स्वस्ति वाचन मंत्र

  1. ॥ स्वस्तिवाचनम्॥
  2. स्वस्ति वाचन मंत्र
  3. स्वस्ति / स्वस्तिक मंत्र
  4. स्वस्तिक मंत्र ! शुभ और शांति के लिए इस मंत्र का प्रयोग करें
  5. स्वस्तिक मंत्र
  6. What Is Patanjali Ashtanga Yoga (Eight Limbs Of Yoga)


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॥ स्वस्तिवाचनम्॥

स्वस्ति- कल्याणकारी, हितकारी के तथा वाचन- घोषणा के अर्थों में प्रयुक्त होता है। वाणी से, उपकरणों से स्थूल जगत् में घोषणा होती है। मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत् में अपनी भावना का प्रवाह भेजा जाता है। सात्त्विक शक्तियाँ हमारे ईमान, हमारे कल्याणकारी भावों का प्रमाण पाकर अपने अनुग्रह के अनुकूल वातावरण पैदा करें, यह भाव रखें। अनुकूलता दो प्रकार से पैदा होती है- (१) अवाञ्छनीयता से बचाव। (२) वाञ्छनीयता का योग। यह अधिकार भी देवशक्तियों को सौंपते हुए स्वस्तिवाचन करना चाहिए। ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं तन्नऽआ सुव। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः॥ सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु। -३०.३ ॥ रक्षाविधानम्॥ जहाँ उत्कृष्ट बनने की, शुभ कार्य करने की आवश्यकता है, वहाँ यह भी आवश्यक है कि दुष्टों की दुष्प्रवृत्ति से सतर्क रहा जाए और उनसे जूझा जाए। दुष्ट प्रायः सज्जनों पर ही आक्रमण करते हैं, इसलिए नहीं कि देवतत्त्व कमजोर होते हैं, वरन् इसलिए कि वे अपने समान ही सबको सज्जन समझते हैं और दुष्टता के घात- प्रतिघातों से सावधान नहीं रहते, सङ्गठित नहीं होते और क्षमा- उदारता के नाम पर इतने ढीले हो जाते हैं कि अनीति से लड़ने का साहस, शौर्य और पराक्रम ही उनमें से चला जाता है। इससे लाभ अनाचारी तत्त्व उठाते हैं। यज्ञ जैसे सत्कर्मों की अभिवृद्धि से ऐसा वातावरण बनता है, जिसकी प्रखरता से असुरता के पैर टिकने ही न पाएँ। इस आशंका में असुर- प्रकृति के विघ्न सन्तोषी लोग ही ऐसे षड्यन्त्र रचते हैं, जिसके कारण शुभ कर्म सफल न होने पाएँ। इस स्थिति से भी धर्मपरायण व्यक्ति को परिचित रहना चाहिए और संयम- उदारता, सत्य- न्याय जैसे आदर्शों को अपनाने के साथ- साथ ऐसी वैयक्तिक और सामूहिक सामर्थ्य इकट्ठी करनी चाहिए, जिसस...

स्वस्ति वाचन मंत्र

भारत की यह सनातन परम्परा रही है कि, जब कभी भी हम कोई मांगलिक या धार्मिक कार्य प्रारम्भ करते है, तो उस समय मंगल की कामना के निमित्त शांति पाठ ( मंगल पाठ ) स्वस्त्ययन और गणपति स्तुति का विधान रहा हैं। स्वस्ति वाचन मंत्र ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ स्वस्ति वाचन मंत्र हिन्दी में भावार्थ: हे महान् कीर्ति वाले, ऐश्वर्यशाली देवराज इन्द्र हमारा कल्याण करें, जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य अथवा वैदिक देवता) हमारा कल्याण करें। जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें। वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें। स्वस्तिक मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। मंत्रोच्चार करते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते हैं. यह माना जाता है कि यह जल पारस्परिक क्रोध और वैमनस्य को शांत कर रहा है। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया ‘स्वस्तिवाचन’ कहलाती है। भद्र सूक्त-मांगलिक कार्य मे सर्व प्रथम शांति पाठ स्वस्त्ययन ॐ आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे दिवे ॥ देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानारातिरभि नो निवर्तताम् । देवानां ऽ सख्यमुपसेदिमा वयं देवा न आयुः प्रतिरन्तु जीवसे । तान्पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्त्रिधम् । अर्यमणं वरुण ऽ सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ॥ तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत्पि...

स्वस्ति / स्वस्तिक मंत्र

स्वस्ति मन्त्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। ऐसा माना जाता है कि इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। स्वस्ति मन्त्र का पाठ करने की क्रिया स्वस्तिवाचन कहलाती है। ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ हिन्दी भावार्थ: महान कीर्ति वाले इन्द्र हमारा कल्याण करो, विश्व के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है ऐसे गरुड़ भगवान हमारा मंगल करो। बृहस्पति हमारा मंगल करो।

स्वस्तिक मंत्र ! शुभ और शांति के लिए इस मंत्र का प्रयोग करें

स्वस्तिक को हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र चिन्ह माना गया है | जिस प्रकार से ॐ और श्री शब्द का हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है, ठीक उसी प्रकार से स्वस्तिक भी बहुत पवित्र और शुभता का प्रतीक है | स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग शुभ और शांति के लिए किया जाता है | सभी धार्मिक कार्यों के समय पूजा या अनुष्ठान के समय इस मंत्र द्वारा वातावरण को पवित्र और शांतिमय बनाया जाता है | इस मंत्र का उच्चारण करते समय चारों दिशाओं में जल के छींटे लगाने चाहिए | इस प्रकार जल द्वारा चारों दिशाओं में छींटे लगाकर स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण करने की क्रिया स्वस्तिवाचन वाचन कहलाती है | स्वस्तिक मंत्र :- ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः। स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः। स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः। स्वस्ति नो ब्रिहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥ स्वस्तिक मंत्र का अर्थ : – हे इंद्र देव, जो महान कीर्ति रखने वाले है वह हमारा कल्याण करें | पूरे विश्व में ज्ञान के स्वरुप हे पुषादेव हमारा कल्याण करें | जिसका हथियार अटूट है हे गरुड़ भगवान – हमरा मंगल करो | हे ब्रहस्पति हमारा मंगल करो |( • गृह निर्माण के समय, मकान की नीवं रखते समय व खेत में बीज डालते समय स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण किया जाता है | पशुओं को रोग से बचाने के लिए व उनकी सम्रद्धि के लिए भी इस मंत्र का प्रयोग किया जाता है | किसी भी यात्रा पर जाते समय भी इस मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए | ऐसा करने से यात्रा मंगलमय होती है यात्रा में कोई विघ्न नहीं पड़ता | व्यापार शुरू करते समय भी स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग किया जाना चाहिए | इससे व्यापार में अधिक आर्थिक लाभ मिलता है व हानि होने की सम्भावना कम होती है | पुत्र जन्म के समय भी स्वस्तिक मंत्र का जप करना अतिशु...

स्वस्तिक मंत्र

विवरण पुरातन स्वस्तिक का अर्थ सामान्यतय: स्वस्तिक शब्द को "सु" एवं "अस्ति" का मिश्रण योग माना जाता है। यहाँ "सु" का अर्थ है- 'शुभ' और "अस्ति" का 'होना'। स्वस्ति मंत्र ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्ध-श्रवा-हा स्वस्ति न-ह पूषा विश्व-वेदा-हा । स्वस्ति न-ह ताक्षर्‌यो अरिष्ट-नेमि-हि स्वस्ति नो बृहस्पति-हि-दधातु ॥ अन्य जानकारी विषय सूची • 1 मंत्र का महत्त्व • 2 मंगल-शुभ की कामना • 3 टीका टिप्पणी और संदर्भ • 4 बाहरी कड़ियाँ • 5 संबंधित लेख मंत्र का महत्त्व • गृहनिर्माण के समय स्वस्तिक मंत्र बोला जाता है। मकान की नींव में • यात्रा के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र बोला जाता था। इससे यात्रा सफल और सुरक्षित होती थी। मार्ग में हिंसक पशु या चोर और डाकू नहीं मिलते थे। व्यापार में लाभ होता था, अच्छे मौसम के लिए भी यह मंत्र जपा जाता था, जिससे दिन और रात्रि सुखद हों, स्वास्थ्य लाभ हो तथा खेती को कोई हानि न हो। • पुत्रजन्म पर स्वस्तिक मंत्र बहुत आवश्यक माने जाते थे। इससे बच्चा स्वस्थ रहता था, उसकी आयु बढ़ती थी और उसमें शुभ गुणों का समावेश होता था। इसके अलावा भूत, पिशाच तथा रोग उसके पास नहीं आ सकते थे। मंगल-शुभ की कामना स्वस्तिक मंत्र में चार बार स्वस्ति शब्द आता है, जिसका मतलब होता है कि इसमें भी चार बार मंगल और शुभ की कामना से

What Is Patanjali Ashtanga Yoga (Eight Limbs Of Yoga)

Table of Contents • • • • • • • • • • Patanjali’s Ashtanga Yoga What is Ashtanga Yoga In Sanskrit Ashtanga means Eight Limbs. Ashtanga is made from a combination of two words –“Ashta + Anga”, wherein “Ashta” means Eight and “Anga” is limbs so it means Eight Limb path. Patanjali Ashtanga yoga is based on the Yoga Philosophy of Sage Patanjali who defined Ashtanga Yoga in one Sutra – ‘ Yogas Chitta Vritti Nirodhah‘ – which means by the suppression of the modifications of the mind-stuff or restraining the thought waves, a man obtains Yoga. Ashtanga Yoga is the Royal Road to freedom from misery. In Patanjali Ashtanga Yoga, the definition of the Ashtang Yoga (eight-fold path) that leads to Yoga is found in book two of the Yoga Sutras of Patañjali, Sadhana Pada, the chapter on yoga practice. The eight stages of Ashtanga Yoga are – Yama, Niyama, Asana, Pranayama, Pratyahara, Dharana, Dhyana, and Samadhi. Yama and Purpose of Yamas The first two stages, Yama and Niyama are the tools to improve the behavior of the mind. The mind is conditioned, defined, and subject to habits. It is governed by habits. To change the mental behavior, which is guided by passion and aggression, one has to follow the path of Yama and Niyama. There are 40 Yamas, out of which Maharshi Patanjali selected five: Ahimsa, Satya, Asteya, Aparigraha, and Brahmacharya. Yama is the very foundation of Yoga. The practice of Yama is, in fact, the practice of Sadachara (Right Conduct). Ahimsa, the non-violence comes fir...