सुआ गीत के 10 पंक्तियां

  1. छत्तीसगढ़ के लोकगीत
  2. छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकगीत
  3. सुआ गीत/ Sua Geet
  4. MY EDUCATION : छत्तीसगढ़ का सुआ गीत


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छत्तीसगढ़ के लोकगीत

छत्तीसगढ़ के लोकगीत • छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत यहां के संगीत, नृत्य, नाटक, कला, वास्तुकला और शिल्प आदि में परिलक्षित होती है। • छत्तीसगढ़ लोकगीत राज्य की संस्कृति में विशिष्ट स्थान रखते हैं। • छत्तीसगढ़ राज्य के विभिन्न जिलों में गोंड, कमर, कांवर, कोरवा, बिरही, बैगा, हलबा, पांडो, उरांव, बिंझवार जैसी कई अनुसूचित जनजातियां/जातियां रहती हैं।विभिन्न त्योहारों और विवाह समारोहों को मनाते समय ये जनजातियाँ गायन और ढोल के साथ नृत्य, नाटक और संगीत भी करती हैं। • छत्तीसगढ़ के लोक गीत साधारण गाँव के लोगों के सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। • छत्तीसगढ़ के लोगों द्वारा मनाए जाने वाले त्योहारों में नवाखानी, हरेली, गंगा दशहरा, सरहुल छेरका, दीपावली, कर्मा, कार्तिका और दशहरा शामिल हैं। • नीचे दी गई तालिका में कुछ क्षेत्रीय लोकगीत दिए गए हैं। छत्तीसगढ़ के लोकगीतोंका उद्देश्य छत्तीसगढ़ के लोकगीतों केनाम छत्तीसगढ़ केमनोरंजन लोक गीत देवर गीत, कर्म गीत और डंडा बच्चे का गाना बज रहा है Kau-Mau, Loriya, Fugdi, Chau-Mau, Dandi Pouha, Khuduwa (Kakdi). बच्चों के लिए गीत लोरी, छत्तीसगढ़ के त्योहार लोक गीत Sua songs (Dipawali), Dohe of Rout Nacha (Dipawali), Cher-Chera songs (to welcome new crops, child songs). छत्तीसगढ़ के मौसमी लोक गीत Baramasi (12 months), Sawnahi (in rainy seasons) and Fag (Basant Geet). विभिन्न क्षेत्रीय विशिष्ट के अन्य गीत जनवारा गीत, धनकुल गीत, गौरा गीत, नागपंचमी के गीत, माता सेवा गीत, भोजली गीत छत्तीसगढ़ के विभिन्न प्रकार के लोकगीत सोहर लोक गीत • सोहर गीत बच्चे के जन्म के बाद गाए जाते हैं, विशेषकर पुत्र के जन्म पर। • भारतीय समाज की यह ब...

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोकगीत

4.8/5 - (6 votes) छत्तीसगढ़ लोकगीत : दोस्तों आपको में आज इस पोस्ट के माध्यम से गीत किसी बंधन या नियम में न बंधकर मौखिक परम्परा में जीवित रहकर युगों की यात्रा करते हैं। इस कारण इन्हें संस्कृति के समग्र संवाहक भी कहा जाता है। ऐसे समस्त छत्तीसगढ़ के लोकगीत जो किसी समाज या क्षेत्र विशेष के लोगों द्वारा किसी पर्व-विशेष पर गाए जाते हैं, वहाँ लोकगीत कहलाते हैं। छत्तीसगढ़ भी एक लोकगीतों से एक समृद्ध शाली राज्य है. छत्तीसगढ़ के Chhattisgarhi Lokgeet का इतिहास उतना ही प्राचीन / पुराना है. जितना छत्तीसगढ़ का है. जिसके अपने अनेक मत्वपूर्ण Chhattisgarhi Lok Geet है जहां पण्डवानी, भरथरी, चंदैनी गायन, ढोला मारू, बांसगीत के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के संस्कार- गीत, पर्वत्यौहार, बच्चों के खेल गीत, धनकुल गीत, लक्ष्मीजगार, देवरी गीत, आदि गाये जाते हैं। यहाँ छत्तीसगढ़ के Lokgeet (Folk Song) छत्तीसगढ़ के लोगो को अपने अंचल अचरा में बांध कर रखते है. जिसके प्रमाण समय-समय पर होने छत्तीसगढ़ी लोकगीत कर्याक्रम है. पण्डवानी (छत्तीसगढ़ी लोकगीत ) पण्डवानी छत्तीसगढ़ की एक लोकगाथा है। सबल सिंह चौहान द्वारा महाभारत के पांडवों के कथा की छत्तीसगढ़ी लोक रूप का गीतमय अख्याश पण्डवानी है। छत्तीसगढ़ के लोक धुनों में महाभारत की सम्पूर्ण चरित्र कथा को गायन के द्वारा वर्णन किया जाता है. अपने स्वर, बोली, अभिनय, कथा-वाचन और लोक संगीत के माध्यम से आंखों के सामने जीवंत कर देता है। पंडवानी की शुरुयात सबसे पहले छत्तीसगढ़ में पंडवानी के पितामह कहे जाने वाले श्री झाडूराम देवांगन जी द्वारा किया गया था. पंडवानी की दो प्रमुख शैलियाँ है • वेदमती शैली :- वेदमती शाखा को ही शास्त्रीय पण्डवानी कहा जाता है। इसके गायन में केवल शास्त्रसम्मत गा...

सुआ गीत/ Sua Geet

छत्‍तीसगढ़ी परम्‍पराओं में लोकगीतों का प्रमुख स्थान है। इन लोकगीतों में छत्‍तीसगढ़ी संस्‍कृति की स्‍पष्‍ट झलक मिलती है। यहाँ के लोकगीतों की समृद्ध परम्‍परा में भोजली, गौरा, सुआ व जस गीत जैसे त्‍यौहारों में गाये जाने वाले लोकगीतों के साथ ही करमा, ददरिया, बाँस, पंडवानी जैसे सदाबहार लोकगीत शामिल हैं। इन गीतों में यहाँ के सामाजिक जीवन व परम्‍पराओं को भी परखा जा सकता है। ऐसे ही जीवन रस से ओतप्रोत छत्‍तीसगढ़ी लोकगीत है सुआ या सुवा गीत जिसे वाचिक परम्‍परा के रूप में सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी यहाँ की नारियाँ ही गाती रही हैं। सुआ का तात्पर्य तोता नामक पक्षी है और सुआ गीत मूलत: गोंड आदिवासी नारियों का नृत्‍य-गीत है जिसे सिर्फ स्त्रियाँ ही गाती हैं। यह संपूर्ण छत्‍तीसगढ़ में दीपावली के पूर्व से गाई जाती है जो देवोत्‍थान (जेठउनी) एकादशी तक अलग-अलग परम्‍पराओं के अनुसार चलता है। सुवा गीत गाने की यह अवधि धान के फसल के खलिहानों में आ जाने से लेकर उन फसलों के परिपक्‍वता के बीच का ऐसा समय होता है जहाँ कृषि कार्य से कृषि प्रधान प्रदेश की जनता को किंचित विश्राम मिलता है। यद्धपि अध्येताओं का मानना है कि यह मूलतः आदिवासियों का नृत्य गीत रहा है किन्तु इसे छत्तीसगढ़ में विगत कई दशकों से हर वर्ग और जाति की महिलाओं इसे ने अपनाया है। वर्ष में इसका आरंभ दीपावली के समय शंकर और पार्वती के विवाह के गौरा पर्व के साथ होता है जो अगहन माह (दिसंबर-जनवरी) के अंत तक चलता है। सुवा के संबंध में अपने शोध ग्रंथ छत्तीसगढ़ के सुआ गीत: साहित्यिक-सांस्कृतिक अनुशीलन में डॉ. जगदीश कुलदीप लिखते हैं : सुवा एक ऐसा पालतू प्राणी है जो मनुष्य की भाषा को अतिशीघ्र ग्रहण कर लेता है। वह बड़ी सहजता से मनुष्य की वाणी और भावों को ग्रहण करने...

MY EDUCATION : छत्तीसगढ़ का सुआ गीत

सुआ गीत छत्तीसगढ़ में सुआ गीत प्रमुख लोकप्रिय गीतों में से है। सुआ गीत का अर्थ है सुआ याने मिट्ठु के माध्यम से स्रियां सन्देश भेज रही हैं। सुआ ही है एक पक्षी जो रटी हुई चीज बोलता रहता है। इसीलिए सुआ को स्रियां अपने मन की बात बताती है इस विश्वास के साथ कि वह उनकी व्यथा को उनके प्रिय तक जरुर पहुंचायेगा। सुआ गीत इसीलिये वियोग गीत है। प्रेमिका बड़े सहज रुप से अपनी व्यथा को व्यक्त करती है। इसीलिये ये गीत मार्मिक होते हैं। छत्तीसगढ़ की प्रेमिकायें कितने बड़े कवि हैं, ये गीत सुनने से पता चलता है। न जाने कितने सालों से ये गीत चले आ रहे हैं। ये गीत भी मौखिक ही चले आ रहे हैं। सुआ गीत हमेशा एक ही बोल से शुरु होता है और वह बोल हैं - ""तरी नरी नहा नरी नहा नरी ना ना रे सुअना'' और गीत के बीच-बीच में ये दुहराई जाती हैं। गीत की गति तालियों के साथ आगे बढ़ती है। यह दीपावली के पर्व पर महिलाओं द्वारा गाया जाने वाला गीत है इसमे शिव पार्वती का विवाह मनाया जाता है मिट्टी के गौरा -गौरी बनाकर उसके चारो ओर घुमकर सुवा गीत गाकर सुवा नृत्य करते हैं। कुछ जगहो पर मिट्टी के सुवा (तोते ) बनाकर यह गीत गाया जाता है यह दिपाली के कुछ दिन पूर्व शुऱू होकर दिवाली के दिन शिव-पार्वती (गौरा-गौरी) के विवाह के साथ समाप्त होता है यह श्रंगार प्रधान गीत है। 'पइयाँ मै लागौं चंदा सुरज के रे सुअनां तिरिया जनम झन देय तिरिया जनम मोर गऊ के बरोबर जहाँ पठवय तहं जाये। अंगठित मोरि मोरि घर लिपवायं रे सुअना। फेर ननद के मन नहि आय बांह पकड़ के सइयाँ घर लानय रे सुअना। फेर ससुर हर सटका बताय। भाई है देहे रंगमहल दुमंजला रे सुअना। हमला तै दिये रे विदेस पहली गवन करै डेहरी बइठाय रे सुअना। छोड़ि के चलय बनिजार तुहूं धनी जावत हा, अनिज बनिज बर रे ...