उज्जैन से ओंकारेश्वर की दूरी कितनी है

  1. ओंकारेश्वर मन्दिर
  2. उज्जैन से अन्य ज्योतिर्लिंगों की दूरी रोचक, अंकों में दिखती है अजीब समानता
  3. उज्जैन से ओंकारेश्वर की दूरी कितनी है, उज्जैन से ओंकारेश्वर की दूरी कितनी है in Hindi
  4. ओंकारेश्वर से उज्जैन
  5. उज्जैन
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ओंकारेश्वर मन्दिर

ॐकारेश्वर मंदिर धर्म संबंधी जानकारी सम्बद्धता ॐ अवस्थिति जानकारी अवस्थिति वास्तु विवरण शैली हिन्दू निर्माता स्वयंभू स्थापित अति प्राचीन ॐकारेश्वर एक ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं • ॐकारेश्वर • ममलेश्वर ॐकारेश्वर का निर्माण जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है। इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है। इसमें 68 तीर्थ हैं। यहाँ 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं। मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के रूप में विराजमान हैं। । ओंकारेश्वर प्रारंभ में भील राजाओं की राजधानी थी । लंबे समय तक ओम्कारेश्वर देवी कथा [ ] राजा मान्यता [ ] नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहाँ नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदाजी का भी विशेष महत्व है। शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन का स्नान तथा गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार, माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणम...

उज्जैन से अन्य ज्योतिर्लिंगों की दूरी रोचक, अंकों में दिखती है अजीब समानता

उज्जैन. देश के 12 ज्योतिर्लिगों में एक विश्व प्रसिद्ध भगवान महाकालेश्वर में अगले साल होने वाले सिंहस्थ के पहले उज्जैन से भारत के अन्य ज्योतिर्लिंगो की प्राचीन दूरियों के रोचक आंकड़े सामने आए हैं। एक स्थान से दूसरे स्थान की दूरियों को यदि जोड़ा जाए तो इनके अंकों में अजीब समानता आती है। जैसे 111, 777, 666, 999 किमी। हालांकि, अब कुछ नए मार्ग और बायपास बनने से इन दूरियों में बदलाव आ गया है। आधिकारिक जानकारी के अनुसार, अतिप्राचीन मंदिर भगवान महाकालेश्वर से एमपी के विभिन्न तीर्थ स्थलों और देश के अन्य तीर्थ स्थलों की दूरी का भी एक अलग महत्व है। नए मार्ग और बायपास, बनने से आया अंतर हालांकि, वर्तमान में कुछ नए मार्गों और बायपास के बन जाने से इन ज्योतिर्लिंगों की दूरियों में आंशिक बदलाव हुआ है। अब उज्जैन से मल्लिकार्जुन 1090 किमी, केदारनाथ 902 किमी, त्रयंबकेश्वर 503 किमी, घृष्णेश्वर 533 किमी, रामेश्वरम 2091 किमी. और ओंकारेश्वर 113 किमी दूरी पर स्थित हैं।

द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम 'द्विवेदी युग' पड़ा। इसे 'जागरण सुधारकाल' भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग 'इतिवृत्तात्मक युग' था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे। जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही यह काल 'द्विवेदी युग' के नाम से जाना जाता है। इसे 'जागरण-सुधारकाल' भी कहा जाता है। इस समय ब्रिटिश दमन-चक्र बहुत बढ़ गया था। जनता में असंतोष और क्षोभ की भावना प्रबल थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा लोगों का अर्थिक-शोषण भी चरम पर था। देश के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं द्वारा पूर्ण-स्वराज्य की मांग की जा रही थी। गोपालकृष्ण गोखले और लोकमान्य गंगाधर तिलक जैसे नेता देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रहे थे। इस काल के साहित्यकारों ने न...

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ओंकारेश्वर से उज्जैन

ओंकारेश्वर से उज्जैन की दूरी : अगर आप ओंकारेश्वर से उज्जैन (omkareshwar to ujjain distance) की ओर जा रहे है तो आपको बता दे की इसके लिए आपको लगभग 3.5 किलोमीटर की दुरी तय करनी पड़ेगी जिसमे आपको अपनी गाड़ी से 15 मिनट का समय लग सकता है। इसके अलावा अगर आप पैदल जाते है तो आपको लगभग 3 किलोमीटर की दुरी तय करनी पड़ेगी जिसमे आपको 37 मिनट तक का समय लग सकता है। श्री ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग : यह चमत्कारी मन्दिर भारत के मध्यप्रदेश राज्य के खंडवा जिले में स्थित है। प्रतिवर्ष देश-विदेश से लोग यहाँ मन्दिर के दर्शन करने के लिए आते है। आपकी बेहतर जानकारी के लिए बता दे की भगवान शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंग (omkareshwar in hindi) में चौथा ओम्कारेश्वर है। ओमकार (places to visit in omkareshwar) का उच्चारण सर्वप्रथम स्रष्टिकर्ता ब्रह्मा के मुख से हुआ था। वेद पाठ का प्रारंभ भी ॐ के बिना नहीं होता है। उसी ओमकार स्वरुप ज्योतिर्लिंग श्री ओम्कारेश्वर है, इसका मतलब ये हुआ की यहाँ भगवान शिव ओम्कार स्वरुप में प्रकट हुए हैं। यह भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगओं (omkareshwar indore) में से एक है, सदियों पहले भील जनजाति ने इस जगह पर लोगो की बस्तियां बसाई और अब यह जगह अपनी भव्यता और इतिहास से प्रसिद्ध है। अगर आप भी यहाँ जाना (how to reach omkareshwar) चाहते है तो आपको बता दे की ओमकारेश्वर मंदिर प्रातः 5 बजे खुल जाता है और यहां पर आरती होती है और यह मंदिर रात के 10 बजे तक खुला रहता है। ज्योतिर्लिंग क्या होते है? ज्योतिर्लिंग वे स्थान कहलाते हैं जहाँ पर भगवान शिव स्वयं प्रकट हुए थे एवं ज्योति रूप में स्थापित हैं। प्रणव ओम्कारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन से समस्त पाप भस्म हो जाते है। Shri Omkareshwar Jyotirlinga Addr...

उज्जैन

विवरण प्रकृति की गोद में राज्य ज़िला मार्ग स्थिति यह शहर सड़कमार्ग द्वारा प्रसिद्धि इसको कैसे पहुँचें किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है। क्या देखें एस.टी.डी. कोड 0176 अन्य जानकारी उज्जैन कालिदास की नगरी भी कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 इतिहास उज्जैन का प्राचीन इतिहास काफ़ी विस्तृत है। यहाँ के गढ़ क्षेत्र में हुई खुदाई में ऐतिहासिक एवं प्रारंभिक लौह युगीन सामग्री अत्यधिक मात्रा में प्राप्त हुई है। कालीदास की प्रिय नगरी उज्जयिनी के इतिहास प्रसिद्ध राजा अपनी रचना ' प्रमाणिक इतिहास उज्जयिनी का प्रमाणिक इतिहास ई. सन 600 मौर्य शासक ' मौर्य साम्राज्य का पतन मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक अशोक के बाद उज्जयिनी गुप्त साम्राज्य चौथी शताब्दी ई. में अन्य राजवंशों का अधिकार सातवीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत इसी समय मराठों का अधिकार सन 1737 ई. में उज्जैन पर आज भी उज्जयिनी में अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर और भवन हैं, जिनमें भगवान महाकालेश्वर मंदिर, चौबीस खंभा देवी, आधुनिक उज्जैन उज्जैन नगर विंध्य पर्वतमाला के पास और पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23 डिग्री .50' उत्तर देशांश और 75 डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर है। नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। यहाँ की भूमि उपजाऊ है। महाकवि कालिदास और महान् रचनाकार उज्जैन भारत के इतिहास के अनेक बड़े परिवर्तनों का गवाह है। क्षिप्रा के अंतस्थल में इस ऐतिहासिक नगर के उत्थान और पतन की अनोखी और स्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के प्राकृतिक घाटों पर प्राकृतिक सौन्दर्य की अनोखी छटा बिखरी हुई है, जहाँ असंख्य लोगों का आवागमन रहता है, चाहे रंगों से परिपूर्ण कार्तिक मेला हो या भीड़ से भरा सि...

ओंकारेश्वर मन्दिर

ॐकारेश्वर मंदिर धर्म संबंधी जानकारी सम्बद्धता ॐ अवस्थिति जानकारी अवस्थिति वास्तु विवरण शैली हिन्दू निर्माता स्वयंभू स्थापित अति प्राचीन ॐकारेश्वर एक ॐ के आकार में बना है। यहां दो मंदिर स्थित हैं • ॐकारेश्वर • ममलेश्वर ॐकारेश्वर का निर्माण जिस ओंकार शब्द का उच्चारण सर्वप्रथम सृष्टिकर्ता विधाता के मुख से हुआ, वेद का पाठ इसके उच्चारण किए बिना नहीं होता है। इस ओंकार का भौतिक विग्रह ओंकार क्षेत्र है। इसमें 68 तीर्थ हैं। यहाँ 33 कोटि देवता परिवार सहित निवास करते हैं तथा 2 ज्योतिस्वरूप लिंगों सहित 108 प्रभावशाली शिवलिंग हैं। मध्यप्रदेश में देश के प्रसिद्ध 12 ज्योतिर्लिंगों में से 2 ज्योतिर्लिंग विराजमान हैं। एक उज्जैन में महाकाल के रूप में और दूसरा ओंकारेश्वर में ओम्कारेश्वर- ममलेश्वर के रूप में विराजमान हैं। । ओंकारेश्वर प्रारंभ में भील राजाओं की राजधानी थी । लंबे समय तक ओम्कारेश्वर देवी कथा [ ] राजा मान्यता [ ] नर्मदा क्षेत्र में ओंकारेश्वर सर्वश्रेष्ठ तीर्थ है। शास्त्र मान्यता है कि कोई भी तीर्थयात्री देश के भले ही सारे तीर्थ कर ले किन्तु जब तक वह ओंकारेश्वर आकर किए गए तीर्थों का जल लाकर यहाँ नहीं चढ़ाता उसके सारे तीर्थ अधूरे माने जाते हैं। ओंकारेश्वर तीर्थ के साथ नर्मदाजी का भी विशेष महत्व है। शास्त्र मान्यता के अनुसार जमुनाजी में 15 दिन का स्नान तथा गंगाजी में 7 दिन का स्नान जो फल प्रदान करता है, उतना पुण्यफल नर्मदाजी के दर्शन मात्र से प्राप्त हो जाता है। ओंकारेश्वर तीर्थ क्षेत्र में चौबीस अवतार, माता घाट (सेलानी), सीता वाटिका, धावड़ी कुंड, मार्कण्डेय शिला, मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, अन्नपूर्णाश्रम, विज्ञान शाला, बड़े हनुमान, खेड़ापति हनुमान, ओंकार मठ, माता आनंदमयी आश्रम, ऋणम...

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उज्जैन

विवरण प्रकृति की गोद में राज्य ज़िला मार्ग स्थिति यह शहर सड़कमार्ग द्वारा प्रसिद्धि इसको कैसे पहुँचें किसी भी शहर से बस और टैक्सी द्वारा पहुँचा जा सकता है। क्या देखें एस.टी.डी. कोड 0176 अन्य जानकारी उज्जैन कालिदास की नगरी भी कहा जाता है। उज्जैन में हर 12 इतिहास उज्जैन का प्राचीन इतिहास काफ़ी विस्तृत है। यहाँ के गढ़ क्षेत्र में हुई खुदाई में ऐतिहासिक एवं प्रारंभिक लौह युगीन सामग्री अत्यधिक मात्रा में प्राप्त हुई है। कालीदास की प्रिय नगरी उज्जयिनी के इतिहास प्रसिद्ध राजा अपनी रचना ' प्रमाणिक इतिहास उज्जयिनी का प्रमाणिक इतिहास ई. सन 600 मौर्य शासक ' मौर्य साम्राज्य का पतन मौर्य साम्राज्य के प्रसिद्ध शासक अशोक के बाद उज्जयिनी गुप्त साम्राज्य चौथी शताब्दी ई. में अन्य राजवंशों का अधिकार सातवीं शताब्दी में दिल्ली सल्तनत इसी समय मराठों का अधिकार सन 1737 ई. में उज्जैन पर आज भी उज्जयिनी में अनेक धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक मंदिर और भवन हैं, जिनमें भगवान महाकालेश्वर मंदिर, चौबीस खंभा देवी, आधुनिक उज्जैन उज्जैन नगर विंध्य पर्वतमाला के पास और पवित्र क्षिप्रा नदी के किनारे समुद्र तल से 1678 फीट की ऊंचाई पर 23 डिग्री .50' उत्तर देशांश और 75 डिग्री .50' पूर्वी अक्षांश पर है। नगर का तापमान और वातावरण समशीतोष्ण है। यहाँ की भूमि उपजाऊ है। महाकवि कालिदास और महान् रचनाकार उज्जैन भारत के इतिहास के अनेक बड़े परिवर्तनों का गवाह है। क्षिप्रा के अंतस्थल में इस ऐतिहासिक नगर के उत्थान और पतन की अनोखी और स्पष्ट अनुभूतियां अंकित है। क्षिप्रा के प्राकृतिक घाटों पर प्राकृतिक सौन्दर्य की अनोखी छटा बिखरी हुई है, जहाँ असंख्य लोगों का आवागमन रहता है, चाहे रंगों से परिपूर्ण कार्तिक मेला हो या भीड़ से भरा सि...

द्विवेदी युग का समय सन 1900 से 1920 तक माना जाता है। बीसवीं शताब्दी के पहले दो दशक के पथ-प्रदर्शक, विचारक और साहित्य नेता आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही इस काल का नाम 'द्विवेदी युग' पड़ा। इसे 'जागरण सुधारकाल' भी कहा जाता है। महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के ऐसे पहले लेखक थे, जिन्होंने अपनी जातीय परंपरा का गहन अध्ययन ही नहीं किया था, अपितु उसे आलोचकीय दृष्टि से भी देखा। उन्होंने वेदों से लेकर पंडितराज जगन्नाथ तक के संस्कृत साहित्य की निरंतर प्रवाहमान धारा का अवगाहन किया एवं उपयोगिता तथा कलात्मक योगदान के प्रति एक वैज्ञानिक नज़रिया अपनाया। कविता की दृष्टि से द्विवेदी युग 'इतिवृत्तात्मक युग' था। इस समय आदर्शवाद का बोलबाला रहा। भारत का उज्ज्वल अतीत, देश-भक्ति, सामाजिक सुधार, स्वभाषा-प्रेम आदि कविता के मुख्य विषय थे। नीतिवादी विचारधारा के कारण श्रृंगार का वर्णन मर्यादित हो गया। कथा-काव्य का विकास इस युग की विशेषता है। मैथिलीशरण गुप्त, अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध', श्रीधर पाठक, रामनरेश त्रिपाठी आदि इस युग के यशस्वी कवि थे। जगन्नाथदास 'रत्नाकर' ने इसी युग में ब्रजभाषा में सरस रचनाएँ प्रस्तुत कीं। नामकरण आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम पर ही यह काल 'द्विवेदी युग' के नाम से जाना जाता है। इसे 'जागरण-सुधारकाल' भी कहा जाता है। इस समय ब्रिटिश दमन-चक्र बहुत बढ़ गया था। जनता में असंतोष और क्षोभ की भावना प्रबल थी। ब्रिटिश शासकों द्वारा लोगों का अर्थिक-शोषण भी चरम पर था। देश के स्वाधीनता संग्राम के नेताओं द्वारा पूर्ण-स्वराज्य की मांग की जा रही थी। गोपालकृष्ण गोखले और लोकमान्य गंगाधर तिलक जैसे नेता देश के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व कर रहे थे। इस काल के साहित्यकारों ने न...