स्वस्तिवाचन मंगल पाठ

  1. Swasti Vachan Ka Mantra Sanskrit Me Mp3 Download (25.02 Mb)
  2. श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र
  3. पंचकल्याणक मंगल पाठ
  4. पार्वती मंगल पाठ
  5. ॥ स्वस्तिवाचनम्॥
  6. स्वस्तिक का महत्व श्लोक के अर्थ सहित हिंदी में
  7. સ્વસ્તિવાચન અને શ્લોક.


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स्वस्ति

स्वस्ति-वाचन सभी शुभ एवं मांगलिक धार्मिक कार्यों को प्रारम्भ करने से पूर्व वेद के कुछ मन्त्रों का पाठ होता है, जो स्वस्ति-पाठ या स्वस्ति-वाचन कहलाता है । इस स्वस्ति-पाठ में ‘स्वस्ति’ शब्द आता है, इसलिये इस सूक्त का पाठ कल्याण करनेवाला है । ऋग्वेद प्रथम मण्डल का यह ८९वाँ सूक्त शुक्लयजुर्वेद वाजसनेयी-संहिता (२५/१४-२३), काण्व-संहिता, मैत्रायणी-संहिता तथा ब्राह्मण तथा आरण्यक ग्रन्थों में भी प्रायः यथावत् रुप से प्राप्त होता है । इस सूक्त में १० ऋचाएँ है, इस सूक्त के द्रष्टा ऋषि गौतम हैं तथा देवता विश्वेदेव हैं । आचार्य यास्क ने ‘विश्वदेव से तात्पर्य इन्द्र, अग्नि, वरुण आदि सभी देवताओं से है । दसवीं ऋचा को अदिति-देवतापरक कहा गया है । मन्त्रद्रष्टा महर्षि गौतम विश्वदेवों का आवाहन करते हुए उनसे सब प्रकार की निर्विघ्नता तथा मंगल-प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं । सूक्त के अन्त में शान्तिदायक दो मन्त्र पठित हैं, जो आधिदैविक, आधिभौतिक तथा आध्यात्मिक – त्रिविध शान्तियों को प्रदान करने वाले हैं । आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतोऽदब्धासो अपरीतास उद्भिदः । देवा नो यथा सदमिद् वृधे असन्नप्रायुवो रक्षितारो दिवे-दिवे ।।१ देवानां भद्रा सुमतिर्ऋजूयतां देवानां रातिरभि नो नि वर्तताम् । देवानां सख्यमुप सेदिमा वयं देवा न आयुः प्र तिरन्तु जीवसे ।।२ तान् पूर्वया निविदा हूमहे वयं भगं मित्रमदितिं दक्षमस्रिधम् । अर्यमणं वरुणं सोममश्विना सरस्वती नः सुभगा मयस्करत् ।।३ तन्नो वातो मयोभु वातु भेषजं तन्माता पृथिवी तत् पिता द्यौः । तद् ग्रावाणः सोमसुतो मयोभुवस्तदश्विना शृणुतं धिष्ण्या युवम् ।।४ तमीशानं जगतस्तस्थुषस्पतिं धियंजिन्वमवसे हूमहे वयम् । पूषा नो यथा वेदसामसद् वृधे रक्षिता पायुरदब्धः स्वस्तये ।।५ स्वस्...

Swasti Vachan Ka Mantra Sanskrit Me Mp3 Download (25.02 Mb)

Swasti Vachan सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंगलाचरण आ नो भद्राः क्रतवो ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् Download Mp3 Filesize: 25.02 Mb, Duration: 10:56 2M Views, 3 years ago स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु अस्ति = कल्याण हो। जगत परिवार और स्वयं के कल्याण के लिए शुभ वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है। हिंदू धर्म में वैदिक काल से चले आ रहे पूजा पाठ से जुड़े अनेक रिवाज़ हैं। हर पूजन से पहले स्वस्तिवाचन मंत्र का पाठ का महत्व ऐसा माना जाता है कि मंत्रोच्चार से नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है और इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। यह मंगल पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे सभी देवी देवताओं को जाग्रत कर प्रशन्न कर सकें। ► इन मुख्य मंत्रों के लिए सीधा यहाँ क्लिक करें ☛ ☛ 00 00 15 ► आ नो भद्राः क्रतवो 00 02 26 ► स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः 00 04 04 ► ॐ द्यौ शान्तिरन्तरिक्षँ शान्ति 00 04 47 ► ॐ गणानां त्वा गणपति ग्वँग् सम्पूर्ण स्वस्तिवाचन मंगलाचरण Swasti Vachan Mantra Powerful Vedic Spiritual Mantra In Sanskrit वाचक पंडित श्याम सुन्दर चौधरी Eyeviewspiritualmantra Label Eye View Media ►►►►►►►►►►►►► Mantra Is “spiritual Power” Instrument Of The Which Is

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र

श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram PDF Hindi श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram Hindi PDF Download Download PDF of श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram in Hindi from the link available below in the article, Hindi श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram PDF free or read online using the direct link given at the bottom of content. श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram Hindi श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram हिन्दी PDF डाउनलोड करें इस लेख में नीचे दिए गए लिंक से। अगर आप श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram हिन्दी पीडीएफ़ डाउनलोड करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। इस लेख में हम आपको दे रहे हैं श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र | Kashi Vishwanath Mangal Stotram के बारे में सम्पूर्ण जानकारी और पीडीएफ़ का direct डाउनलोड लिंक। श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम ( Kashi Vishwanath Mangal Stotram PDF ) संस्कृत भाषा में रचित एक दिव्य स्तोत्र है, जो कि भगवान शिव के काशी विश्वनाथ रूप को समर्पित है। इस स्तोत्र में भगवान् भोलेनाथ को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा गया है। सम्पूर्ण भक्ति-भाव से शिवलिंग के समक्ष इस स्त्रोत का गायन करने से भगवान् बाबा विश्वनाथ की विशेष कृपा प्राप्त होती है। श्री काशी विश्वनाथ मंगल स्तोत्र पाठ विधि | Shri Vishwanath Mangal Stotram Path Vidhi : • यदि आप विश्वनाथ मंगल स्तोत्रम का दिव्य पाठ प्रतिदिन करते हैं, तो आप स्वयं ही इसके प्रभाव की अनुभूति कर सकते हैं।...

पंचकल्याणक मंगल पाठ

पणविवि पंच परमगुरु, गुरुजिन शासनो | सकल-सिद्धि-दातार सु विघन-विनाशनो || सारद अरु गुरु गौतम सुमति प्रकाशनो | मंगल कर चउ संघहि पाप-पणासनो || पापहिं पणासन, गुणहिं गरुवा, दोष अष्टादश-रहिउ | धरि ध्यान कर्म विनाश केवलज्ञान अविचल जिन लहिउ || प्रभु पञ्चकल्याणक विराजित, सकल सुर नर ध्यावहीं | त्रैलोक्यनाथ सुदेव जिनवर, जगत मंगल गावहीं |1| (1) गर्भ कल्याणक जाके गर्भ कल्याणक धनपति आइयो | अवधिज्ञान-परवान सु इंद्र पठाइयो || रचि नव बारह योजन, नयरि सुहावनी | कनक-रयण-मणि-मंडित, मन्दिर अति बानी || अति बनी पौरि पगारि परिखा, भुवन उपवन सोहये | नरनारि सुन्दर चतुर भेख सु, देख जनमन मोहये || तहं जनकगृह छहमास प्रथमहिं, रतन-धारा बरसियो | पुनि रुचिकवासिनि जननि-सेवा करहिं सबविधि हरसियो |2| सुरकुंजर-सम कुंजर, धवल धुरंधरो | केहरि-केशर-शोभित, नख-शिख सुन्दरो || कमला-कलश-न्हवन, दुइ दाम सुहावनी | रवि-शशि-मंडल मधुर, मीन जुग पावनी || पावनि कनक-घट-जुगम पूरण, कमल-कलित सरोवरो | कल्लोल माला कुलित सागर, सिंहपीठ मनोहरो || रमणिक अमरविमान फणिपति-भवन भुवि छवि छाजई | रुचि रतनराशि दिपंत-दहन सु तेजपुंज विराजई |3| ये सखि सोलह सुपने सूती सयनही | देखे माय मनोहर, पश्चिम रयनही || उठि प्रभात पिय पूछियो, अवधि प्रकाशियो | त्रिभुवनपति सुत होसी, फल तिहँ भासियो || भासियो फल तिहिं चिंत दम्पति परम आनन्दित भये | छहमास, परि नवमास पुनि तहं, रयन दिन सुखसों गये || गर्भावतार महंत महिमा, सुनत सब सुख पावहीं | भणि रुपचन्द सुदेव जिनवर जगत मंगल गावहीं |4| (2) जन्म कल्याणक मति-श्रुत-अवधि-विराजित, जिन जब जनमियो | तिहुंलोक भयो छोभित, सुरगन भरमियो || कल्पवासि घर घंट अनाहद वज्जियो | ज्योतिष-घर हरिनाद सहज गलगज्जियो || गज्जियो सहजहिं संख भावन, भुवन शब्...

पार्वती मंगल पाठ

बिनइ गुरहि गुनिगनहि गिरिहि गननाथहि । ह्रदयँ आनि सिय राम धरे धनु भाथहि ।।1।। गावउँ गौरि गिरीस बिबाह सुहावन । पाप नसावन पावन मुनि मन भावन ।।2।। कबित रीति नहिं जानउँ कबि न कहावउँ । संकर चरित सुसरित मनहि अन्हवावउँ ।।3।। पर अपबाद-बिबाद-बिदूषित बानिहि । पावन करौं सो गाइ भवेस भवानिहि ।।4।। जय संबत फागुन सुदि पाँचै गुरु छिनु । अस्विनि बिरचेउँ मंगल सुनि सुख छिनु छिनु ।।5।। गुन निधानु हिमवानु धरनिधर धुर धनि । मैना तासु घरनि घर त्रिभुवन तियमनि ।।6।। कहहु सुकृत केहि भाँति सराहिय तिन्ह कर । लीन्ह जाइ जग जननि जनमु जिन्ह के घर ।।7।। मंगल खानि भवानि प्रगट जब ते भइ । तब ते रिधि-सिधि संपति गिरि गृह नित नइ ।।8।। नित नव सकल कल्यान मंगल मोदमय मुनि मानहिं । ब्रह्मादि सुर नर पितु मातु प्रिय परिवारु हरषहिं निरखि पालहिं लालहिं । सित पाख बाढ़ति चंद्रिका जनु चंदभूषन भालहिं ।।1।। कुँअरि सयानि बिलोकि मातु-पितु सोचहिं । गिरिजा जोगु जुरिहि बरु अनुदिन लोचहिं ।।9।। एक समय हिमवान भवन गिरिबरु मैना मुदित मुनिहि पूजत भए ।।10।। उमहि बोलि रिषि पगन मातु मेलत भई । मुनि मन कीन्ह प्रणाम बचन आसिष दई ।।11।। कुँअरि लागि पितु काँध ठाढ़ि भइ सोहई । रूप न जाइ बखानि जानु जोइ जोहई ।।12।। अति सनेहँ सतिभायँ पाय परि पुनि पुनि । कह मैना मृदु बचन सुनिअ बिनती मुनि ।।13।। तुम त्रिभुवन तिहुँ काल बिचार बिसारद । पार्वती अनुरूप कहिय बरु नारद ।।14।। मुनि कह चौदह भुवन फिरउँ जग जहँ जहँ । गिरिबर सुनिय सरहना राउरि तहँ तहँ ।।15।। भूरि भाग तुम सरिस कतहुँ कोउ नाहिन । कछु न अगम सब सुगम भयो बिधि दाहिन ।।16।। दाहिन भए बिधि सुगम सब सुनि तजहु चित चिंता नई । बरु प्रथम बिरवा बिरचि बिरच्यो मंगला मंगलमई ।। बिधिलोक चरचा चलति राउरि चतुर चतुरानन कही । हि...

॥ स्वस्तिवाचनम्॥

स्वस्ति- कल्याणकारी, हितकारी के तथा वाचन- घोषणा के अर्थों में प्रयुक्त होता है। वाणी से, उपकरणों से स्थूल जगत् में घोषणा होती है। मन्त्रों के माध्यम से सूक्ष्म जगत् में अपनी भावना का प्रवाह भेजा जाता है। सात्त्विक शक्तियाँ हमारे ईमान, हमारे कल्याणकारी भावों का प्रमाण पाकर अपने अनुग्रह के अनुकूल वातावरण पैदा करें, यह भाव रखें। अनुकूलता दो प्रकार से पैदा होती है- (१) अवाञ्छनीयता से बचाव। (२) वाञ्छनीयता का योग। यह अधिकार भी देवशक्तियों को सौंपते हुए स्वस्तिवाचन करना चाहिए। ॐ विश्वानि देव सवितर्दुरितानि परासुव। यद्भद्रं तन्नऽआ सुव। ॐ शान्तिः, शान्तिः, शान्तिः॥ सर्वारिष्टसुशान्तिर्भवतु। -३०.३ ॥ रक्षाविधानम्॥ जहाँ उत्कृष्ट बनने की, शुभ कार्य करने की आवश्यकता है, वहाँ यह भी आवश्यक है कि दुष्टों की दुष्प्रवृत्ति से सतर्क रहा जाए और उनसे जूझा जाए। दुष्ट प्रायः सज्जनों पर ही आक्रमण करते हैं, इसलिए नहीं कि देवतत्त्व कमजोर होते हैं, वरन् इसलिए कि वे अपने समान ही सबको सज्जन समझते हैं और दुष्टता के घात- प्रतिघातों से सावधान नहीं रहते, सङ्गठित नहीं होते और क्षमा- उदारता के नाम पर इतने ढीले हो जाते हैं कि अनीति से लड़ने का साहस, शौर्य और पराक्रम ही उनमें से चला जाता है। इससे लाभ अनाचारी तत्त्व उठाते हैं। यज्ञ जैसे सत्कर्मों की अभिवृद्धि से ऐसा वातावरण बनता है, जिसकी प्रखरता से असुरता के पैर टिकने ही न पाएँ। इस आशंका में असुर- प्रकृति के विघ्न सन्तोषी लोग ही ऐसे षड्यन्त्र रचते हैं, जिसके कारण शुभ कर्म सफल न होने पाएँ। इस स्थिति से भी धर्मपरायण व्यक्ति को परिचित रहना चाहिए और संयम- उदारता, सत्य- न्याय जैसे आदर्शों को अपनाने के साथ- साथ ऐसी वैयक्तिक और सामूहिक सामर्थ्य इकट्ठी करनी चाहिए, जिसस...

स्वस्तिक का महत्व श्लोक के अर्थ सहित हिंदी में

Table of Contents • • • • • • • • • • स्वस्तिक मंत्र महत्व:- ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः । स्वस्ति नस्ताक्ष्यों अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥ ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः । अर्थ: हे महान कीर्ति वाले इन्द्र देव हमारा मंगल करो, सारे संसार के ज्ञानस्वरूप पूषादेव हमारा कल्याण करो। जिसका हथियार अटूट है, ऐसे भगवान विष्णु के वाहन गरुड़जी हमारा मंगल करो। भगवान बृहस्पति हमारा कल्याण करो। स्वस्तिक मंत्र (Swastik Mantra) शुभ और शांति के लिए पूर्ण रुप से युक्त होता है। स्वस्तिक मंत्र अर्थ स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण होता है। स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण करने से हृदय और मन का मिलन होता हैं। स्वस्तिक मंत्र (Swastik Mantra) को पढ़ते हुए दर्भ से जल के छींटे डाले जाते है, और यह भी यह भी मान्यता है कि यह जल परस्पर में होनेवाला क्रोध और वैमनस्य को शांत कर देता है। ‘स्वस्तिवाचन’ को स्वस्ति मंत्र का पाठ कहा जाता है। किसी भी शुभ कार्य जैसे : गृहनिर्माण, गृहप्रवेश, षोडश संस्कार, यात्रा आदि के आरंभ में स्वस्तिक मंत्र का उच्चारण किया जाता है। जिससे शुभ कार्य निर्विघ्न सम्पन्न होता है। स्वस्तिक मंत्र का प्रयोग किसी भी पूजा अनुष्ठान में प्रारंभ में किया जाना वाला मंत्र है। स्वस्तिक मंत्र को पढ़ने के पश्चात दसों दिशाओं में अभिमंत्रित जल का छींटे डाले जाते है। स्वस्तिक मंत्र में स्वस्ति शब्द ला चार बार प्रयोग किया गया है, इसलिए चार बार मंगल और शुभ की कामना से भगवान श्री गणेश का आवाहन किया गया है। यहां एक क्लिक में पढ़ें ~ दूर्वा का महत्त्व:- दूर्वा को संस्कृत में दूर्वा, अनंता, गौरी, अमृता, शतपर्वा, भार्गवी, महोषधि आदि नमो से जाना जाता है। दूर्वा औषधीय गुणों से ...

સ્વસ્તિવાચન અને શ્લોક.

स्वस्तिक मंत्र या स्वस्ति मंत्र शुभ और शांति के लिए प्रयुक्त होता है। स्वस्ति = सु + अस्ति = कल्याण हो। जगत, परिवार और स्वयं के कल्याण के लिए, शुभ वचन कहना ही स्वस्तिवाचन है। हिंदू धर्म में वैदिक काल से चले आ रहे पूजा पाठ से जुड़े अनेक रिवाज़ हैं। हर पूजन से पहले स्वस्तिवाचन मंत्र का पाठ का महत्व ऐसा माना जाता है कि मंत्रोच्चार से नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है और इससे हृदय और मन मिल जाते हैं। यह मंगल पाठ अवश्य करना चाहिए जिससे सभी देवी-देवताओं को जाग्रत कर प्रशन्न कर सकें। ————— ► इन मुख्य मंत्रों के लिए सीधा यहाँ क्लिक करें ☛ ☛ jitante stotram is one of the oldest slokams. Jitante stotram is a Rigveda khilam meaning an unfrequented portion. The actual secret meaning, of the mantram called Jitante, was expounded by that omniscient sage bhagavan Saunaka. Sections of Jitante stOtram are recited at the end of Bhagavath AarAdhanam.