Swastik chinh kaisa hota hai

  1. जानिए क्या है स्वास्तिक की कहानी, भगवान गणेश से जुड़ा है रहस्य
  2. Hindi Typing Alt Code
  3. स्वस्तिक का रहस्य जानिए, 9 टोटकों के साथ...


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जानिए क्या है स्वास्तिक की कहानी, भगवान गणेश से जुड़ा है रहस्य

चूंकि स्वास्तिक को कार्य की शुरुआत और मंगल कार्य में रखते हैं , अतः यह भगवान् गणेश का रूप भी माना जाता है. माना जाता है कि इसका प्रयोग करने से व्यक्ति को सम्पन्नता, समृद्धि और एकाग्रता की प्राप्ति होती है. इतना ही नहीं जिस किसी पूजा उपासना में स्वास्तिक का प्रयोग नहीं किया जाता, वह पूजा लम्बे समय तक अपना प्रभाव नहीं रख पाती है. स्वास्तिक का वैज्ञानिक महत्व - यदि आपने स्वास्तिक सही तरीके से बनाया हुआ है तो उसमें से ढेर सारी सकारात्मक उर्जा निकलती है. - यह उर्जा वस्तु या व्यक्ति की रक्षा,सुरक्षा करने में मददगार होती है - स्वास्तिक की उर्जा का अगर घर,अस्पताल या दैनिक जीवन में प्रयोग किया जाय तो व्यक्ति रोगमुक्त और चिंता मुक्त रह सकता है. - गलत तरीके से प्रयोग किया गया स्वास्तिक भयंकर समस्याएं भी पैदा कर सकता है. स्वास्तिक का प्रयोग कैसे करें- - स्वास्तिक की रेखाएं और कोण बिलकुल सही होने चाहिए. - भूलकर भी उलटे स्वास्तिक का निर्माण और प्रयोग न करें. - लाल और पीले रंग के स्वास्तिक ही सर्वश्रेष्ठ होते हैं. - जहां-जहां वास्तु दोष हो वहां घर के मुख्य द्वार पर लाल रंग का स्वास्तिक बनायें. - पूजा के स्थान, पढाई के स्थान और वाहन में अपने सामने स्वास्तिक बनाने से लाभ मिलता है. स्वास्तिक की चारों रेखाएं चार देवों का प्रतीक- स्वास्तिक की चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से तुलना की गई है. स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है. लाल रंग से ही स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है- लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक और मानसिक स्तर को जल्दी प्रभावित कर...

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स्वस्तिक का रहस्य जानिए, 9 टोटकों के साथ...

किसने किया स्वस्तिक का आविष्कार : स्वस्तिक को 'साथिया' या 'सातिया' भी कहा जाता है। वैदिक ऋषियों ने अपने आध्यात्मिक अनुभवों के आधार पर कुछ विशेष चिह्नों की रचना की। मंगल भावों को प्रकट करने वाले और जीवन में खुशियां भरने वाले इन चिह्नों में से एक है स्वस्तिक। उह्नोंने स्वस्तिक के रहस्य को सविस्तार उजागर किया और इसके धार्मिक, ज्योतिष और वास्तु के महत्व को भी बताया। आज स्वस्तिक का प्रत्येक धर्म और संस्कृति में अलग-अलग रूप में इस्तेमाल किया जाता है। सिन्धु घाटी सभ्यता की खुदाई में ऐसे चिह्न व अवशेष प्राप्त हुए हैं जिससे यह प्रमाणित होता है कि कई हजार वर्ष पूर्व मानव सभ्यता अपने भवनों में इस मंगलकारी चिह्न का प्रयोग करती थी। सिन्धु घाटी से प्राप्त मुद्रा और बर्तनों में स्वस्तिक का चिह्न खुदा हुआ मिला है। उदयगिरि और खंडगिरि की गुफा में भी स्वस्तिक के चिह्न मिले हैं। ऐतिहासिक साक्ष्यों में स्वस्तिक का महत्व भरा पड़ा है। मोहन जोदड़ो, हड़प्पा संस्कृति, अशोक के शिलालेखों, रामायण, हरिवंश पुराण, महाभारत आदि में इसका अनेक बार उल्लेख मिलता है। अमेरिका और जर्मन में स्वस्तिक : द्वितीय विश्‍वयुद्ध के समय एडोल्फ हिटलर ने उल्टे स्वस्तिक का चिह्न अपनी सेना के प्रतीक के रूप में शामिल किया था। सभी सैनिकों की वर्दी एवं टोपी पर यह उल्टा स्वस्तिक चिह्न अंकित था। उल्टा स्वस्तिक ही उसकी बर्बादी का कारण बना। संयुक्त राज्य अमेरिका की आधिकारिक सेना के नेटिव अमेरिकन की एक 45वीं मिलिट्री इन्फैंट्री डिवीजन का चिह्न एक पीले रंग का स्वस्तिक था। नाजियों की घटना के बाद इसे हटाकर उन्होंने गरूड़ का चिह्न अपनाया। अन्य देशों में स्वस्तिक : स्वस्तिक को भारत में ही नहीं, अपितु विश्व के अन्य कई देशों में विभिन्न स्वर...