त्रावणकोर का इतिहास

  1. श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम
  2. स्वाथि थिरूनल राम वर्मा की जीवनी
  3. तकाजी शिवशंकरा पिल्लै
  4. मार्तान्ड वर्मा
  5. पद्मनाभस्वामी मंदिर इतिहास Padmanabhaswamy Temple History Hindi


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श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर, श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम

भारत के केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम के पूर्वी किले के भीतर स्थित श्री पद्मनाथ स्वामी मंदिर भगवान विष्णु का मंदिर है। यह मंदिर केरल और द्रविड़ वास्तुशिल्प शैली का अनुपम उदाहरण है। इसे दुनिया का सबसे धनी मंदिर माना जाता है। श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास 8वीं सदी से मिलता है। यह विष्णु के 108 पवित्र मंदिरों में एक है जिसे भारत का दिव्य देसम भी कहते हैं। दिव्य देसम भगवान विष्णु का सबसे पवित्र निवास स्थान है जिसका उल्लेख तमिल संतों द्वारा लिखे गए पांडुलिपियों में मिलता है। इस मंदिर के प्रमुख देवता भगवान विष्णु हैं जो भुजंग सर्प अनंत पर लेटे हुए हैं। मार्तंड वर्मा जो त्रावणकोर के प्रसिद्ध राजा थे, ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कार्य कराया जो आज के श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के रूप में हमें दिखता है। मार्तंड वर्मा ने ही इस मंदिर में मुरजपम और भद्र दीपम त्यौहारों की शुरुआत की थी। मुरजपम जिसका अर्थ प्रार्थना का मंत्रोच्चार करना होता है, इस मंदिर में छ: वर्षों में एक बार अब भी किया जाता है। वर्ष 1750 में, मार्तंड वर्मा ने त्रावणकोर राज्य भगवान पद्मनाभ को समर्पित कर दिया । मार्तंड वर्मा ने यह घोषणा की कि राज परिवार भगवान की ओर से राज्य का शासन करेगा और वे स्वंय और उनके वंशज राज्य की सेवा पद्मनाभ के दास या सेवक के रूप में करेंगे। तब से, त्रावणकोर के प्रत्येक राजा के नाम से पहले पद्मनाभ दास पुकारा जाता है। पद्मनाभस्वामी को त्रावणकोर राज्य द्वारा दिए गए दान को त्रिपड़ीदानम कहा जाता है। केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम का नाम श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के प्रमुख देवता के नाम पर है जिन्हें अनंत (जो सर्प अनंत पर लेटे हैं) भी कहा जाता है। शब्द ‘तिरुवनंतपुरम’ का शाब्दिक अर्थ है – श्री अनंत ...

त्रावणकोर

त्रावणकोर-कोचीन त्रावणकोर-कोचीन , या श्री-कोच्चि , एक अल्पकालिक था संयुक्त राज्य त्रावणकोर और कोचीन कहा जाता था । इसकी मूल राजधानी त्रावणकोर-कोचीन राज्य जनवरी 1950 में त्रावणकोर के शासक को त्रावणकोर-कोचीन के 1956 के राज्य पुनर्गठन अधिनियम के तहत, त्रावणकोर के चार दक्षिणी तालुक, अर्थात् थोवलाई , अगस्तीस्वरम, कलकुलम और विलावनकोड और चेनकोटा का एक हिस्सा, तेनकासी तालुक को मद्रास राज्य में मिला दिया गया था। 1 नवंबर 1956 को त्रावणकोर-कोचीन को मद्रास राज्य के मालाबार जिले के साथ जोड़कर केरल का नया राज्य बनाया गया , जिसमें भारत के राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त एक राज्यपाल को 'राजप्रमुख' के बजाय राज्य के प्रमुख के रूप में नियुक्त किया गया । तमिलों में बड़ी संख्या में रहते थे Thovalai , Agastheeswaram , Sengottai , Eraniel , Vilavancode , Kalkulam , Devikulam , Neyyattinkara , तिरुवनंतपुरम दक्षिण और तिरुवनंतपुरम उत्तर तालुकों तत्कालीन त्रावणकोर राज्य के। [४] तमिल क्षेत्रों में, मलयालम आधिकारिक भाषा थी और केवल कुछ ही तमिल माध्यम के स्कूल थे। इसलिए तमिलों को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। त्रावणकोर राज्य सरकार ने तमिलों के अनुरोधों को खारिज करना जारी रखा। [५]उस अवधि के दौरान त्रावणकोर राज्य कांग्रेस ने सभी मलयालम भाषी क्षेत्रों को एकजुट करने और "एकीकृत केरल" के गठन के विचार का समर्थन किया। इस विचार के विरोध में कई तमिल नेताओं ने पार्टी छोड़ दी। 16 दिसंबर 1945 को सैम नथानिएल के नेतृत्व में तमिल नागरकोइल में एकत्र हुए और नई राजनीतिक पार्टी ऑल त्रावणकोर तमिलियन कांग्रेस का गठन किया। यही कारण है कि पार्टी के साथ त्रावणकोर में तमिल क्षेत्रों के विलय के लिए लगातार सम्मोहक था तमिलनाडु । [6]

स्वाथि थिरूनल राम वर्मा की जीवनी

जन्म : 16 अप्रैल, 1813, त्रावनकोर (केरल) मृत्यु : 27 दिसम्बर, 1846 कार्यक्षेत्र: त्रावनकोर के महाराजा, संगीतकार और लेखक स्वाथि थिरूनल राम वर्मा त्रावणकोर के प्राचीन रियासत के राजा थे. इसके साथ- साथ ये प्राचीन भारतीय शास्त्री संगीत के एक महान संरक्षक और स्वयं एक सिद्धस्थ संगीतकार भी थे. इन्होंने अपने राजदरबार में कई तत्कालीन प्रसिद्ध संगीतकारों को भी स्थान दिया था, जो इनके संगीत के प्रति विशेष प्रेम को दर्शाता है. स्वाथि थिरूनल ने त्रावणकोर के महाराजा के रूप में वर्ष 1829 से वर्ष 1846 तक शासन किया था. यद्यपि ये स्वयं ही दक्षिण भारतीय कर्नाटक संगीत के विशेष जानकर थे, परंतु ये अपने राज्य के लोगों और संगीत प्रेमियों को हिन्दुस्तानी संगीत शैली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया करते थे. इन्हें 400 से अधिक संगीत रचनाओं के निर्माण करने का श्रेय भी दिया जाता है. इन रचनाओं में इनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं- पद्मनाभ पही, देवा देवा, सरसिजनाभा और श्री रमण विभो. इनके बारे में यह भी कहा जाता है कि ये कई देशी-विदेशी भाषाओँ के विशेषज्ञ थे, जैसे- संस्कृत, हिंदी, मलयालम, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, बंगाली, तमिल, उड़िया और अंग्रेजी आदि. इन्होंने राजा होते हुए भी संगीत के क्षेत्र में विशेष रुचि के अलावा अन्य दूसरे क्षेत्रों के विकास में भी अविस्मरणीय योगदान दिया. जिसमें प्रमुख है – तिरुवनंतपुरम में खगोलीय वेधशाला का निर्माण, संग्रहालय, चिड़ियाघर, सरकारी प्रेस, त्रिवेंद्रम सार्वजनिक पुस्तकालय (जिसे अब राज्य केन्द्रीय पुस्तकालय के नाम से भी जाना जाता है), ओरिएंटल पांडुलिपि पुस्तकालय और अन्य दूसरे विभिन्न प्रसिद्ध प्रतिष्ठान आदि. प्रारम्भिक जीवन स्वाथि थिरूनल राम वर्मा का जन्म 16 अप्रैल, 1813 को दक्षिण भार...

तकाजी शिवशंकरा पिल्लै

पूरा नाम तकाजी शिवशंकरा पिल्लै जन्म जन्म भूमि मृत्यु मृत्यु स्थान कर्म भूमि कर्म-क्षेत्र मलयालम साहित्य मुख्य रचनाएँ ‘झरा हुआ कमल’, ‘दलित का बेटा’, ‘दो सेर ध्यान’, ‘चेम्मीन’, ‘ओसेप के बच्चे’ आदि। भाषा पुरस्कार-उपाधि प्रसिद्धि मलयालम साहित्यकार नागरिकता भारतीय अन्य जानकारी इन्हें भी देखें तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ( Thakazhi Sivasankara Pillai, जन्म- परिचय तकाजी शिवशंकरा पिल्लै का जन्म 17 अप्रॅल, 1917 में त्रावणकोर (आज का तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ने अपने 26 उपन्यासों तथा 20 कहानी-संग्रहों में आज के मनुष्य को अपने समय की परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए दिखाया है। उनके उपन्यासों के किसान-चरित्र भाग्य में भरोसा करने वाले नहीं हैं, वे अपने विरुद्ध किए जाने वाले दुर्व्यवहार का मुकाबला करते हैं। तकाजी शिवशंकर ने अपने लेखन के माध्यम से ग़रीब लोगों की समस्याओं को प्रमुख रूप से समाज के समक्ष रखा था। लेखन विषय तकाजी शिवशंकरा पिल्लै ने रचनाएँ • ‘झरा हुआ कमल’ • ‘दलित का बेटा’ • ‘दो सेर ध्यान’ • ‘चेम्मीन’ • ‘ओसेप के बच्चे’ पुरस्कार • ‘चेम्मीन’ जो मछुआरों के जीवन पर आधारित है, उसे • तकाजी शिवशंकरा पिल्लै को पन्ने की प्रगति अवस्था टीका टिप्पणी और संदर्भ संबंधित लेख · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · · ...

मार्तान्ड वर्मा

मार्तण्ड वर्मा का चित्रण शासनावधि 1729 – 7 July 1758 पूर्ववर्ती उत्तरवर्ती जन्म Anizham Thirunal 1706 निधन 7 July 1758 (aged 53) शासनावधि नाम Sri Padmanabhadasa Vanchipala Maharajah Sri Anizham Thirunal Marthanda Varma Kulasekhara Perumal पिता राघव वर्मा, माता Karthika Thirunal Uma Devi, Queen of Attingal धर्म अनीयम तिरुनाल मार्तान्ड वर्मा (1706 - 7 जुलाई 1758) यह लेख किसी और भाषा में लिखे लेख का खराब अनुवाद है। यह किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा लिखा गया है जिसे हिन्दी अथवा स्रोत भाषा की सीमित जानकारी है। कृपया इस "अन्य भाषाओं की सूची" में "" में पाया जा सकता है। उन्होंने पड़ोसी राज्यों से अपने पैतृक डोमेन का विस्तार करने के लिए काफी योगदान दिया है और पूरे दक्षिणी केरल का एकीकरण किया हैं। उनके शासन के तहत त्रावणकोर दक्षिणी भारत में सबसे शक्तिशाली बन गया। पर वेह अप्ने भतीजे रामा वर्मा द्वारा असफल हो गये। मार्तान्ड वर्मा जब २३ साल के हुये तब वेनाद के सिंहासन हासील किया। उन्होंने डच को कुचल लड़ाई १७४१ में विस्तारवादी डिजाइन को खराब किय। मार्तान्ड वर्मा फिर उसकी सेना में अनुशासन की यूरोपीय मोड और आसपास के लिए वेनाद डोमेन का विस्तार किय। उन्होंने एक पर्याप्त स्थायी सेना का आयोजन किया और नायर अभिजात वर्ग (केरल के शासकों सैन्य निर्भर हो गया था, जिस पर) की शक्ति को कम किया और् त्रावणकोर लाइन पर उसके राज्य की उत्तरी सीमा गढ़वाले. मार्तान्ड वर्मा के तहत त्रावणकोर समुद्री दुकानों के इस्तेमाल से उनकी शक्ति को मजबूत करने के लिए निर्धारित भारत में कुछ राज्यों में से एक था। व्यापार का नियंत्रण भी अवधि के शासन कला में महत्वपूर्ण के रूप में देखा गया था। यह भी करने के लिए मार्तान्ड वर्मा की नीति थ...

पद्मनाभस्वामी मंदिर इतिहास Padmanabhaswamy Temple History Hindi

पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास Padmanabhaswamy Temple History In Hindi: भारत में हजारों धार्मिक महत्व के विशाल प्राचीन मंदिर हैं. जिनकी ख्याति देश विदेश में है लाखों लोग श्रद्धा से इनका दर्शन करने आते हैं. ऐसा ही एक मन्दिर है भारत के केरल राज्य की राजधानी तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाभस्वामी मंदिर. इस प्रसिद्ध मंदिर के बारे में कहा जाता हैं कि यह पांच हजार वर्ष पुराना विष्णु मंदिर है वर्तमान में देश के सबसे बड़े खजाने वाले मन्दिरों में इसकी गिनती की जाती हैं. इसका इतिहास, निर्माण काल, महत्व, सातवें दरवाजे का रहस्य और आसपास के दर्शनीय स्थलों के बारे में इस आर्टिकल में विस्तार से पढेगे. श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास Padmanabhaswamy Temple History In Hindi केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित पद्मनाथस्वामी प्रसिद्ध हिन्दू मन्दिर हैं जो भगवान विष्णु को समर्पित हैं. इसके सम्बन्ध में कहा जाता है कि यहाँ स्थित विष्णु प्रतिमा की स्वयं भगवान कृष्ण के भाई बलराम ने पूजा की थी. दक्षिण भारत के वैष्णव मन्दिरों में यह अहम मंदिर हैं. हजारों वर्ष पुराने इस मन्दिर का पुनर्निर्माण त्रावणकोर राजपरिवार के एक वंशज मार्तण्ड वर्मा ने 1733 ई में करवाया. मन्दिर के विशाल गर्भगृह में शैय्या पर लेटे विष्णु की मूर्ति स्थापित है जिसके दर्शन करने के लिए देशभर से भक्त आते हैं. ऐसा भी कहा कि तिरुवनंतपुरम शहर भी विष्णु जी जिस शैय्या पर अनंत नाग पर विराजमान है उसी नाग के नाम पर हैं. केरल राज्य की संस्कृति का अनूठा संगम इस मन्दिर में देखने को मिलता हैं. महीन कारीगरी तथा अपनी सम्रद्धि के कारण भी मंदिर की अपनी पहचान हैं. पद्मनाभस्वामी मंदिर का इतिहास – Shree Padmanabhaswamy Temple History In Hindi केरल के प्रतिष्ठ...