सुंदरकांड चौपाई

  1. Sunderkand (सुंदरकांड) in Hindi PDF Free Download
  2. [PDF] सुन्दरकाण्ड संपूर्ण पाठ
  3. रामचरितमानस संपूर्ण सुन्दरकाण्ड चौपाई पाठ
  4. संपूर्ण सुंदरकांड चौपाई PDF – InstaPDF


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Sunderkand (सुंदरकांड) in Hindi PDF Free Download

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[PDF] सुन्दरकाण्ड संपूर्ण पाठ

सुंदरकाण्ड सम्पूर्ण पाठ अर्थ सहित शान्तं शाश्वतमप्रमेयमनघं निर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशं वेदान्तवेद्यं विभुम् । रामाख्यं जगदीश्वरं सुरगुरुं मायामनुष्यं हरिं वन्देऽहं करुणाकरं रघुवरं भूपालचूडामणिम् ॥ शान्त, सनातन, अप्रमेय (प्रमाणों से परे), निष्पाप, मोक्षरूप परमशान्ति देने वाले, ब्रह्मा, शम्भु और शेषजी से निरंतर सेवित, वेदान्त के द्वारा जानने योग्य, सर्वव्यापक, देवताओं में सबसे बड़े, माया से मनुष्य रूप में दिखने वाले, समस्त पापों को हरने वाले, करुणा की खान, रघुकुल में श्रेष्ठ तथा राजाओं के शिरोमणि राम कहलाने वाले जगदीश्वर की में वंदना करता हूँ ॥ नान्या स्पृहा रघुपते हृदयेऽस्मदीये सत्यं वदामि च भवानखिलान्तरात्मा। भक्तिं प्रयच्छ रघुपुंगव निर्भरां मे कामादिदोषरहितं कुरु मानसं च ॥ भावार्थ:-हे रघुनाथजी। मैं सत्य कहता हूँ और फिर आप सबके अंतरात्मा ही हैं (सब जानते ही हैं) कि मेरे हृदय में दूसरी कोई इच्छा नहीं है। हे रघुकुलश्रेष्ठ | मुझे अपनी निर्भरा (पूर्ण) भक्ति दीजिए और मेरे मन को काम आदि दोषों से रहित कीजिए ॥ अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥ हनुमानजी का सीता शोध के लिए लंका प्रस्थान चौपाई (Chaupai) जामवंतकेबचनसुहाए। सुनि हनुमंतहृदयअति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुखकंदमूलफलखाई॥ जामवंत जी के सुहावने वचन सुनकरहनुमानजीको अपने मन में वे वचनबहुत अच्छेलगे॥ और हनुमानजी ने कहा की हे भाइयो! आप लोग कन्द, मूल व फल खा, दुःख सह करमेरी राह देखना॥ जब लगि आवौंसीतहिदेखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा। चलेउहरषिहियँ धरिरघुनाथा॥ जबतक मैसीताजीकोदेखकर लौट न ...

रामचरितमानस संपूर्ण सुन्दरकाण्ड चौपाई पाठ

॥श्रीगणेशायनमः ॥ ॥श्रीजानकीवल्लभोविजयते ॥ ॥श्रीरामचरितमानस ॥ पञ्चमसोपान सुन्दरकाण्ड श्लोक शान्तंशाश्वतमप्रमेयमनघंनिर्वाणशान्तिप्रदं ब्रह्माशम्भुफणीन्द्रसेव्यमनिशंवेदान्तवेद्यंविभुम्। रामाख्यंजगदीश्वरंसुरगुरुंमायामनुष्यंहरिं वन्देऽहंकरुणाकरंरघुवरंभूपालचूड़ामणिम्।।1।। नान्यास्पृहारघुपतेहृदयेऽस्मदीये सत्यंवदामिचभवानखिलान्तरात्मा। भक्तिंप्रयच्छरघुपुङ्गवनिर्भरांमे कामादिदोषरहितंकुरुमानसंच।।2।। अतुलितबलधामंहेमशैलाभदेहं दनुजवनकृशानुंज्ञानिनामग्रगण्यम्। सकलगुणनिधानंवानराणामधीशं रघुपतिप्रियभक्तंवातजातंनमामि।।3।। जामवंतकेबचनसुहाए।सुनिहनुमंतहृदयअतिभाए।। तबलगिमोहिपरिखेहुतुम्हभाई।सहिदुखकंदमूलफलखाई।। जबलगिआवौंसीतहिदेखी।होइहिकाजुमोहिहरषबिसेषी।। यहकहिनाइसबन्हिकहुँमाथा।चलेउहरषिहियँधरिरघुनाथा।। सिंधुतीरएकभूधरसुंदर।कौतुककूदिचढ़ेउताऊपर।। बारबाररघुबीरसँभारी।तरकेउपवनतनयबलभारी।। जेहिंगिरिचरनदेइहनुमंता।चलेउसोगापातालतुरंता।। जिमिअमोघरघुपतिकरबाना।एहीभाँतिचलेउहनुमाना।। जलनिधिरघुपतिदूतबिचारी।तैंमैनाकहोहिश्रमहारी।। दो0- हनूमानतेहिपरसाकरपुनिकीन्हप्रनाम। रामकाजुकीन्हेंबिनुमोहिकहाँबिश्राम।।1।। –*–*– जातपवनसुतदेवन्हदेखा।जानैंकहुँबलबुद्धिबिसेषा।। सुरसानामअहिन्हकैमाता।पठइन्हिआइकहीतेहिंबाता।। आजुसुरन्हमोहिदीन्हअहारा।सुनतबचनकहपवनकुमारा।। रामकाजुकरिफिरिमैंआवौं।सीताकइसुधिप्रभुहिसुनावौं।। तबतवबदनपैठिहउँआई।सत्यकहउँमोहिजानदेमाई।। कबनेहुँजतनदेइनहिंजाना।ग्रससिनमोहिकहेउहनुमाना।। जोजनभरितेहिंबदनुपसारा।कपितनुकीन्हदुगुनबिस्तारा।। सोरहजोजनमुखतेहिंठयऊ।तुरतपवनसुतबत्तिसभयऊ।। जसजससुरसाबदनुबढ़ावा।तासुदूनकपिरूपदेखावा।। सतजोजनतेहिंआननकीन्हा।अतिलघुरूपपवनसुतलीन्हा।। बदनपइठिपुनिबाहेरआवा।मागाबिदाताहिसिरुनावा।। मोहिसुरन्हजेहिलागिपठावा।...

संपूर्ण सुंदरकांड चौपाई PDF – InstaPDF

सुन्दरकाण्ड के अंतर्गत मुख्यतः श्री हनुमान जी की दिव्या लीलाओं एवं उनकी बुद्धि एवं बल का वर्णन मिलता है। सुन्दरकाण्ड अत्यधिक प्रभावशाली एवं दिव्य है, इसका नियमित पाठ करने से व्यक्ति को समस्त प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। जिस घर में प्रतिदिन विधिवत सुन्दरकाण्ड का पाठ होता है, उस घर सदैव सुख, शान्ति एवं समृद्धि का निरंतर वास रहता है। सुंदरकांड का पाठ प्रत्येक मंगलवार या शनिवार को किया जाता है। इसका पाठ अकेले में या समूह के साथ संगीतमय रूप में किया जाता है। सुंदरकांड का नियमित पाठ जीवन की समस्त बाधाओं का नाश करता है। इससे धन, संपत्ति, सुख, वैभव, मान-सम्मान आदि प्राप्त होता है। संपूर्ण सुंदरकांड चौपाई PDF | Sundar Kand Ki Chaupai || चौपाई || जामवंत के बचन सुहाए। सुनि हनुमंत हृदय अति भाए॥ तब लगि मोहि परिखेहु तुम्ह भाई। सहि दुख कंद मूल फल खाई॥1॥ भावार्थ:-जाम्बवान्‌ के सुंदर वचन सुनकर हनुमान्‌जी के हृदय को बहुत ही भाए। (वे बोले-) हे भाई! तुम लोग दुःख सहकर, कन्द-मूल-फल खाकर तब तक मेरी राह देखना॥1॥ जब लगि आवौं सीतहि देखी। होइहि काजु मोहि हरष बिसेषी॥ यह कहि नाइ सबन्हि कहुँ माथा । चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा॥2॥ भावार्थ:-जब तक मैं सीताजी को देखकर (लौट) न आऊँ। काम अवश्य होगा, क्योंकि मुझे बहुत ही हर्ष हो रहा है। यह कहकर और सबको मस्तक नवाकर तथा हृदय में श्री रघुनाथजी को धारण करके हनुमान्‌जी हर्षित होकर चले॥2॥ सिंधु तीर एक भूधर सुंदर। कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर॥ बार-बार रघुबीर सँभारी। तरकेउ पवनतनय बल भारी॥3॥ भावार्थ:-समुद्र के तीर पर एक सुंदर पर्वत था। हनुमान्‌जी खेल से ही (अनायास ही) कूदकर उसके ऊपर जा चढ़े और बार-बार श्री रघुवीर का स्मरण करके अत्यंत बलवान्‌ हनुमान्‌जी उस पर से बड़...