सूरदास के पद की व्याख्या

  1. सूरदास की व्याख्या। सूरदास के पदो की व्याख्या
  2. सूरदास कक्षा 11
  3. सूरदास के पद Class 7 With Questions And Answers(surdas Ke Pad In Hindi Class 7) » Hindikeguru
  4. सूरदास के 5 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित
  5. Surdas Ke Pad Poem Explanation Class 11 Hindi सूरदास के पद अर्थ सहित


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सूरदास की व्याख्या। सूरदास के पदो की व्याख्या

सूरदास की व्याख्या (1) उद्धव मन अभिलाष बढ़ायो। जदुपनि जोग जानि निय साँचो नयन अकास चढ़ायो॥ नारिन पै मोको पठवत हो कहत सिखावन जोग। मनहों मन अब करत प्रसंसा हैं मिथ्या सुख-भोग ॥ आयसु मानि लियो सिर ऊपर प्रभु-आज्ञा परमान। सूरदास प्रभु पठवत गोकुल में क्यों कहौं कि आन॥ सदंर्भ- भक्तिकाल की सगुण भक्ति के सुप्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि सूरदास के सूरसागर के उद्धव संदेश से प्रस्तुत पद अवतरित किया गया हैं। प्रसंग- श्री कृष्ण की बातें सुनकर उद्धव अपने ज्ञान - गर्व में ब्रज जाने के लिए तैयार हो जाते हैं। व्याख्या- कृष्ण कि प्रेम जनित विह्वलता देखकर उद्धव मन ही मन अत्यन्त आनन्दित हो उठे-हौंस से फूले न समाए । उन्होंने यह सोचा कृष्ण हमारे योग-मार्ग को सच्चा मार्ग समझने लगे हैं और इसी कारण वह मुझे गोपियों को ज्ञान सिखाने के लिए भेज रहे हैं। इन विचारों के कारण उद्धव गर्व के कारण अति आनन्दित हो उठे और हौंस से फूले न समाए । उन्होंने यह सोचा कि कृष्ण हमारे योग-मार्ग को सच्चा मार्ग समझने लगे हैं और इसी कारण वह मुझे गोपियों को ज्ञान सिखाने के लिए भेज रहे हैं। इन सब विचारों के कारण उद्धव गर्व के कारण ऊपर आकाश की ओर देखने लगे। वह मन ही मन अपनी और अपने सिद्धांतों की प्रशंसा करने लगे कि सचमुच सांसारिक भोग मिथ्या हैं अस्तित्वहीन हैं। अन्त में उन्होंने ब्रज-गमन सम्बन्धी कृष्ण की आज्ञा को शिरोधार्य किया। सूरदास कहते हैं कि उद्धव ने सोचा कि जब स्वामी कृष्ण ही मुझे ज्ञानोपदेश के लिए गोकुल भेज रहे हैं, तब फिर मैं इस सम्बन्ध में और क्या बात करूँ अर्थात् आगा - पीछा क्यों करूँ? अलंकार- i) नयन आकाश चढ़ाओ- यह एक मुहावरा तो हैं ही साथ ही हैं असम्बन्ध में सम्बन्ध दिखाने के कारण अतिश्योक्ति अलंकार हैं। ii) दितीय पंक्ति मे...

सूरदास कक्षा 11

सूरदास भक्तिकालीन कवि और कृष्ण के अनन्य उपासक थे। इस लेख में आप सूरदास के पद जो कक्षा ग्यारहवीं में पढ़ना है , उसका सप्रसंग व्याख्या , काव्य सौंदर्य , प्रश्न उत्तर आदि का बारीकी से अध्ययन करेंगे। यह प्रश्न परीक्षा के अनुकूल है। सूरदास को कृष्ण भक्ति का अग्रणी कवि माना जाता है , उनकी भक्ति कभी दास्य भाव की होती तो कभी सखा भाव की। उनके संदर्भ में अनगिनत कहानियां प्रचलित है , कभी उन्हें जन्मांध माना जाता है , तो कभी कुछ लोगों के अनुसार वह बाद में अंधे हुए । उनकी लेखनी जिन बारीकियों को उकेरती है वह किसी ना देखने वाले व्यक्ति के लिए संभव नहीं है। ऐसा माना जाता है कि कृष्ण भक्ति के कारण उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई थी , जिसके कारण उन्होंने कृष्ण के छवि को बारीकी से उकेरा था। सूरदास भक्तिकालीन कवि थे और सगुण रूप का उपासक थे , कृष्ण को अपना आराध्य मानकर उनकी भक्ति की और जनमानस में कृष्ण के महत्व को बताते हुए समाज को भक्ति का मार्ग दिखाया। सूरदास का संक्षिप्त जीवन परिचय जन्म – सूरदास का जन्म स्थान को लेकर साहित्यकारों में पर्याप्त मतभेद है। कुछ साहित्यकार सूरदास जी का जन्म आगरा मानते हैं तो कुछ मथुरा के बीच रुनकता नाम गांव में मानते हैं। रचनाएं – • सूरसागर • सुरसरावली • साहित्य लहरी आदि काव्यगत विशेषताएं – • सूरदास वात्सल्य प्रेम और सौंदर्य के अमर कवि हैं • सूर की भाषा में माधुर्य , लालित्य और नाद सौंदर्य का मिश्रण है • तुकांतमक्ता के कारण संगीतातम्कता का समावेश है। • सूर के पदों में अनुप्रास , रूपक ,श्लेष आदि का सहज प्रयोग है। • काव्य सरस है। भावानुरूप रूप शब्द चयन है। सप्रसंग व्याख्या सूर के पद -1 खेलन में………………………………………………. करि नंद – दुहैया। प्रसंग – कवि – सूरदास कविता – पद स...

सूरदास के पद Class 7 With Questions And Answers(surdas Ke Pad In Hindi Class 7) » Hindikeguru

11 व्याकरण संचय प्रभु मेरे अवगुन चित ना धरो।। समदर्शी प्रभु नाम तुम्हारा, सोई पार करो।। व्याख्या: सूरदास जी श्री कृष्ण जी से प्रार्थना करते हुए कहते है कि हे प्रभु! आप मेरे अवगुणों को अपने चित्त(हृदय) में नहीं रखिए। आपका नाम समदर्शी है अर्थात् आप अच्छे बुरे- दोनों के प्रति समान भाव रखनेवाले कहलाते हैं। इसलिए आप अपने स्वभाव के अनुकूल ही मेरे प्रति भी व्यवहार कीजिए। शब्दार्थ: अवगुन – अवगुण, बुरे गुण। चित – हृदय, दिल। ना धरो – धारण मत करों, मत रखो। समदर्शी – समान दृष्टि रखने वाला, समान भाव रखने वाला। सोई पार करो – मुझ पर दया करो। एक लोहा पूजा में राखत, इक लोहा बधिक परो । सो दुविधा पारस नहिं देखत, कंचन करत खरो ।। व्याख्या: सूरदास जी भगवान श्री कृष्ण जी को समझाते हुए कहते है कि एक लोहा मूर्ति के रूप में पूजा – घर में रखा जाता है और दूसरा लोहा पशुओं के वध किये जानेवाले हथियार के रूप में वधिक के पास रहता है । पूजा घरों में रखने वाला लोहा पवित्र होता हैं और कसाई के पास जो हथियार के रूप में लोहा होता है वह अपवित्र होता है फिर भी पारस पत्थर इन दोनों प्रकार के लोहों के प्रति कोई भेद भाव नहीं करता है और दोनों को अपने संस्पर्श से सच्चा सोना ही बना देता है। ठीक उसी प्रकार आप भी मेरे अच्छे और बुरे दोनों गुणों में कोई अंतर न करते हुए मुझे अपने पास शरण दीजिए। शब्दार्थ: रखात: रखा जाता है। इक: एक बधिक: शिकारी, क़साई। सो दुविधा : जो अन्तर, कोई भेद भाव। पारस नहिं देखत: पारस पत्थर नहीं देखता है। कंचन करत खरो: शुद्ध सोना कर देता है, शुद्ध सोना बना देता है। एक नदिया इक नाल कहावत, मैलो नीर भरो। जब मिलिके दोऊ इक बरन भये, सुरसरी नाम परो।। व्याख्या: सूरदास जी दूसरी उक्ति देते हुए कहते हैैं कि एक नदी ...

सूरदास के 5 प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित

सूरदास, भगवान कृष्ण के महान भक्त और 14 वीं से 17 वीं शताब्दी के दौरान भारत में भक्ति आंदोलन में प्रमुख व्यक्तियों में से एक थे( Surdas Ke Dohe)। वह १६वीं शताब्दी में जीया और अंधा था। सूरदास केवल कवि ही नहीं त्यागराज जैसे गायक भी थे। उनके अधिकांश गीत भगवान कृष्ण की स्तुति में लिखे गए थे। उनकी रचनाओं में दो साहित्यिक बोलियाँ ब्रजभाषा हैं, एक हिंदी में और दूसरी अवधी। उन्होंने हिंदू धर्म के साथ-साथ सिख धर्म का भी पालन किया। उन्होंने भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया और सिखों के पवित्र ग्रंथ गुरु ग्रंथ साहिब में भी भजनों का उल्लेख किया। उनके पिता का नाम रामदास सरगवत था और उनके कार्यों का संग्रह ‘सूर्य सागर, सूर्य सारावली, और साहित्य लहरी’ के रूप में लिखा गया था। सूरदास की साहित्यिक कृतियाँ भगवान कृष्ण और उनके भक्तों के बीच मजबूत बंधन को दर्शाती हैं और बताती हैं। इसलिए हमने सूरदास जी के 5 दोहे अर्थ सहित समझाए है। Contents • • • • • • सूरदास जी के 5 दोहे उन्होंने महान साहित्यिक कृति ‘सूरसागर’ की रचना की। उस पुस्तक में उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण और राधा को प्रेमी बताया और गोपियों के साथ भगवान कृष्ण की कृपा का भी वर्णन किया। सूरसागर में, सूरदास भगवान कृष्ण की बचपन की गतिविधियों और उनके दोस्तों और गोपियों के साथ उनके शरारती नाटकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। सूर ने सूर सारावली और साहित्यलाहारी की भी रचना की। इन दोनों काव्य रचनाओं में लगभग एक लाख छंदों की रचना की गई है। समय की अस्पष्टता के कारण, कई छंद खो गए थे। उन्होंने समृद्ध साहित्यिक कृति के साथ होली के त्योहार का वर्णन किया। छंदों में भगवान कृष्ण को एक महान खिलाड़ी के रूप में वर्णित किया गया है और बर्तन को तोड़कर जीवन दर्शन का वर्णन क...

Surdas Ke Pad Poem Explanation Class 11 Hindi सूरदास के पद अर्थ सहित

खेलन में को काको गुसैयाँ सप्रसंग व्याख्या खेलत में को काको गुसैयां | हरि हारे जीते श्रीदामा बरबसहीं कत करत रिसैयां | जाति पांति हम तें बड़ नाहीं नाहीं बसत तुम्हारी छैयां। अति अधिकार जनावत हम पै हैं कछु अधिक तुम्हारे गैयां | रुहठि करै तासों को खेलै कहै बैठि जहं तहं सब ग्वैयां | सूरदास प्रभु कैलो चाहत दांव दियौ करि नंद-दुहैया || भावार्थ - प्रस्तुत पद कवि सूरदासजी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि कान्हा गोपियों से खेल में हारने के बाद भी हार स्वीकार नहीं करता है | उसके सखा ग्वालबाल उससे कहता है कि कृष्ण खेल-खेल में हार जाने से नाराजगी कैसी, खेल में कौन किसका स्वामी होता है। तुम हार गए हो और सखा श्रीदामा जीत गए हैं। फिर जबरदस्ती का नाराज क्यों हो रहे हो | झगड़ा क्यों कर रहे हो ? तुम्हारी जाति-पाति हमसे बड़ी तो है नहीं और न ही हम तुम्हारे अधीन हैं | तुम्हारी छाया के नीचे तो रहते नही है। तुम इतना अधिकार इसलिए दिखाते हो क्योंकि तुम्हारे बाबा के पास हमसे अधिक गाय है। हम तुम्हारे साथ नहीं खेलेंगे तुम मुरली तऊ गुपालहिं भावति व्याख्या मुरली तऊ गुपालहिं भावति। सुनि री सखी जदपि, नँदलालहिं नाना भाँति नचावति। राखति एक पाइ ठाढ़ौ करि, अति अधिकार जनावति। कोमल तन आज्ञा करवावति, कटि टेढ़ी ह्वै आवति। अति आधीन सुजान कनौड़े गिरिधर नार नवावति। आपुन पौढ़ि अधर सज्जा पर, कर-पल्लव पलुटावति। भृकुटी कुटिल, नैन नासा-पुट, हम पर कोप करावति। सूर प्रसन्न जानि एकौ छिन, धर तैं सीस डुलावति।। भावार्थ - प्रस्तुत पद कवि सूरदासजी के द्वारा रचित है | इसमें कवि कहते हैं कि गोपियाँ श्री कृष्ण के मुरली से जलती हैं। एक सखी दूसरी सखी से कहती है, सखी सुनती हो ये मुरली नंदलाल को कई तरह से नचाती है। उसके बाद भी कृष्...