सरस्वती वंदना संस्कृत श्लोक अर्थ

  1. Sanskrit Shlok
  2. सरस्वती वंदना (Sarasvati Vandana)
  3. 50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित
  4. मां सरस्वती जी की वन्दना, वर्णन, स्तुति, श्लोक, आराधना एवं वसन्त पञ्चमी पूजन।Vasant Panchami
  5. श्री सरस्वती स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित
  6. श्री सरस्वती वंदना श्लोक लिरिक्‍स संस्कृत में
  7. 201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित


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Sanskrit Shlok

Sanskrit Shlok in Hindi : दोस्तों ये बात तो आप भी बहुत अच्छे से जानते हैं, की संस्कृत भाषा का हम सभी लोगो के जीवन में अहम रोल है। जन्म से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के जो भी संस्कार होते हैं। वे सभी संस्कृत भाषा में होते हैं। संस्कृत भाषा प्राचीन काल से चलती आ रही है। पुराण उपनिषद व ग्रंथ भी संस्कृत में ही लिखे गए हैं। इसे देव भाषा भी कहते हैं। इन सभी बातों से पता चलता है की संस्कृत का ज्ञान होना हमारे लिए आवश्यक है। प्राचीन समय में ऋषि मुनि ज्ञान बढ़ाने हेतु संस्कृत में श्लोक का प्रयोग करते थे। जिन्हे पढ़कर वास्तव में मन को बड़ी ही शांति मिलती है। इसलिए दोस्तों आज की पोस्ट में हमने प्राचीन समय के कुछ चुनिंदा संस्कृत श्लोक और उनके अर्थ लिखे हैं। जिन्हे एक बार आपको जरूर पढ़ना चाहिए। तदा एव सफलता विषये चिन्तनं कुर्मः यदा वयं सिद्धाः भवामः!! अर्थ- तभी सफलता के विषय में चिंतन करे जब आप कार्य करके उसे पूरा कर पाए, वरना बिना कार्य किये सफलता के बारे में सोचना व्यर्थ है! निवर्तयत्यन्यजनं प्ररमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते गुणाति तत्त्वं हितमिछुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरु निर्गघते !! अर्थ- जो दूसरों को प्रमाद (नशा, गलत काम ) करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते पर चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध (यथार्थ ज्ञान का बोध) कराते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं! ॐ न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते !! अर्थ- इस सम्पूर्ण संसार में ज्ञान के समान पवित्र और कुछ भी नहीं है। वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा !! अर्थ- जिनका एक दन्त टुटा हुआ है जिनका शरीर हाथी जैसा विशालकाय है और तेज सूर्य की किरणों की तरह है बलशाली है। उनसे मेरी प्रा...

सरस्वती वंदना (Sarasvati Vandana)

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥ पदविभाग: या कुंदेंदु तुषार हार धवला, या शुभ्र वस्त्रा वृता। या वीणा वरदण्ड मंडित करा, या श्वेत पद्मासना || या ब्रह्मा अच्युत शंकर प्रभृतिभि:, देवै: सदा वन्दिता | सा माम् पातु सरस्वति भगवति , निःशेष जाड्यापहा || अर्थ: जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर शङ्कर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें। Meaning - Salutations to Devi Saraswati, Who is pure white like Jasmine, with the coolness of Moon, brightness of Snow and shine like the garland of Pearls; and Who is covered with pure white garments, Whose hands are adorned with Veena (a stringed musical instrument) and the boon-giving staff; and Who is seated on pure white Lotus, Who is always adored by Lord Brahma, Lord Acyuta (Lord Vishnu), Lord Shankara and other Devas, O Goddess Saraswati, please protect me and remove my ignorance completely. ————— 2) शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌। हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌ वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥ पदविभाग: शुक्लाम् ब्...

50+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

संस्कृत भाषा से ही अन्य भाषाओं का उद्गम हुआ है। यह भाषा ही नहीं है यह अपने आप में पूरे वेदो, शास्त्रों और ब्रह्मांड के संपूर्ण ज्ञान को समेटे हुए है। आज संस्कृत भाषा विलुप्त होती जा रही है जोकि हमारी भारतीय संस्कृति के लिए अच्छा नहीं है यह भाषा भारत की रीड की हड्डी है इसे उन्हें जीवित करना हमारा लक्ष्य है। विषय-सूची 1 • • • • • • Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi (1) ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।। अर्थात् : गुरु ही ब्रह्मा है, गुरु ही विष्णु है और गुरु ही भगवान शंकर है। गुरु ही साक्षात परब्रह्म है। ऐसे गुरु को मैं प्रणाम करता हूँ। (2) तुलसी श्रीसखि शिवे शुभे पापहारिणी पुण्य दे। दीपो हरतु मे पापं दीपज्योतिर्नमोऽस्तुते ॥ अर्थात् : हे तुलसी ! तुम लक्ष्मी की सहेली, कल्याणप्रद, पापों का हरण करने वाली तथा पुण्यदात्री हो। नारायण भगवान के मन को प्रिय लगने वाली आपको नमस्कार है। दीपक के प्रकाश को मेरे पापों को दूर करने दो, दीपक के प्रकाश को प्रणाम। (3) आदि देव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:। दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते ।1। अर्थात् : हे आदिदेव भास्कर! (सूर्य का एक नाम भास्कर भी है), आपको प्रणाम है, आप मुझ पर प्रसन्न हो, हे दिवाकर! आपको नमस्कार है, हे प्रभाकर! आपको प्रणाम है। (4) वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा॥ अर्थात् : हे घुमावदार सूंड वाले, विशाल शरीर, करोड़ों सूर्य के समान महान प्रतिभाशाली मेरे प्रभु, हमेशा मेरे सारे कार्य बिना विघ्न के पूरे करें ( करने की कृपा करें)। (5) ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात॥ अर्थात् : ह...

मां सरस्वती जी की वन्दना, वर्णन, स्तुति, श्लोक, आराधना एवं वसन्त पञ्चमी पूजन।Vasant Panchami

मां सरस्वती जी की वन्दना, वर्णन, स्तुति, श्लोक, आराधना एवं वसन्त पञ्चमी पूजन। Worship, description, praise, sloka, worship and worship of Vasant Panchami of Mother Saraswati विद्या की देवी माँ शारदाजिस मस्तिष्क में विराजमान होती है, वह सभी गुणों से सुशोभित हो जाता है, और समस्त संसार में उसकी ख्याती बढती है। सरस्वती को ज्ञान की अधीष्ठात्रि भी कहा गया है, विना ज्ञान के मनुष्य का जीवन किसी काम का नही है। अर्थात सरस्वती की आराधना मन और मस्तिष्क के वेगों को सकारात्मका ऊर्जाप्रदान करके उसका सम्पूर्ण विकास करती है। इसलिए हम लेकर आए है जो जीवन में आगे बढ़ने के लिए , , आदि शेयर कर रहा हूँ। जो आपको जीवन जीने, समझने और Life में भूमिका निभाते है,आध्यात्म ज्ञान से सम्बंधित , , , आदि सरस्वती मंत जो है सफलता की कुंजी Saraswati Mantra which is the key to success (1) सरस्वती नमस्तुभ्यं वरदे कामरूपिणी, विद्यारम्भं करिष्यामि सिद्धिर्भवतु में सदा। अर्थात-हे सबकी कामना पूर्ण करने वाली माता सरस्वती, आपको नमस्कार करता हूँ। मैं अपनी विद्या ग्रहण करना आरम्भ कर रहा हूँ , मुझे इस कार्य में सिद्धि मिले। (2) या देवी सर्वभूतेषु विद्यारूपेण संस्थिता नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥ अर्थात-वह देवी जो तीनों लोकों का उद्धारबल,विद्या को देने वाली है, करने वाली है,उसको नमस्कार है, नमस्कार है, नमस्कार हैं। ऐसे करें माता सरस्वती की आराधना This is how to worship Mata Saraswati मां सरस्वती ऋग्वेद में यह वाग्देवी के रूप में वर्णित हुई हैं। भारतीय वाङ्मय में इनको विद्या , प्रत्यभिज्ञा , मेधा , तर्क शक्ति तथा वाणी की देवीमाना गया है। यह काव्य की भी अधिष्ठात्री देवी हैं। सरस्वती का ध्यान प्रायः इस मंत्र से किया...

श्री सरस्वती स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित

Saraswati stotram ज्ञान और विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा में श्रद्धा – भक्ति के साथ श्री सरस्वती स्तोत्र का पाठ करना अत्यन्त लाभदायक है। ॥ श्री सरस्वती स्तोत्र ॥ या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना । या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥1॥ अर्थ – जो कुन्द के फूल, चन्द्रमा और बर्फ के समान श्वेत हैं। जो शुभ्र वस्त्र धारण करती हैं। जिनके हाथ उत्तम वीणा से सुशोभित हैं। जो श्वेत कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। ब्रह्मा, विष्णु, महेश आदि जिनकी सदा स्तुति करते हैं और जो सब प्रकार की जड़ता हर लेती हैं, वे भगवती सरस्वती मेरा पालन करें। आशासु राशीभवदङ्गवल्लीभासैव दासीकृतदुग्धसिन्धुम् । मन्दस्मितैर्निन्दितशारदेन्दुं वन्देऽरविन्दासनसुन्दरि त्वाम् ॥2॥ अर्थ – हे कमल के आसन पर बैठने वाली सुन्दरी सरस्वति ! आप सब दिशाओं में फैली हुई अपनी देहलता की आभा से ही शारदा शारदाम्भोजवदना वदनाम्बुजे । सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् ॥3॥ अर्थ – शरद ऋतु में उत्पन्न कमल के समान मुखवाली और सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली शारदा सब सम्पत्तियों के साथ मेरे मुख में सदा निवास करें। सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृदेवताम् । देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः ॥4॥ अर्थ – वाणी की अधिष्ठात्री उन देवी सरस्वती को मैं प्रणाम करता हूँ, जिनकी कृपा से मनुष्य देवता बन जाता है। पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती । प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या ॥5॥ अर्थ – बुद्धिरूपी सोने के लिए कसौटी के समान सरस्वती जी, जो केवल वचन से ही विद्वान और मूर्खों की परीक्षा कर देती हैं, हमलोगों का पालन करें। शुक्लां ...

श्री सरस्वती वंदना श्लोक लिरिक्‍स संस्कृत में

श्री सरस्वती वंदना श्लोक लिरिक्‍स संस्कृत में श्री सरस्वती वंदना श्लोक लिरिक्‍स संस्कृत में :– या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना। या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥१॥ श्लोक अर्थ– जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चन्द्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की हैं और जो श्वेत वस्त्र धारण करती हैं, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा, विष्णु एवं शंकर शङ्कर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही सम्पूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली माँ सरस्वती हमारी रक्षा करें। Advertisement Meaning– Salutations to Devi Saraswati, Who is pure white like Jasmine, with the coolness of Moon, brightness of Snow and shine like the garland of Pearls; and Who is covered with pure white garments, Whose hands are adorned with Veena (a stringed musical instrument) and the boon-giving staff; and Who is seated on pure white Lotus, Who is always adored by Lord Brahma, Lord Acyuta (Lord Vishnu), Lord Shankara and other Devas, O Goddess Saraswati, please protect me and remove my ignorance completely. मेरा जी करता है श्याम के भजनों में खो जाऊं लिरिक्स देना हो तो दीजिये जनम जनम का साथ हिंदी लिरिक्स कर्मों का फल तो सभी को भोगना ही पड़ता हैं। मेरा जी करता है श्याम के भजनों में खो जाऊं लिरिक्स

201+ संस्कृत श्लोक अर्थ सहित

Sanskrit Shlokas With Meaning in Hindi : भारत में संस्कृत भाषा को सभी भाषाओ के जननी माना जाता है, संस्कृत दुनिया की सबसे पुराणी भाषा है संस्कृत की महानता Sanskrit ke best slokas से है देश में संस्कृत भाषा को देव भाषा की उपाधि दिया गया है पुराने समय से ही संस्कृत श्लोको के आधार पर मानव रहा है। अगर आप भारतीय है और हिन्दू धर्म से तालुक रखते है तो आपको संस्कृत श्लोक (Sanskrit Shlokas) का ज्ञान होना चाहिए मनुष्य जाती के लिए संस्कृत हमारे जीवन का एक अनमोल हिस्सा रहा है पुराने समय से ही ऋषि-मुनियों ने कई सारे अद्भुत संस्कृत भाषा (sanskrit slokas) में बेहतरीन आयुषः क्षण एकोऽपि सर्वरत्नैर्न न लभ्यते। नीयते स वृथा येन प्रमादः सुमहानहो ॥ अर्थात् : सभी कीमती रत्नों से कीमती जीवन है जिसका एक क्षण भी वापस नहीं पाया जा सकता है। इसलिए इसे फालतू के कार्यों में खर्च करना बहुत बड़ी गलती है। (3) आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण, लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना, छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥ अर्थात् : दुर्जन की मित्रता शुरुआत में बड़ी अच्छी होती है और क्रमशः कम होने वाली होती है। सज्जन व्यक्ति की मित्रता पहले कम और बाद में बढ़ने वाली होती है। इस प्रकार से दिन के पूर्वार्ध और परार्ध में अलग-अलग दिखने वाली छाया के जैसी दुर्जन और सज्जनों व्यक्तियों की मित्रता होती है। (4) यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति। अर्थात् : मनुष्य के शरीर में रहने वाला आलस्य ही उनका सबसे बड़ा शत्रु होता है, परिश्रम जैसा दूसरा कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता है। (5) परान्नं च परद्रव्यं तथैव च प्रतिग्रहम्। परस्त्रीं परनिन्दां च मनसा अपि विवर्जयेत।। अर्थात् : पराया...