंवाला, काला, दुबला-सा बच्‍चा, औरत के कंधे से लगकर सो रहा था। औरतों की हाथापाई में उसकी पतली लंबूतरी-सी गर्दन, कभी झटका खाकर एक ओर को लुढ़क जाती, कभी दूसरी ओर को। लेकिन फिर भी उसकी नींद नहीं टूट रही थी। ''मत हल्‍ला करो, क्‍या बात है?'' हवलदार ने छड़ी हिलाते हुए चिल्‍लाकर कहा और अपनी पतली बेंत की छड़ी दोनों औरतों के बीच खोंसकर उन्‍हें छुड़ाने की कोशिश करने लगा।...

लक्ष्मी माता की कहानी / लक्ष्मी माता की कथा। Lakshmi Mata Ki Kahani. – HIND IP

मां लक्ष्मी सुख, समृद्धि और धन की देवी है। जब लक्ष्मी माता का व्रत किया जाता है तो लक्ष्मी माता की कहानी सुनकर व्रत पूर्ण किया जाता है। लक्ष्मी माता के व्रत को ‘वैभव लक्ष्मी व्रत’ भी कहा जाता है। वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार के दिन रखा जाता है। इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है लक्ष्मी माता का व्रत रखने से सुख समृद्धि और धन की प्राप्ति होती हैं। दिवाली वाले दिन माता लक्ष्मी का व्रत किया जाता है और लक्ष्मी माता की कहानी सुनी जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करने आती है। जो भी मां लक्ष्मी के सच्चे मन से आराधना करती है मां लक्ष्मी उस पर अपनी कृपा बरसाती हैं। दिवाली वाले दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम के समय विधि विधान से व्रत खोलते हैं और लक्ष्मी माता की कहानी सुनी जाती है। तो आइए जानते हैं लक्ष्मी माता की पावन कथा – लक्ष्मी माता की कहानी। vaibhav lakshmi mata ki katha. लक्ष्मी माता की कहानी –एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार के एक बेटी थी । वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी । पीपल के वृक्ष में से लक्ष्मी जी प्रकट होती थी और चली जातीं । एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा – तू मेरी सहेली बन जा । तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से पूछकर कल आऊंगी । साहूकार की बेटी ने घर जाकर अपने पिता को सारी बात कह दी । तब उसके पिताजी बोले वह तो लक्ष्मी जी हैं । अपने को और क्या चाहिए तू लक्ष्मी जी की सहेली बन जा । दूसरे दिन वह लड़की फिर गईं । तब लक्ष्मी जी पीपल के पेड़ से निकल कर आई और कहा सहेली बन जा तो लड़की ने कहा , बन जाऊंगी और दोनों सहेली बन गई । लक्ष्मी जी ने उसको खाने का न्यौता दिया । घर आकर लड़की ने मां – बाप को कहा कि मेरी सहेली ने मु...