स्वामी विवेकानंद

  1. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय: Biography Of Swami Vivekananda In Hindi
  2. स्वामी विवेकानन्द
  3. स्वामी विवेकानंद
  4. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक दर्शन
  5. स्वामी विवेकानंद के बारे में 8 बातें
  6. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार
  7. स्वामी विवेकानंद
  8. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक दर्शन
  9. स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार
  10. स्वामी विवेकानंद के बारे में 8 बातें


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स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय: Biography Of Swami Vivekananda In Hindi

हिन्दीपथ.कॉम हिंदी पाठकों के लिए हमें पूरी उम्मीद है कि स्वामी विवेकानन्द का यह जीवन परिचय (Swami Vivekananda information in Hindi) सभी पाठकों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगा। Biography Of Swami Vivekananda In Hindi महात्माओं का वास-स्थान ज्ञान है। मनुष्यों की जितनी ज्ञान-वृद्धि होती है, महात्माओं का जीवनकाल उतना ही बढ़ता जाता है। उन के जीवन काल की गणना मनुष्य शक्ति के बाहर है क्योंकि ज्ञान अनन्त है, अनन्त का पार कौन पा सकता है। महात्मा लोग एक देश में उत्पन्न होकर भी सभी देश अपने ही बना लेते हैं। सब समय उन के ही अनुकूल हो जाते हैं। श्री स्वामी विवेकानंद ऐसे ही महापुरुषों में हैं। स्वामी जी का जन्म 1863 ई० में कलकत्ता के समीपवर्ती सिमूलियां नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। जिस समय विश्वनाथ दत्त बंगाल में “अटर्नी” हुए तभी उन के पिता ने संन्यासाश्रम में प्रवेश करके गृह त्याग कर दिया। उसी आनुवंशिक संस्कार के बीज स्वामी विवेकानंद के हृदय में भी जमे हुए थे जिन्होंने अवसर पाकर अपना स्वरूप संसार पर प्रकट किया। स्वामी विवेकानंद का बचपन Childhood Of Swami Vivekananda In Hindi स्वामी विवेकानंद का पैदाइशी नाम वीरेश्वर था परन्तु प्यार के कारण घर के लोग, अड़ोसी-पड़ोसी सब उनको “नरेन्द्र” कहते थे। नरेन्द्र सुडौल, गठीला शरीर, गौर-वर्ण, मनमोहक बड़ी-बड़ी आँखें और तेजस्वी मुख वाला होनहार बालक था। उसका चित्त पढ़ने में बहुत कम लगता था, दिन रात खेलना, अपने साथ के लड़कों को तंग करना, ख़ूब ऊधम मचाना–यही उसके विशेष प्रिय कार्य थे। कोई ऐसा दिन नहीं जाता था जिस दिन माता-पिता या गुरुजन को नरेंद्र की दस-पाँच शिकायतें सुनने को न मिलती हों। वह ज्यों-ज्यों बढ़ता जाता था हँसोड़ और उपद...

स्वामी विवेकानन्द

इस लेख को तटस्थता जाँच हेतु नामित किया गया है। इसके बारे में चर्चा (नवम्बर 2019) स्वामी विवेकानन्द जन्म नरेन्द्रनाथ दत्त 12 जनवरी 1863 (अब मृत्यु 4 जुलाई 1902 ( 1902-07-04) (उम्र39) (अब बेलूर, गुरु/शिक्षक साहित्यिक कार्य राज योग (पुस्तक) कथन "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए" हस्ताक्षर धर्म हिन्दू दर्शन राष्ट्रीयता भारतीय अनुक्रम • 1 कहानियाँ • 1.1 लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना • 1.2 नारी का सम्मान • 2 प्रारम्भिक जीवन (1863-88) • 2.1 जन्म एवं बचपन • 3 शिक्षा • 3.1 आध्यात्मिक शिक्षुता - ब्रह्म समाज का प्रभाव • 4 निष्ठा • 5 सम्मेलन भाषण • 6 यात्राएँ • 7 विवेकानन्द का योगदान तथा महत्व • 7.1 मृत्यु • 8 विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन • 8.1 स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन के आधारभूत सिद्धान्त • 9 स्वामी विवेकानंद के अनमोल वचन • 10 कृतियाँ • 11 महत्त्वपूर्ण तिथियाँ • 12 चित्र दीर्घा • 13 सन्दर्भ • 14 इन्हें भी देखें • 15 बाहरी कड़ियाँ कहानियाँ [ ] लक्ष्य पर ध्यान केन्द्रित करना [ ] एक बार स्वामी विवेकानन्द अपने आश्रम में सो रहे थे। कि तभी एक व्यक्ति उनके पास आया जो कि बहुत दुखी था और आते ही स्वामी विवेकानन्द के चरणों में गिर पड़ा और बोला महाराज मैं अपने जीवन में खूब मेहनत करता हूँ हर काम खूब मन लगाकर भी करता हूँ फिर भी आज तक मैं कभी सफल व्यक्ति नहीं बन पाया। उस व्यक्ति कि बाते सुनकर स्वामी विवेकानंद ने कहा ठीक है। आप मेरे इस पालतू कुत्ते को थोड़ी देर तक घुमाकर लाये तब तक आपके समस्या का समाधान ढूँढ़ता हूँ। इतना कहने के बाद वह व्यक्ति कुत्ते को घुमाने के लिए चला गया। और फिर कुछ समय बीतने के बाद वह व्यक्ति वापस आया। तो स्वामी विवेकानन्द ने उस व्यक्ति से पूछा...

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2 स्वामी विवेकानंद पर निबंध – Swami vivekananda nibandh hindi स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – swami vivekananda jivan parichay hindi स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में शिमला पल्ले में 12 जनवरी 1863 (swami vivekananda jayanti) को हुआ था. उनके पिता का नाम स्वामी विश्वनाथ दत्त था जो की कलकत्ता उच्च न्यायलय में वकालत का कार्य करते थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्या अनुयाइयों में से एक थे. इनका जन्म से नाम नरेंद्र दास था जो बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने. वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिवर्तित कराया उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया उनके प्रेरणादायक भाषणो का अभी भी देश के युवाओ द्वारा अनुसरण किया जाता है. उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था. स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और और माता के धार्मिक स्वाभाव से प्रभावित थे. उन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए उनका आत्मनियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था जिस का प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे. उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया वह युवा अवस्था में ब्रम्हसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के संपर्क में आये वह अपने साधु भाइयो के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत भ्रमड़ का निर्णय लिया और जगह जगह घूमना सुरु कर दिया और तिरूवन्तपुरम पहुंच गए जंहा उन्होंने शिकागो धर्म सम्मलेन में भाग लेने का निर्णय लिया...

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक दर्शन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के एक प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ दत्त के घर हुआ। माता प्रेम से उन्हें वीरेश्वर कहती थी पर नामकरण संस्कार के समय उनका नाम नरेन्द्रनाथ रखा गया। उनकी माता जी धार्मिक विचारों की थी। उनका परिवार एक पारंपरिक कायस्थ परिवार था, स्वामी विवेकानंद के 9 भाई-बहन थे। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे। दुर्गाचरण दत्ता जो नरेन्द्र के दादा थे, वे संस्कृत और पारसी के विद्वान थे जिन्होंने 25 साल की उम्र में अपना परिवार और घर छाडे़कर एक सन्यासी का जीवन स्वीकार कर लिया था। उनकी माता, भुवनेश्वरी देवी एक देवभक्त गृहिणी थी। स्वामीजी के माता और पिता के अच्छे सस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामी जी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकाेिट की सोच मिली। नरेन्द्रनाथ एक मेघावी छात्र थे। 1879 में प्रथम श्रेणी में प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने कलकत्ता के सबसे अच्छे महाविद्यालय- प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया। बाद में वे एक दूसरे महाविद्यालय में भी पढ़े। विवेकानंद का अंग्रेजी और बंगला- दोनो ही भाषाओं पर अधिकार था। धर्मशास्त्र, इतिहास, विज्ञान आदि विषयों में इनकी गहरी रूचि थी। वे विद्याथ्री जीवन में अत्यन्त ही क्रियाशील थे एवं विभिन्न क्रियाकलापों में रूचि लेते थे। परम्परागत भारतीय व्यायाम एवं कुश्ती से लेकर क्रिकेट जैसे आधुनिक खेल में उनकी रूचि थी। बी0ए0 की परीक्षा के उपरांत नरेन्द्र के पिता उनका विवाह कराना चाहते थे पर नरेन्द्र गृहस्थ का जीवन जीना नहीं चाहते थे। पिता की अकस्मात् मृत्यु ने विवाह के प्रसंग को रोक दिया। पर नरेन्द्र के कन्धे पर पूरे परिवार का बोझ आ पड़ा। नरेन्द्रनाथ को कोई भी बन्धन या मोह बाँध नहीं सका। 24 वर्...

स्वामी विवेकानंद के बारे में 8 बातें

2. विवेकानंद की रुचि और अध्ययन : संगीत, साहित्य और दर्शन में विवेकानंद को विशेष रुचि थी। तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती उनका शौक था। स्वामीजी ने तो 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, धम्मपद, तनख, गुरुग्रंथ साहिब, दास केपीटल, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की तमाम तरह की विचारधाराओं को घोट दिया था। वे जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और दर्शनों के प्रति अविश्वास से भर गए। संदेहवादी, उलझन और प्रतिवाद के चलते किसी भी विचारधारा में विश्वास नहीं किया। 4. रामकृष्ण परमहंस की शरण में : अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए ब्रह्म समाज के अलावा कई साधु-संतों के पास भटकने के बाद अंतत: वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। 5. बुद्धि के पार है विवेक : स्वामी विवेकानंद जब तक नरेंद्र थे बहुत ही तार्किक थे, नास्तिक थे, मूर्तिभंजक थे। रामकृष्ण परमहंस ने उनसे कहा भी था कि कब तक बुद्धिमान बनकर रहोगे। इस बुद्धि को गिरा दो। समर्पण भाव में आओ तभी सत्य का साक्षात्कार हो सकेगा अन्यथा नहीं। तर्क से सत्य को नहीं जाना जा सकता। विवेक को जागृत करो। विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस की बातें जम गईं। बस तभी से वे विवेकानंद हो गए। फिर उन्होंने कभी अपनी नहीं चलाई। रामकृष्ण परमहंस की ही चली। 6. देश भ्रमण :1886 में रामकृष्ण के निधन के बाद जीवन एवं कार्यों को उन्होंने नया मोड़ दिया। 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन लिया। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। गरीब, निर्धन और सामा...

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ते के उच्च न्यायालय में एटर्नी (वकील) थे। वे बड़े बुद्धिमान, ज्ञानी, उदार, परोपकारी एवं गरीबों की रक्षा करने वाले थे। स्वामी जी की माँ श्रीमती भुवनेश्वर देवी भी बड़ी बुद्धिमती, गुणवती, धर्मपरायण एवं परोपकारी थीं। स्वामी जी पर इनका अमिट प्रभाव पड़ा। ये बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते थे और ध्यानमग्न हो जाते थे। इनकी इसी प्रवृत्ति ने आगे चलकर इन्हें नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बना दिया। नरेंद्रनाथ की शिक्षा का आरंभ इनके अपने घर पर ही हुआ। ये बड़े कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के बालक थे। सात वर्ष की आयु तक इन्होंने पूरा व्याकरण रट डाला था। सात वर्ष की अवस्था में इन्हें मेट्रोपोलिटन काॅलिज में भर्ती किया गया। इस विद्यालय में इन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेल-कूद, व्यायाम, संगीत और नाटक में रुचि ली और इन सभी क्षेत्रों में ये आगे रहे। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने मैट्रीकुलेशन (हाईस्कूल) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इन्होंने पे्रसीडेंसी काॅलेज में प्रवेश लिया और उसके बाद जनरल एसेम्बलीज इन्स्टीट्यूशन में पढ़ने लगे। इस समय इन्होंने काॅलेज के पाठ्य विषयों के अध्ययन के साथ-साथ साहित्य, दर्शन और धर्म का भी अध्ययन किया। इस क्षेत्र में इन्हें अपने माता-पिता और अध्यापकों से बड़ा सहयोग मिला। 1881 में इन्हें कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर के मंदिर में जाने और श्री रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। परमहंस इनकी आभा से प्रभावित हुए, परंतु एपफ.ए. (इंटर) की परीक्षा की तैयारी में लग जाने के कारण नर...

स्वामी विवेकानंद

2 स्वामी विवेकानंद पर निबंध – Swami vivekananda nibandh hindi स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय – swami vivekananda jivan parichay hindi स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता में शिमला पल्ले में 12 जनवरी 1863 (swami vivekananda jayanti) को हुआ था. उनके पिता का नाम स्वामी विश्वनाथ दत्त था जो की कलकत्ता उच्च न्यायलय में वकालत का कार्य करते थे और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था स्वामी विवेकानंद श्री रामकृष्ण परमहंस के मुख्या अनुयाइयों में से एक थे. इनका जन्म से नाम नरेंद्र दास था जो बाद में रामकृष्ण मिशन के संस्थापक बने. वह भारतीय मूल के व्यक्ति थे जिन्होंने वेदांत के हिन्दू दर्शन और योग को यूरोप व अमेरिका में परिवर्तित कराया उन्होंने आधुनिक भारत में हिन्दू धर्म को पुनर्जीवित किया उनके प्रेरणादायक भाषणो का अभी भी देश के युवाओ द्वारा अनुसरण किया जाता है. उन्होंने 1893 में शिकागो की विश्व धर्म महासभा में हिन्दू धर्म को परिचित कराया था. स्वामी विवेकानंद अपने पिता के तर्कपूर्ण मस्तिष्क और और माता के धार्मिक स्वाभाव से प्रभावित थे. उन्होंने अपनी माता से आत्म नियंत्रण सीखा और बाद में ध्यान में विशेषज्ञ बन गए उनका आत्मनियंत्रण वास्तव में आश्चर्यजनक था जिस का प्रयोग करके वह आसानी से समाधी की स्थिति में प्रवेश कर सकते थे. उन्होंने युवा अवस्था में ही उल्लेखनीय नेतृत्व की गुणवत्ता का विकास किया वह युवा अवस्था में ब्रम्हसमाज से परिचित होने के बाद श्री रामकृष्ण के संपर्क में आये वह अपने साधु भाइयो के साथ बोरानगर मठ में रहने लगे अपने बाद के जीवन में उन्होंने भारत भ्रमड़ का निर्णय लिया और जगह जगह घूमना सुरु कर दिया और तिरूवन्तपुरम पहुंच गए जंहा उन्होंने शिकागो धर्म सम्मलेन में भाग लेने का निर्णय लिया...

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक दर्शन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता के एक प्रसिद्ध वकील विश्वनाथ दत्त के घर हुआ। माता प्रेम से उन्हें वीरेश्वर कहती थी पर नामकरण संस्कार के समय उनका नाम नरेन्द्रनाथ रखा गया। उनकी माता जी धार्मिक विचारों की थी। उनका परिवार एक पारंपरिक कायस्थ परिवार था, स्वामी विवेकानंद के 9 भाई-बहन थे। उनके पिता, विश्वनाथ दत्त, कलकत्ता हाई कोर्ट के वकील थे। दुर्गाचरण दत्ता जो नरेन्द्र के दादा थे, वे संस्कृत और पारसी के विद्वान थे जिन्होंने 25 साल की उम्र में अपना परिवार और घर छाडे़कर एक सन्यासी का जीवन स्वीकार कर लिया था। उनकी माता, भुवनेश्वरी देवी एक देवभक्त गृहिणी थी। स्वामीजी के माता और पिता के अच्छे सस्कारो और अच्छी परवरिश के कारण स्वामी जी के जीवन को एक अच्छा आकार और एक उच्चकाेिट की सोच मिली। नरेन्द्रनाथ एक मेघावी छात्र थे। 1879 में प्रथम श्रेणी में प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने कलकत्ता के सबसे अच्छे महाविद्यालय- प्रेसीडेन्सी कॉलेज में प्रवेश लिया। बाद में वे एक दूसरे महाविद्यालय में भी पढ़े। विवेकानंद का अंग्रेजी और बंगला- दोनो ही भाषाओं पर अधिकार था। धर्मशास्त्र, इतिहास, विज्ञान आदि विषयों में इनकी गहरी रूचि थी। वे विद्याथ्री जीवन में अत्यन्त ही क्रियाशील थे एवं विभिन्न क्रियाकलापों में रूचि लेते थे। परम्परागत भारतीय व्यायाम एवं कुश्ती से लेकर क्रिकेट जैसे आधुनिक खेल में उनकी रूचि थी। बी0ए0 की परीक्षा के उपरांत नरेन्द्र के पिता उनका विवाह कराना चाहते थे पर नरेन्द्र गृहस्थ का जीवन जीना नहीं चाहते थे। पिता की अकस्मात् मृत्यु ने विवाह के प्रसंग को रोक दिया। पर नरेन्द्र के कन्धे पर पूरे परिवार का बोझ आ पड़ा। नरेन्द्रनाथ को कोई भी बन्धन या मोह बाँध नहीं सका। 24 वर्...

स्वामी विवेकानंद का जीवन परिचय और शैक्षिक विचार

स्वामी विवेकानंद का जन्म कलकत्ता के एक बंगाली कायस्थ परिवार में 12 जनवरी, 1863 को हुआ था। इनका वास्तविक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। इनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त कलकत्ते के उच्च न्यायालय में एटर्नी (वकील) थे। वे बड़े बुद्धिमान, ज्ञानी, उदार, परोपकारी एवं गरीबों की रक्षा करने वाले थे। स्वामी जी की माँ श्रीमती भुवनेश्वर देवी भी बड़ी बुद्धिमती, गुणवती, धर्मपरायण एवं परोपकारी थीं। स्वामी जी पर इनका अमिट प्रभाव पड़ा। ये बचपन से ही पूजा-पाठ में रुचि लेते थे और ध्यानमग्न हो जाते थे। इनकी इसी प्रवृत्ति ने आगे चलकर इन्हें नरेंद्रनाथ से स्वामी विवेकानंद बना दिया। नरेंद्रनाथ की शिक्षा का आरंभ इनके अपने घर पर ही हुआ। ये बड़े कुशाग्र बुद्धि और चंचल स्वभाव के बालक थे। सात वर्ष की आयु तक इन्होंने पूरा व्याकरण रट डाला था। सात वर्ष की अवस्था में इन्हें मेट्रोपोलिटन काॅलिज में भर्ती किया गया। इस विद्यालय में इन्होंने पढ़ने-लिखने के साथ-साथ खेल-कूद, व्यायाम, संगीत और नाटक में रुचि ली और इन सभी क्षेत्रों में ये आगे रहे। 16 वर्ष की आयु में इन्होंने मैट्रीकुलेशन (हाईस्कूल) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद इन्होंने पे्रसीडेंसी काॅलेज में प्रवेश लिया और उसके बाद जनरल एसेम्बलीज इन्स्टीट्यूशन में पढ़ने लगे। इस समय इन्होंने काॅलेज के पाठ्य विषयों के अध्ययन के साथ-साथ साहित्य, दर्शन और धर्म का भी अध्ययन किया। इस क्षेत्र में इन्हें अपने माता-पिता और अध्यापकों से बड़ा सहयोग मिला। 1881 में इन्हें कलकत्ता में ही स्थित दक्षिणेश्वर के मंदिर में जाने और श्री रामकृष्ण परमहंस के दर्शन करने का सौभाग्य मिला। परमहंस इनकी आभा से प्रभावित हुए, परंतु एपफ.ए. (इंटर) की परीक्षा की तैयारी में लग जाने के कारण नर...

स्वामी विवेकानंद के बारे में 8 बातें

2. विवेकानंद की रुचि और अध्ययन : संगीत, साहित्य और दर्शन में विवेकानंद को विशेष रुचि थी। तैराकी, घुड़सवारी और कुश्ती उनका शौक था। स्वामीजी ने तो 25 वर्ष की उम्र में ही वेद, पुराण, बाइबल, कुरआन, धम्मपद, तनख, गुरुग्रंथ साहिब, दास केपीटल, पूंजीवाद, अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, साहित्य, संगीत और दर्शन की तमाम तरह की विचारधाराओं को घोट दिया था। वे जैसे-जैसे बड़े होते गए सभी धर्म और दर्शनों के प्रति अविश्वास से भर गए। संदेहवादी, उलझन और प्रतिवाद के चलते किसी भी विचारधारा में विश्वास नहीं किया। 4. रामकृष्ण परमहंस की शरण में : अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए ब्रह्म समाज के अलावा कई साधु-संतों के पास भटकने के बाद अंतत: वे रामकृष्ण परमहंस की शरण में गए। रामकृष्ण के रहस्यमय व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, जिससे उनका जीवन बदल गया। 1881 में रामकृष्ण को उन्होंने अपना गुरु बनाया। संन्यास लेने के बाद इनका नाम विवेकानंद हुआ। 5. बुद्धि के पार है विवेक : स्वामी विवेकानंद जब तक नरेंद्र थे बहुत ही तार्किक थे, नास्तिक थे, मूर्तिभंजक थे। रामकृष्ण परमहंस ने उनसे कहा भी था कि कब तक बुद्धिमान बनकर रहोगे। इस बुद्धि को गिरा दो। समर्पण भाव में आओ तभी सत्य का साक्षात्कार हो सकेगा अन्यथा नहीं। तर्क से सत्य को नहीं जाना जा सकता। विवेक को जागृत करो। विवेकानंद को रामकृष्ण परमहंस की बातें जम गईं। बस तभी से वे विवेकानंद हो गए। फिर उन्होंने कभी अपनी नहीं चलाई। रामकृष्ण परमहंस की ही चली। 6. देश भ्रमण :1886 में रामकृष्ण के निधन के बाद जीवन एवं कार्यों को उन्होंने नया मोड़ दिया। 25 वर्ष की अवस्था में उन्होंने गेरुआ वस्त्र पहन लिया। तत्पश्चात उन्होंने पैदल ही पूरे भारतवर्ष की यात्रा की। गरीब, निर्धन और सामा...