तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूंगा किसने कहा था

  1. तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का नारा इसलिए दिया था नेताजी ने
  2. [Solved] किसने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें
  3. 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'करो या मरो' जैसे नारों से एकजुट हुए थे लोग, जानिए स्वतंत्रता संग्राम के इन नारों का इतिहास


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तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा का नारा इसलिए दिया था नेताजी ने

भारतीय स्वाधीनता संग्राम के सेनानी, भारत रत्न सम्मानित, स्वाधीनता संग्राम में नवीन प्राण फूंकने वाले सर्वकालिक नेताजी सुभाष चन्द्र बोस का जन्म पिता जानकी नाथ बोस व माता प्रभा देवी के घर 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक में हुआ था। वे अपने 8 भाइयों और 6 बहनों में नौवीं संतान थे। प्रारंभ से ही राजनीतिक परिवेश में पले बढ़े सुभाष चन्द्र बोस के जीवन पर बाल्यकाल से धार्मिक व आध्यात्मिक वातावरण का गहन प्रभाव था एवं उनके कोमल हृदय में बचपन से ही शोषितों व गरीबों के प्रति अपार श्रद्धा समाई हुई थी। उन्हें स्वामी विवेकानंद की आदर्शता और कर्मठता ने सतत आकर्षित किया। स्वामी विवेकानंद के साहित्य को पढ़कर उनकी धार्मिक जिज्ञासा और भी प्रबल हुई। सन 1902 में पांच वर्ष की उम्र में सुभाष का अक्षरारंभ संस्कार संपंन हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई कटक के मिशनरी स्कूल व आर. कालेजियट स्कूल से की व 1915 में प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया और दर्शन शास्त्र को अपना प्रिय विषय बना लिया। इस बीच 1916 में अंग्रेज प्रोफेसर ओटन द्वारा भारतीयों के लिए अपशब्द का प्रयोग करने पर ये सुभाष को सहन नहीं हुआ और उन्होंने प्रोफेसर को थप्पड़ मार दिया व पिटाई कर दी। इसको लेकर सुभाष को कॉलेज से निकाल दिया गया। बाद में 1917 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता आशुतोष मुखर्जी की मदद से उनका निष्कासन रद्द कर दिया गया। तभी से सुभाष के अंर्तमन में क्रांति की आग जलने लग गई थी और उनकी गिनती भी विद्रोहियों में की जाने लगी थी। दरअसल, सुभाष के पिता जानकी नाथ बोस पश्चिमी सभ्यता के रंग में रंग गए थे और वे सुभाष को सिविल सेवा के पदाधिकारी के रूप में देखना चाहते थे। पिता का सपना पूरा करने के लिए सुभाष ने सिविल सेवा की परीक्षा दी ही नहीं ...

[Solved] किसने नारा दिया 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें

सही उत्‍तर नेताजी सुभाष चंद्र बोसहै। Key Points • 'दिल्ली चलो' और ' तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा सुभाष चंद्र बोस ने दिया था। • उन्होंने 1944 में भारतीय राष्ट्रीय सेना (INA) को प्रेरित करने के लिए इस नारे का इस्तेमाल किया, जबINAने बर्मा के खिलाफ अपना सैन्य अभियान शुरू किया था। Additional Information प्रसिद्ध नारा नाम 'करो या मरो' महात्मा गांधी पूर्ण स्वराज जवाहर लाल नेहरू हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान भारतेंदु हरिश्चंद्र वेदों को ओर लौटें दयानंद सरस्वती भारत छोड़ो महात्मा गांधी मारो फिरंगोंको मंगल पांडे जय जगत विनोबा भावे वन्दे मातरम बंकिम चंद्र चटर्जी जन गण मन अधिनायक जय हे रविंद्रनाथ टैगोर स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है बाल गंगाधर तिलकी सरफरोशी की तमन्ना, अब हमारे दिल में है राम प्रसाद बिस्मिली सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा इकबाल साइमन कमीशन वापस जाओ लाला लाजपत राय व्हू लिव्स इफ इंडिया डाइस जवाहर लाल नेहरू तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा”। सुभाष चंद्र बोस सत्यमेव जयते" (सत्य की ही जीत होगी) पंडित मदन मोहन मालवीय "जय जवान जय किसान जय विज्ञान" अटल बिहारी वाजपेयी

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'करो या मरो' जैसे नारों से एकजुट हुए थे लोग, जानिए स्वतंत्रता संग्राम के इन नारों का इतिहास

'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'करो या मरो' जैसे नारों से एकजुट हुए थे लोग, जानिए स्वतंत्रता संग्राम के इन नारों का इतिहास 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' और 'करो या मरो' जैसे नारों से एकजुट हुए थे लोग, जानिए स्वतंत्रता संग्राम के इन नारों का इतिहास By August 11, 2022 11:57 AM 2022-08-11T11:57:53+5:30 2022-08-11T11:58:23+5:30 भारत की आजादी के लिए लोगों को एकजुट करने में कई जोशीले नारों ने भी बड़ी अहम भूमिका निभाई। जय हिंद, करो या मरो या तुम मुझे खून दो..मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसे नारों के पीछे की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। Highlights नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिन्द फौज के सैनिकों के अभिवादन के लिए जय हिंद का इस्तेमाल किया था। 'वंदे मातरम' नारे को बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के गीत ले लिया गया, बाद में ये गीत राष्ट्रीय गीत बनाया गया। 8 अगस्त 1942 में महात्मा गाधी ने मुंबई में लोगों को संबोधित करते हुए करो या मरो का मंत्र दिया। अंग्रेजों से आजादी के लिए भारत में कई आंदोलन हुए। इन आंदोलनों में जोश से भर देने वाले नारों का भी इस्तेमाल हुआ। चाहे 'जय हिंद' की बात कर ली जाए या 'वंदे मातरम'....ये नारे न सिर्फ आम जनता को अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एकजुट करने का जरिया बने बल्कि इन्ही नारों ने भारत की राजनीति भी बदल कर रख दी। इनमें से कई नारों का इस्तेमाल तो पिछले कुछ सालों में भी खूब हुआ है। इन नारों का इतिहास क्या है इन्हें किसने बनाया और कब-कब इनका इस्तेमाल हुआ, जानिए इंडियन एक्स्प्रेस ने अपनी एक रिपोर्ट में 2014 की किताब 'लेन्जेनडोट्स ऑफ हैदराबाद' का हवाला देते हुए बताया है कि सिविल सेवा में रहे नरेंद्र लूथर के अनुसार यह नारा हैदराबाद के एक कलेक्टर के ब...