Thyroid ka varnan karen

  1. Tanav Ke Karan
  2. राजनीतिक समाजशास्त्र की प्रकृति एवं उनके क्षेत्र का वर्णन करें।
  3. थायरॉयड के साथ वजन कम करें (Thyroid, Vajan Kam, Kaise Kare)
  4. थायराइड में मोटापा और वजन कैसे कम करे : 10 आसान उपाय
  5. पाठ्यक्रम का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र
  6. भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें


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Tanav Ke Karan

Depression/तनाव एक प्रकार की मानसिक बीमारी है जो उदासी, चिंता, अकेलापन, नकारात्मक भाव, असुरक्षा के भाव के चलते एक व्यक्ति को मानसिक रूप विकृत कर देती है | उदास रहना, अकेले रहना, मन में हर समय नकारात्मक भाव ये सभी हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी दस्तक जरुर देते है लेकिन इसकी समय अवधि केवल कुछ दिन की ही होती है( Tanav Ke Karan)| किन्तु इस प्रकार के भाव जब व्यक्ति लम्बे समय तक महसूस करता है तो यह उसकी आदत बन जाते है और वह चाहकर भी इनसे छुटकारा नहीं पा सकता | Tanav Ke Karan : एक बात तो स्पष्ट है कि जब लम्बे समय तक एक व्यक्ति किसी दुःख,तकलीफ या चिंता को मन में बैठाये रखता है तो आगे चलकर यह Tanav को जन्म देता है | यह पूर्ण रूप से एक मानसिक विकार है जो व्यक्ति के मूड से सम्बंधित है | और यह व्यक्ति की उदासी, किसी काम में मन न लगना या किसी सगे-संबंधी की मृत्यु के कारण उत्पन्न हो सकता है | यह एक लम्बी चलने वाली बीमारी है | सही उपचार न मिलने पर यह बीमारी जीवनभर रोगी को परेशान करती है और साथ ही शरीर में और भी बहुत सी बिमारियों का कारण बनती है | Depression/Tanav के लक्षण :- Tanav/ तनाव के लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग हो सकते है इसलिए यह कहना उचित नहीं होगा कि एक व्यक्ति में तनाव /Tanav होने पर जिस प्रकार के लक्षण दिखाई देते है दुसरे Depressed व्यक्ति में भी सभी लक्षण वही हो | अकेलापन, उदासी, शरीर में उर्जा की कमी(कमजोरी), सोने में परेशानी, निराशा के भाव, भोजन करने में रूचि न रखना, एकाग्रता में परेशानी , आनंद की वस्तुएं और सामजिक गतिविधियों में रूचि न रखना, हीन भावना रखना, खुद को दोषी ठहराना या suicide करने के विचार मन में आना इस प्रकार के भाव जब एक व्यक्ति एक या दो महीने से अध...

राजनीतिक समाजशास्त्र की प्रकृति एवं उनके क्षेत्र का वर्णन करें।

राजनीतिक समाजशास्त्र की प्रकृति एवं उनके क्षेत्र का वर्णन करें। • राजनीतिक समाजशास्त्र के क्षेत्र के विभिन्न अंगों को समझाइए • राजनीतिक समाजशास्त्र पर एक निबंध लिखिए। • राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ एवं परिभाषा बताइए राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति एक प्रक्रिया व अध्ययन शाखा के रूप में अत्यधिक प्राचीन धारणा या अनुशासन है। राजनीतिशास्त्र की बात करें तो अरस्तू कृत' पॉलिटिक्स', कौटिल्य द्वारा लिखित 'अर्थशास्त्र' राजनीतिशास्त्र से सम्बन्धित महानतम ग्रन्थ हैं जोकि प्रमाणित करते हैं कि राजनीतिशास्त्र के अध्ययन की परम्परा अति प्राचीन है, परन्तु कालान्तर में राज्य के क्षेत्र, जनसंख्या, कार्यों व उत्तरदायित्वों में अत्यधिक वृद्धि होती गयी जिस कारण राजनीतिशास्त्र के अध्ययन का केन्द्र बिन्दु महज राज्य व सरकार तक सीमित न रहा। इसके अन्तर्गत शक्ति, प्रभाव, सत्ता, विशिष्टजन, लोकमत एवं लोकव्यवहार, समुदाय, समितियाँ इत्यादि धारणाओं का समावेश हुआ। इस प्रकार सामाजिक प्रक्रियाओं के मध्य विभाजन समाप्त होने लगा। अतः समाजशास्त्र के प्रभाव के कारण जहाँ एक ओर राजनीतिशास्त्र का दृष्टिकोण और सन्दर्भ की सीमाओं का विस्तार हुआ, तो वहीं दूसरी ओर इसकी विषय वस्तु और चरित्र इतना परिवर्तित हो गये कि एक नवीन अध्ययन विषय के रूप में 'राजनीतिक समाजशास्त्र' का उदय हुआ। इस प्रकार राजनीतिक समाजशास्त्र राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों से सम्बन्धित है। अतः राजनीतिक समाजशास्त्र अत्यन्त महत्वपूर्ण व समकालीन अध्ययनशाखा अथवा उपागम है, इसके विविध पक्षों का विस्तृत विवेचन निम्नांकित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है: राजनीतिक समाजशास्त्र की परिभाषाएँ राजनीतिक समाजशास्त्र को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न प्रकार से परि...

थायरॉयड के साथ वजन कम करें (Thyroid, Vajan Kam, Kaise Kare)

वज़न कम करना स्वस्थ व्यक्तियों के लिए अक्सर मुश्किल कार्य है, लेकिन अगर आप थायरॉयड की बीमारी से पीड़ित है, तो कुछ अतिरिक्त वज़न को कम करना और भी मुश्किल कार्य बन सकता है। हाइपोथायरायडिज्म (hypothyroidism), या असामान्य रूप से निष्क्रिय थायरॉयड रोग, शरीर की रासायनिक प्रतिक्रियाओं में असंतुलन का कारण बनता है। X Mayo Clinic X रिसर्च सोर्स लक्षण पता करें: हाइपोथायरायडिज्म की बीमारी में, वज़न बढ़ने से लेकर रूखी त्वचा होने तक बहुत से लक्षण है। कुछ लक्षण तुरंत दिखाई दे सकते हैं, या वज़न बढ़ने वाले जैसे लक्षण, धीरे-धीरे अधिक होते जाते हैं। X Mayo Clinic • हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों में शामिल हैं: अनपेक्षित वज़न का बढ़ जाना, थकान, सर्दी की संवेदनशिलता में वृद्धि, कब्ज, शुष्क त्वचा, फूला हुआ चेहरा, मांसपेशियों में दर्द, जोड़ों में सूजन, बाल पतले होना, हृदय दर (heart rate) कम होना, अवसाद या डिप्रेशन (depression), भारी या अनियमित माहवारी। X रिसर्च सोर्स • हर व्यक्ति के अनुसार लक्षण बदलते हैं और यह बीमारी शिशुओं, बच्चों से लेकर बढ़ों तक सभी को प्रभावित कर सकती है। X Mayo Clinic • हाइपोथायरायडिज्म महिलाओं में और 50 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों में आम हैं। X रिसर्च सोर्स अपने डॉक्टर से परामर्श करें: हाइपोथायरायडिज्म की पुष्टि, और आपके वज़न बढ़ने के कारण जानने के लिए, अपने डॉक्टर से अवश्य मिलें। आपके डॉक्टर आपकी जांच से पुष्टि करेंगे और आपको उचित उपचार की योजना बनाएंगे। • अगर आप अपने डॉक्टर से नहीं मिलते हैं और हाइपोथायरायडिज्म के लक्षणों को अनदेखा करते हैं, तो समय के साथ यह लक्षण और भी गंभीर होते जाएंगे। X रिसर्च सोर्स हाइपोथायरायडिज्म और वज़न बढ़ने के तत्वों के बारे में जाने: वज़न ब...

थायराइड में मोटापा और वजन कैसे कम करे : 10 आसान उपाय

थायराइड में मोटापा और वजन कैसे कम करें उपाय इन हिंदी: थायराइड ग्रंथि शरीर में मेटाबॉलिज्म को कंट्रोल करती है और जब ये अपना काम सही तरीके से नहीं करती तब कई प्रकार की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं होने लगती है। थायराइड ग्रंथि जब नॉर्मल से कम मात्रा में हार्मोन बनाती है तब इसे हाइपोथायराइड कहते है जिससे तेजी से वजन और मोटापा बढ़ने लगता है। थायराइड में मोटापा कम करे 10 आसान उपाय Contents • • • • • स्वस्थ आहार और व्यायाम के बावजूद, थायराइड रोग वाले लोगों की सबसे आम शिकायतों में से एक में वजन कम करने में असमर्थ है। थायराइड में वजन घटाने के आपको खानपान की आदतों में थोड़ा बदलाव करने की जरूरत है। अपनी डाइट में फलों और पौष्टिक चीजों के साथ सलाद और उबली हुई सब्जियों की मात्रा बढ़ा दें। अगर आप भी इसी श्रेणी में आते हैं तो हम आपको थायराइड की समस्या के साथ वजन कम करने के आसान व असरदार तरीके बता रहे हैं। अगर आप भी थायराइड से ग्रस्त है तो मोटापा कंट्रोल करने के लिए अपनी आदतों और खान में कुछ बदलाव करें। इससे ना सिर्फ थायराइड कंट्रोल में रहेगा बल्कि आप सेहतमंद भी रहेंगे। आपके थायरॉयड ग्रंथि के हार्मोन आपके चयापचय को विनियमित करने में मदद करते हैं। जब आपका थायराइड के हार्मोन को कम करता है – जैसा कि हाइपोथायरायडिज्म में होता है – आपका चयापचय धीमा हो जाता है। तो आप जल्दी से कैलोरी बर्न नहीं करते हैं और आपका वजन बढ़ जाता है। पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में थायराइड के लक्षण अधिक देखे जाते है। कुछ लोग थाइरोइड में वेट लॉस करने के लिए टेबलेट कैप्सूल और अन्य दवा (मेडिसिन) का सहारा लेते है पर अपना डाइट चार्ट सही तरीके से प्लान कर के थायराइड में मोटापा कम किया जा सकता है। आज इस लेख में हम जानेंगे थायराइ...

पाठ्यक्रम का अर्थ, परिभाषा, प्रकृति एवं क्षेत्र

पाठ्यक्रम का अर्थ (pathyakram ka arth) पाठ्यक्रम शब्द अंग्रेजी भाषा के‘करीक्यूलम’ (Curriculum) शब्द का हिन्दी रूपान्तर है।‘करीक्यूलम’ शब्द लैटिन भाषा से अंग्रेजी में लिया गया है तथा यह लैटिन शब्द ‘कुर्रेर’ से बना है।‘कुर्रेर’ का अर्थ है‘दौड़ का मैदान’। दूसरे शब्दों में, ‘करीक्यूलम’ वह क्रम है जिसे किसी व्यक्ति को अपने गन्तव्य स्थान पर पहुँचने के लिए पार करना होता है। पाठ्यक्रम की परिभाषाविद्यालयों का प्रमुख कार्य बालकों को शिक्षा प्रदान करना होता है और इसको पूर्ण करने के लिए वहाँ पर जो कुछ किया जाता है उसे‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है। इसीलिए ‘पाठ्यक्रम’ को परिभाषित करते हुए एक विद्वान ने इसे हृाट ऑफ एजूकेशन (What of Education) कहा है। प्रथम दृष्टि में यह परिभाषा बहुत अधिक सरल एवं स्पष्ट प्रतीत होती है, परन्तु इस ‘हृाट’ की व्याख्या करना तथा कोई निश्चित उत्तर प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। 2. ले के अनुसार (According to le)-‘‘पाठ्यक्रम का विस्तार वहाँ तक है, जहाँ तक जीवन का।’’ परन्तु इन विचारों को पाठ्यक्रम की समुचित परिभाषा मानना तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक अभिकरण विद्यालय से है तथा विद्यालय ही पाठ्यक्रम की सीमा भी है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को विद्यालय के घेरे में ही परिभाषित करना उचित लगता है। 3. वाल्टर एस. मनरो के शब्दकोश के अनुसार(Walter S. According to Manro's dictionary)- ‘‘पाठ्यक्रम को किसी विद्यार्थी द्वारा लिये जाने वाले विषयों के रूप में परिभाषित नहीं किया जाना चाहिए। पाठ्यक्रम की कार्यात्मक संकल्पना के अनुसार इसके अन्तर्गत वह सब अनुभव आ जाते है जो विद्यालय में शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किये जाते है...

भारत में भूमि उपयोग प्रारूप का वर्णन करें

देश का कुल क्षेत्रफल उस सीमा को निर्धारित करता है जहाँ तक विकास प्रक्रिया के दौरान उत्पत्ति के साधन के रूप में भूमि का समतल विस्तार संभव होता है। जैसे-जैसे विकास प्रक्रिया आगे बढ़ती है और नये मोड़ लेती है, समतल भूमि की माँग बढ़ती है, नये कार्यों और उद्योगों के लिये भूमि की आवश्यकता होती है व परम्परागत उपयोगों में अधिक मात्रा में भूमि की माँग की जाती है। सामान्यतया इन नये उपयोगों अथवा परम्परागत उपयोगों में बढ़ती हुई भूमि की माँग की आपूर्ति के लिये कृषि के अंतर्गत भूमि को काटना पड़ता है और इस प्रकार भूमि कृषि उपयोग से गैर कृषि कार्यों में प्रयुक्त होने लगती है। एक विकासशील अर्थव्यवस्था के लिये जिसकी मुख्य विशेषतायें श्रम अतिरेक व कृषि उत्पादों के अभाव की स्थिति का बना रहना है। कृषि उपयोग से गैर कृषि उपयोगों में भूमि का चला जाना गंभीर समस्या का रूप धारण कर सकता है। जहाँ इस प्रक्रिया से एक ओर सामान्य कृषक के निर्वाह श्रोत का विनाश होता है, दूसरी ओर समग्र अर्थ व्यवस्था की दृष्टि से कृषि पदार्थों की माँग और पूर्ति में गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो सकते हैं। कृषि पदार्थों की आपूर्ति में अर्थव्यवस्था में अनेक अन्य गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकती है। इसलिये यह आवश्यक समझा जाता है कि विकास प्रक्रिया के दौरान जैसे-जैसे समतल भूमि की माँग बढ़ती है उसी के साथ ही बंजर परती तथा बेकार पड़ी भूमि को कृषि अथवा गैर कृषि कार्यों के योग्य बनाने के लिये प्रयास करना चाहिए। प्रयास यह होना चाहिए कि खेती-बाड़ी के लिये उपलब्ध भूमि के क्षेत्र में किसी प्रकार की कमी न आये वरन जहाँ तक संभव हो कृषि योग्य परती भूमि में सुधार करें। कृषि कार्यों के लिये उपलब्ध भूमि में वृद्धि ही की जानी चाहिए। भूमि समस्त गतिविधियों का आधा...