स्वामी दयानंद सरस्वती के सामाजिक विचार

  1. स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार एवं सामाजिक विचार
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  3. स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार
  4. दयानंद सरस्वती के शैक्षिक दर्शन, सामाजिक और राजनीतिक विचार
  5. Swami Dayananda Saraswati: Early Life, Arya Samaj & Reforms
  6. स्वामी दयानंद सरस्वती
  7. स्वामी दयानंद सरस्वती के ये प्रेरणादायक विचार आपके जीवन में भर देंगें सकारात्मकता


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स्वामी दयानंद सरस्वती के धार्मिक विचार एवं सामाजिक विचार

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती का जन्म1824-1883 ई. में गुजरात के काठि़यावाड़ के टंकारा गांव में हुआ था। उनका बचपन का नाम मूलशंकर था। 1874 ई. में इलाहाबाद में उन्होंने अपनी पुस्तक ‘सत्यार्थ प्रकाश‘ को पूरा किया। उन्होंने मूर्तिपूजा, जाति प्रथा, बाल विवाह, धार्मिक आडम्बर और पुराण मत का विरोध किया। जनभाषा अपनाने के कारण वे बहुत अधिक लोकप्रिय हो गये। 1. वेदों मे आस्था- स्वामी जी वेदों को आध्यात्मिक उन्नति का साधन मानते थे। वेद स्वयं प्रमाण है। इसी आधार पर उन्होंने मंत्रपाठ हवन यज्ञ आदि पर विशेष जोर दिया। स्वामी दयानंद का कहना था कि वेद ईश्वरीय है। 2. ईश्वर, जीव तथा प्रकृति के अस्तित्व में विश्वास- स्वामी ने ईश्वर, जीव तथा प्रकृति तीनों को शाश्वत सत्य रुप में स्वीकार किया। उनका मानना था कि, ईश्वर अर्थात परमात्मा संपूर्ण विश्व में व्याप्त है। वह सत्चित आनंद स्वरूप है। सृष्टि की रचना करके परमात्मा अपनी स्वाभाविक रचनात्मक शक्ति का प्रयोग करता है। 3. एकेश्वरवाद मे विश्वास- स्वामी जी पक्के एकेश्वरवादी थे। उन्हें हिंदूओं कें अनेक देवी-देवताओं के‘भक्तिमार्गियों’ के व्यक्ति रूप ईश्वर में विश्वास नहीं था। आडंम्बर के सिद्धांत को नहीं मानते थे। 4. कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष मेंविश्वास- स्वामी दयानंद का कर्म और पुर्नजन्म के सिद्धांतों मे विश्वास था। कर्मों के अनुसार ही फल मिलता है। और उसके अनुसार ही मनुष्य का पुर्नजन्म होता है जन्म मरण के बंधन और दुखों से छुटकारा पाना ही मोक्ष है। 5. यज्ञ हवन और संस्कारों में विश्वास- स्वामीजी वैदिक यज्ञ और हवन को आवश्यक मानते थे। उनका मत था कि संस्कारों के द्वारा शारीरिक मानसिक तथा आध्यात्मिक विकास होता है। 6. मूर्तिपूजा तथा अन्य कर्मकांडों का ...

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स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार

स्वामी दयानन्द के सम्बन्ध में कहा गया है कि वे उच्चकोटि के एक निर्भीक दूत एवं समाज सुधारक थे। भारत के पुनर्जागरण की शताब्दी, 19वीं शताब्दी में जागरण की ज्योति जलाने वाले महापुरुषों में अग्रगण्य स्वामी दयानन्द सरस्वती एक सच्चे महात्मा थे। वे बाल-ब्रह्मचारी एवं महान् योगी भी थे। स्वामी जी संस्कृत, अरबी, हिन्दी के प्रकाण्ड विद्वान् तथा एक ओजस्वी वक्ता थे। उनके लेखों में भी उनके वचनों का सा ही ओज विद्यमान था। स्वामी दयानन्द के सामाजिक विचारों को हम निम्नांकित सात वर्गों में बाँट सकते हैं 1. जाति प्रथा का विरोध– उन दिनों जाति प्रथा ऐसे कुमार्ग पर पड़ गई थी और उसका इतना जोर था कि सारा हिन्दू समाज छिन्न-भिन्न हो रहा था जिससे लाभ उठाने के लिये अन्य धर्मों के प्रचारक ताक लगाये बैठे थे। निम्न जाति के लोगों को उच्चवंशीय लोग हीन और अस्पृश्य समझते थे वे न तो मन्दिरों में प्रवेश पा सकते थे, न वेदों का अध्ययन ही कर सकते थे। दयानन्द ने समाज के समक्ष यह सटीक तथ्य रखा कि समाज के एक वर्ग के साथ यह सौतेला व्यवहार केवल पण्डितों और ब्राह्मणों का पाखण्ड जाल था। उनका मत था कि वेद भी सर्वसाधारण के लिये उसी प्रकार प्रकाशित हैं तथा उसी प्रकार उपलब्ध होने चाहिये जैसे परमात्मा द्वारा प्रदान की गई अन्य सब प्राकृतिक वस्तुएँ। केवल वही निर्बुद्धि एवं मूर्ख व्यक्ति शूद्र है जिसे पठन-पाठन का ज्ञान नहीं है। उन्होंने सबको समझाया कि जाति प्रथा ने हिन्दू समाज को छिन्न-भिन्न करके शक्तिहीन बना दिया था। केवल जाति प्रथा तथा अस्पृश्यता के जाल से मुक्त होकर ही समाज उन्नत और सशक्त बन सकता है। ऐसा होना अति आवश्यक है। इस हेतु दयानन्द जी ने आर्य समाज के माध्यम से महान् आन्दोलन आरम्भ किया। आगे चलकर गाँधीजी ने इस तथ्य को स...

दयानंद सरस्वती के शैक्षिक दर्शन, सामाजिक और राजनीतिक विचार

दयानंद सरस्वती के शैक्षिक दर्शन, सामाजिक और राजनीतिक विचार Author(s): डॉ. रश्मि किरण Abstract: स्वामी दयानंद एक महान शिक्षाविद समाज सुधारक और एक सांस्कृतिक राष्ट्रवादी भी थे। वे प्रकाश के एक महान सैनिक थे, भगवान की दुनिया में एक योद्धा, पुरूष और संस्था के मूर्तिकार थे। दयानंद सरस्वती का सबसे बड़ा योगदान आर्य समाज की नींव थी जिसने शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में एक कांन्ति ला दी। स्वामी दयानंद सरस्वती उन सबसे महत्वपूर्ण सुधारकों और आध्यात्किम बलों मेें से एक हैं जिन्हें भारत ने हाल के दिनों में जाना गया है। दयानंद सरस्वती के दर्शन को उनके तीन प्रसिद्ध योगदान “सत्यार्थ प्रकाश”, वेद भाष्य भूमिका और “वेद भाष्य भूमिका और वेद भाष्य से जाना जा सकता है। इसके अलावा उनके द्वारा संपादित पत्रिका “आर्य पत्रिका” भी उनके विचार को दर्शाति है। आर्य समाज के महान संस्थापक स्वामी दयानंद आधुनिक भारत के राजनीतिक विचारों के इतिहास में एक अद्वितीय स्थान रखते हैंै। जब भारत के पढ़े-लिखे युवक यूरोपीय सभ्यता के सतही पहलुओं की नकल कर रहे थे और भारतीय लोगों की प्रतिभा और संस्कृति पर कोई ध्यान दिए बिना इंग्लैड की राजनीतिक संस्थाओं को भारत की धरती में रोपित करने के लिए आंदोलन कर रहे थे, स्वामी दयानंद ने भारत की अवज्ञा को बहुत आहत किया पश्चिम के सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक वर्चस्व के खिलाफ थे। स्वामी दयानंद, भारत-आर्य संस्कृति और सभ्याता के सबसे बड़े प्रेरित भी भारत में राजनीति में सबसे उत्रत विचारों के सबसे बड़े प्रतिपादक साबित हुए। वह मूर्तिपूजा, जाति प्रथा कर्मकांड, भाग्यवाद, नशाखोरी, के खिलाफ थे। वे दबे-कुचलेे वर्ग के उत्थान के लिए भी खड़े थे। वेद और हिंदुओें के वर्चस्व को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने इस...

Swami Dayananda Saraswati: Early Life, Arya Samaj & Reforms

Swami Dayananda Saraswati, the founder of the Arya Samaj, was one of the makers of modern India. With an indigenous orientation, he wanted to bring a new social, religious, economic and political order in India. Taking inspiration from Veda, he criticized evil practices like idolatry, caste system, untouchability etc. as prevailed in the then Indian society. Early Life: Swami Dayananda Saraswati, known as Mulshankar in the childhood, was born in 1824 in a small town of Tankara belonging to Kathiawar of Gujarat in a conservative Brahmin family. image source: upload.wikimedia.org/wikipedia/commons/thumb/1/1c/Aum-_The_Symbol_of_Arya_Samaj.jpg/1280px-Aum-_The_Symbol_of_Arya_Samaj.jpg Finally, he met Swami Vrajanand at Mathura and became his disciple. After completing his education, he went on with the mission of spreading true Hindu religion and culture all over India. With this purpose he established the Arya Samaj at Bombay on 10th April, 1875. A number of twenty eight rules were framed which were approved by the members present in the meeting. As a writer of eminence, Dayananda wrote books like ‘Satyarth Prakash’, Vedanga Prakash, ‘Ratnamala’‘Sankarvidhi’, ‘Bharatinivarna’ etc. He travelled throughout the country to propagate his views and established branches of Arya Samaj at different places. Principles of Arya Samaj: 1. Acceptance of the Vedas as the only source of truth. image source: 2.bp.blogspot.com/_ZBIwkic-sVo/TEHO2rOYxKI/AAAAAAAAAuk/x1r0RnWXTS4/s1600/P7240428.jpg ...

स्वामी दयानंद सरस्वती

Swami Dayanand Saraswati Biography in Hindi दयानंदसरस्वतीजीआर्यसमाजकेसंस्थापकथे, जिन्हेंआधुनिकपुनर्जागरणकेप्रणेताभीकहाजाताहै।इन्होंनेभारतीयसमाजमेंकईसुधारकिेए।यहीनहींइन्होंनेएकसच्चेदेशभक्तकीतरहअपनेदेशकेलिएकईसंघर्षकिएऔरस्वराज्यकासंदेशदियाजिसेबादमेंबालगंगाधरतिलकनेअपनायाऔरस्वराज्यमेराजन्मसिद्धअधिकारहैकानारादिया। इसकेअलावाइन्होंनेभारतकेराजनीतिकदर्शनऔरसंस्कृतिकेविकासकेलिएभीकाफीकोशिशकी।यहएकअच्छेमार्गदर्शकभीथेऔरइन्होंनेअपनेनेककामोंसेसमाजकोनईदिशाएवंऊर्जादी।स्वामीदयानंदजीकेमहानविचारोंसेभारतकेमहानदिग्गजलोगभीप्रभावितहुए। आपकोबतादेंकिस्वामीदयानंदजीनेअपनापूराजीवनराष्ट्रहितकेउत्थानमेंऔरसमाजमेंप्रचलितअंधविश्वासोंऔरकुरीतियोंकोदूरकरनेकेलिएसमर्पितकरदिया।महानसमाजसुधारकस्वामीजीनेअपनीप्रभावीऔरओजस्वीविचारोंसेसमाजमेंनवचेतनाकासंचारकिया। इसकेसाथहीउन्होंनेहिन्दूधर्मकेकईअनुष्ठानोंकेखिलाफभीप्रचारकिया।उनअनुष्ठानोकेखिलाफप्रचारकरनेकीकुछमुख्यवजहथी–मूर्तिपूजा, जातिभेदभाव, पशुबलि, औरमहिलाओंकोवेदोंकोपढ़नेकीअनुमतिनादेना। महानसमाजसुधारकऔरराजनीतिकविचारधाराकेव्यक्तित्वस्वामीदयानदसरस्वतीजीकेउच्चविचारोंऔरकोशिशकीवजहसेहीभारतीयशिक्षाप्रणालीकापुनरुद्धारहुआ, जिसमेंएकहीछतकेनीचेअलग-अलगस्तरऔरजातिकेछात्रोंकोलायागया, जिसेआजहमकक्षाकेनामसेजानतेहैं।वहींएकस्वदेशीरुखअपनाकरउन्होंनेहमेशाएकनयासमाज, धर्म, आर्थिकऔरराजनीतिकदौरकीभीशुरुआतकीथी।ऐसेमहानव्यक्तित्वकेजीवनकेबारेमेंआजहमआपकोअपनेइसलेखमेंबताएंगे। स्वामीदयानंदसरस्वतीकीजीवनीऔरइतिहास– Swami Dayanand Saraswati in Hindi नाम (Name) महर्षिदयानंदसरस्वतीं वास्तविकनाम (Real Name) मूलशंकरतिवारी जन्म (Birthday) 12 फरवरी 1824, टंकारा, गुजरात पिता (Father Name) करशनजीलालजीतिवारी माता (Mother Na...

स्वामी दयानंद सरस्वती के ये प्रेरणादायक विचार आपके जीवन में भर देंगें सकारात्मकता

आज स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती है. स्वामी दयानंद सरस्वती (Swami Dayanand Saraswati) ने आर्य समाज की स्थापना की. वो महान समाज सुधारक, हिंदू धर्म के चिंतक और सच्चे राष्ट्रवादी थे. हिंदू पंचांग AstroSage के अनुसार, स्वामी दयानंद सरवती का जन्म फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को होता है. स्वामी जी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में दयानंद सरस्वती जयंती मनाई जाती है. उन्होंने अपने समय में समाज में फैली बाल विवाह, सती प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों के प्रति न केवल समाज को जागरूक किया बल्कि इन्हें दूर करने में भी काफी योगदान दिया. आइए जानते हैं उनके कुछ प्रेरणादायक विचार... • छात्र की योग्यता ज्ञान अर्जित करने के प्रति उसके प्रेम, निर्देश पाने की उसकी इच्छा, ज्ञानी और अच्छे व्यक्तियों के प्रति सम्मान, गुरु की सेवा और उनके आदेशों का पालन करने में दिखती है. • मनुष्यों के भीतर संवेदना है, इसलिए अगर वो उन तक नहीं पहुंचता जिन्हें देखभाल की ज़रुरत है तो वो प्राकृतिक व्यवस्था का उल्लंघन करता है. • नुकसान से निपटने में सबसे ज़रूरी चीज है, उससे मिलने वाले सबक को ना भूलना. वो आपको सही मायने में विजेता बनाता है. • सबसे उच्च कोटि की सेवा ऐसे व्यक्ति की मदद करना है जो बदले में आपको धन्यवाद कहने में असमर्थ हो. • आप दूसरों को बदलना चाहते हैं ताकि आप आज़ाद रह सकें. लेकिन, ये कभी ऐसे काम नहीं करता. दूसरों को स्वीकार करिए और आप मुक्त हैं. • प्रबुद्ध होना- ये कोई घटना नहीं हो सकती. जो कुछ भी यहां है वह अद्वैत है. ये कैसे हो सकता है? यह स्पष्टता है. • किसी भी रूप में प्रार्थना प्रभावी है क्योंकि यह एक क्रिया है. इसलिए, इसका परिणाम होगा. यह इस ब्रह्मांड का नियम है जिसमें हम खुद को पाते हैं. • ईश्वर पूर्ण ...